"श्रीकृष्ण के नाम": अवतरणों में अंतर
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भगवान 'श्रीहरि' अर्थात [[विष्णु]] निर्वाण मोक्ष प्रदान करने वाले हैं, इसीलिए वे 'कृष्ण' कहे गये हैं। [[हिन्दू]] धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में [[श्रीकृष्ण]] को स्वयं भगवान विष्णु का [[अवतार]] माना गया है। सभी [[देवता|देवताओं]] में इन्हें सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। लोगों का यह विश्वास है कि श्रीकृष्ण का नाम लेने मात्र से ही सभी पाप कट जाते हैं। इनका भजन, कीर्तन और [[भक्ति]] करने से बड़ा पुण्य मिलता है। | [[चित्र:Makhanchor.jpg|thumb|250px|[[श्रीकृष्ण]] का बाल रूप]] | ||
भगवान 'श्रीहरि' अर्थात [[विष्णु]] निर्वाण मोक्ष प्रदान करने वाले हैं, इसीलिए वे 'कृष्ण' कहे गये हैं। [[हिन्दू]] धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में [[श्रीकृष्ण]] को स्वयं भगवान विष्णु का [[अवतार]] माना गया है। सभी [[देवता|देवताओं]] में इन्हें सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। लोगों का यह विश्वास है कि श्रीकृष्ण का नाम लेने मात्र से ही सभी पाप कट जाते हैं। इनका भजन, [[कीर्तन]] और [[भक्ति]] करने से बड़ा पुण्य मिलता है। | |||
==नाम का अर्थ== | ==नाम का अर्थ== | ||
भगवान निष्कर्म भक्ति के दाता हैं, इसीलिए उनका नाम 'कृष्ण' है। 'कृष्' का अर्थ है- 'कर्मों का निर्मूलन', 'ण' का अर्थ है- 'दास्यभाव' और 'अकार' प्राप्ति का बोधक है। वे कर्मों का समूल नाश करके [[भक्ति]] की प्राप्ति कराते हैं, इसीलिए [[कृष्ण]] कहे गये हैं। नन्द! भगवान के करोड़ों नामों का स्मरण करने पर जिस फल की प्राप्ति होती है, वह सब केवल कृष्ण नाम का स्मरण करने से मनुष्य अवश्य प्राप्त कर लेता है। | भगवान निष्कर्म भक्ति के दाता हैं, इसीलिए उनका नाम 'कृष्ण' है। 'कृष्' का अर्थ है- 'कर्मों का निर्मूलन', 'ण' का अर्थ है- 'दास्यभाव' और 'अकार' प्राप्ति का बोधक है। वे कर्मों का समूल नाश करके [[भक्ति]] की प्राप्ति कराते हैं, इसीलिए [[कृष्ण]] कहे गये हैं। नन्द! भगवान के करोड़ों नामों का स्मरण करने पर जिस फल की प्राप्ति होती है, वह सब केवल कृष्ण नाम का स्मरण करने से मनुष्य अवश्य प्राप्त कर लेता है। | ||
====नाम स्मरण का पुण्य==== | ====नाम स्मरण का पुण्य==== | ||
कृष्ण नाम के स्मरण का जैसा पुण्य है, उसके कीर्तन और श्रवण से भी वैसा ही पुण्य होता है। श्रीकृष्ण के कीर्तन, श्रवण और स्मरण आदि से मनुष्य के करोड़ों जन्मों के पाप का नाश हो जाता है। भगवान [[विष्णु]] के सब नामों में कृष्ण नाम ही सबकी अपेक्षा सारतम वस्तु और परात्पर तत्त्व है। कृष्ण नाम अत्यन्त मंगलमय, सुन्दर तथा भक्तिदायक है। 'ककार' के उच्चारण से भक्त पुरुष जन्म मृत्यु का नाश करने वाले कैवल्य मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। 'ऋकार' के उच्चारण से भगवान का अनुपम दास्यभाव प्राप्त होता है। 'षकार' के उच्चारण से उनकी मनोवांछित भक्ति सुलभ होती है। 'णकार' के उच्चारण से तत्काल ही उनके साथ निवास का सौभाग्य प्राप्त होता है और 'विसर्ग' के उच्चारण से उनके सारूप्य की उपलब्धि होती है, इसमें संशय नहीं है। 'ककार' का उच्चारण होते ही यमदूत कांपने लगते हैं। 'ऋकार' का उच्चारण होने पर ठहर जाते हैं, आगे नहीं बढ़ते। 'षकार' के उच्चारण से पातक, 'णकार' के उच्चारण से रोग तथा 'अकार' के उच्चारण से मृत्यु- ये सब निश्चय ही भाग खड़े होते हैं, क्योंकि वे नामोच्चारण से डरते हैं। | कृष्ण नाम के स्मरण का जैसा पुण्य है, उसके [[कीर्तन]] और श्रवण से भी वैसा ही पुण्य होता है। श्रीकृष्ण के कीर्तन, श्रवण और स्मरण आदि से मनुष्य के करोड़ों जन्मों के पाप का नाश हो जाता है। भगवान [[विष्णु]] के सब नामों में कृष्ण नाम ही सबकी अपेक्षा सारतम वस्तु और परात्पर तत्त्व है। कृष्ण नाम अत्यन्त मंगलमय, सुन्दर तथा भक्तिदायक है। 'ककार' के उच्चारण से भक्त पुरुष जन्म मृत्यु का नाश करने वाले कैवल्य मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। 'ऋकार' के उच्चारण से भगवान का अनुपम दास्यभाव प्राप्त होता है। 'षकार' के उच्चारण से उनकी मनोवांछित भक्ति सुलभ होती है। 'णकार' के उच्चारण से तत्काल ही उनके साथ निवास का सौभाग्य प्राप्त होता है और 'विसर्ग' के उच्चारण से उनके सारूप्य की उपलब्धि होती है, इसमें संशय नहीं है। 'ककार' का उच्चारण होते ही यमदूत कांपने लगते हैं। 'ऋकार' का उच्चारण होने पर ठहर जाते हैं, आगे नहीं बढ़ते। 'षकार' के उच्चारण से पातक, 'णकार' के उच्चारण से रोग तथा 'अकार' के उच्चारण से मृत्यु- ये सब निश्चय ही भाग खड़े होते हैं, क्योंकि वे नामोच्चारण से डरते हैं। | ||
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11:24, 13 फ़रवरी 2014 के समय का अवतरण
भगवान 'श्रीहरि' अर्थात विष्णु निर्वाण मोक्ष प्रदान करने वाले हैं, इसीलिए वे 'कृष्ण' कहे गये हैं। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में श्रीकृष्ण को स्वयं भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। सभी देवताओं में इन्हें सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। लोगों का यह विश्वास है कि श्रीकृष्ण का नाम लेने मात्र से ही सभी पाप कट जाते हैं। इनका भजन, कीर्तन और भक्ति करने से बड़ा पुण्य मिलता है।
नाम का अर्थ
भगवान निष्कर्म भक्ति के दाता हैं, इसीलिए उनका नाम 'कृष्ण' है। 'कृष्' का अर्थ है- 'कर्मों का निर्मूलन', 'ण' का अर्थ है- 'दास्यभाव' और 'अकार' प्राप्ति का बोधक है। वे कर्मों का समूल नाश करके भक्ति की प्राप्ति कराते हैं, इसीलिए कृष्ण कहे गये हैं। नन्द! भगवान के करोड़ों नामों का स्मरण करने पर जिस फल की प्राप्ति होती है, वह सब केवल कृष्ण नाम का स्मरण करने से मनुष्य अवश्य प्राप्त कर लेता है।
नाम स्मरण का पुण्य
कृष्ण नाम के स्मरण का जैसा पुण्य है, उसके कीर्तन और श्रवण से भी वैसा ही पुण्य होता है। श्रीकृष्ण के कीर्तन, श्रवण और स्मरण आदि से मनुष्य के करोड़ों जन्मों के पाप का नाश हो जाता है। भगवान विष्णु के सब नामों में कृष्ण नाम ही सबकी अपेक्षा सारतम वस्तु और परात्पर तत्त्व है। कृष्ण नाम अत्यन्त मंगलमय, सुन्दर तथा भक्तिदायक है। 'ककार' के उच्चारण से भक्त पुरुष जन्म मृत्यु का नाश करने वाले कैवल्य मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। 'ऋकार' के उच्चारण से भगवान का अनुपम दास्यभाव प्राप्त होता है। 'षकार' के उच्चारण से उनकी मनोवांछित भक्ति सुलभ होती है। 'णकार' के उच्चारण से तत्काल ही उनके साथ निवास का सौभाग्य प्राप्त होता है और 'विसर्ग' के उच्चारण से उनके सारूप्य की उपलब्धि होती है, इसमें संशय नहीं है। 'ककार' का उच्चारण होते ही यमदूत कांपने लगते हैं। 'ऋकार' का उच्चारण होने पर ठहर जाते हैं, आगे नहीं बढ़ते। 'षकार' के उच्चारण से पातक, 'णकार' के उच्चारण से रोग तथा 'अकार' के उच्चारण से मृत्यु- ये सब निश्चय ही भाग खड़े होते हैं, क्योंकि वे नामोच्चारण से डरते हैं।
नाम
क्र. सं. | नाम | क्र. सं. | नाम |
---|---|---|---|
1. | पीताम्बर | 2. | कंसध्वंसी |
3. | विष्टरश्रवा | 4. | देवकीनन्दन |
5. | श्रीश | 6. | यशोदानन्दन |
7. | हरि | 8. | सनातन |
9. | अच्युत | 10. | विष्णु |
11. | सर्वेश | 12. | सर्वरूपधृक |
13. | सर्वाधार | 14. | सर्वगति |
15. | सर्वकारणकारण | 16. | राधाबन्धु |
17. | राधिकात्मा | 18. | राधिकाजीवन |
19. | राधिकासहचारी | 20. | राधामानसपूरक |
21. | राधाधन | 22. | राधिकांग |
23. | राधिकासक्तमानस | 24. | राधाप्राण |
25. | राधिकेश | 26. | राधिकारमण |
27. | राधिकाचित्तचोर | 28. | राधाप्राणाधिक |
29. | प्रभु | 30. | परिपूर्णतम |
31. | ब्रह्म | 32. | गोविन्द |
33. | गरुड़ध्वज |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
ब्रह्मवैवर्तपुराण |प्रकाशक: गीताप्रेस गोरखपुर, गोविन्दभवन कार्यालय, कोलकाता का संस्थान |पृष्ठ संख्या: 451 |
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