"गागरोन दुर्ग": अवतरणों में अंतर
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|विवरण='गागरोन दुर्ग' [[राजस्थान]] के प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थानों में से एक है। [[काली सिन्ध]] और आहू नदियों के [[संगम]] पर बना यह क़िला जल-दुर्ग की श्रेणी में आता है। | |||
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'''गागरोन दुर्ग''' [[राजस्थान]] के [[झालावाड़]] में स्थित है। यह प्रसिद्ध [[दुर्ग]] 'जल-दुर्ग' का बेहतरीन उदाहरण है। गागरोन दुर्ग [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] एकता का प्रतीक है। यहाँ [[सूफ़ी मत|सूफ़ी]] संत मीठे शाह की दरगाह भी है। मधुसूदन और [[हनुमान|हनुमान जी]] का मंदिर भी देखने लायक है। [[विश्व धरोहर स्थल|विश्व धरोहर]] में शामिल किए गए इस अभेद्य दुर्ग की नींव सातवीं सदी में रखी गई थी और चौदहवीं सदी तक इसका निर्माण पूर्ण हुआ। यहाँ [[मोहर्रम]] के महीने में हर साल बड़ा आयोजन होता है, जिसमें सूफ़ी संत मीठे शाह की दरगाह में दुआ करने सैंकड़ों की संख्या में मुस्लिम एकत्र होते हैं। वहीं मधुसूदन और हनुमान मंदिर में भी बड़ी संख्या में हिन्दू माथा टेकते हैं। | '''गागरोन दुर्ग''' [[राजस्थान]] के [[झालावाड़]] में स्थित है। यह प्रसिद्ध [[दुर्ग]] 'जल-दुर्ग' का बेहतरीन उदाहरण है। गागरोन दुर्ग [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] एकता का प्रतीक है। यहाँ [[सूफ़ी मत|सूफ़ी]] संत मीठे शाह की दरगाह भी है। मधुसूदन और [[हनुमान|हनुमान जी]] का मंदिर भी देखने लायक है। [[विश्व धरोहर स्थल|विश्व धरोहर]] में शामिल किए गए इस अभेद्य दुर्ग की नींव सातवीं सदी में रखी गई थी और चौदहवीं सदी तक इसका निर्माण पूर्ण हुआ। यहाँ [[मोहर्रम]] के महीने में हर साल बड़ा आयोजन होता है, जिसमें सूफ़ी संत मीठे शाह की दरगाह में दुआ करने सैंकड़ों की संख्या में मुस्लिम एकत्र होते हैं। वहीं मधुसूदन और हनुमान मंदिर में भी बड़ी संख्या में हिन्दू माथा टेकते हैं। | ||
==स्थिति तथा निर्माण== | ==स्थिति तथा निर्माण== | ||
[[झालावाड़]] से | [[झालावाड़]] से 10 कि.मी. की दूरी पर [[अरावली पर्वतमाला]] की एक सुदृढ़ चट्टान पर [[काली सिन्ध]] और आहू नदियों के संगम पर बना यह क़िला जल-दुर्ग की श्रेणी में आता है। इस क़िले का निर्माण कार्य डोड राजा बीजलदेव ने बारहवीं सदी में करवाया था। दुर्गम पथ, चौतरफ़ा विशाल खाई तथा मजबूत दीवारों के कारण यह [[दुर्ग]] अपने आप में अनूठा और अद्भुत है। यह दुर्ग शौर्य ही नहीं, [[भक्ति]] और त्याग की गाथाओं का साक्षी है। | ||
====विस्तार==== | |||
गागरोन दुर्ग झालावाड़ तक फैली विंध्यालच की श्रेणियों में एक मध्यम ऊंचाई की पठारनुमा पहाड़ी पर निर्मित है। दुर्ग 722 हेक्टेयर भूमि पर फैला हुआ है। गागरोन का | गागरोन दुर्ग झालावाड़ तक फैली [[विंध्य पर्वतमाला|विंध्यालच की श्रेणियों]] में एक मध्यम ऊंचाई की पठारनुमा पहाड़ी पर निर्मित है। दुर्ग 722 हेक्टेयर भूमि पर फैला हुआ है। गागरोन का क़िला जल-दुर्ग होने के साथ-साथ पहाड़ी दुर्ग भी है। इस क़िले के एक ओर पहाड़ी तो तीन ओर [[जल]] घिरा हुआ है। क़िले के दो मुख्य प्रवेश द्वार हैं। एक द्वार नदी की ओर निकलता है तो दूसरा पहाड़ी रास्ते की ओर। क़िला चारों ओर से ऊंची प्राचीरों से घिरा हुआ है। दुर्ग की ऊंचाई धरातल से 10-15 से 25 मीटर तक है। क़िले के पृष्ठ भाग में स्थित ऊंची और खड़ी पहाड़ी ’गिद्ध कराई’ इस दुर्ग की रक्षा किया करती थी। पहाड़ी दुर्ग के रास्ते को दुर्गम बना देती है।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.pinkcity.com/hi/jhalawar-2/gagron-fort-jhalawar/|title= गागरोन दुर्ग, झालावाड़|accessmonthday= 22 अक्टूबर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=पिंकसिटी.कॉम |language= हिन्दी}}</ref> | ||
==गौरवमयी इतिहास== | |||
गागरोन दुर्ग अपने गौरवमयी इतिहास के कारण भी जाना जाता है और उल्लेखनीय स्थान रखता है। यह दुर्ग खींची राजपूत क्षत्रियों की वीरता और क्षत्राणियों की महानता का गुणगान करता है। कहा जाता है एक बार यहां के वीर शासक अचलदास खींची ने शौर्य के साथ [[मालवा]] के शासक हुशंगशाह से युद्ध किया। दुश्मन ने [[धर्म]] की आड़ में धोखा किया और कपट से अचलदास को हरा दिया। तारागढ़ के दुर्ग में राजा अचलदास के बंदी बनाए जाने से खलबली मच गई। [[राजपूत]] महिलाओं को प्राप्त करने के लिए क़िले को चारों ओर से घेर लिया गया; लेकिन क्षत्राणियों ने संयुक्त रूप से 'जौहर' कर शत्रुओं को उनके नापाक इरादों में कामयाब नहीं होने दिया। इस तरह यह [[दुर्ग]] [[राजस्थान]] के गौरवमयी इतिहास का जीता जागता उदाहरण है। | |||
==एकता का प्रतीक== | ==एकता का प्रतीक== | ||
इस अभेद्य [[दुर्ग]] की नींव सातवीं सदी में रखी गई और चौदहवीं सदी तक इसका निर्माण पूर्ण हुआ। यह दुर्ग [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] एकता का ख़ास प्रतीक है। यहां [[मोहर्रम]] के महीने में हर साल बड़ा आयोजन होता है, जिसमें सूफ़ी संत मीठेशाह की दरगाह में दुआ करने सैकड़ों की संख्या में मुस्लिम एकत्र होते हैं। वहीं मधुसूदन और हनुमान मंदिर में भी बड़ी संख्या में हिन्दू माथा टेकते हैं। इसके अलावा यहां [[रामानंद|गुरू रामानंद]] के आठ शिष्यों में से एक [[संत पीपा]] का मठ भी है। | |||
इस अभेद्य दुर्ग की नींव सातवीं सदी में रखी गई और चौदहवीं सदी तक इसका निर्माण पूर्ण हुआ। यह दुर्ग हिन्दू मुस्लिम एकता का | ==शिल्पकला== | ||
[[दुर्ग]] में अठारवीं और उन्नीसवीं सदी में झाला राजपूतों के शासन के समय के बेलबूटेदार अलंकरण और धनुषाकार द्वार, शीश महल, जनाना महल, मर्दाना महल आदि आकर्षित करते हैं। यहां उन्नीसवीं सदी के शासक जालिम सिंह झाला द्वारा निर्मित अनेक स्थल राजपूती स्थापत्य का बेजोड़ नमूना हैं। इसके अलावा सोलवहीं सदी की दरगाह व अठारहवीं सदी के मदनमोहन मंदिर व हनुमान मंदिर भी अपनी बनावट से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। [[राजस्थान]] के अन्य क़िलों की भांति गागरोन क़िले में भी अनेक स्मारक, जलाशय, कुएं, भंडारण के लिए कई इमारतें और बस्तियों के रहने लायक स्थल मौजूद हैं।<ref name="aa"/> | |||
== | ====मौत का क़िला==== | ||
गागरोन दुर्ग की ख़ात विशेषता यह भी है कि इस दुर्ग का इस्तेमाल अधिकांशत: शत्रुओं को मृत्युदंड देने के लिए किया जाता था। गागरोन के क़िले का स्थापत्य बारहवीं सदी के खींची राजपूतों की डोडिया और सैन्य कलाओं की ओर इंगित करता है। प्राचीरों के भीतर स्थित महल में राजसभाएं लगती थीं और किनारे पर स्थित मंदिर में राजा-महाराजा [[पूजा]], उपासना किया करते थे। | |||
==आकर्षण== | ==आकर्षण== | ||
गागरोन का | गागरोन का क़िला अपने प्राकृतिक वातावरण के साथ-साथ रणनीतिक कौशल के आधार पर निर्मित होने के कारण भी विशेष स्थान रखता है। यहां बड़े पैमान पर हुए ऐतिहासिक निर्माण और गौरवशाली [[इतिहास]] पर्यटकों का विशेष रूप से ध्यान आकर्षित करते हैं। दुर्ग में 'गणेश पोल', 'नक्कारखाना', 'भैरवी पोल', 'किशन पोल', 'सिलेहखाना का दरवाज़ा' आदि क़िले में प्रवेश के लिए महत्पवूर्ण दरवाज़े हैं। इसके अलावा 'दीवान-ए-आम', 'दीवान-ए-ख़ास', 'जनाना महल', 'मधुसूदन मंदिर', 'रंग महल' आदि दुर्ग परिसर में बने अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल हैं। क़िले की पश्चिमी दीवार से सटा 'सिलेहखाना' उस दौर में हथियार और गोला-बारूद जमा करने का गोदाम था। एक तरफ़ गिद्ध कराई की खाई से सुरक्षित और तीन तरफ़ से [[काली सिंध]] और अहू नदियों के पानी से घिरे इस दुर्ग की ख़ास विशेषता यह है कि यह दुर्ग जल की रक्षा भी करता रहा है और जल से रक्षित भी होता रहा है। यह एक ऐसा दुर्लभ दुर्ग है, जो एक साथ [[जल]], वन और पहाड़ी दुर्ग है। दुर्ग के चारों ओर मुकुंदगढ़ क्षेत्र स्थित है। | ||
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[[झालावाड़]] दक्षिण-पूर्वी [[राजस्थान]] में [[मालवा]] के पठार में स्थित [[मध्य प्रदेश]] की सीमा से लगा हुआ ज़िला है। यह [[कोटा राजस्थान|कोटा शहर]] से 88 कि.मी. की दूरी पर है। गागरोन दुर्ग तक पहुंचने के लिए कोटा से झालावाड़ के लिए अच्छा सड़क मार्ग है और पर्याप्त मात्रा में बसें उपलब्ध हैं। कोटा डेयरी पार करने के बाद यहां से मार्ग पर 'टी' प्वाइंट है। बायें हाथ का रास्ता झालावाड़ की ओर जाता है और दायें हाथ का रास्ता रावतभाटा की ओर। झालावाड़ से गागरोन दुर्ग की दूरी 10 कि.मी. के क़रीब है। झालावाड़ से गागरोन के लिए ऑटो या टैक्सी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।<ref name="aa"/> | |||
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*[http://rajgkbook.blogspot.in/2012/03/blog-post_3878.html राजस्थान का स्थापत्य-दुर्ग स्थापत्य] | *[http://rajgkbook.blogspot.in/2012/03/blog-post_3878.html राजस्थान का स्थापत्य-दुर्ग स्थापत्य] | ||
*[http://www.apnimaati.com/2012/11/blog-post_6860.html इतिहास के पन्नों में गागरोन का दुर्ग] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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14:09, 16 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
गागरोन दुर्ग
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विवरण | 'गागरोन दुर्ग' राजस्थान के प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थानों में से एक है। काली सिन्ध और आहू नदियों के संगम पर बना यह क़िला जल-दुर्ग की श्रेणी में आता है। |
राज्य | राजस्थान |
ज़िला | झालावाड़ |
निर्माता | राजा बीजलदेव |
निर्माण काल | बारहवीं सदी |
भौगोलिक स्थिति | झालावाड़ से लगभग 10 कि.मी. की दूरी पर स्थित। |
प्रसिद्धि | ऐतिहासिक स्थान तथा पर्यटन स्थल। |
क्या देखें | 'संत मीठे शाह की दरगाह', 'मधुसूदन' तथा 'हनुमान मंदिर', 'दीवान-ए-आम', 'दीवान-ए-ख़ास', 'जनाना महल' तथा 'रंग महल' आदि। |
संबंधित लेख | राजस्थान, राजस्थान का इतिहास, भारत के दुर्ग
|
अन्य जानकारी | गागरोन दुर्ग अपने प्राकृतिक वातावरण के साथ-साथ रणनीतिक कौशल के आधार पर निर्मित होने के कारण भी विशेष स्थान रखता है। यहां बड़े पैमान पर हुए ऐतिहासिक निर्माण और गौरवशाली इतिहास पर्यटकों का विशेष रूप से ध्यान आकर्षित करते हैं। |
गागरोन दुर्ग राजस्थान के झालावाड़ में स्थित है। यह प्रसिद्ध दुर्ग 'जल-दुर्ग' का बेहतरीन उदाहरण है। गागरोन दुर्ग हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। यहाँ सूफ़ी संत मीठे शाह की दरगाह भी है। मधुसूदन और हनुमान जी का मंदिर भी देखने लायक है। विश्व धरोहर में शामिल किए गए इस अभेद्य दुर्ग की नींव सातवीं सदी में रखी गई थी और चौदहवीं सदी तक इसका निर्माण पूर्ण हुआ। यहाँ मोहर्रम के महीने में हर साल बड़ा आयोजन होता है, जिसमें सूफ़ी संत मीठे शाह की दरगाह में दुआ करने सैंकड़ों की संख्या में मुस्लिम एकत्र होते हैं। वहीं मधुसूदन और हनुमान मंदिर में भी बड़ी संख्या में हिन्दू माथा टेकते हैं।
स्थिति तथा निर्माण
झालावाड़ से 10 कि.मी. की दूरी पर अरावली पर्वतमाला की एक सुदृढ़ चट्टान पर काली सिन्ध और आहू नदियों के संगम पर बना यह क़िला जल-दुर्ग की श्रेणी में आता है। इस क़िले का निर्माण कार्य डोड राजा बीजलदेव ने बारहवीं सदी में करवाया था। दुर्गम पथ, चौतरफ़ा विशाल खाई तथा मजबूत दीवारों के कारण यह दुर्ग अपने आप में अनूठा और अद्भुत है। यह दुर्ग शौर्य ही नहीं, भक्ति और त्याग की गाथाओं का साक्षी है।
विस्तार
गागरोन दुर्ग झालावाड़ तक फैली विंध्यालच की श्रेणियों में एक मध्यम ऊंचाई की पठारनुमा पहाड़ी पर निर्मित है। दुर्ग 722 हेक्टेयर भूमि पर फैला हुआ है। गागरोन का क़िला जल-दुर्ग होने के साथ-साथ पहाड़ी दुर्ग भी है। इस क़िले के एक ओर पहाड़ी तो तीन ओर जल घिरा हुआ है। क़िले के दो मुख्य प्रवेश द्वार हैं। एक द्वार नदी की ओर निकलता है तो दूसरा पहाड़ी रास्ते की ओर। क़िला चारों ओर से ऊंची प्राचीरों से घिरा हुआ है। दुर्ग की ऊंचाई धरातल से 10-15 से 25 मीटर तक है। क़िले के पृष्ठ भाग में स्थित ऊंची और खड़ी पहाड़ी ’गिद्ध कराई’ इस दुर्ग की रक्षा किया करती थी। पहाड़ी दुर्ग के रास्ते को दुर्गम बना देती है।[1]
गौरवमयी इतिहास
गागरोन दुर्ग अपने गौरवमयी इतिहास के कारण भी जाना जाता है और उल्लेखनीय स्थान रखता है। यह दुर्ग खींची राजपूत क्षत्रियों की वीरता और क्षत्राणियों की महानता का गुणगान करता है। कहा जाता है एक बार यहां के वीर शासक अचलदास खींची ने शौर्य के साथ मालवा के शासक हुशंगशाह से युद्ध किया। दुश्मन ने धर्म की आड़ में धोखा किया और कपट से अचलदास को हरा दिया। तारागढ़ के दुर्ग में राजा अचलदास के बंदी बनाए जाने से खलबली मच गई। राजपूत महिलाओं को प्राप्त करने के लिए क़िले को चारों ओर से घेर लिया गया; लेकिन क्षत्राणियों ने संयुक्त रूप से 'जौहर' कर शत्रुओं को उनके नापाक इरादों में कामयाब नहीं होने दिया। इस तरह यह दुर्ग राजस्थान के गौरवमयी इतिहास का जीता जागता उदाहरण है।
एकता का प्रतीक
इस अभेद्य दुर्ग की नींव सातवीं सदी में रखी गई और चौदहवीं सदी तक इसका निर्माण पूर्ण हुआ। यह दुर्ग हिन्दू-मुस्लिम एकता का ख़ास प्रतीक है। यहां मोहर्रम के महीने में हर साल बड़ा आयोजन होता है, जिसमें सूफ़ी संत मीठेशाह की दरगाह में दुआ करने सैकड़ों की संख्या में मुस्लिम एकत्र होते हैं। वहीं मधुसूदन और हनुमान मंदिर में भी बड़ी संख्या में हिन्दू माथा टेकते हैं। इसके अलावा यहां गुरू रामानंद के आठ शिष्यों में से एक संत पीपा का मठ भी है।
शिल्पकला
दुर्ग में अठारवीं और उन्नीसवीं सदी में झाला राजपूतों के शासन के समय के बेलबूटेदार अलंकरण और धनुषाकार द्वार, शीश महल, जनाना महल, मर्दाना महल आदि आकर्षित करते हैं। यहां उन्नीसवीं सदी के शासक जालिम सिंह झाला द्वारा निर्मित अनेक स्थल राजपूती स्थापत्य का बेजोड़ नमूना हैं। इसके अलावा सोलवहीं सदी की दरगाह व अठारहवीं सदी के मदनमोहन मंदिर व हनुमान मंदिर भी अपनी बनावट से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। राजस्थान के अन्य क़िलों की भांति गागरोन क़िले में भी अनेक स्मारक, जलाशय, कुएं, भंडारण के लिए कई इमारतें और बस्तियों के रहने लायक स्थल मौजूद हैं।[1]
मौत का क़िला
गागरोन दुर्ग की ख़ात विशेषता यह भी है कि इस दुर्ग का इस्तेमाल अधिकांशत: शत्रुओं को मृत्युदंड देने के लिए किया जाता था। गागरोन के क़िले का स्थापत्य बारहवीं सदी के खींची राजपूतों की डोडिया और सैन्य कलाओं की ओर इंगित करता है। प्राचीरों के भीतर स्थित महल में राजसभाएं लगती थीं और किनारे पर स्थित मंदिर में राजा-महाराजा पूजा, उपासना किया करते थे।
आकर्षण
गागरोन का क़िला अपने प्राकृतिक वातावरण के साथ-साथ रणनीतिक कौशल के आधार पर निर्मित होने के कारण भी विशेष स्थान रखता है। यहां बड़े पैमान पर हुए ऐतिहासिक निर्माण और गौरवशाली इतिहास पर्यटकों का विशेष रूप से ध्यान आकर्षित करते हैं। दुर्ग में 'गणेश पोल', 'नक्कारखाना', 'भैरवी पोल', 'किशन पोल', 'सिलेहखाना का दरवाज़ा' आदि क़िले में प्रवेश के लिए महत्पवूर्ण दरवाज़े हैं। इसके अलावा 'दीवान-ए-आम', 'दीवान-ए-ख़ास', 'जनाना महल', 'मधुसूदन मंदिर', 'रंग महल' आदि दुर्ग परिसर में बने अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल हैं। क़िले की पश्चिमी दीवार से सटा 'सिलेहखाना' उस दौर में हथियार और गोला-बारूद जमा करने का गोदाम था। एक तरफ़ गिद्ध कराई की खाई से सुरक्षित और तीन तरफ़ से काली सिंध और अहू नदियों के पानी से घिरे इस दुर्ग की ख़ास विशेषता यह है कि यह दुर्ग जल की रक्षा भी करता रहा है और जल से रक्षित भी होता रहा है। यह एक ऐसा दुर्लभ दुर्ग है, जो एक साथ जल, वन और पहाड़ी दुर्ग है। दुर्ग के चारों ओर मुकुंदगढ़ क्षेत्र स्थित है।
कैसे पहुंचें
झालावाड़ दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में मालवा के पठार में स्थित मध्य प्रदेश की सीमा से लगा हुआ ज़िला है। यह कोटा शहर से 88 कि.मी. की दूरी पर है। गागरोन दुर्ग तक पहुंचने के लिए कोटा से झालावाड़ के लिए अच्छा सड़क मार्ग है और पर्याप्त मात्रा में बसें उपलब्ध हैं। कोटा डेयरी पार करने के बाद यहां से मार्ग पर 'टी' प्वाइंट है। बायें हाथ का रास्ता झालावाड़ की ओर जाता है और दायें हाथ का रास्ता रावतभाटा की ओर। झालावाड़ से गागरोन दुर्ग की दूरी 10 कि.मी. के क़रीब है। झालावाड़ से गागरोन के लिए ऑटो या टैक्सी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 गागरोन दुर्ग, झालावाड़ (हिन्दी) पिंकसिटी.कॉम। अभिगमन तिथि: 22 अक्टूबर, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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