"एथलेटिक्स": अवतरणों में अंतर
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चार्स बोर्रोमियों (800 मीटर) व बहादुर सिंह (गोला फेंक) उत्कृष्ट विजेता रहे, मुख्यत: पुरुषों के वर्चस्व वाले अंतर्राष्ट्रीय खेलकूद परिदृश्य में एम.डी. वालसम्मा की 400 मीटर बाधा दौड़ में विजय किसी भारतीय महिला द्वारा पहला उत्कृष्ट प्रदर्शन था। [[1986]] के सिओल एशियाई खेल [[पी.टी. उषा]] के शानदार प्रदर्शन के लिए याद किए जाते हैं। उन्होंने 200 मीटर, 400 मीटर दौड़ व 400 मीटर बाधा दौड़ में स्वर्ण, 100 मीटर दौड़ में रजत व 400 मीटर रिले दौड़ के विजेता दल की सदस्य के रूप में स्वर्ण जीता। [[1990]] के बीजिंग एशियाई खेल व [[1994]] के हिरोशिमा एशियाड भारत के लिए निराशाजनक सिद्ध हुए। [[1998]] के सत्र के साथ ही ज्योतिर्मय सिकदर की महिलाओं की 800 मीटर व 1,500 मीटर स्पर्द्धाओं में असाधारण विजय से इस खेल को काफ़ी बढ़ावा मिला। उन्होंने ये उपलब्धियां बैंकाक के 13वें एशियाई खेलों में प्राप्त की। | चार्स बोर्रोमियों (800 मीटर) व बहादुर सिंह (गोला फेंक) उत्कृष्ट विजेता रहे, मुख्यत: पुरुषों के वर्चस्व वाले अंतर्राष्ट्रीय खेलकूद परिदृश्य में एम.डी. वालसम्मा की 400 मीटर बाधा दौड़ में विजय किसी भारतीय महिला द्वारा पहला उत्कृष्ट प्रदर्शन था। [[1986]] के सिओल एशियाई खेल [[पी.टी. उषा]] के शानदार प्रदर्शन के लिए याद किए जाते हैं। उन्होंने 200 मीटर, 400 मीटर दौड़ व 400 मीटर बाधा दौड़ में स्वर्ण, 100 मीटर दौड़ में रजत व 400 मीटर रिले दौड़ के विजेता दल की सदस्य के रूप में स्वर्ण जीता। [[1990]] के बीजिंग एशियाई खेल व [[1994]] के हिरोशिमा एशियाड भारत के लिए निराशाजनक सिद्ध हुए। [[1998]] के सत्र के साथ ही ज्योतिर्मय सिकदर की महिलाओं की 800 मीटर व 1,500 मीटर स्पर्द्धाओं में असाधारण विजय से इस खेल को काफ़ी बढ़ावा मिला। उन्होंने ये उपलब्धियां बैंकाक के 13वें एशियाई खेलों में प्राप्त की। | ||
==भारतीय एथलेटिक्स व राष्ट्रमंडल खेल== | ==भारतीय एथलेटिक्स व राष्ट्रमंडल खेल== | ||
[[राष्ट्रमंडल खेल|राष्ट्रमंडल खेलों]] में भारतीयों की सीमित सफलता ने खेल | [[राष्ट्रमंडल खेल|राष्ट्रमंडल खेलों]] में भारतीयों की सीमित सफलता ने खेल जगत् को उनकी ओर से उदासीन बना दिया है। यह महसूस किया गया कि जब तक ट्रैक ऐंड फ़ील्ड स्पर्द्धाओं में कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं होगी, इन खेलों में भाग लेना केवल प्रतीकात्मक अथवा नहीं के बराबर होगा। अत: [[1998]] में कुआलालंपुर में एशियाई भूमि पर हुए पहले राष्ट्रमंडल खेलों में, भारतीय खिलाड़ियों ने भाग नहीं लिया। | ||
==भारतीय एथलेटिक्स व ओलम्पिक== | ==भारतीय एथलेटिक्स व ओलम्पिक== | ||
जब [[1900]] को [[ओलम्पिक खेल]] हुए, [[कलकत्ता]] के नॉर्मन प्रिचर्ड पेरिस में छुट्टियां मना रहे थे। वह 200 मीटर दौड़ में दूसरे स्थान पर रहे और 200 मीटर बाधा दौड़ में उन्होंने रजत पदक जीता। प्रिचर्ड ओलम्पिक पदक जीतने वाले पहले एशियाई थे। भारतीय ओलम्पिक संघ की स्थापना [[1923]] में हुई और इस संगठन ने 1923 के पेरिस ओलम्पिक में सात सदस्यीय दल को प्रवेश दिलाने में प्रमुख भूमिका निभाई। इस खेल में दलीप सिंह लंबी कूद में सातवें स्थान पर रहे। [[1932]] के लॉस एंजेलिस खेलों में [[भारत]] के मर्विन सट्टन 110 मीटर बाधा दौड़ में सातवें स्थान पर रहे। [[1948]] के लंदन ओलम्पिक में युवा हेनरी रेबेलो ने तिहरी कूद स्पर्द्धा के अंतिम दौर में प्रवेश किया, लेकिन मांसपेशियों में सिंचाव की वजह से उसमें भाग नहीं ले पाए। फिर भी रेबेलो के प्रयास ने एक प्रमुख खेल के तौर पर एथलेटिक्स के प्रति नई जागरूकता का संचार किया। लैवी पिंटो हेलसिंकी ओलम्पिक में 100 मीटर व 200 मीटर, दोनों ही स्पर्द्धाओं के पूर्व-अंतिम दौर (सेमी फ़ाइनल) में पहुंचे। पूर्व-अंतिम दौर तक पहुंचने वाले एक अन्य खिलाड़ी 800 मीटर दौड़ में सोहन सिंह थे। रोम ओलम्पिक में [[मिल्खा सिंह]] ने अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए पुरुषों की 400 मीटर स्पर्द्धा में चौथे स्थान पर रहकर 45.6 सेकंड का कीर्तिमान बनाया, जो इस स्पर्द्धा में 38 वर्षों तक सर्वोच्चम भारतीय समय रहा। [[1960]] के खेलों में ज़ोरा सिंह भी 50 किमी पैदल चाल के अंतिम दौर में आठवें स्थान पर रहे। चार वर्ष बाद टोकियों में भारत का एक और खिलाड़ी ओलम्पिक के अंतिम दौर में पहुंचा, गुरबचन सिंह रंधावा 110 मीटर बाधा दौड़ में पांचवे स्थान पर रहें। मॉंट्रियल ओलम्पिक में श्रीराम सिंह ने 800 मीटर दौड़ के अंतिम दौर नें भारत का सर्वोच्च कीर्तिमान बनाया। शिवनाथ सिंह मैराथन में 11वें स्थान पर रहे। [[1980]] में मॉस्को में [[पी.टी. उषा]] का आगमन हुआ। [[1984]] के लॉस एंजेलिस ओलम्पिक में वह नए भारतीय कीर्तिमान के साथ महिलाओं की 400 मीटर बाधा दौड़ के अंतिम दौर में पहुंचीं। उन्होंने महिलाओं के 400 मीटर रिले दल को अंतिम दौर में सम्मानजनक सातवां स्थान दिलाया। | जब [[1900]] को [[ओलम्पिक खेल]] हुए, [[कलकत्ता]] के नॉर्मन प्रिचर्ड पेरिस में छुट्टियां मना रहे थे। वह 200 मीटर दौड़ में दूसरे स्थान पर रहे और 200 मीटर बाधा दौड़ में उन्होंने रजत पदक जीता। प्रिचर्ड ओलम्पिक पदक जीतने वाले पहले एशियाई थे। भारतीय ओलम्पिक संघ की स्थापना [[1923]] में हुई और इस संगठन ने 1923 के पेरिस ओलम्पिक में सात सदस्यीय दल को प्रवेश दिलाने में प्रमुख भूमिका निभाई। इस खेल में दलीप सिंह लंबी कूद में सातवें स्थान पर रहे। [[1932]] के लॉस एंजेलिस खेलों में [[भारत]] के मर्विन सट्टन 110 मीटर बाधा दौड़ में सातवें स्थान पर रहे। [[1948]] के लंदन ओलम्पिक में युवा हेनरी रेबेलो ने तिहरी कूद स्पर्द्धा के अंतिम दौर में प्रवेश किया, लेकिन मांसपेशियों में सिंचाव की वजह से उसमें भाग नहीं ले पाए। फिर भी रेबेलो के प्रयास ने एक प्रमुख खेल के तौर पर एथलेटिक्स के प्रति नई जागरूकता का संचार किया। लैवी पिंटो हेलसिंकी ओलम्पिक में 100 मीटर व 200 मीटर, दोनों ही स्पर्द्धाओं के पूर्व-अंतिम दौर (सेमी फ़ाइनल) में पहुंचे। पूर्व-अंतिम दौर तक पहुंचने वाले एक अन्य खिलाड़ी 800 मीटर दौड़ में सोहन सिंह थे। रोम ओलम्पिक में [[मिल्खा सिंह]] ने अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए पुरुषों की 400 मीटर स्पर्द्धा में चौथे स्थान पर रहकर 45.6 सेकंड का कीर्तिमान बनाया, जो इस स्पर्द्धा में 38 वर्षों तक सर्वोच्चम भारतीय समय रहा। [[1960]] के खेलों में ज़ोरा सिंह भी 50 किमी पैदल चाल के अंतिम दौर में आठवें स्थान पर रहे। चार वर्ष बाद टोकियों में भारत का एक और खिलाड़ी ओलम्पिक के अंतिम दौर में पहुंचा, गुरबचन सिंह रंधावा 110 मीटर बाधा दौड़ में पांचवे स्थान पर रहें। मॉंट्रियल ओलम्पिक में श्रीराम सिंह ने 800 मीटर दौड़ के अंतिम दौर नें भारत का सर्वोच्च कीर्तिमान बनाया। शिवनाथ सिंह मैराथन में 11वें स्थान पर रहे। [[1980]] में मॉस्को में [[पी.टी. उषा]] का आगमन हुआ। [[1984]] के लॉस एंजेलिस ओलम्पिक में वह नए भारतीय कीर्तिमान के साथ महिलाओं की 400 मीटर बाधा दौड़ के अंतिम दौर में पहुंचीं। उन्होंने महिलाओं के 400 मीटर रिले दल को अंतिम दौर में सम्मानजनक सातवां स्थान दिलाया। |
13:50, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
एथलेटिक्स (अंग्रेज़ी: Athletics) प्रतिस्पर्धात्मक दौड़ने, कूदने, फेंकने और चलने की प्रतियोगिताओं का एक विशेष संग्रह है। एथलेटिक्स संगठित खेलों का प्राचीनतम रूप है, जो 776 ई.पू. से 393 ई. तक ओलम्पिक खेलों का व अन्य पारंपरिक खेलों का भी एक भाग रहा। ओलम्पिक खेलों की मूल पैदल दौड़ों में बाद में मुक्केबाजी व कुश्ती के खेल जोड़े गए। और एथलेटिक स्पर्दाएं जैसे दौड़, लंबी कूदी, चक्का फेंक व भाला फेंक को कुश्ती के साथ जोड़कर प्राचीन पेंटाथलॉन (पांच प्रकार की स्पर्द्धओं का सामूहिक खेल) बनाया गया।
एशियाई खेलों में भारत
20वीं शताब्दी के एशिया में संगठित एथलेटिक्स की शुरुआत मनीला में 1913 में आयोजित सुदूर पूर्व एथलेटिक्स स्पर्द्धा से हुई। ये खेल प्रत्येक दो वर्षों में आयोजित किए जाते थे और इन खेलों की सफलता से 1934 में इनका विस्तार हुआ। इसी समय एक ऐसी ही स्पर्द्धा की योजना भारतीय उपमहाद्वीप व पश्चिम एशिया में भी बनी, जिसके परिणामस्वरूप उसी वर्ष नई दिल्ली में पहले पश्चिम एशियाई खेलों का आयोजन हुआ। भारत ने इंटरनेशबल एमेच्योर एथलेटिक फ़ेडरेशन (आई.ए.ए.एफ़.) की सदस्यता 1946 में ग्रहण की, हालांकि राष्ट्रीय स्पर्द्धाओं की शुरुआत 1940 के दशक में चुकी थी। वास्तव में वास्तव में एशियाई खेलों की धारणा पंजाब के अग्रणी शिक्षाविद् और अंतराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति के सदस्य प्रोफ़ेसर गुरुदत्त सोंधी की परिकल्पना थी। पहले एशियाई खेल 1951 में नई दिल्ली में पटियाला के पूर्व महाराजा यादवेंद्र सिंह की अध्यक्षता में हुए। ये अयंत सफल रहे। भारत ने 1982 में पुन: एशियाई खेलों की मेज़बानी की। एशियाई ट्रैक ऐंड फ़ील्ड स्पर्द्धाओं की शुरुआत 1973 में हुई और 1989 में ये प्रतिस्पर्द्धाएं नई दिल्ली में हुईं।
भारत का प्रदर्शन
1951 में प्रथम एशियाई खेल एक सामान्य आयोजन था। जहां जापान लगभग अधिकांश ट्रैक ऐंड फ़ील्ड स्पर्द्धाओं में छाया रहा, वहीं भारतीयों ने प्रशंसनीय प्रदर्शन किया। इस अवसर के मुख्य आकर्षण बंबई (वर्तमान मुंबई) के धावल लैवी पिंटों थे, जिन्होंने 100 मीटर व 200 मीटर, दोनों ही दौडें जीतीं। इन खेलों में भारत ने 10 स्वर्ण जीते, एक ऐसा असाधारण प्रदर्शन, जिसे फिर कभी दुहराया नहीं जा सका। मनीला के दूसरे एशियाई खेलों में भारत के प्रमुख खिलाडी रहे प्रद्युम्न सिंह, जिन्होंने गोला व चक्का फेंक स्पर्द्धाएं जीतीं। अजीत सिंह ने ऊंची कूद में विजय पाई और सरवन सिंह ने 110 मीटर बाधा दौड़ जीती। 1958 में टोकियों एशियाई खेलों में भारत के मिलखा सिंह ने अपने पदार्पण के साथ ही 200 मीटर व 400 मीटर में विजय प्राप्त की। 1970 के बैंकाक खेलों में कमलजीत संधू 400 मीटर स्पर्द्धा के अंतिम दौर में पहला स्थान प्राप्त कर एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं 1974 के सातवें एशियाई खेलों में तेहरान में एथलेटिक्स में वर्चस्व के लिए चीन, जापान व भारत के बीच रोमांचक संघर्ष हुआ। उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले भारतीय विजेता थे, श्रीराम सिंह (800 मीटर), टी.सी. योहान्नन (लंबी कूद), शिवनाथ सिंज (5,000 मीटर) और वी.एस. चौहान (डेकेथलॉन)। थाईलैंड में 1978 में हुए आठवें खेलों में भारत ने आठ स्वर्ण जीते, जिसमें एकमात्र महिला गीता जुत्शी ने 800 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक प्राप्त किया। 1982 के एशियाई खेलों के लिए नई दिल्ली में खेदकूद की सुविधाएं बढ़ाने के लिए वृहद प्रयास किए गए। इस वर्ष चीन ने एशिया में खेलों में नेतृत्व हासिल किया, जापान दूसरे स्थान पर आया। पहले से कहीं अधिक कठिन स्पर्द्धाओं में भारतीय खिलाड़ियों ने काफ़ी अच्छा प्रदर्शन किया।
चार्स बोर्रोमियों (800 मीटर) व बहादुर सिंह (गोला फेंक) उत्कृष्ट विजेता रहे, मुख्यत: पुरुषों के वर्चस्व वाले अंतर्राष्ट्रीय खेलकूद परिदृश्य में एम.डी. वालसम्मा की 400 मीटर बाधा दौड़ में विजय किसी भारतीय महिला द्वारा पहला उत्कृष्ट प्रदर्शन था। 1986 के सिओल एशियाई खेल पी.टी. उषा के शानदार प्रदर्शन के लिए याद किए जाते हैं। उन्होंने 200 मीटर, 400 मीटर दौड़ व 400 मीटर बाधा दौड़ में स्वर्ण, 100 मीटर दौड़ में रजत व 400 मीटर रिले दौड़ के विजेता दल की सदस्य के रूप में स्वर्ण जीता। 1990 के बीजिंग एशियाई खेल व 1994 के हिरोशिमा एशियाड भारत के लिए निराशाजनक सिद्ध हुए। 1998 के सत्र के साथ ही ज्योतिर्मय सिकदर की महिलाओं की 800 मीटर व 1,500 मीटर स्पर्द्धाओं में असाधारण विजय से इस खेल को काफ़ी बढ़ावा मिला। उन्होंने ये उपलब्धियां बैंकाक के 13वें एशियाई खेलों में प्राप्त की।
भारतीय एथलेटिक्स व राष्ट्रमंडल खेल
राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीयों की सीमित सफलता ने खेल जगत् को उनकी ओर से उदासीन बना दिया है। यह महसूस किया गया कि जब तक ट्रैक ऐंड फ़ील्ड स्पर्द्धाओं में कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं होगी, इन खेलों में भाग लेना केवल प्रतीकात्मक अथवा नहीं के बराबर होगा। अत: 1998 में कुआलालंपुर में एशियाई भूमि पर हुए पहले राष्ट्रमंडल खेलों में, भारतीय खिलाड़ियों ने भाग नहीं लिया।
भारतीय एथलेटिक्स व ओलम्पिक
जब 1900 को ओलम्पिक खेल हुए, कलकत्ता के नॉर्मन प्रिचर्ड पेरिस में छुट्टियां मना रहे थे। वह 200 मीटर दौड़ में दूसरे स्थान पर रहे और 200 मीटर बाधा दौड़ में उन्होंने रजत पदक जीता। प्रिचर्ड ओलम्पिक पदक जीतने वाले पहले एशियाई थे। भारतीय ओलम्पिक संघ की स्थापना 1923 में हुई और इस संगठन ने 1923 के पेरिस ओलम्पिक में सात सदस्यीय दल को प्रवेश दिलाने में प्रमुख भूमिका निभाई। इस खेल में दलीप सिंह लंबी कूद में सातवें स्थान पर रहे। 1932 के लॉस एंजेलिस खेलों में भारत के मर्विन सट्टन 110 मीटर बाधा दौड़ में सातवें स्थान पर रहे। 1948 के लंदन ओलम्पिक में युवा हेनरी रेबेलो ने तिहरी कूद स्पर्द्धा के अंतिम दौर में प्रवेश किया, लेकिन मांसपेशियों में सिंचाव की वजह से उसमें भाग नहीं ले पाए। फिर भी रेबेलो के प्रयास ने एक प्रमुख खेल के तौर पर एथलेटिक्स के प्रति नई जागरूकता का संचार किया। लैवी पिंटो हेलसिंकी ओलम्पिक में 100 मीटर व 200 मीटर, दोनों ही स्पर्द्धाओं के पूर्व-अंतिम दौर (सेमी फ़ाइनल) में पहुंचे। पूर्व-अंतिम दौर तक पहुंचने वाले एक अन्य खिलाड़ी 800 मीटर दौड़ में सोहन सिंह थे। रोम ओलम्पिक में मिल्खा सिंह ने अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए पुरुषों की 400 मीटर स्पर्द्धा में चौथे स्थान पर रहकर 45.6 सेकंड का कीर्तिमान बनाया, जो इस स्पर्द्धा में 38 वर्षों तक सर्वोच्चम भारतीय समय रहा। 1960 के खेलों में ज़ोरा सिंह भी 50 किमी पैदल चाल के अंतिम दौर में आठवें स्थान पर रहे। चार वर्ष बाद टोकियों में भारत का एक और खिलाड़ी ओलम्पिक के अंतिम दौर में पहुंचा, गुरबचन सिंह रंधावा 110 मीटर बाधा दौड़ में पांचवे स्थान पर रहें। मॉंट्रियल ओलम्पिक में श्रीराम सिंह ने 800 मीटर दौड़ के अंतिम दौर नें भारत का सर्वोच्च कीर्तिमान बनाया। शिवनाथ सिंह मैराथन में 11वें स्थान पर रहे। 1980 में मॉस्को में पी.टी. उषा का आगमन हुआ। 1984 के लॉस एंजेलिस ओलम्पिक में वह नए भारतीय कीर्तिमान के साथ महिलाओं की 400 मीटर बाधा दौड़ के अंतिम दौर में पहुंचीं। उन्होंने महिलाओं के 400 मीटर रिले दल को अंतिम दौर में सम्मानजनक सातवां स्थान दिलाया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- पुस्तक- भारत ज्ञानकोश खंड-1 | पृष्ठ संख्या- 259| प्रकाशक- एन्साक्लोपीडिया ब्रिटैनिका, नई दिल्ली
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