मिलखा सिंह
| |
पूरा नाम | मिलखा सिंह |
अन्य नाम | 'उड़ता सिख' |
जन्म | 20 नवंबर, 1929 |
जन्म भूमि | गोविंदपुरा, पंजाब (आज़ादी पूर्व) |
मृत्यु | 18 जून, 2021 |
मृत्यु स्थान | चंडीगढ़, पंजाब |
पति/पत्नी | निर्मल कौर |
संतान | जीव मिलखा सिंह |
कर्म भूमि | भारत |
खेल-क्षेत्र | ट्रैक एंड फील्ड |
पुरस्कार-उपाधि | पद्मश्री (1959), एशियाई खेलों (1958), (1962), कॉमनवेल्थ खेलों, (1958) |
प्रसिद्धि | धावक (उड़न सिक्ख) |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | पी. टी. उषा, शायनी विल्सन |
अन्य जानकारी | मिलखा सिंह अपनी अदभुत गति के कारण 'उड़ता सिख' (FLYING SIKH) के नाम से जाने गए। वह देश के सर्वश्रेष्ठ एथलीटों में एक जाना पहचाना नाम है। उनका गौरवपूर्ण खेल जीवन सदैव युवा खिलाड़ियों को अधिक से अधिक शानदार प्रदर्शन के लिए प्रेरणा देता है। |
मिलखा सिंह (अंग्रेज़ी: Milkha Singh, जन्म- 20 नवंबर, 1929; मृत्यु- 18 जून, 2021) भारत के ऐसे प्रसिद्ध धावक थे जिन्हें लोग फ्लाइंग सिक्ख के नाम से जानते हैं। सन 1956 में मेलबर्न में आयोजित हुए ओलंपिक खेलों में उन्होंने पहली बार 200 मीटर और 400 मीटर की रेस में भाग लिया था। मिलखा सिंह ने 1958 में कटक में आयोजित नेशनल गेम्स में 200 मीटर और 400 मीटर स्पर्धा में रिकॉर्ड बनाए। इसके बाद उसी साल टोक्यो में आयोजित हुए एशियन गेम्स में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में भी गोल्ड मेडल अपने नाम किया। साल 1958 में ही इंग्लैंड के कार्डिफ में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में मिलखा सिंह ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए 400 मीटर की रेस में गोल्ड मेडल अपने नाम किया। उस समय आज़ाद भारत में कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने वाले वे पहले भारतीय थे।
परिचय
मिलखा सिंह का जन्म 20 नवम्बर, 1929 गोविंदपुरा (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा हैं) में एक सिक्ख परिवार में हुआ था। उनका बचपन बेहद कठिन दौर से गुजरा। भारत के विभाजन के बाद हुए दंगों में मिलखा सिंह ने अपने माता-पिता और कई भाई-बहन को खो दिया। उनके अंदर दौड़ने को लेकर एक जुनून बचपन से ही था। वह अपने घर से स्कूल और स्कूल से घर की 10 किलोमीटर की दूरी दौड़ कर पूरी करते थे। 9वीं पास करने के बाद वे मेकैनिकल व्यवसाय में संलग्न हो गए। 1953 में वे सेना में भर्ती हो गये। सेना में रहकर उन्होंने दौड़-कूद की और विशेष ध्यान दिया और 400 मीटर की दौड़ की तैयारियाँ प्रारम्भ कर दीं।
'फ्लाइंग सिक्ख' का खिताब
मिलखा सिंह को मिले 'फ्लाइंग सिक्ख' के खिताब की कहानी बेहद दिलचस्प है और इसका संबंध पाकिस्तान से जुड़ा हुआ है। 1960 के रोम ओलिंपिक में पदक से चूकने का मिलखा सिंह के मन में खासा मलाल था। इसी साल उन्हें पाकिस्तान में आयोजित इंटरनेशनल एथलीट कम्पटिशन में हिस्सा लेने का न्योता मिला। मिलखा के मन में लंबे समय से बंटवारे का दर्द था और वहां से जुड़ी यादों के चलते वह पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे। हालांकि बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समझाने पर उन्होंने पाकिस्तान जाने का फैसला किया।[1]
पाकिस्तान में उस समय एथलेटिक्स में अब्दुल खालिक का नाम बेहद मशहूर था। उन्हें वहां का सबसे तेज धावक माना जाता था। यहां मिलखा सिंह का मुकाबला उन्हीं से था। अब्दुल खालिक के साथ हुई इस दौड़ में हालात मिलखा के खिलाफ थे और पूरा स्टेडियम अपने हीरो का जोश बढ़ा रहा था लेकिन मिलखा की रफ्तार के सामने खालिक टिक नहीं पाए। रेस के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने मिलखा सिंह को 'फ्लाइंग सिक्ख' का नाम दिया और कहा "आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो। इसलिए हम तुम्हें फ्लाइंग सिख का खिताब देते हैं"। इसके बाद से ही मिलखा सिंह इस नाम से दुनिया भर में मशहूर हो गए। खेलों में उनके अतुल्य योगदान के लिये भारत सरकार ने उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान 'पद्मश्री' से भी सम्मानित किया।
भारतीय सेना में आगमन
चार बार कोशिश करने के बाद साल 1951 में मिलखा सिंह सेना में भर्ती हुए। भर्ती के दौरान हुई क्रॉस-कंट्री रेस में वह छठे स्थान पर आये थे, इसलिए सेना ने उन्हें खेलकूद में स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुना था। इस दौरान सिकंदराबाद के ईएमई सेंटर में ही उन्हें धावक के तौर पर अपने टैलेंट के बारे में पता चला और वहीं से उनके कॅरियर की शुरुआत हुई। मिलखा पर एथलीट बनने का जुनून इस कदर हावी हो गया था कि वह अभ्यास के लिए चलती ट्रेन के साथ दौड़ लगाते थे। इस दौरान कई बार उनका खून भी बह जाता था और सांस भी नहीं ली जाती थी, लेकिन फिर भी वह दिन-रात लगातार अभ्यास करते रहते थे।
सन 1956 में मेलबर्न में आयोजित हुए ओलंपिक खेलों में उन्होंने पहली बार 200 मीटर और 400 मीटर की रेस में भाग लिया। एक एथलीट के तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनका ये पहला अनुभव भले ही अच्छा न रहा हो लेकिन ये टूर उनके लिए आगे चलकर बेहद फायदेमंद साबित हुआ। उस दौरान विश्व चैंपियन एथलीट चार्ल्स जेनकिंस के साथ हुई मुलाकात ने उनके लिए भविष्य में बहुत बड़ी प्रेरणा का काम किया।[1]
भारत को स्वर्ण दिलाने वाले प्रथम भारतीय
मिलखा सिंह ने साल 1958 में कटक में आयोजित नेशनल गेम्स में 200 मीटर और 400 मीटर स्पर्धा में रिकॉर्ड बनाए। इसके बाद उसी साल टोक्यो में आयोजित हुए एशियन गेम्स में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में भी गोल्ड मेडल अपने नाम किया। साल 1958 में ही इंग्लैंड के कार्डिफ में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में मिलखा ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए 400 मीटर की रेस में गोल्ड मेडल अपने नाम किया.।उस समय आजाद भारत में कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को स्वर्ण पदक जीताने वाले वे पहले भारतीय थे।
सन 1958 के एशियाई खेलों में मिली सफलता के बाद मिलखा सिंह को सेना में जूनियर कमीशन का पद मिला। 1960 में रोम में आयोजित ओलंपिक खेलों में उन्होंने 400 मीटर की रेस में शानदार प्रदर्शन किया लेकिन अंतिम पलों में वे जर्मनी के एथलीट कार्ल कूफमैन से सेकेंड के सौवें हिस्से से पिछड़ गए और कांस्य पदक जीतने से मामूली अंतर से चूक गए। इस दौरान उन्होंने इस रेस में पूर्व ओलंपिक कीर्तिमान भी तोड़ा और 400 मीटर की दौड़ 45.73 सेकेंड में पूरी कर नेशनल रिकॉर्ड भी बनाया। 400 मीटर की रेस में उनका ये रिकॉर्ड 40 साल बाद जाकर टूटा। 1960 के रोम ओलंपिक और टोक्यो में आयोजित 1964 के ओलंपिक में मिलखा सिंह अपने शानदार प्रदर्शन के साथ दशकों तक भारत के सबसे महान ओलंपियन बने रहे। 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में मिलखा सिंह ने 400 मीटर और चार गुना 400 मीटर रिले दौड़ में भी गोल्ड मेडल हासिल किया था।
उपलब्धियाँ
- 1958 के एशियाई खेलों में 200 मी. व 400 मी. में स्वर्ण पदक जीते।
- 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
- 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
पुरस्कार एवं सम्मान
- मिलखा सिंह 1959 में 'पद्मश्री' से अलंकृत किये गये।
मृत्यु
पूर्व भारतीय लीजेंड स्प्रिंटर मिलखा सिंह का निधन पोस्ट कोरोना रिकवरी के दौरान 18 जून, 2021 को रात 11:30 बजे हुआ। वे 91 साल के थे। पाँच दिन पहले उनकी पत्नी निर्मल कौर का पोस्ट कोविड कॉम्प्लिकेशंस के कारण निधन हो गया था। मिलखा सिंह का चंडीगढ़ के पीजीआईएमईआर में 15 दिनों से इलाज चल रहा था। उन्हें 3 जून, 2021 को ऑक्सीजन का लेवल गिरने के कारण आईसीयू में भर्ती कराया गया था। 20 मई, 2021 को उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने मिलखा को श्रद्धांजलि दी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि "हमने एक शानदार खिलाड़ी खो दिया। मिलखा ने असंख्य भारतीयों के दिलों में अपनी खास जगह बनाई थी। उनके व्यक्तित्व ने उन्हें लाखों लोगों का चहेता बना दिया। उनके निधन से दु:खी हूं"।
रह गया मलाल
'फ्लाइंग सिक्ख' के नाम से मशहूर मिलखा सिंह ने कहा था- "नहीं जानता था कि ओलिंपिक गेम्स होते क्या हैं, एशियन गेम्स और वन हंड्रेड मीटर और फोर हंड्रेड मीटर रेस क्या होती है? मिल्खा सिंह तब दौड़ता था जब पैरों में जूते नहीं होते थे। न ही ट्रैक सूट होता था। न कोचेस थे और न ही स्टेडियम। 125 करोड़ है देश की आबादी। मुझे दु:ख इस बात का है कि अब तलक कोई दूसरा मिलखा सिंह पैदा नहीं हो सका"।[1]
उन्होंने कहा था कि मैं 90 साल का हो गया हूं, दिल में बस एक ही ख्वाहिश है कोई देश के लिए गोल्ड मेडल एथलेटिक्स में जीते। ओलंपिक में तिरंगा लहराए। नेशनल एंथम बजे। अपने हुनर से कई खिताब जीतने वाले मिलखा सिंह ने दिल की ये टीस रोटरी क्लब के इवेंट ब्लेसिंग में शेयर की थी। तीन दिवसीय कार्यक्रम के अंतिम दिन वे बतौर स्पेशल गेस्ट पहुंचे थे। मिलखा सिंह कहा करते थे कि- जितनी भूख हो, उससे आधा खाइए क्योंकि बीमारियां पेट से शुरू होती हैं; खून शरीर में तेजी से बहेगा तो बीमारियां बहा देगा।
|
|
|
|
|
वीथिका
-
मिलखा सिंह दौड़ते हुए
-
एक प्रतियोगिता के दौरान मिलखा सिंह
-
मिलखा सिंह (युवावस्था)
-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलखा सिंह
-
युवा मिलखा सिंह
-
मिलखा सिंह, जालंधर में मैराथन के दौरान
-
मिलखा सिंह (1960)
-
रोम ओलम्पिक में मिलखा सिंह (1960)
-
जकार्ता ओलम्पिक, 1962 में मिलखा सिंह
-
जवाहरलाल नेहरू के साथ मिलखा सिंह
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2
जब पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने कहा था 'आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो', मिलखा सिंह बन गए 'फ्लाइंग सिख' (हिंदी) abplive.com। अभिगमन तिथि: 19 जून, 2021। सन्दर्भ त्रुटि:
<ref>
अमान्य टैग है; "pp" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
संबंधित लेख