"देवार गीत": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
(''''देवार गीत''' छत्तीसगढ़ की देवार जाति के लोगों द्वा...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=देवार|लेख का नाम=देवार (बहुविकल्पी)}} | |||
*देवार लोगों के बारे में अनेकों कहानियाँ प्रचलित हैं, जैसे एक [[कहानी]] में कहा जाता है कि देवार जाति के लोग [[गोंड]] राजाओं के दरबार में गाया करते थे। किसी कारणवश इन्हें राजदरबार से निकाल दिया गया था और तब से | '''देवार गीत''' [[छत्तीसगढ़]] की देवार जाति के लोगों द्वारा गाया जाने वाला लोकगीत है। देवार छत्तीसगढ़ की भ्रमणशील, घुमंतू जाति है। सम्भवत: इसीलिए इनके गीतों में इतनी रोचकता दिखाई देती है।<ref>{{cite web |url= http://www.ignca.nic.in/coilnet/chgr0068.htm|title= देवार गीत|accessmonthday=13 जून |accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= इग्निका|language= हिन्दी}}</ref> | ||
*देवार लोगों के बारे में अनेकों कहानियाँ प्रचलित हैं, जैसे एक [[कहानी]] में कहा जाता है कि देवार जाति के लोग [[गोंड]] राजाओं के दरबार में गाया करते थे। किसी कारणवश इन्हें राजदरबार से निकाल दिया गया था और तब से घुमंतू जीवन अपनाकर ये कभी इधर तो कभी उधर घूमते रहते हैं। जिन्दगी को और नज़दीक से देखते हुए गीत रचते हैं, [[नृत्य कला|नृत्य]] करते हैं। उनके गीतों में संघर्ष है, आनन्द है, मस्ती है। | |||
*देवार गीत रुजू, ठुंगरु, मांदर के साथ गाये जाते हैं। गीत मौखिक परम्परा पर आधारित है। | *देवार गीत रुजू, ठुंगरु, मांदर के साथ गाये जाते हैं। गीत मौखिक परम्परा पर आधारित है। | ||
*गीतों के विषय अनेक हैं, कभी वीर चरित्रों के बारे में हैं तो कभी अत्याचार के बारे में। कभी [[हास्य रस]] से भरपूर हैं तो कभी [[करुण रस]] से। कहीं पाण्डव गाथा में युद्ध के बारे में हैं, जैसे- | *गीतों के विषय अनेक हैं, कभी वीर चरित्रों के बारे में हैं तो कभी अत्याचार के बारे में। कभी [[हास्य रस]] से भरपूर हैं तो कभी [[करुण रस]] से। कहीं पाण्डव गाथा में युद्ध के बारे में हैं, जैसे- |
12:18, 13 जून 2015 के समय का अवतरण
देवार | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- देवार (बहुविकल्पी) |
देवार गीत छत्तीसगढ़ की देवार जाति के लोगों द्वारा गाया जाने वाला लोकगीत है। देवार छत्तीसगढ़ की भ्रमणशील, घुमंतू जाति है। सम्भवत: इसीलिए इनके गीतों में इतनी रोचकता दिखाई देती है।[1]
- देवार लोगों के बारे में अनेकों कहानियाँ प्रचलित हैं, जैसे एक कहानी में कहा जाता है कि देवार जाति के लोग गोंड राजाओं के दरबार में गाया करते थे। किसी कारणवश इन्हें राजदरबार से निकाल दिया गया था और तब से घुमंतू जीवन अपनाकर ये कभी इधर तो कभी उधर घूमते रहते हैं। जिन्दगी को और नज़दीक से देखते हुए गीत रचते हैं, नृत्य करते हैं। उनके गीतों में संघर्ष है, आनन्द है, मस्ती है।
- देवार गीत रुजू, ठुंगरु, मांदर के साथ गाये जाते हैं। गीत मौखिक परम्परा पर आधारित है।
- गीतों के विषय अनेक हैं, कभी वीर चरित्रों के बारे में हैं तो कभी अत्याचार के बारे में। कभी हास्य रस से भरपूर हैं तो कभी करुण रस से। कहीं पाण्डव गाथा में युद्ध के बारे में हैं, जैसे-
"दूनों के फेर रगड़ी गा रगड़ा गा बेली गा बेला गा धाड़ी गा धाड़ा गा रटा रि ए, धड़ाधिड़"
- रेखा देवार तथा बद्रीसिंह कटारिया प्रमुख देवार गीत गायकों में से हैं।
|
|
|
|
|