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'''विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस''' ([[अंग्रेज़ी]]:''World Book and Copyright Day'') प्रत्येक वर्ष '[[23 अप्रैल]]' को मनाया जाता है। इसे 'विश्व पुस्तक दिवस' भी कहा जाता है। इंसान के बचपन से स्कूल से आरंभ हुई पढ़ाई जीवन के अंत तक चलती है। लेकिन अब [[कम्प्यूटर]] और इंटरनेट के प्रति बढ़ती दिलचस्पी के कारण पुस्तकों से लोगों की दूरी बढ़ती जा रही है। आज के युग में लोग नेट में फंसते जा रहे हैं। यही कारण है कि लोगों और किताबों के बीच की दूरी को पाटने के लिए यूनेस्को ने '23 अप्रैल' को 'विश्व पुस्तक दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया। यूनेस्को के निर्णय के बाद से पूरे विश्व में इस दिन 'विश्व पुस्तक दिवस' मनाया जाता है।
==शुरुआत==
==शुरुआत==
'[[23 अप्रैल]]', सन [[1995]] को पहली बार 'पुस्तक दिवस' मनाया गया था। कालांतर में यह हर देश में व्यापक होता गया। किताबों का हमारे जीवन में क्या महत्व है, इसके बारे में बताने के लिए 'विश्व पुस्तक दिवस' पर शहर के विभिन्न स्थानों पर सेमिनार आयोजित किये जाते हैं।
'[[23 अप्रैल]]', सन [[1995]] को पहली बार 'पुस्तक दिवस' मनाया गया था। कालांतर में यह हर देश में व्यापक होता गया। किताबों का हमारे जीवन में क्या महत्व है, इसके बारे में बताने के लिए 'विश्व पुस्तक दिवस' पर शहर के विभिन्न स्थानों पर सेमिनार आयोजित किये जाते हैं।
====मानव का इंटरनेट प्रेम====
====मानव का इंटरनेट प्रेम====
पढ़ना किसे अच्छा नहीं लगता। बचपन में स्कूल से आरंभ हुई पढ़ाई जीवन के अंत तक चलती है, पर दुर्भाग्यवश आजकल पढ़ने की प्रवृत्ति लोगों में कम होती जा रही है। पुस्तकों से लोग दूर भाग रहे हैं। आज सब लोग सभी कुछ नेट पर ही खंगालना चाहते हैं। शोध बताते हैं कि इसके चलते लोगों की जिज्ञासु प्रवृत्ति और याद करने की क्षमता भी ख़त्म होती जा रही है। बच्चों के लिए तो यह विशेष समस्या है। पुस्तकें बच्चों में अध्ययन की प्रवृत्ति, जिज्ञासु प्रवृत्ति, सहेजकर रखने की प्रवृत्ति और [[संस्कार]] रोपित करती हैं। पुस्तकें न सिर्फ ज्ञान देती हैं, बल्कि [[कला]], [[संस्कृति]], लोकजीवन, सभ्यता के बारे में भी बताती हैं। नेट पर लगातार बैठने से लोगों की [[आँख|आँखों]] और [[मस्तिष्क]] पर भी बुरा असर पड़ रहा है। ऐसे में पुस्तकों के प्रति लोगों में आकर्षण पैदा करना जरुरी हो गया है। इसके अलावा तमाम बच्चे गरीबी के चलते भी पुस्तकें नहीं पढ़ पाते, इस ओर भी ध्यान देने की जरुरत है। 'सभी के लिए शिक्षा क़ानून' को इसी दिशा में देखा जा रहा है।<ref>{{cite web |url=http://utsavkerang.blogspot.in/2010/06/blog-post_5379.html |title=पुस्तकों के प्रति आकर्षण जरूरी|accessmonthday= 24 अप्रैल|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language= हिन्दी}}</ref>
पढ़ना किसे अच्छा नहीं लगता। बचपन में स्कूल से आरंभ हुई पढ़ाई जीवन के अंत तक चलती है, पर दुर्भाग्यवश आजकल पढ़ने की प्रवृत्ति लोगों में कम होती जा रही है। पुस्तकों से लोग दूर भाग रहे हैं। आज सब लोग सभी कुछ नेट पर ही खंगालना चाहते हैं। शोध बताते हैं कि इसके चलते लोगों की जिज्ञासु प्रवृत्ति और याद करने की क्षमता भी ख़त्म होती जा रही है। बच्चों के लिए तो यह विशेष समस्या है। पुस्तकें बच्चों में अध्ययन की प्रवृत्ति, जिज्ञासु प्रवृत्ति, सहेजकर रखने की प्रवृत्ति और [[संस्कार]] रोपित करती हैं। पुस्तकें न सिर्फ ज्ञान देती हैं, बल्कि [[कला]], [[संस्कृति]], लोकजीवन, सभ्यता के बारे में भी बताती हैं। नेट पर लगातार बैठने से लोगों की [[आँख|आँखों]] और [[मस्तिष्क]] पर भी बुरा असर पड़ रहा है। ऐसे में पुस्तकों के प्रति लोगों में आकर्षण पैदा करना जरुरी हो गया है। इसके अलावा तमाम बच्चे ग़रीबी के चलते भी पुस्तकें नहीं पढ़ पाते, इस ओर भी ध्यान देने की जरुरत है। 'सभी के लिए शिक्षा क़ानून' को इसी दिशा में देखा जा रहा है।<ref>{{cite web |url=http://utsavkerang.blogspot.in/2010/06/blog-post_5379.html |title=पुस्तकों के प्रति आकर्षण ज़रूरी|accessmonthday= 24 अप्रैल|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language= हिन्दी}}</ref>
==जागरुकता अभियान==
==जागरुकता अभियान==
लोगों में पुस्तक प्रेम को जागृत करने के लिए मनाये जाने वाले 'विश्व पुस्तक दिवस' पर जहाँ स्कूलों में बच्चों को पढ़ाई की आदत डालने के लिए सस्ते दामों पर पुस्तकें बाँटने जैसे अभियान चलाये जा रहे हैं, वहीं स्कूलों या फिर सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शनियां लगाकर पुस्तक पढ़ने के प्रति लोगों को जागरूक किया जा रहा है। स्कूली बच्चों के अलावा उन लोगों को भी पढ़ाई के लिए जागरूक किया जाना जरुरी है जो किसी कारणवश अपनी पढ़ाई छोड़ चुके हैं। बच्चों के लिए विभिन्न जानकारियों व मनोरंजन से भरपूर पुस्तकों की प्रदर्शनी जैसे अभियान से उनमें पढ़ाई की संस्कृति विकसित की जा सकती है। पुस्तकालय इस सम्बन्ध में अहम् भूमिका निभा सकते हैं, बशर्ते उनका रख-रखाव सही ढ़ंग से हो और स्तरीय पुस्तकें और पत्र-पत्रिकाएं वहाँ उपलब्ध कराई जाएँ। वाकई आज पुस्तकों के प्रति ख़त्म हो रहे आकर्षण के प्रति गंभीर होकर सोचने और इस दिशा में सार्थक कदम उठाने की जरुरत है।
लोगों में पुस्तक प्रेम को जागृत करने के लिए मनाये जाने वाले 'विश्व पुस्तक दिवस' पर जहाँ स्कूलों में बच्चों को पढ़ाई की आदत डालने के लिए सस्ते दामों पर पुस्तकें बाँटने जैसे अभियान चलाये जा रहे हैं, वहीं स्कूलों या फिर सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शनियां लगाकर पुस्तक पढ़ने के प्रति लोगों को जागरूक किया जा रहा है। स्कूली बच्चों के अलावा उन लोगों को भी पढ़ाई के लिए जागरूक किया जाना ज़रूरी है जो किसी कारणवश अपनी पढ़ाई छोड़ चुके हैं। बच्चों के लिए विभिन्न जानकारियों व मनोरंजन से भरपूर पुस्तकों की प्रदर्शनी जैसे अभियान से उनमें पढ़ाई की संस्कृति विकसित की जा सकती है। पुस्तकालय इस सम्बन्ध में अहम् भूमिका निभा सकते हैं, बशर्ते उनका रख-रखाव सही ढ़ंग से हो और स्तरीय पुस्तकें और पत्र-पत्रिकाएं वहाँ उपलब्ध कराई जाएँ। वाकई आज पुस्तकों के प्रति ख़त्म हो रहे आकर्षण के प्रति गंभीर होकर सोचने और इस दिशा में सार्थक कदम उठाने की ज़रूरत है।





09:18, 12 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस
'विश्व पुस्तक दिवस' का लोगो
'विश्व पुस्तक दिवस' का लोगो
विवरण 'विश्व पुस्तक दिवस' लोगों में किताबों के प्रति प्रेम बढ़ाने के लिए प्रत्येक वर्ष '23 अप्रैल' को मनाया जाता है।
तिथि 23 अप्रैल
शुरुआत 1995
उद्देश्य आज लोगों और किताबों के बीच दूरी बढ़ती जा रही है। इसी दूरी को पाटने के लिए 'विश्व पुस्तक दिवस' मनाया जाता है।
अन्य जानकारी इंसान और किताबों के बीच की दूरी को पाटने के लिए यूनेस्को ने '23 अप्रैल' को 'विश्व पुस्तक दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया था। यूनेस्को के निर्णय के बाद से पूरे विश्व में इस दिन 'विश्व पुस्तक दिवस' मनाया जाता है।

विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस (अंग्रेज़ी:World Book and Copyright Day) प्रत्येक वर्ष '23 अप्रैल' को मनाया जाता है। इसे 'विश्व पुस्तक दिवस' भी कहा जाता है। इंसान के बचपन से स्कूल से आरंभ हुई पढ़ाई जीवन के अंत तक चलती है। लेकिन अब कम्प्यूटर और इंटरनेट के प्रति बढ़ती दिलचस्पी के कारण पुस्तकों से लोगों की दूरी बढ़ती जा रही है। आज के युग में लोग नेट में फंसते जा रहे हैं। यही कारण है कि लोगों और किताबों के बीच की दूरी को पाटने के लिए यूनेस्को ने '23 अप्रैल' को 'विश्व पुस्तक दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया। यूनेस्को के निर्णय के बाद से पूरे विश्व में इस दिन 'विश्व पुस्तक दिवस' मनाया जाता है।

शुरुआत

'23 अप्रैल', सन 1995 को पहली बार 'पुस्तक दिवस' मनाया गया था। कालांतर में यह हर देश में व्यापक होता गया। किताबों का हमारे जीवन में क्या महत्व है, इसके बारे में बताने के लिए 'विश्व पुस्तक दिवस' पर शहर के विभिन्न स्थानों पर सेमिनार आयोजित किये जाते हैं।

मानव का इंटरनेट प्रेम

पढ़ना किसे अच्छा नहीं लगता। बचपन में स्कूल से आरंभ हुई पढ़ाई जीवन के अंत तक चलती है, पर दुर्भाग्यवश आजकल पढ़ने की प्रवृत्ति लोगों में कम होती जा रही है। पुस्तकों से लोग दूर भाग रहे हैं। आज सब लोग सभी कुछ नेट पर ही खंगालना चाहते हैं। शोध बताते हैं कि इसके चलते लोगों की जिज्ञासु प्रवृत्ति और याद करने की क्षमता भी ख़त्म होती जा रही है। बच्चों के लिए तो यह विशेष समस्या है। पुस्तकें बच्चों में अध्ययन की प्रवृत्ति, जिज्ञासु प्रवृत्ति, सहेजकर रखने की प्रवृत्ति और संस्कार रोपित करती हैं। पुस्तकें न सिर्फ ज्ञान देती हैं, बल्कि कला, संस्कृति, लोकजीवन, सभ्यता के बारे में भी बताती हैं। नेट पर लगातार बैठने से लोगों की आँखों और मस्तिष्क पर भी बुरा असर पड़ रहा है। ऐसे में पुस्तकों के प्रति लोगों में आकर्षण पैदा करना जरुरी हो गया है। इसके अलावा तमाम बच्चे ग़रीबी के चलते भी पुस्तकें नहीं पढ़ पाते, इस ओर भी ध्यान देने की जरुरत है। 'सभी के लिए शिक्षा क़ानून' को इसी दिशा में देखा जा रहा है।[1]

जागरुकता अभियान

लोगों में पुस्तक प्रेम को जागृत करने के लिए मनाये जाने वाले 'विश्व पुस्तक दिवस' पर जहाँ स्कूलों में बच्चों को पढ़ाई की आदत डालने के लिए सस्ते दामों पर पुस्तकें बाँटने जैसे अभियान चलाये जा रहे हैं, वहीं स्कूलों या फिर सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शनियां लगाकर पुस्तक पढ़ने के प्रति लोगों को जागरूक किया जा रहा है। स्कूली बच्चों के अलावा उन लोगों को भी पढ़ाई के लिए जागरूक किया जाना ज़रूरी है जो किसी कारणवश अपनी पढ़ाई छोड़ चुके हैं। बच्चों के लिए विभिन्न जानकारियों व मनोरंजन से भरपूर पुस्तकों की प्रदर्शनी जैसे अभियान से उनमें पढ़ाई की संस्कृति विकसित की जा सकती है। पुस्तकालय इस सम्बन्ध में अहम् भूमिका निभा सकते हैं, बशर्ते उनका रख-रखाव सही ढ़ंग से हो और स्तरीय पुस्तकें और पत्र-पत्रिकाएं वहाँ उपलब्ध कराई जाएँ। वाकई आज पुस्तकों के प्रति ख़त्म हो रहे आकर्षण के प्रति गंभीर होकर सोचने और इस दिशा में सार्थक कदम उठाने की ज़रूरत है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तकों के प्रति आकर्षण ज़रूरी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 अप्रैल, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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