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==परिचय==
विशाखा के पिता का नाम श्रीपावन गोप और माता का नाम देवदानी गोपी था।<ref>अञ्जपुरे समाख्याते सुभानुर्गोप: संस्थित:। देवदानीति विख्याता गोपिनी निमिषसुना। तयो: सुता समुत्पन्ना विशाखा नाम विश्रुता ॥</ref> विशाखा जी का निवास स्थान आँजनौक [[नन्दगाँव]] से पाँच मील पूर्व-दक्षिण कोण में अवस्थित है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर कौतुकी [[कृष्ण]] ने अपनी प्राणवल्लभा [[राधा]] के नेत्रों में अंजन लगाया था। इसलिए यह लीलास्थली 'आँजनौक' नाम से प्रसिद्ध है। [[वृन्दावन]] स्थित [[विशाखा कुण्ड वृन्दावन|विशाखा कुण्ड]] में श्रीराधाबिहारीजी ने अपने वेणु से कुण्ड प्रकाश कर उसके मीठे, सुस्वादु जल से प्रियसखी विशाखा की और सखियों की प्यास बुझाई थी। कालान्तर में प्रसिद्ध भक्ति संगीतज्ञ [[स्वामी हरिदास]] ने इस [[निधिवन वृन्दावन|निधिवन]] के [[विशाखा कुण्ड वृन्दावन|विशाखा कुण्ड]] से [[बाँके बिहारी मंदिर|श्री बाँकेबिहारी ठाकुर जी]] को प्राप्त किया था।<ref>[[विशाखा कुण्ड वृन्दावन]]</ref>
==पुराणानुसार स्थान==
पुराणों के अनुसार राधाजी की आठ सखियों में विशाखा सखी का स्थान पूर्व दिशा में है जबकि [[ललिता सखी]] का पश्चिम दिशा में। ललिता [[कृष्ण]] को रच-रच कर ताम्बूल (पान) प्रस्तुत करती हैं। ताम्बूल शब्द तबि, ष्टबि आदि धातुओं के आधार पर निर्मित है। तबि, ष्टबि धातुएं मर्दन अर्थ में प्रयुक्त होती हैं- प्राण और अपान के मर्दन से व्यान का जन्म होता है, ऐसा कहा जाता है। व्यान प्राण दक्षता उत्पन्न करता है। यह मदयुक्त अवस्था है। दूसरे शब्दों में मर्दन की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है कि यह मर्त्य स्तर पर अमृत स्तर के मिश्रण से उत्पन्न स्थिति है। ताम्बूल लता का जन्म भी अमृत के भूमि पर क्षरण से हुआ है। [[अथर्ववेद]]<ref>अथर्ववेद 8.7.4</ref> में ओषधियों का वर्गीकरण उनके तनों के अनुसार किया गया है। एक ओषधि स्तम्भ/स्कन्ध अर्थात् तने वाली है, दूसरी काण्ड वाली, तीसरी बिना तने की अर्थात् विशाखा, जिसके मूल से ही शाखाएं निकल रही हैं, तना है ही नहीं। यह स्कन्ध उद्देश्य-विशेष का प्रतीक हो सकता है। हो सकता है कि ताम्बूल भी उद्देश्य विशेष का प्रतीक हो।<ref>{{cite web |url=http://puranastudy.angelfire.com/pur_index2/ashta_sakhi1.htm |title= अष्टसखी|accessmonthday=02 फरवरी |accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=puranastudy.angelfire.com |language=हिंदी }}</ref>
====विशाखा नक्षत्र====
अथर्ववेद<ref>अथर्ववेद 19.7.3</ref> में [[विशाखा नक्षत्र]] के राधा बन जाने की कामना की गई है। [[वैदिक साहित्य]] में अन्यत्र विशाखा नक्षत्र नाम न लेकर राधा कहकर ही काम चला लिया गया है, क्योंकि विशाखा नक्षत्र से अगला नक्षत्र [[अनुराधा नक्षत्र|अनुराधा]] है। विशाखा सखी का वर्ण विद्युत जैसा, वस्त्रों पर तारे जड़े हैं। [[राधा]] व [[कृष्ण]] के बीच दूती का कार्य करती हैं।
[[चित्र:Vishakha.JPG|thumb|200px|विशाखा सखी]]
<blockquote><poem>सखी बिसाखा अति ही प्यारी। कबहुँ न होत संगते न्यारी॥
बहु विधि रंग बसन जो भावै। हित सौं चुनि कै लै पहिरावै॥
ज्यौं छाया ऐसे संग रहही। हित की बात कुँवरि सौं कहही॥
दामिनि सत दुति देह की, अधिक प्रिया सों हेत।
तारा मंडल से बसन, पहिरे अति सुख देत॥
माधवी मालती कुञ्जरी, हरनी चपला नैन।
गंध रेखा सुभ आनना, सौरभी कहैं मृदु बैन॥<ref> - श्री ध्रुवदास-कृत 'बयालीस लीला'</ref></poem></blockquote>
==अन्य सखियाँ==
राधाजी की परमश्रेष्ठ सखियाँ आठ मानी गयी हैं, जिनके नाम निम्नलिखित हैं-
#[[ललिता]]
#[[विशाखा सखी|विशाखा]]
#[[चम्पकलता सखी|चम्पकलता]]
#[[चित्रा सखी|चित्रा]]
#[[तुंगविद्या सखी|तुंगविद्या]]
#[[इन्दुलेखा सखी|इन्दुलेखा]]
#[[रंगदेवी सखी|रंगदेवी]]
#[[सुदेवी सखी|सुदेवी]]


*इनके पिता का नाम श्रीपावन गोप और माता का नाम देवदानी गोपी था।<ref>अञ्जपुरे समाख्याते सुभानुर्गोप: संस्थित:। देवदानीति विख्याता गोपिनी निमिषसुना। तयो: सुता समुत्पन्ना विशाखा नाम विश्रुता ॥</ref>
*उपरोक्त सखियों में से 'चित्रा', 'सुदेवी', 'तुंगविद्या' और 'इन्दुलेखा' के स्थान पर 'सुमित्रा', 'सुन्दरी', 'तुंगदेवी' और 'इन्दुरेखा' नाम भी मिलते हैं।
*विशाखा जी का निवास स्थान आँजनौक [[नन्दगाँव]] से पाँच मील पूर्व-दक्षिण कोण में अवस्थित है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर कौतुकी [[कृष्ण]] ने अपनी प्राणवल्लभा [[राधा]] के नेत्रों में अंजन लगाया था। इसलिए यह लीलास्थली 'आँजनौक' नाम से प्रसिद्ध है।
*[[वृन्दावन]] स्थित [[विशाखा कुण्ड वृन्दावन|विशाखा कुण्ड]] में श्रीराधाबिहारीजी ने अपने वेणु से कुण्ड प्रकाश कर उसके मीठे, सुस्वादु जल से प्रियसखी विशाखा की और सखियों की प्यास बुझाई थी। कालान्तर में प्रसिद्ध भक्ति संगीतज्ञ [[स्वामी हरिदास]] ने इस [[निधिवन वृन्दावन|निधिवन]] के [[विशाखा कुण्ड वृन्दावन|विशाखा कुण्ड]] से [[बाँके बिहारी मंदिर|श्री बाँकेबिहारी ठाकुर जी]] को प्राप्त किया था।<ref>[[विशाखा कुण्ड वृन्दावन]]</ref>




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विशाखा सखी
विशाखा सखी
विशाखा सखी
विवरण 'विशाखा' श्रीराधा जी की सबसे प्रिय सखी थीं। ये राधा की अष्टसखियों में से एक थीं।
अभिभावक श्रीपावन गोप और देवदानी गोपी
संबंधित लेख कृष्ण, राधा, अष्टसखी, आँजनौक
अन्य जानकारी विशाखा जी का निवास स्थान आँजनौक नन्दगाँव से पाँच मील पूर्व-दक्षिण कोण में अवस्थित है।
अद्यतन‎ 03:46 15 जुलाई, 2016 (IST)

विशाखा राधाजी की 'अष्टसखियों' में से एक थीं। इनका निवास स्थान आँजनौक था। ये राधाजी की सबसे प्रिय सखी थीं। विशाखा गौरांगी रंग की कही जाती हैं। श्रीकृष्ण को चुटकुले आदि सुनाकर हँसाती हैं। ये सखी सुगन्धित द्रव्यों से बने चन्दन का लेप करती हैं।

परिचय

विशाखा के पिता का नाम श्रीपावन गोप और माता का नाम देवदानी गोपी था।[1] विशाखा जी का निवास स्थान आँजनौक नन्दगाँव से पाँच मील पूर्व-दक्षिण कोण में अवस्थित है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर कौतुकी कृष्ण ने अपनी प्राणवल्लभा राधा के नेत्रों में अंजन लगाया था। इसलिए यह लीलास्थली 'आँजनौक' नाम से प्रसिद्ध है। वृन्दावन स्थित विशाखा कुण्ड में श्रीराधाबिहारीजी ने अपने वेणु से कुण्ड प्रकाश कर उसके मीठे, सुस्वादु जल से प्रियसखी विशाखा की और सखियों की प्यास बुझाई थी। कालान्तर में प्रसिद्ध भक्ति संगीतज्ञ स्वामी हरिदास ने इस निधिवन के विशाखा कुण्ड से श्री बाँकेबिहारी ठाकुर जी को प्राप्त किया था।[2]

पुराणानुसार स्थान

पुराणों के अनुसार राधाजी की आठ सखियों में विशाखा सखी का स्थान पूर्व दिशा में है जबकि ललिता सखी का पश्चिम दिशा में। ललिता कृष्ण को रच-रच कर ताम्बूल (पान) प्रस्तुत करती हैं। ताम्बूल शब्द तबि, ष्टबि आदि धातुओं के आधार पर निर्मित है। तबि, ष्टबि धातुएं मर्दन अर्थ में प्रयुक्त होती हैं- प्राण और अपान के मर्दन से व्यान का जन्म होता है, ऐसा कहा जाता है। व्यान प्राण दक्षता उत्पन्न करता है। यह मदयुक्त अवस्था है। दूसरे शब्दों में मर्दन की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है कि यह मर्त्य स्तर पर अमृत स्तर के मिश्रण से उत्पन्न स्थिति है। ताम्बूल लता का जन्म भी अमृत के भूमि पर क्षरण से हुआ है। अथर्ववेद[3] में ओषधियों का वर्गीकरण उनके तनों के अनुसार किया गया है। एक ओषधि स्तम्भ/स्कन्ध अर्थात् तने वाली है, दूसरी काण्ड वाली, तीसरी बिना तने की अर्थात् विशाखा, जिसके मूल से ही शाखाएं निकल रही हैं, तना है ही नहीं। यह स्कन्ध उद्देश्य-विशेष का प्रतीक हो सकता है। हो सकता है कि ताम्बूल भी उद्देश्य विशेष का प्रतीक हो।[4]

विशाखा नक्षत्र

अथर्ववेद[5] में विशाखा नक्षत्र के राधा बन जाने की कामना की गई है। वैदिक साहित्य में अन्यत्र विशाखा नक्षत्र नाम न लेकर राधा कहकर ही काम चला लिया गया है, क्योंकि विशाखा नक्षत्र से अगला नक्षत्र अनुराधा है। विशाखा सखी का वर्ण विद्युत जैसा, वस्त्रों पर तारे जड़े हैं। राधाकृष्ण के बीच दूती का कार्य करती हैं।

विशाखा सखी

सखी बिसाखा अति ही प्यारी। कबहुँ न होत संगते न्यारी॥
बहु विधि रंग बसन जो भावै। हित सौं चुनि कै लै पहिरावै॥
ज्यौं छाया ऐसे संग रहही। हित की बात कुँवरि सौं कहही॥
दामिनि सत दुति देह की, अधिक प्रिया सों हेत।
तारा मंडल से बसन, पहिरे अति सुख देत॥
माधवी मालती कुञ्जरी, हरनी चपला नैन।
गंध रेखा सुभ आनना, सौरभी कहैं मृदु बैन॥[6]

अन्य सखियाँ

राधाजी की परमश्रेष्ठ सखियाँ आठ मानी गयी हैं, जिनके नाम निम्नलिखित हैं-

  1. ललिता
  2. विशाखा
  3. चम्पकलता
  4. चित्रा
  5. तुंगविद्या
  6. इन्दुलेखा
  7. रंगदेवी
  8. सुदेवी
  • उपरोक्त सखियों में से 'चित्रा', 'सुदेवी', 'तुंगविद्या' और 'इन्दुलेखा' के स्थान पर 'सुमित्रा', 'सुन्दरी', 'तुंगदेवी' और 'इन्दुरेखा' नाम भी मिलते हैं।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अञ्जपुरे समाख्याते सुभानुर्गोप: संस्थित:। देवदानीति विख्याता गोपिनी निमिषसुना। तयो: सुता समुत्पन्ना विशाखा नाम विश्रुता ॥
  2. विशाखा कुण्ड वृन्दावन
  3. अथर्ववेद 8.7.4
  4. अष्टसखी (हिंदी) puranastudy.angelfire.com। अभिगमन तिथि: 02 फरवरी, 2018।
  5. अथर्ववेद 19.7.3
  6. - श्री ध्रुवदास-कृत 'बयालीस लीला'

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