"अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस": अवतरणों में अंतर
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यूनेस्को द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से [[बांग्लादेश]] के भाषा आन्दोलन दिवस को अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकृति मिली, जो बांग्लादेश में सन [[1952]] से मनाया जाता रहा है। बांग्लादेश में इस दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है। [[2008]] को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्व को फिर महत्त्व दिया था। | यूनेस्को द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से [[बांग्लादेश]] के भाषा आन्दोलन दिवस को अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकृति मिली, जो बांग्लादेश में सन [[1952]] से मनाया जाता रहा है। बांग्लादेश में इस दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है। [[2008]] को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्व को फिर महत्त्व दिया था। | ||
==आधुनिक परिदृश्य== | ==आधुनिक परिदृश्य== | ||
[[भारतीय संविधान]] निर्माताओं की आकांक्षा थी कि स्वतंत्रता के बाद [[भारत]] का शासन अपनी भाषाओं में चले ताकि आम जनता शासन से जुड़ी रहे और समाज में एक सामंजस्य स्थापित हो और सबकी प्रगति हो सके। इसमें कोई शक नहीं कि [[भारत]] प्रगति के पथ पर अग्रसर है। पर यह भी सच है कि इस प्रगति का लाभ देश की आम जनता तक पूरी तरह पहुंच नहीं पा रहा है। इसके कारणों की तरफ़ जब हम दृष्टि डालते हैं तो पाते हैं कि शासन को जनता तक उसकी भाषा में पहुंचाने में अभी तक क़ामयाब नहीं हैं। यह एक प्रमुख कारण है। जब तक इस काम में तेज़ी नहीं आती तब तक किसी भी क्षेत्र में देश की बड़ी से बड़ी उपलब्धि और प्रगति का कोई मूल्य नहीं रह जाता। अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्र पर [[अंग्रेज़ी]] के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। किन्तु वैश्विक दौड़ में आज हिन्दी कहीं भी पीछे नहीं है। यह सिर्फ़ बोलचाल की भाषा ही नहीं, बल्कि सामान्य काम से लेकर इंटरनेट तक के क्षेत्र में इसका प्रयोग बख़ूबी हो रहा है। हमें यह अपेक्षा अवश्य है कि 'क' क्षेत्र के शासकीय कार्यालयों में सभी कामकाज [[हिन्दी]] में हो। ’ख’ और ’ग’ क्षेत्र में भी निर्धारित प्रतिशत के अनुसार हिन्दी का प्रयोग होता रहे।<ref>{{cite web |url=http://raj-bhasha-hindi.blogspot.in/2010/02/blog-post_22.html |title=अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस और हिन्दी |accessmonthday=24 फ़रवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=राजभाषा हिंदी (ब्लॉग) |language= हिंदी}}</ref> | [[भारतीय संविधान]] निर्माताओं की आकांक्षा थी कि स्वतंत्रता के बाद [[भारत]] का शासन अपनी भाषाओं में चले ताकि आम जनता शासन से जुड़ी रहे और समाज में एक सामंजस्य स्थापित हो और सबकी प्रगति हो सके। इसमें कोई शक नहीं कि [[भारत]] प्रगति के पथ पर अग्रसर है। पर यह भी सच है कि इस प्रगति का लाभ देश की आम जनता तक पूरी तरह पहुंच नहीं पा रहा है। इसके कारणों की तरफ़ जब हम दृष्टि डालते हैं तो पाते हैं कि शासन को जनता तक उसकी भाषा में पहुंचाने में अभी तक क़ामयाब नहीं हैं। यह एक प्रमुख कारण है। जब तक इस काम में तेज़ी नहीं आती तब तक किसी भी क्षेत्र में देश की बड़ी से बड़ी उपलब्धि और प्रगति का कोई मूल्य नहीं रह जाता। अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्र पर [[अंग्रेज़ी]] के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। किन्तु वैश्विक दौड़ में आज [[हिन्दी]] कहीं भी पीछे नहीं है। यह सिर्फ़ बोलचाल की भाषा ही नहीं, बल्कि सामान्य काम से लेकर इंटरनेट तक के क्षेत्र में इसका प्रयोग बख़ूबी हो रहा है। हमें यह अपेक्षा अवश्य है कि 'क' क्षेत्र के शासकीय कार्यालयों में सभी कामकाज [[हिन्दी]] में हो। ’ख’ और ’ग’ क्षेत्र में भी निर्धारित प्रतिशत के अनुसार हिन्दी का प्रयोग होता रहे।<ref>{{cite web |url=http://raj-bhasha-hindi.blogspot.in/2010/02/blog-post_22.html |title=अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस और हिन्दी |accessmonthday=24 फ़रवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=राजभाषा हिंदी (ब्लॉग) |language= हिंदी}}</ref> | ||
==मातृभाषा== | ==मातृभाषा== | ||
मातृभाषा आदमी के संस्कारों की संवाहक है। मातृभाषा के बिना, किसी भी देश की [[संस्कृति]] की कल्पना बेमानी है। मातृभाषा हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती है और देश प्रेम की भावना उत्प्रेरित करती है। मातृ भाषा [[आत्मा]] की आवाज़ है तथा देश को माला की लड़ियों की तरह पिरोती है। | मातृभाषा आदमी के संस्कारों की संवाहक है। मातृभाषा के बिना, किसी भी देश की [[संस्कृति]] की कल्पना बेमानी है। मातृभाषा हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती है और देश प्रेम की भावना उत्प्रेरित करती है। मातृ भाषा [[आत्मा]] की आवाज़ है तथा देश को माला की लड़ियों की तरह पिरोती है। माँ के आंचल में पल्लवित हुई भाषा बालक के मानसिक विकास को शब्द व पहला सम्प्रेषण देती है। मातृ भाषा ही सबसे पहले इंसान को सोचने-समझने और व्यवहार की अनौपचारिक शिक्षा और समझ देती है। बालक की प्राथमिक शिक्षा मातृ भाषा में ही करानी चाहिए।<ref>{{cite web |url=http://www.pressnote.in/litrature-news_194699.html#.USoZhzfp2_J |title=मातृ भाषा आदमी के संस्कारों की संवाहक |accessmonthday=24 फ़रवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=प्रेसनोट डॉट इन |language= हिंदी}}</ref> | ||
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05:49, 21 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
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विवरण | मातृभाषा आदमी के संस्कारों की संवाहक है। मातृभाषा के बिना, किसी भी देश की संस्कृति की कल्पना बेमानी है। मातृभाषा हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती है और देश प्रेम की भावना उत्प्रेरित करती है। |
उद्देश्य | विश्व में भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा देना। |
तिथि | 21 फरवरी |
अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकृति | 17 नवंबर, 1999 को यूनेस्को ने इसे स्वीकृति दी। |
इतिहास | यूनेस्को द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आन्दोलन दिवस को अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकृति मिली, जो बांग्लादेश में सन 1952 से मनाया जाता रहा है। बांग्लादेश में इस दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है। |
अन्य जानकारी | 2008 को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्व को फिर महत्त्व दिया था। |
बाहरी कड़ियाँ | internationalmotherlanguageday |
अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (अंग्रेज़ी: International Mother Language Day) 21 फरवरी को मनाया जाता है। 17 नवंबर, 1999 को यूनेस्को ने इसे स्वीकृति दी। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले।
इतिहास
यूनेस्को द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आन्दोलन दिवस को अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकृति मिली, जो बांग्लादेश में सन 1952 से मनाया जाता रहा है। बांग्लादेश में इस दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है। 2008 को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्व को फिर महत्त्व दिया था।
आधुनिक परिदृश्य
भारतीय संविधान निर्माताओं की आकांक्षा थी कि स्वतंत्रता के बाद भारत का शासन अपनी भाषाओं में चले ताकि आम जनता शासन से जुड़ी रहे और समाज में एक सामंजस्य स्थापित हो और सबकी प्रगति हो सके। इसमें कोई शक नहीं कि भारत प्रगति के पथ पर अग्रसर है। पर यह भी सच है कि इस प्रगति का लाभ देश की आम जनता तक पूरी तरह पहुंच नहीं पा रहा है। इसके कारणों की तरफ़ जब हम दृष्टि डालते हैं तो पाते हैं कि शासन को जनता तक उसकी भाषा में पहुंचाने में अभी तक क़ामयाब नहीं हैं। यह एक प्रमुख कारण है। जब तक इस काम में तेज़ी नहीं आती तब तक किसी भी क्षेत्र में देश की बड़ी से बड़ी उपलब्धि और प्रगति का कोई मूल्य नहीं रह जाता। अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्र पर अंग्रेज़ी के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। किन्तु वैश्विक दौड़ में आज हिन्दी कहीं भी पीछे नहीं है। यह सिर्फ़ बोलचाल की भाषा ही नहीं, बल्कि सामान्य काम से लेकर इंटरनेट तक के क्षेत्र में इसका प्रयोग बख़ूबी हो रहा है। हमें यह अपेक्षा अवश्य है कि 'क' क्षेत्र के शासकीय कार्यालयों में सभी कामकाज हिन्दी में हो। ’ख’ और ’ग’ क्षेत्र में भी निर्धारित प्रतिशत के अनुसार हिन्दी का प्रयोग होता रहे।[1]
मातृभाषा
मातृभाषा आदमी के संस्कारों की संवाहक है। मातृभाषा के बिना, किसी भी देश की संस्कृति की कल्पना बेमानी है। मातृभाषा हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती है और देश प्रेम की भावना उत्प्रेरित करती है। मातृ भाषा आत्मा की आवाज़ है तथा देश को माला की लड़ियों की तरह पिरोती है। माँ के आंचल में पल्लवित हुई भाषा बालक के मानसिक विकास को शब्द व पहला सम्प्रेषण देती है। मातृ भाषा ही सबसे पहले इंसान को सोचने-समझने और व्यवहार की अनौपचारिक शिक्षा और समझ देती है। बालक की प्राथमिक शिक्षा मातृ भाषा में ही करानी चाहिए।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस और हिन्दी (हिंदी) राजभाषा हिंदी (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 24 फ़रवरी, 2013।
- ↑ मातृ भाषा आदमी के संस्कारों की संवाहक (हिंदी) प्रेसनोट डॉट इन। अभिगमन तिथि: 24 फ़रवरी, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
- मातृभाषा के लिए क्या हम आधी रात में जाग सकते हैं
- Languages matter!
- International Mother Language Day (21 February)