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सिद्धेश्वरी देवी को पहली बार 17 साल की अवस्था में [[सरगुजा ज़िला|सरगुजा]] के युवराज के विवाहोत्सव में गाने का अवसर मिला। उनके पास अच्छे वस्त्र नहीं थे। ऐसे में विद्याधरी देवी ने उन्हें वस्त्र दिये। वहां से सिद्धेश्वरी देवी का नाम सब ओर फैल गया। एक बार तो [[मुंबई]] के एक समारोह में वरिष्ठ गायिका केसरबाई उनके साथ ही उपस्थित थीं। जब उनसे [[ठुमरी]] गाने को कहा गया, तो उन्होंने कहा कि जहां ठुमरी साम्राज्ञी सिद्धेश्वरी देवी हों, वहां मैं कैसे गा सकती हूं। | |||
==सम्मान एवं पुरस्कार== | ==सम्मान एवं पुरस्कार== | ||
सिद्धेश्वरी देवी को अपने जीवन काल बहुत-से पुरस्कार एवं सम्मान मिले हैं, जो इस प्रकार है- | सिद्धेश्वरी देवी को अपने जीवन काल बहुत-से पुरस्कार एवं सम्मान मिले हैं, जो इस प्रकार है- | ||
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सिद्धेश्वरी देवी पर [[26 जून]], [[1976]] को पक्षाघात का आक्रमण हुआ और [[17 मार्च]], [[1977]] की प्रातः वे ब्रह्मलीन हो गयीं। उनकी पुत्री सविता देवी भी प्रख्यात गायिका हैं। उन्होंने अपनी मां की स्मृति में 'सिद्धेश्वरी देवी एकेडेमी ऑफ़ म्यूजिक' की स्थापना की है। इसके माध्यम से वे प्रतिवर्ष संगीत समारोह आयोजित कर वरिष्ठ संगीत साधकों को सम्मानित करती हैं। | सिद्धेश्वरी देवी पर [[26 जून]], [[1976]] को पक्षाघात का आक्रमण हुआ और [[17 मार्च]], [[1977]] की प्रातः वे ब्रह्मलीन हो गयीं। उनकी पुत्री सविता देवी भी प्रख्यात गायिका हैं। उन्होंने अपनी मां की स्मृति में 'सिद्धेश्वरी देवी एकेडेमी ऑफ़ म्यूजिक' की स्थापना की है। इसके माध्यम से वे प्रतिवर्ष संगीत समारोह आयोजित कर वरिष्ठ संगीत साधकों को सम्मानित करती हैं। | ||
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सिद्धेश्वरी देवी
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पूरा नाम | सिद्धेश्वरी देवी |
अन्य नाम | गोनो |
जन्म | 8 अगस्त, 1908 |
जन्म भूमि | वाराणसी |
मृत्यु | 17 मार्च, 1977 |
अभिभावक | पिता: श्री श्याम तथा माता: श्रीमती चंदा उर्फ श्यामा थीं |
संतान | सविता देवी |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | शास्त्रीय संगीत |
पुरस्कार-उपाधि | पद्मश्री |
प्रसिद्धि | गायिका |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | सिद्धेश्वरी देवी ने उषा मूवीटोन की कुछ फ़िल्मों में अभिनय भी किया पर शीघ्र ही वे समझ गयीं कि उनका क्षेत्र केवल गायन ही है। |
अद्यतन | 16:21, 20 जून 2017 (IST)
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सिद्धेश्वरी देवी (अंग्रेज़ी: Siddheshwari Devi, जन्म: 8 अगस्त, 1908, वाराणसी; मृत्यु: 17 मार्च, 1977) भारतीय शास्त्रीय संगीत की प्रसिद्ध गायिका थीं। तत्कालीन समय में जब नाचने व गानों वालों को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था और महिला कलाकारों को तो वेश्या ही मान लिया जाता था, ऐसे समय में सिद्धेश्वरी देवी ने अपनी कला के माध्यम से भरपूर मान और सम्मान अर्जित किया। उन्हें निर्विवाद रूप से ठुमरी गायन की साम्राज्ञी मान लिया गया था।[1]
परिचय
पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित सिद्धेश्वरी देवी का जन्म 8 अगस्त, 1908 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता श्री श्याम तथा माता श्रीमती चंदा उर्फ श्यामा थीं। जब ये डेढ़ वर्ष की थीं, तब उनकी माता का निधन हो गया। अतः उनका पालन उनकी नानी मैनाबाई ने किया, जो एक लोकप्रिय गायिका व नर्तकी थीं। सिद्धेश्वरी देवी का बचपन का नाम गोनो था। उन्हें सिद्धेश्वरी देवी नाम प्रख्यात विद्वान व ज्योतिषी पंडित महादेव प्रसाद मिश्र (बच्चा पंडित) ने दिया।
कॅरियर
सिद्धेश्वरी देवी को पहली बार 17 साल की अवस्था में सरगुजा के युवराज के विवाहोत्सव में गाने का अवसर मिला। उनके पास अच्छे वस्त्र नहीं थे। ऐसे में विद्याधरी देवी ने उन्हें वस्त्र दिये। वहां से सिद्धेश्वरी देवी का नाम सब ओर फैल गया। एक बार तो मुंबई के एक समारोह में वरिष्ठ गायिका केसरबाई उनके साथ ही उपस्थित थीं। जब उनसे ठुमरी गाने को कहा गया, तो उन्होंने कहा कि जहां ठुमरी साम्राज्ञी सिद्धेश्वरी देवी हों, वहां मैं कैसे गा सकती हूं।
सम्मान एवं पुरस्कार
सिद्धेश्वरी देवी को अपने जीवन काल बहुत-से पुरस्कार एवं सम्मान मिले हैं, जो इस प्रकार है-
- भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार (1966)
- साहित्य कला परिषद सम्मान (उत्तर प्रदेश)
- संगीत नाटक अकादमी सम्मान
- केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी सम्मान
निधन
सिद्धेश्वरी देवी पर 26 जून, 1976 को पक्षाघात का आक्रमण हुआ और 17 मार्च, 1977 की प्रातः वे ब्रह्मलीन हो गयीं। उनकी पुत्री सविता देवी भी प्रख्यात गायिका हैं। उन्होंने अपनी मां की स्मृति में 'सिद्धेश्वरी देवी एकेडेमी ऑफ़ म्यूजिक' की स्थापना की है। इसके माध्यम से वे प्रतिवर्ष संगीत समारोह आयोजित कर वरिष्ठ संगीत साधकों को सम्मानित करती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सुरों की सिद्धेश्वरी (हिंदी) www.facebook.com। अभिगमन तिथि: 18 जून, 2017।
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