"अर्बुदा देवी मन्दिर": अवतरणों में अंतर
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*पहाड़ के पास मन्दाकिनी नदी बहती है और श्रीमाता अचलेश्वर और वशिष्ठाश्रम तीर्थ हैं अर्बुद-गिरि पर परमार नरेशों ने राज्य किया था जिनकी राजधानी चंद्रावती में थी। | *पहाड़ के पास मन्दाकिनी नदी बहती है और श्रीमाता अचलेश्वर और वशिष्ठाश्रम तीर्थ हैं अर्बुद-गिरि पर परमार नरेशों ने राज्य किया था जिनकी राजधानी चंद्रावती में थी। | ||
*इस जैन ग्रन्थ के अनुसार विमल नामक सेनापति ने [[ऋषभदेव]] की पीतल की मूर्ति सहित यहाँ एक चैत्यबनवाया था और 1088 वि. सं. में उसने विमल-वसति नामक एक मंदिर बनवाया 1288 वि0 सं0 में राजा के मुख्य मंत्री ने नेमि का मंदिर- लूणिगवसति बनवाया। 1243 वि0 सं0 में चंडसिंह के पुत्र पीठपद और महनसिंह के पुत्र लल्ल ने तेजपाल द्वारा निर्मित मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। इसी मूर्ति के लिए चालुक्यवंशी कुमारपाल भूपति ने [[श्रीवीर]] का मन्दिर बनवाया था।<ref>{{cite web |url=http://webvarta.com/script_detail.php?script_id=2906&catid=11 |title=राजस्थान का | *इस जैन ग्रन्थ के अनुसार विमल नामक सेनापति ने [[ऋषभदेव]] की पीतल की मूर्ति सहित यहाँ एक चैत्यबनवाया था और 1088 वि. सं. में उसने विमल-वसति नामक एक मंदिर बनवाया 1288 वि0 सं0 में राजा के मुख्य मंत्री ने नेमि का मंदिर- लूणिगवसति बनवाया। 1243 वि0 सं0 में चंडसिंह के पुत्र पीठपद और महनसिंह के पुत्र लल्ल ने तेजपाल द्वारा निर्मित मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। इसी मूर्ति के लिए चालुक्यवंशी कुमारपाल भूपति ने [[श्रीवीर]] का मन्दिर बनवाया था।<ref>{{cite web |url=http://webvarta.com/script_detail.php?script_id=2906&catid=11 |title=राजस्थान का ख़ूबसूरत और एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू |accessmonthday=[[13 जून]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेब वार्ता |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | ||
* अर्बुद का उल्लेख एक अन्य जैन ग्रन्थ तीर्थमाला चैत्यवन्दन में भी मिलता है- | * अर्बुद का उल्लेख एक अन्य जैन ग्रन्थ तीर्थमाला चैत्यवन्दन में भी मिलता है- | ||
<blockquote>कोडीनारकमंत्रिदाहड़पुरेश्रीमंडपे चार्बुदे'।</blockquote> | <blockquote>कोडीनारकमंत्रिदाहड़पुरेश्रीमंडपे चार्बुदे'।</blockquote> |
15:21, 11 जुलाई 2011 का अवतरण
- माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है। माउंट आबू में अनेक पर्यटन स्थल हैं। इनमें कुछ शहर से दूर हैं तो कुछ शहर के आसपास ही हैं।
- अर्बुदा-देवी का मन्दिर यहीं पहाड़ के ऊपर है।
- जैन ग्रन्थ विविधतीर्थकल्प के अनुसार आबूपर्वत की तलहटी में अर्बुद नामक नाग का निवास था, इसी के कारण यह पहाड़ आबू कहलाया।
- इसका पुराना नाम नंदिवर्धन था।
- पहाड़ के पास मन्दाकिनी नदी बहती है और श्रीमाता अचलेश्वर और वशिष्ठाश्रम तीर्थ हैं अर्बुद-गिरि पर परमार नरेशों ने राज्य किया था जिनकी राजधानी चंद्रावती में थी।
- इस जैन ग्रन्थ के अनुसार विमल नामक सेनापति ने ऋषभदेव की पीतल की मूर्ति सहित यहाँ एक चैत्यबनवाया था और 1088 वि. सं. में उसने विमल-वसति नामक एक मंदिर बनवाया 1288 वि0 सं0 में राजा के मुख्य मंत्री ने नेमि का मंदिर- लूणिगवसति बनवाया। 1243 वि0 सं0 में चंडसिंह के पुत्र पीठपद और महनसिंह के पुत्र लल्ल ने तेजपाल द्वारा निर्मित मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। इसी मूर्ति के लिए चालुक्यवंशी कुमारपाल भूपति ने श्रीवीर का मन्दिर बनवाया था।[1]
- अर्बुद का उल्लेख एक अन्य जैन ग्रन्थ तीर्थमाला चैत्यवन्दन में भी मिलता है-
कोडीनारकमंत्रिदाहड़पुरेश्रीमंडपे चार्बुदे'।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ राजस्थान का ख़ूबसूरत और एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू (हिन्दी) वेब वार्ता। अभिगमन तिथि: 13 जून, 2010।