"इक लड़की -दिनेश रघुवंशी": अवतरणों में अंतर

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<poem>इक लड़की भोली-भाली सी
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इक लड़की भोली-भाली सी
महके फूलों की डोली – सी
महके फूलों की डोली – सी
निश्छल, निर्मल, चंचल धारा
निश्छल, निर्मल, चंचल धारा
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जीवन वृंदावन कर देगी
जीवन वृंदावन कर देगी
देह-सृष्टि ऐसी कि जैसे
देह-सृष्टि ऐसी कि जैसे
लाखों वंदनवार सजे
लाखों बंदनवार सजे
उसकी मादक छुवन से पल में
उसकी मादक छुवन से पल में
मन – वीणा के तार बजे
मन – वीणा के तार बजे
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वो पागल मेरे पीछे…
वो पागल मेरे पीछे…


     आँचल में खुश्बू भर लाई
     आँचल में खुशबू भर लाई
     उससे महक उठी अँगनाई
     उससे महक उठी अँगनाई
     मौसम की पहली बारिश वो
     मौसम की पहली बारिश वो
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     डरता हूँ कुछ कर ना जाये
     डरता हूँ कुछ कर ना जाये
     ना बोलूँ तो मर ना जाये
     ना बोलूँ तो मर ना जाये
     सोच रहा हूँ आखिर कैसे
     सोच रहा हूँ आख़िर कैसे
     अब मैं उसको समझाऊँ
     अब मैं उसको समझाऊँ
     उसको समझाते –समझाते
     उसको समझाते – समझाते
     खुद पागल ना हो जाऊँ
     खुद पागल ना हो जाऊँ
     मन करता है रख दूँ दिल को
     मन करता है रख दूँ दिल को

12:36, 19 अगस्त 2011 का अवतरण

इक लड़की -दिनेश रघुवंशी
दिनेश रघुवंशी
दिनेश रघुवंशी
कवि दिनेश रघुवंशी
जन्म 26 अगस्त, 1964
जन्म स्थान ग्राम ख़ैरपुर, बुलन्दशहर ज़िला, (उत्तर प्रदेश)
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

इक लड़की भोली-भाली सी
महके फूलों की डोली – सी
निश्छल, निर्मल, चंचल धारा
जैसे तोड़ के चले किनारा
नेह के अमरित कलश से मेरी
जीवन बगिया को सींचे
जिसके पीछे दुनिया पागल
वो पागल मेरे पीछे…

    वो दुनिया का गणित न जाने
    सबकी बातें सच्ची माने
    जागी आँखों में कुछ सपने
    उसको सब लगते हैं अपने
    झील-सी गहरी आँखें सुहानी
    जैसे कहें अनकही कहानी
    मौन निमन्त्रण मुझको जिसका
    कोई अर्थ स्वयं गढ़ लूँ
    उसकी चाहत बस मैं उसकी
    आँखों में चेहरा पढ़ लूँ
    उससे कुछ कहना चाहूँ तो
    हँसकर अँखियों को मींचे
    जिसके पीछे दुनिया पागल
    वो पागल मेरे पीछे…

उसका जीवन खुली हथेली
वो क्या जाने प्यार पहेली
वेद ॠचाओं-सी वो पावन
उससे महके प्रीत का चंदन
सारा खालीपन भर देगी
जीवन वृंदावन कर देगी
देह-सृष्टि ऐसी कि जैसे
लाखों बंदनवार सजे
उसकी मादक छुवन से पल में
मन – वीणा के तार बजे
इक अनदेखे-से बंधन में
मुझको अपनी ओर खींचे,
जिसके पीछे दुनिया पागल
वो पागल मेरे पीछे…

    आँचल में खुशबू भर लाई
    उससे महक उठी अँगनाई
    मौसम की पहली बारिश वो
    अब मेरी भी हर ख्वाहिश वो
    डरता हूँ कुछ कर ना जाये
    ना बोलूँ तो मर ना जाये
    सोच रहा हूँ आख़िर कैसे
    अब मैं उसको समझाऊँ
    उसको समझाते – समझाते
    खुद पागल ना हो जाऊँ
    मन करता है रख दूँ दिल को
    उसकी पलकों के नीचे
    जिसके पीछे दुनिया पागल
    वो पागल मेरे पीछे…


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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