"चुप्पियाँ बोलीं -दिनेश रघुवंशी": अवतरणों में अंतर
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<poem>मछलियाँ बोलीं- | <poem> | ||
मछलियाँ बोलीं- | |||
हमारे भाग्य में | हमारे भाग्य में | ||
ढ़ेर- सा है जल, तो तड़पन भी बहुत हैं | ढ़ेर- सा है जल, तो तड़पन भी बहुत हैं... | ||
शाप है | शाप है या कोई वरदान है | ||
यह समझ पाना कहाँ आसान है | यह समझ पाना कहाँ आसान है | ||
एक पल ढ़ेरों ख़ुशी ले आएगा | एक पल ढ़ेरों ख़ुशी ले आएगा | ||
पंक्ति 38: | पंक्ति 39: | ||
भोली-भाली मुस्कुराहट अब कहाँ | भोली-भाली मुस्कुराहट अब कहाँ | ||
वे रुपहली-सी सजावट अब कहाँ | वे रुपहली-सी सजावट अब कहाँ | ||
साँकलें | साँकलें दरवाज़ों से कहने लगीं | ||
जानी- पहचानी वो आहत अब कहाँ | जानी- पहचानी वो आहत अब कहाँ | ||
चूड़ियाँ बोलीं- | |||
हमारे भाग्य में | हमारे भाग्य में | ||
हैं खनकते सुख, तो टूटन भी बहुत हैं… | हैं खनकते सुख, तो टूटन भी बहुत हैं… | ||
पंक्ति 53: | पंक्ति 54: | ||
रास्ता रोका घने विशवास ने | रास्ता रोका घने विशवास ने | ||
अपनेपन | अपनेपन की चाह ने, अहसास ने | ||
किसलिए फिर बरसे बिन जाने लगी | किसलिए फिर बरसे बिन जाने लगी | ||
बदलियों से जब ये | बदलियों से जब ये पूछा प्यास ने | ||
बदलियाँ बोलीं- | बदलियाँ बोलीं- | ||
हमारे भाग्य में | हमारे भाग्य में |
12:45, 19 अगस्त 2011 का अवतरण
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मछलियाँ बोलीं- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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