"एक तुम हो -माखन लाल चतुर्वेदी": अवतरणों में अंतर
प्रीति चौधरी (वार्ता | योगदान) ('{{पुनरीक्षण}} {| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
कात्या सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{| style="background:transparent; float:right" | {| style="background:transparent; float:right" | ||
|- | |- | ||
पंक्ति 37: | पंक्ति 36: | ||
हिमालय दो शिखर है: एक तुम हो, | हिमालय दो शिखर है: एक तुम हो, | ||
रहे साक्षी लहरता सिंधु मेरा, | |||
कि भारत हो धरा का बिंदु मेरा। | |||
कला के जोड़-सी जग-गुत्थियाँ ये, | |||
हृदय के होड़-सी दृढ वृत्तियाँ ये, | |||
तिरंगे की तरंगों पर चढ़ाते, | |||
कि शत-शत ज्वार तेरे पास आते। | |||
तुझे सौगंध है घनश्याम की आ, | |||
तुझे सौगंध भारत-धाम की आ, | |||
तुझे सौगंध सेवा-ग्राम की आ, | |||
कि आ, आकर उजड़तों को बचा, आ। | |||
तुम्हारी यातनाएँ और अणिमा, | तुम्हारी यातनाएँ और अणिमा, | ||
पंक्ति 57: | पंक्ति 56: | ||
तुम्हारे बोल ! भू की दिव्य महिमा | तुम्हारे बोल ! भू की दिव्य महिमा | ||
तुम्हारी जीभ के पैंरो महावर, | |||
तुम्हारी अस्ति पर दो युग निछावर। | |||
रहे मन-भेद तेरा और मेरा, अमर हो देश का कल का सबेरा, | रहे मन-भेद तेरा और मेरा, अमर हो देश का कल का सबेरा, | ||
कि वह कश्मीर, वह नेपाल; गोवा; कि साक्षी वह जवाहर, यह विनोबा, | कि वह कश्मीर, वह नेपाल; गोवा; कि साक्षी वह जवाहर, यह विनोबा, | ||
प्रलय की आह युग है, वाह तुम हो, | |||
जरा-से किंतु लापरवाह तुम हो। | |||
10:19, 23 दिसम्बर 2011 का अवतरण
| ||||||||||||||||||
|
गगन पर दो सितारे: एक तुम हो, |
संबंधित लेख |