"सदस्य:DrMKVaish": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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* यदि कोई व्यक्ति अपने धन को ज्ञान अर्जित करने में ख़र्च करता है, तो उससे उस ज्ञान को कोई नहीं छीन सकता! ज्ञान के लिए किये गए निवेश में हमेशा अच्छा प्रतिफल प्राप्त होता है! - बेंजामिन फ्रेंकलिन | * यदि कोई व्यक्ति अपने धन को ज्ञान अर्जित करने में ख़र्च करता है, तो उससे उस ज्ञान को कोई नहीं छीन सकता! ज्ञान के लिए किये गए निवेश में हमेशा अच्छा प्रतिफल प्राप्त होता है! - बेंजामिन फ्रेंकलिन | ||
* यह मत मानिये की जीत ही सब कुछ है, अधिक महत्त्व इस बात का है, की आप किसी आदर्श के लिए संघर्षरत हों! यदि आप आदर्श पर ही नहीं डट सकते, तो जीतोगे क्या? - लेन कर्कलैंड | * यह मत मानिये की जीत ही सब कुछ है, अधिक महत्त्व इस बात का है, की आप किसी आदर्श के लिए संघर्षरत हों! यदि आप आदर्श पर ही नहीं डट सकते, तो जीतोगे क्या? - लेन कर्कलैंड | ||
* जब तुम नही होगे, तब तुम पहली बार होगे। - आचार्य रजनीश | * जब तुम नही होगे, तब तुम पहली बार होगे। - आचार्य रजनीश | ||
* तुम मुझे खून दो, मै तुन्हे आजादी दूँगा। - नेता जी सुभाषचंद्र बोस | * तुम मुझे खून दो, मै तुन्हे आजादी दूँगा। - नेता जी सुभाषचंद्र बोस | ||
* मै एक मजदूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं। - प्रेमचंद | * मै एक मजदूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं। - प्रेमचंद | ||
* चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी न जाएं। - प्रेमचन्द | |||
* निराशा सम्भव को असम्भव बना देती है। — प्रेमचन्द | |||
* संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति। — चाणक्य | * संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति। — चाणक्य | ||
* कुबेर भी यदि आय से अधिक व्यय करे तो निर्धन हो जाता है। – चाणक्य | |||
* कविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है। – रामधारी सिंह दिनकर | * कविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है। – रामधारी सिंह दिनकर | ||
* कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है। — रामधारी सिंह दिनकर | |||
* कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी। – रवीन्द्रनाथ ठाकुर | * कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी। – रवीन्द्रनाथ ठाकुर | ||
* निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल। बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल॥ — भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | * निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल। बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल॥ — भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | ||
* सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता | * सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता है। – अनंत गोपाल शेवड़े | ||
* जो कोई भी हों, सैकडो मित्र बनाने चाहिये। देखो, मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे। — पंचतंत्र | * जो कोई भी हों, सैकडो मित्र बनाने चाहिये। देखो, मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे। — पंचतंत्र | ||
* सत्संगतिः स्वर्गवास: (सत्संगति स्वर्ग में रहने के समान है) — पंचतंत्र | |||
* भय से तब तक ही डरना चाहिये जब तक भय (पास) न आया हो। आये हुए भय को देखकर बिना शंका के उस पर प्रहार करना चाहिये। — पंचतंत्र | |||
* जिसके पास बुद्धि है, बल उसी के पास है। (बुद्धिः यस्य बलं तस्य) — पंचतंत्र | |||
* मौनं सर्वार्थसाधनम्। — पंचतन्त्र (मौन सारे काम बना देता है) | |||
* को लाभो गुणिसंगमः (लाभ क्या है? गुणियों का साथ) — भर्तृहरि | * को लाभो गुणिसंगमः (लाभ क्या है? गुणियों का साथ) — भर्तृहरि | ||
* | * दान , भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं। जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति (नाश) होती है। — भर्तृहरि | ||
* गगन चढहिं रज पवन प्रसंगा। (हवा का साथ पाकर धूल आकाश पर चढ जाता है) — गोस्वामी तुलसीदास | * गगन चढहिं रज पवन प्रसंगा। (हवा का साथ पाकर धूल आकाश पर चढ जाता है) — गोस्वामी तुलसीदास | ||
* एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है। – अज्ञात | * एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है। – अज्ञात | ||
* वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे। – अज्ञात | |||
* शुभारम्भ, आधा खतम। - अज्ञात | |||
* चींटी से परिश्रम करना सीखें। — अज्ञात | |||
* सबसे अधिक ज्ञानी वही है जो अपनी कमियों को समझकर उनका सुधार कर सकता हो। - अज्ञात | |||
* दिमाग जब बडे-बडे विचार सोचने के अनुरूप बडा हो जाता है, तो पुनः अपने मूल आकार में नही लौटता। — अज्ञात | |||
* आत्महत्या, एक अस्थायी समस्या का स्थायी समाधान है। — अज्ञात | |||
* हँसते हुए जो समय आप व्यतीत करते हैं, वह ईश्वर के साथ व्यतीत किया समय है। — अज्ञात | |||
* क्रोध सदैव मूर्खता से प्रारंभ होता है और पश्चाताप पर समाप्त। — अज्ञात | |||
* यदि आवश्यकता आविष्कार की जननी (माता) है, तो असन्तोष विकास का जनक (पिता) है। — अज्ञात | |||
* हे भगवान! मुझे धैर्य दो, और ये काम अभी करो। — अज्ञात | |||
* यदि बुद्धिमान हो, तो हँसो। — अज्ञात | |||
* मुस्कान पाने वाला मालामाल हो जाता है पर देने वाला दरिद्र नहीं होता। — अज्ञात | |||
* पुरुष से नारी अधिक बुद्धिमती होती है, क्योंकि वह जानती कम है पर समझती अधिक है। - अज्ञात | |||
* किसी की करुणा व पीड़ा को देख कर मोम की तरह दर्याद्र हो पिघलनेवाला ह्रदय तो रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं के थपेड़े खाते रहने की स्थिति में चट्टान की तरह दृढ़ व ठोस भी बने रहो। - द्रोणाचार्य | * किसी की करुणा व पीड़ा को देख कर मोम की तरह दर्याद्र हो पिघलनेवाला ह्रदय तो रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं के थपेड़े खाते रहने की स्थिति में चट्टान की तरह दृढ़ व ठोस भी बने रहो। - द्रोणाचार्य | ||
* यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, मगर ऐसे लोग कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। - वल्लभभाई पटेल | * यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, मगर ऐसे लोग कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। - वल्लभभाई पटेल | ||
* अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है। कायरों की नहीं। – जवाहरलाल नेहरू | * अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है। कायरों की नहीं। – जवाहरलाल नेहरू | ||
* अभय-दान सबसे बडा दान है। — विवेकानंद | * अभय-दान सबसे बडा दान है। — विवेकानंद | ||
* कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो, आंखे मूंदकर उसके पीछे न चलिए। यदि ईश्वर की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को आंख, नाक, कान, मुंह, मस्तिष्क आदि क्यों देता ? - विवेकानंद | |||
* भय से ही दुख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयां उत्पन्न होती हैं। — विवेकानंद | * भय से ही दुख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयां उत्पन्न होती हैं। — विवेकानंद | ||
* असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया। — | |||
* असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया। — श्रीराम शर्मा आचार्य | |||
* शारीरिक गुलामी से बौद्धिक गुलामी अधिक भयंकर है। — श्रीराम शर्मा, आचार्य | |||
* ग्रन्थ, पन्थ हो अथवा व्यक्ति, नहीं किसी की अंधी भक्ति। — श्रीराम शर्मा, आचार्य | |||
* जैसी जनता, वैसा राजा। प्रजातन्त्र का यही तकाजा॥ — श्रीराम शर्मा, आचार्य | |||
* केवल वे ही असंभव कार्य को कर सकते हैं जो अदृष्य को भी देख लेते हैं। — श्रीराम शर्मा आचार्य | |||
* नहीं संगठित सज्जन लोग। रहे इसी से संकट भोग॥ — श्रीराम शर्मा, आचार्य | |||
* मनुष्य की वास्तविक पूँजी धन नहीं, विचार हैं। — श्रीराम शर्मा, आचार्य | |||
* प्रज्ञा-युग के चार आधार होंगे - समझदारी, इमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी। — श्रीराम शर्मा, आचार्य | |||
* मनःस्थिति बदले, तब परिस्थिति बदले। - पं श्रीराम शर्मा आचार्य | |||
* रचनात्मक कार्यों से देश समर्थ बनेगा। — श्रीराम शर्मा, आचार्य | |||
* संसार का सबसे बडा दिवालिया वह है जिसने उत्साह खो दिया। — श्रीराम शर्मा, आचार्य | |||
* समाज के हित में अपना हित है। — श्रीराम शर्मा, आचार्य | |||
* सुख में गर्व न करें, दुःख में धैर्य न छोड़ें। - पं श्री राम शर्मा आचार्य | |||
* उसी धर्म का अब उत्थान, जिसका सहयोगी विज्ञान॥ — श्रीराम शर्मा, आचार्य | |||
* यहाँ दो तरह के लोग होते हैं - एक वो जो काम करते हैं और दूसरे वो जो सिर्फ क्रेडिट लेने की सोचते है। कोशिश करना कि तुम पहले समूह में रहो क्योंकि वहाँ कम्पटीशन कम है। — इंदिरा गांधी | * यहाँ दो तरह के लोग होते हैं - एक वो जो काम करते हैं और दूसरे वो जो सिर्फ क्रेडिट लेने की सोचते है। कोशिश करना कि तुम पहले समूह में रहो क्योंकि वहाँ कम्पटीशन कम है। — इंदिरा गांधी | ||
* यदि असंतोष की भावना को लगन व धैर्य से रचनात्मक शक्ति में न बदला जाये तो वह खतरनाक भी हो सकती है। — इंदिरा गांधी | |||
* मेरी हार्दिक इच्छा है कि मेरे पास जो भी थोड़ा-बहुत धन शेष है, वह सार्वजनिक हित के कामों में यथाशीघ्र खर्च हो जाए। मेरे अंतिम समय में एक पाई भी न बचे, मेरे लिए सबसे बड़ा सुख यही होगा। - पुरुषोत्तमदास टंडन | * मेरी हार्दिक इच्छा है कि मेरे पास जो भी थोड़ा-बहुत धन शेष है, वह सार्वजनिक हित के कामों में यथाशीघ्र खर्च हो जाए। मेरे अंतिम समय में एक पाई भी न बचे, मेरे लिए सबसे बड़ा सुख यही होगा। - पुरुषोत्तमदास टंडन | ||
* गरीबी दैवी अभिशाप नहीं बल्कि मानवरचित षडयन्त्र है। — महात्मा गाँधी | * गरीबी दैवी अभिशाप नहीं बल्कि मानवरचित षडयन्त्र है। — महात्मा गाँधी | ||
* हमें वह परिवर्तन खुद बनना चाहिये जिसे हम संसार मे देखना चाहते हैं। — महात्मा गाँधी | |||
* ‘अहिंसा’ भय का नाम भी नहीं जानती। - महात्मा गांधी | |||
* सब से अधिक आनंद इस भावना में है कि हमने मानवता की प्रगति में कुछ योगदान दिया है। भले ही वह कितना कम, यहां तक कि बिल्कुल ही तुच्छ क्यों न हो? - डा. राधाकृष्णन | * सब से अधिक आनंद इस भावना में है कि हमने मानवता की प्रगति में कुछ योगदान दिया है। भले ही वह कितना कम, यहां तक कि बिल्कुल ही तुच्छ क्यों न हो? - डा. राधाकृष्णन | ||
* | * धर्म , व्यक्ति एवं समाज, दोनों के लिये आवश्यक है। — डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन | ||
* खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले। खुदा बंदे से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है? — अकबर इलाहाबादी | * खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले। खुदा बंदे से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है? — अकबर इलाहाबादी | ||
* मनुष्य अपनी दुर्बलता से भली-भांति परिचित रहता है, पर उसे अपने बल से भी अवगत होना चाहिये। — जयशंकर प्रसाद | * मनुष्य अपनी दुर्बलता से भली-भांति परिचित रहता है, पर उसे अपने बल से भी अवगत होना चाहिये। — जयशंकर प्रसाद | ||
* ज्ञान प्राप्ति का एक ही मार्ग है जिसका नाम है, एकाग्रता। शिक्षा का सार है, मन को एकाग्र करना, तथ्यों का संग्रह करना नहीं। — श्री माँ | * ज्ञान प्राप्ति का एक ही मार्ग है जिसका नाम है, एकाग्रता। शिक्षा का सार है, मन को एकाग्र करना, तथ्यों का संग्रह करना नहीं। — श्री माँ | ||
* जो भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है। – डा. विक्रम साराभाई | * जो भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है। – डा. विक्रम साराभाई | ||
* आत्मदीपो भवः। (अपना दीपक स्वयं बनो ।) — गौतम बुद्ध | * आत्मदीपो भवः। (अपना दीपक स्वयं बनो ।) — गौतम बुद्ध | ||
* मौन और एकान्त, आत्मा के सर्वोत्तम मित्र हैं। — बिनोवा भावे | * मौन और एकान्त, आत्मा के सर्वोत्तम मित्र हैं। — बिनोवा भावे | ||
* मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है। – विनोबा | |||
* हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है। — आचार्य विनबा भावे | |||
* मौन, क्रोध की सर्वोत्तम चिकित्सा है। — स्वामी विवेकानन्द | * मौन, क्रोध की सर्वोत्तम चिकित्सा है। — स्वामी विवेकानन्द | ||
* | * महान कार्य महान त्याग से ही सम्पन्न होते हैं। — स्वामी विवेकानन्द | ||
* ज्ञानं भार: क्रियां बिना। आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है। — हितोपदेश | * ज्ञानं भार: क्रियां बिना। आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है। — हितोपदेश | ||
* कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्। (कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है, फल में कभी भी नहीं) — गीता | * कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्। (कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है, फल में कभी भी नहीं) — गीता | ||
* छोटा आरम्भ करो, शीघ्र आरम्भ करो। — रघुवंश महाकाव्यम् | * छोटा आरम्भ करो, शीघ्र आरम्भ करो। — रघुवंश महाकाव्यम् | ||
* हजारों मील की यात्रा भी प्रथम चरण से ही आरम्भ होती है। — चीनी कहावत | * हजारों मील की यात्रा भी प्रथम चरण से ही आरम्भ होती है। — चीनी कहावत | ||
* जो जानता नही कि वह जानता नही,वह मुर्ख है - उसे दुर भगाओ। जो जानता है कि वह जानता नही, वह सीधा है - उसे सिखाओ। जो जानता नही कि वह जानता है, वह सोया है - उसे जगाओ। जो जानता है कि वह जानता है, वह सयाना है - उसे गुरू बनाओ। — अरबी कहावत | |||
* ईश्वर से प्रार्थना करो, पर अपनी पतवार चलाते रहो। – वेदव्यास | * ईश्वर से प्रार्थना करो, पर अपनी पतवार चलाते रहो। – वेदव्यास | ||
* जो प्राणिमात्र के लिये अत्यन्त हितकर हो, मै इसी को सत्य कहता हूँ। — वेद व्यास | |||
* अकर्मण्य मनुष्य श्रेष्ठ होते हुए भी पापी है। - ऐतरेय ब्राह्मण - ३३।३ | * अकर्मण्य मनुष्य श्रेष्ठ होते हुए भी पापी है। - ऐतरेय ब्राह्मण - ३३।३ | ||
* मैं अपने ट्रेनिंग सत्र के प्रत्येक मिनट से घृणा करता था, परंतु मैं कहता था – 'भागो मत, अभी तो भुगत लो, और फिर पूरी जिंदगी चैम्पियन की तरह जिओ' – मुहम्मद अली | * मैं अपने ट्रेनिंग सत्र के प्रत्येक मिनट से घृणा करता था, परंतु मैं कहता था – 'भागो मत, अभी तो भुगत लो, और फिर पूरी जिंदगी चैम्पियन की तरह जिओ' – मुहम्मद अली | ||
* सूरज और चांद को आप अपने जन्म के समय से ही देखते चले आ रहे हैं। फिर भी यह नहीं जान पाये कि काम कैसे करने चाहिए? - रामतीर्थ | * सूरज और चांद को आप अपने जन्म के समय से ही देखते चले आ रहे हैं। फिर भी यह नहीं जान पाये कि काम कैसे करने चाहिए? - रामतीर्थ | ||
* बच्चों को शिक्षा के साथ यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वह मात्र एक व्यक्ति नहीं है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। उससे कुछ भी गलत हो जाएगा तो उसकी और उसके परिवार की ही नहीं बल्कि पूरे समाज और पूरे देश की दुनिया में बदनामी होगी। बचपन से उसे यह सिखाने से उसके मन में यह भावना पैदा होगी कि वह कुछ ऐसा करे जिससे कि देश का नाम रोशन हो। योग-शिक्षा इस मार्ग पर बच्चे को ले जाने में सहायक है। - स्वामी रामदेव | * बच्चों को शिक्षा के साथ यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वह मात्र एक व्यक्ति नहीं है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। उससे कुछ भी गलत हो जाएगा तो उसकी और उसके परिवार की ही नहीं बल्कि पूरे समाज और पूरे देश की दुनिया में बदनामी होगी। बचपन से उसे यह सिखाने से उसके मन में यह भावना पैदा होगी कि वह कुछ ऐसा करे जिससे कि देश का नाम रोशन हो। योग-शिक्षा इस मार्ग पर बच्चे को ले जाने में सहायक है। - स्वामी रामदेव | ||
* बुरे आदमी के साथ भी भलाई करनी चाहिए – कुत्ते को रोटी का एक टुकड़ा डालकर उसका मुंह बन्द करना ही अच्छा है। – शेख सादी | * बुरे आदमी के साथ भी भलाई करनी चाहिए – कुत्ते को रोटी का एक टुकड़ा डालकर उसका मुंह बन्द करना ही अच्छा है। – शेख सादी | ||
* | * खुदा एक दरवाजा बन्द करने से पहले दूसरा खोल देता है, उसे प्रयत्न कर देखो। – शेख सादी | ||
* घमंड करना जाहिलों का काम है। - शेख सादी | |||
* जिस प्रकार राख से सना हाथ जैसे-जैसे दर्पण पर घिसा जाता है, वैसे-वैसे उसके प्रतिबिंब को साफ करता है, उसी प्रकार दुष्ट जैसे-जैसे सज्जन का अनादर करता है, वैसे-वैसे वह उसकी कांति को बढ़ाता है। - वासवदत्ता | * जिस प्रकार राख से सना हाथ जैसे-जैसे दर्पण पर घिसा जाता है, वैसे-वैसे उसके प्रतिबिंब को साफ करता है, उसी प्रकार दुष्ट जैसे-जैसे सज्जन का अनादर करता है, वैसे-वैसे वह उसकी कांति को बढ़ाता है। - वासवदत्ता | ||
* सांप के दांत में विष रहता है, मक्खी के सिर में और बिच्छू की पूंछ में किन्तु दुर्जन के पूरे शरीर में विष रहता है। – कबीर | * सांप के दांत में विष रहता है, मक्खी के सिर में और बिच्छू की पूंछ में किन्तु दुर्जन के पूरे शरीर में विष रहता है। – कबीर | ||
* जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है, उसी तरह गुणी ही गुणवान् की पहचान कर सकता है। – कबीर | |||
* अरूणोदय के पूर्व सदैव घनघोर अंधकार होता है। — मैथिलीशरण गुप्त | * अरूणोदय के पूर्व सदैव घनघोर अंधकार होता है। — मैथिलीशरण गुप्त | ||
* नर हो न निराश करो मन को। कुछ काम करो, कुछ काम करो। जग में रहकर कुछ नाम करो॥ — मैथिलीशरण गुप्त | * नर हो न निराश करो मन को। कुछ काम करो, कुछ काम करो। जग में रहकर कुछ नाम करो॥ — मैथिलीशरण गुप्त | ||
* मनुष्य के लिए निराशा के समान दूसरा पाप नहीं है। इसलिए मनुष्य को पापरूपिणी निराशा को समूल हटाकर आशावादी बनना चाहिए। - हितोपदेश | * मनुष्य के लिए निराशा के समान दूसरा पाप नहीं है। इसलिए मनुष्य को पापरूपिणी निराशा को समूल हटाकर आशावादी बनना चाहिए। - हितोपदेश | ||
* उर्दू लिखने के लिये देवनागरी अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी। — खुशवन्त सिंह | * उर्दू लिखने के लिये देवनागरी अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी। — खुशवन्त सिंह | ||
* जो मनुष्य अपने क्रोध को अपने वश में कर लेता है, वह दूसरों के क्रोध से (फलस्वरूप) स्वयमेव बच जाता है। – सुकरात | * जो मनुष्य अपने क्रोध को अपने वश में कर लेता है, वह दूसरों के क्रोध से (फलस्वरूप) स्वयमेव बच जाता है। – सुकरात | ||
* जब तुम दु:खों का सामना करने से डर जाते हो और रोने लगते हो, तो मुसीबतों का ढेर लग जाता है। लेकिन जब तुम मुस्कराने लगते हो, तो मुसीबतें सिकुड़ जाती हैं। – सुधांशु महाराज | * जब तुम दु:खों का सामना करने से डर जाते हो और रोने लगते हो, तो मुसीबतों का ढेर लग जाता है। लेकिन जब तुम मुस्कराने लगते हो, तो मुसीबतें सिकुड़ जाती हैं। – सुधांशु महाराज | ||
* धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है। — डा. शंकरदयाल शर्मा | * धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है। — डा. शंकरदयाल शर्मा | ||
* कस्र्णा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है। – सुदर्शन | * कस्र्णा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है। – सुदर्शन | ||
* जो पाप में पड़ता है, वह मनुष्य है, जो उसमें पड़ने पर दुखी होता है, वह साधु है और जो उस पर अभिमान करता है, वह शैतान होता है। - फुलर | * जो पाप में पड़ता है, वह मनुष्य है, जो उसमें पड़ने पर दुखी होता है, वह साधु है और जो उस पर अभिमान करता है, वह शैतान होता है। - फुलर | ||
* नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिये, इसी प्रकार साधक जग में रहे लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिये। — रामकृष्ण परमहंस | * नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिये, इसी प्रकार साधक जग में रहे लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिये। — रामकृष्ण परमहंस | ||
* जिस हरे-भरे वृक्ष की छाया का आश्रय लेकर रहा जाए, पहले उपकारों का ध्यान रखकर उसके एक पत्ते से भी द्रोह नहीं करना चाहिए। - महाभारत | * जिस हरे-भरे वृक्ष की छाया का आश्रय लेकर रहा जाए, पहले उपकारों का ध्यान रखकर उसके एक पत्ते से भी द्रोह नहीं करना चाहिए। - महाभारत | ||
* नेकी कर और दरिया में डाल। - किस्सा हातिमताई | * नेकी कर और दरिया में डाल। - किस्सा हातिमताई | ||
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08:47, 25 सितम्बर 2011 का अवतरण
माँ तुझे सलाम
मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं।
- महात्मा गांधी
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National Anthem =
मेरे पृष्ट पर आप का स्वागत है !
Hello.
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मेरा पसंदीदा चित्र संग्रह |
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मुझे हिन्दुस्तानी, हिन्दू और हिन्दी भाषी होने का गर्व है | |