"दशार्ण (मध्य प्रदेश)": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
'''दशार्ण''' [[बुंदेलखंड]], [[मध्य प्रदेश]] का [[धसान नदी]] से सिंचित प्रदेश है। धसान नदी भूपाल क्षेत्र की पर्वतमाला से निकल कर [[सागर ज़िला|सागर ज़िले]] में बहती हुई [[झांसी]] के निकट [[बेतवा नदी]] में मिल जाती है। दशार्ण का अर्थ 'दस' (या अनेक) नदियों वाला | '''दशार्ण''' [[बुंदेलखंड]], [[मध्य प्रदेश]] का [[धसान नदी]] से सिंचित प्रदेश है। धसान नदी भूपाल क्षेत्र की पर्वतमाला से निकल कर [[सागर ज़िला|सागर ज़िले]] में बहती हुई [[झांसी]] के निकट [[बेतवा नदी]] में मिल जाती है। दशार्ण का अर्थ है- 'दस' (या अनेक) नदियों वाला क्षेत्र। | ||
==महाभारत में उल्लेख== | ==महाभारत में उल्लेख== | ||
धसान, दशार्ण का ही अपभ्रंश है। [[महाभारत]] में दशार्ण को [[भीमसेन]] द्वारा विजित किये जाने का उल्लेख है- | 'धसान', दशार्ण का ही अपभ्रंश है। [[महाभारत]] में दशार्ण को [[भीमसेन]] द्वारा विजित किये जाने का उल्लेख है- | ||
महाभारत काल में इस क्षेत्र पर उस समय सुधर्मा का शासन था। महाभारत में सुधर्मा के पूर्वगामी दशार्ण नरेश हिरण्यवर्मा का उल्लेख है। हिरण्यवर्मा की कन्या का [[विवाह]] [[द्रुपद]] के पुत्र [[शिखंडी]] के साथ हुआ था।<ref>हिरण्यवर्मेति नृपोऽसौ दाशार्णिक: स्मृत:, स च प्रादान्महीपाल: कन्यां तस्मै शिखंडिने- महाभारत, उद्योगपर्व 199, 10.</ref> महाभारत के पश्चात दशार्ण का उल्लेख [[बौद्ध]] जातकों तथा [[कौटिल्य]] के '[[अर्थशास्त्र ग्रंथ|अर्थशास्त्र]]' में मिलता है। उस समय [[विदिशा]] दशार्ण की राजधानी हुआ करती थी। | <blockquote>'तत: स गंडकाञ्छूरो विदेहान् भग्तर्षभ:, विजित्याल्पेन कालेन दशार्णनजयत प्रभु:। तत्र दशार्ण को राजा सुधर्मालोमहर्षणम्, कृतवान् भीमसेनेन महद् युद्धं निरायुधम्'<ref>[[महाभारत]], [[सभापर्व महाभारत|सभापर्व]] 29, 4-5.</ref></blockquote> | ||
[[महाभारत]] काल में इस क्षेत्र पर उस समय सुधर्मा का शासन था। महाभारत में सुधर्मा के पूर्वगामी दशार्ण नरेश हिरण्यवर्मा का उल्लेख है। हिरण्यवर्मा की कन्या का [[विवाह]] [[द्रुपद]] के पुत्र [[शिखंडी]] के साथ हुआ था।<ref>हिरण्यवर्मेति नृपोऽसौ दाशार्णिक: स्मृत:, स च प्रादान्महीपाल: कन्यां तस्मै शिखंडिने- महाभारत, उद्योगपर्व 199, 10.</ref> महाभारत के पश्चात दशार्ण का उल्लेख [[बौद्ध]] [[जातक कथा|जातकों]] तथा [[कौटिल्य]] के '[[अर्थशास्त्र ग्रंथ|अर्थशास्त्र]]' में मिलता है। उस समय [[विदिशा]] दशार्ण की राजधानी हुआ करती थी। | |||
==कालिदास का वर्णन== | ==कालिदास का वर्णन== | ||
[[कालिदास]] ने 'मेघदूत'<ref>पूर्वमेघ 25</ref> में दशार्ण का सुंदर वर्णन करते हुए इस देश के बरसात में फूलने-फलने वाले जामुन के कुंजों तथा इस ऋतु में कुछ दिन यहाँ ठहर जाने वाले यायावर हंसों का वर्णन किया है- | [[कालिदास]] ने '[[मेघदूत]]'<ref>पूर्वमेघ 25</ref> में दशार्ण का सुंदर वर्णन करते हुए इस देश के बरसात में फूलने-फलने वाले जामुन के कुंजों तथा इस ऋतु में कुछ दिन यहाँ ठहर जाने वाले यायावर हंसों का वर्णन किया है- | ||
<blockquote>'त्वय्यासन्ने फलपरिणतिश्यामजंबूवनान्तास्संपत्स्यन्ते कतिपयदिन स्थायिहंसा दशार्णा:।'</blockquote> | <blockquote>'त्वय्यासन्ने फलपरिणतिश्यामजंबूवनान्तास्संपत्स्यन्ते कतिपयदिन स्थायिहंसा दशार्णा:।'</blockquote> | ||
09:22, 13 अप्रैल 2014 का अवतरण
दशार्ण बुंदेलखंड, मध्य प्रदेश का धसान नदी से सिंचित प्रदेश है। धसान नदी भूपाल क्षेत्र की पर्वतमाला से निकल कर सागर ज़िले में बहती हुई झांसी के निकट बेतवा नदी में मिल जाती है। दशार्ण का अर्थ है- 'दस' (या अनेक) नदियों वाला क्षेत्र।
महाभारत में उल्लेख
'धसान', दशार्ण का ही अपभ्रंश है। महाभारत में दशार्ण को भीमसेन द्वारा विजित किये जाने का उल्लेख है-
'तत: स गंडकाञ्छूरो विदेहान् भग्तर्षभ:, विजित्याल्पेन कालेन दशार्णनजयत प्रभु:। तत्र दशार्ण को राजा सुधर्मालोमहर्षणम्, कृतवान् भीमसेनेन महद् युद्धं निरायुधम्'[1]
महाभारत काल में इस क्षेत्र पर उस समय सुधर्मा का शासन था। महाभारत में सुधर्मा के पूर्वगामी दशार्ण नरेश हिरण्यवर्मा का उल्लेख है। हिरण्यवर्मा की कन्या का विवाह द्रुपद के पुत्र शिखंडी के साथ हुआ था।[2] महाभारत के पश्चात दशार्ण का उल्लेख बौद्ध जातकों तथा कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' में मिलता है। उस समय विदिशा दशार्ण की राजधानी हुआ करती थी।
कालिदास का वर्णन
कालिदास ने 'मेघदूत'[3] में दशार्ण का सुंदर वर्णन करते हुए इस देश के बरसात में फूलने-फलने वाले जामुन के कुंजों तथा इस ऋतु में कुछ दिन यहाँ ठहर जाने वाले यायावर हंसों का वर्णन किया है-
'त्वय्यासन्ने फलपरिणतिश्यामजंबूवनान्तास्संपत्स्यन्ते कतिपयदिन स्थायिहंसा दशार्णा:।'
इन्हें भी देखें: दशार्ण नदी
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 429 |
संबंधित लेख