"बाबा हरभजन सिंह मेमोरियल": अवतरणों में अंतर
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इस मंदिर के पीछे बहुत ही रोचक [[कथा]] है। कहा जाता है कि यह मंदिर 23वें पंजाब रेजिमेंट के सिपाही बाबा हरभजन सिंह की स्मृति में बनाया गया है, जो करीब 35 साल पहले डेंग ढुकला की ओर खच्चहरों के एक झुंड को ले जाते वक्त यहां से लापता हो गये थे। इसके बाद जब छानबीन हुई, तो तीन दिन बाद बाबा का शव मिला। यह कहा जाता है कि उनके शरीर को इसलिये खोजा जा सका, क्योंकि उन्होंने खुद लोगों को अपने शव की ओर पहुंचाया था। एक बार बाबा के सहयोगियों ने उन्हें सपने में देखा और फिर उनकी स्मृुति में मंदिर बनवाया। यह वह समय था, जब मंदिर अस्तित्व में आया। मंदिर में उनकी स्मृति में एक समाधि है और कहा जाता है कि वे मंदिर में आते हैं और हर रात चक्कर लगाते हैं। माना जाता है कि वे आज भी ड्यूटी पर हैं और [[भारत]]-[[चीन]] सीमा पर तैनात सैनिकों के जीवन की रक्षा करते हैं। | |||
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07:45, 20 जनवरी 2015 का अवतरण
बाबा हरभजन सिंह मेमोरियल सिक्किम के गंगटोक में नाथुला और जेलेप्ला दर्रे के मध्य में स्थित है। यह समुद्र तल से लगभग 4,420 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह '23 पंजाब रेजीमेंट' के सैनिक हरभजन सिंह को समर्पित है। हरभजन सिंह 1968 में एक नदी पार करने के दौरान डूब गए थे।
मान्यता
यह एक लोकप्रिय तीर्थ केंद्र है, जहाँ हर रोज सैकड़ों श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते हैं। यह माना जाता है कि मंदिर में मनोकामनाएं पूर्ण करने की शक्तियाँ हैं। मंदिर में आने वाले भक्त मंदिर में पानी की एक बोतल छोड़ देते हैं और वापसी के दौरान उसे ले लेते हैं।
कथा
इस मंदिर के पीछे बहुत ही रोचक कथा है। कहा जाता है कि यह मंदिर 23वें पंजाब रेजिमेंट के सिपाही बाबा हरभजन सिंह की स्मृति में बनाया गया है, जो करीब 35 साल पहले डेंग ढुकला की ओर खच्चहरों के एक झुंड को ले जाते वक्त यहां से लापता हो गये थे। इसके बाद जब छानबीन हुई, तो तीन दिन बाद बाबा का शव मिला। यह कहा जाता है कि उनके शरीर को इसलिये खोजा जा सका, क्योंकि उन्होंने खुद लोगों को अपने शव की ओर पहुंचाया था। एक बार बाबा के सहयोगियों ने उन्हें सपने में देखा और फिर उनकी स्मृुति में मंदिर बनवाया। यह वह समय था, जब मंदिर अस्तित्व में आया। मंदिर में उनकी स्मृति में एक समाधि है और कहा जाता है कि वे मंदिर में आते हैं और हर रात चक्कर लगाते हैं। माना जाता है कि वे आज भी ड्यूटी पर हैं और भारत-चीन सीमा पर तैनात सैनिकों के जीवन की रक्षा करते हैं।
महत्त्वपूर्ण तथ्य
हर वर्ष 14 सितंबर को वे अपनी वार्षिक छुट्टी पर जाते हैं और पंजाब में अपने पैतृक कपूरथला का दौरा करते हैं। जबकि उनके सभी निजी सामानों के साथ एक जीप निकटतम रेलवे स्टेशन के लिए रवाना होती है, टिकट बुक होते हैं और एक बर्थ उनकी यात्रा के लिए आरक्षित होती है। दो सैनिक उनकी यात्रा पर उनके साथ होते हैं और रुपये की एक छोटी राशि भी हर महीने इस 'आत्मा सैनिक' की माँ के लिए भेजी जाती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख