"कैलादेवी मन्दिर": अवतरणों में अंतर

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* मान्यतानुसार कैला देवी मां [[द्वापर युग]] में [[कंस]] की कारागार में उत्पन्न हुई कन्या है, जो राक्षसों से पीडि़त समाज की रक्षा के लिए एक तपस्वी द्वारा यहां बुलाई गई थीं। बस तभी से मां कैला यहां आने वाले हर भक्त की मुराद पूरी करती हैं। [[चैत्र]] [[मास]] में सैंकडों किलोमीटर की पद यात्रा और कड़क दंडवत करते श्रद्वालुओं की आस्था देखते ही बनती है।  
* मान्यतानुसार कैला देवी मां [[द्वापर युग]] में [[कंस]] की कारागार में उत्पन्न हुई कन्या है, जो राक्षसों से पीडि़त समाज की रक्षा के लिए एक तपस्वी द्वारा यहां बुलाई गई थीं। बस तभी से मां कैला यहां आने वाले हर भक्त की मुराद पूरी करती हैं। [[चैत्र]] [[मास]] में सैंकडों किलोमीटर की पद यात्रा और कड़क दंडवत करते श्रद्वालुओं की आस्था देखते ही बनती है।  
* मान्यता है कि मां के दरबार में जो भी मनौती मांगी जाती है उसे मां कैला निश्चित ही पूरा करती हैं। जब भक्तों की मनौती पूरी हो जाती है तो यह अपने परिवार सहित मां की जात करने बड़ी संख्या में कैलादेवी पहुंचते है, जिससे यहां लगने वाला लक्खी मेला मिनी कुंभ जैसा नजर आता है। इस मेले में लाखों की तादात में श्रद्वालुओं आते हैं।  
* मान्यता है कि मां के दरबार में जो भी मनौती मांगी जाती है उसे मां कैला निश्चित ही पूरा करती हैं। जब भक्तों की मनौती पूरी हो जाती है तो यह अपने परिवार सहित मां की जात करने बड़ी संख्या में कैलादेवी पहुंचते है, जिससे यहां लगने वाला लक्खी मेला मिनी कुंभ जैसा नजर आता है। इस मेले में लाखों की तादात में श्रद्वालुओं आते हैं।  
* सूनी गोद भरने की आस हो या सुहाग की चिरायु होने की कामनाए कैला मां भक्त की हर पुकार जल्द ही पूरी करती है, लिहाजा मंदिर में आस पूरी होने पर श्रद्वालु अपने नवजात बच्चों को इस कैला मां के दरबार में लाते हैं, जिनका यहां मुंडन संस्कार किया जाता है। उधर पूरे आस्थाधाम में सजी हरी चूड़ियाँ अमर सुहाग का प्रतीक है, जिन्हें यहां आने वाली हर श्रद्वालु महिला पहनना नहीं भूलती।  
* सूनी गोद भरने की आस हो या सुहाग की चिरायु होने की कामनाए कैला मां भक्त की हर पुकार जल्द ही पूरी करती है, लिहाज़ा मंदिर में आस पूरी होने पर श्रद्वालु अपने नवजात बच्चों को इस कैला मां के दरबार में लाते हैं, जिनका यहां मुंडन संस्कार किया जाता है। उधर पूरे आस्थाधाम में सजी हरी चूड़ियाँ अमर सुहाग का प्रतीक है, जिन्हें यहां आने वाली हर श्रद्वालु महिला पहनना नहीं भूलती।  
* मंदिर परिसर में लहलहाती धर्म पताकाएँ यहां की ख्याति का प्रतीक है। इन पताकाओं को पदयात्रा कर रहे श्रद्वालु अपने कंधों पर रखकर कई किलोमीटर की दुर्गम राह तय कर यहां चढाते हैं। कैलादेवी शक्तिपीठ आने वाले श्रद्वालुओं में मां कैला के साथ लांगुरिया भगत को पूजने की भी परंपरा रही है।  
* मंदिर परिसर में लहलहाती धर्म पताकाएँ यहां की ख्याति का प्रतीक है। इन पताकाओं को पदयात्रा कर रहे श्रद्वालु अपने कंधों पर रखकर कई किलोमीटर की दुर्गम राह तय कर यहां चढाते हैं। कैलादेवी शक्तिपीठ आने वाले श्रद्वालुओं में मां कैला के साथ लांगुरिया भगत को पूजने की भी परंपरा रही है।  
* लांगुरिया को मां कैला का अनन्य भक्त बताया जाता है। इसका मंदिर मां की मूर्ति के ठीक सामने विराजमान है। किवदंतियों के अनुसार स्वयं बोहरा भगत के स्वप्न में आने पर इस मंदिर को यहां बनवाया गया था।  
* लांगुरिया को मां कैला का अनन्य भक्त बताया जाता है। इसका मंदिर मां की मूर्ति के ठीक सामने विराजमान है। किवदंतियों के अनुसार स्वयं बोहरा भगत के स्वप्न में आने पर इस मंदिर को यहां बनवाया गया था।  

13:48, 25 अगस्त 2012 का अवतरण

कैलादेवी मन्दिर, करौली

कैलादेवी मन्दिर राजस्थान में करौली से 24 किमी दूर एक प्रसिद्व हिन्दू धार्मिक स्थल है। जहाँ प्रतिवर्ष मार्च - अप्रॅल माह में एक बहुत बड़ा मेला लगता है। इस मेले में राजस्थान के अलावा दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश के तीर्थ यात्री आते है। मुख्य मन्दिर संगमरमर से बना हुआ है जिसमें कैला (महालक्ष्मी) एवं चामुण्डा देवी की प्रतिमाएँ हैं। कैलादेवी की आठ भुजाऐं एवं सिंह पर सवारी करते हुए बताया है। यहाँ क्षेत्रीय लांगुरिया के गीत विशेष रूप से गाये जाते है। जिसमें लागुरिया के माध्यम से कैलादेवी को अपनी भक्ति-भाव प्रदर्शित करते है।

कथा एवं मान्यताएँ

  • मान्यतानुसार कैला देवी मां द्वापर युग में कंस की कारागार में उत्पन्न हुई कन्या है, जो राक्षसों से पीडि़त समाज की रक्षा के लिए एक तपस्वी द्वारा यहां बुलाई गई थीं। बस तभी से मां कैला यहां आने वाले हर भक्त की मुराद पूरी करती हैं। चैत्र मास में सैंकडों किलोमीटर की पद यात्रा और कड़क दंडवत करते श्रद्वालुओं की आस्था देखते ही बनती है।
  • मान्यता है कि मां के दरबार में जो भी मनौती मांगी जाती है उसे मां कैला निश्चित ही पूरा करती हैं। जब भक्तों की मनौती पूरी हो जाती है तो यह अपने परिवार सहित मां की जात करने बड़ी संख्या में कैलादेवी पहुंचते है, जिससे यहां लगने वाला लक्खी मेला मिनी कुंभ जैसा नजर आता है। इस मेले में लाखों की तादात में श्रद्वालुओं आते हैं।
  • सूनी गोद भरने की आस हो या सुहाग की चिरायु होने की कामनाए कैला मां भक्त की हर पुकार जल्द ही पूरी करती है, लिहाज़ा मंदिर में आस पूरी होने पर श्रद्वालु अपने नवजात बच्चों को इस कैला मां के दरबार में लाते हैं, जिनका यहां मुंडन संस्कार किया जाता है। उधर पूरे आस्थाधाम में सजी हरी चूड़ियाँ अमर सुहाग का प्रतीक है, जिन्हें यहां आने वाली हर श्रद्वालु महिला पहनना नहीं भूलती।
  • मंदिर परिसर में लहलहाती धर्म पताकाएँ यहां की ख्याति का प्रतीक है। इन पताकाओं को पदयात्रा कर रहे श्रद्वालु अपने कंधों पर रखकर कई किलोमीटर की दुर्गम राह तय कर यहां चढाते हैं। कैलादेवी शक्तिपीठ आने वाले श्रद्वालुओं में मां कैला के साथ लांगुरिया भगत को पूजने की भी परंपरा रही है।
  • लांगुरिया को मां कैला का अनन्य भक्त बताया जाता है। इसका मंदिर मां की मूर्ति के ठीक सामने विराजमान है। किवदंतियों के अनुसार स्वयं बोहरा भगत के स्वप्न में आने पर इस मंदिर को यहां बनवाया गया था।
  • नए मकान की आस में यहां श्रद्वालु भक्तों द्वारा पर्वतमालाओं पर पत्थरों के छोटे छोटे प्रतीकात्मक मकान बनाए जाते हैं तो सुदूर क्षेत्र से आए श्रद्वालु यहां की पवित्र नदी कालीसिल में स्नान करना भी नहीं भूलते।
  • श्रद्वालु महिलाएँ इस कालीसिल नदी में स्नान कर खुले केशों से ही मंदिर में पहुंचती है और मां कैलादेवी के दर्शन करने के बाद वहां कन्या लांगुरिया आदि को भोजन प्रसादी खिलाकर पुण्य लाभ अर्जित करती दिखाई देती है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हर मुराद पूरी करती है कैला मां (हिन्दी) (ए.एस.पी) 999 राजस्थान डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 14 जुलाई, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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