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'''पंडित विष्णुनारायण भातखंडे''' ([[अंग्रेज़ी]]:Vishnu Narayan Bhatkhande; जन्म- [[10 अगस्त]], [[1860]], [[मुंबई]]; मृत्यु- [[19 सितम्बर]], [[1936]]) [[भारत]] के 'हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत' के विद्वान व्यक्ति थे। शास्त्रीय संगीत के सबसे बड़े आधुनिक आचार्य के रूप में उनका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। पूरी तरह से नि:स्वार्थ और समर्पित संगीत साधक भातखंडे ने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को वैज्ञानिक पद्धति से व्यवस्थित, वर्गीकृत और मानकीकृत करने का पहला आधुनिक प्रयास किया था। उन्होंने देश भर में घूम-घूमकर उस्तादों से बंदिशें एकत्रित करने, विभिन्न [[राग|रागों]] पर उनसे चर्चा करके उनके मानक रूप निर्धारित करने और संगीतशास्त्र के रहस्यों से पर्दा उठाते हुए अनेक विद्वत्तापूर्ण पुस्तकें लिखने का महत्कार्य किया। | '''पंडित विष्णुनारायण भातखंडे''' ([[अंग्रेज़ी]]:Vishnu Narayan Bhatkhande; जन्म- [[10 अगस्त]], [[1860]], [[मुंबई]]; मृत्यु- [[19 सितम्बर]], [[1936]]) [[भारत]] के 'हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत' के विद्वान व्यक्ति थे। शास्त्रीय संगीत के सबसे बड़े आधुनिक आचार्य के रूप में उनका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। पूरी तरह से नि:स्वार्थ और समर्पित संगीत साधक भातखंडे ने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को वैज्ञानिक पद्धति से व्यवस्थित, वर्गीकृत और मानकीकृत करने का पहला आधुनिक प्रयास किया था। उन्होंने देश भर में घूम-घूमकर उस्तादों से बंदिशें एकत्रित करने, विभिन्न [[राग|रागों]] पर उनसे चर्चा करके उनके मानक रूप निर्धारित करने और संगीतशास्त्र के रहस्यों से पर्दा उठाते हुए अनेक विद्वत्तापूर्ण पुस्तकें लिखने का महत्कार्य किया। | ||
==जन्म तथा शिक्षा== | ==जन्म तथा शिक्षा== | ||
विष्णुनारायण भातखंडे का जन्म मुंबई (भूतपूर्व बंबई) के बालकेश्वर नामक स्थान पर 10 अगस्त, 1860 ई. को एक चित्तपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इन्होंने [[1883]] में बी. ए. की डिग्री 'ऐल्फ़िंस्टन कॉलेज', मुंबई से प्राप्त की थी। इसके बाद वर्ष [[1890]] में | विष्णुनारायण भातखंडे का जन्म मुंबई (भूतपूर्व बंबई) के बालकेश्वर नामक स्थान पर 10 अगस्त, 1860 ई. को एक चित्तपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इन्होंने [[1883]] में बी. ए. की डिग्री 'ऐल्फ़िंस्टन कॉलेज', मुंबई से प्राप्त की थी। इसके बाद वर्ष [[1890]] में एलएल. बी. की परीक्षा पास की। बाद में उन्होंने संक्षिप्त कार्यकाल के लिए [[कराची]] के उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में भी सेवा की। | ||
====संगीत से लगाव==== | ====संगीत से लगाव==== | ||
इनकी लगन आरंभ से ही [[संगीत]] की ओर थी। भातखंडे की संगीत यात्रा [[1904]] में हुई, जिससे इन्होंने [[भारत]] के सैकड़ों स्थानों का भ्रमण करके संगीत सम्बन्धी [[साहित्य]] की खोज की। इन्होंने बड़े-बड़े गायकों का संगीत सुना और उनकी स्वर लिपि तैयार करके 'हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति क्रमिक पुस्तक-मालिका' के नाम से एक ग्रंथमाला प्रकाशित कराई, जिसके छ: भाग हैं। शास्त्रीय ज्ञान के लिए भातखंडे ने हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति<ref>जो [[हिन्दी]] में 'भातखंडे संगीत शास्त्र' के नाम से छपी</ref> के चार भाग [[मराठी भाषा]] में लिखे। [[संस्कृत भाषा]] में भी इन्होंने लक्ष्य-संगीत और अभिनव राग-मंजरी, नामक पुस्तकें लिखकर प्राचीन संगीत की विशेषताओं तथा उसमें फैली हुई भ्राँतियों पर प्रकाश डाला। विष्णुनारायण भातखंडे ने अपना शुद्ध ठाठ 'बिलावल' मानकर ठाठ-पद्धति स्वीकर करते हुए दस ठाठों में बहुत से रागों का वर्गीकरण किया।<ref name="mcc">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=संगीत विशारद|लेखक=वसंत|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=संगीत कार्यालय, हाथरस-204 101 (उ.प्र.)|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=520|url=}}</ref> | इनकी लगन आरंभ से ही [[संगीत]] की ओर थी। भातखंडे की संगीत यात्रा [[1904]] में हुई, जिससे इन्होंने [[भारत]] के सैकड़ों स्थानों का भ्रमण करके संगीत सम्बन्धी [[साहित्य]] की खोज की। इन्होंने बड़े-बड़े गायकों का संगीत सुना और उनकी स्वर लिपि तैयार करके 'हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति क्रमिक पुस्तक-मालिका' के नाम से एक ग्रंथमाला प्रकाशित कराई, जिसके छ: भाग हैं। शास्त्रीय ज्ञान के लिए भातखंडे ने हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति<ref>जो [[हिन्दी]] में 'भातखंडे संगीत शास्त्र' के नाम से छपी</ref> के चार भाग [[मराठी भाषा]] में लिखे। [[संस्कृत भाषा]] में भी इन्होंने लक्ष्य-संगीत और अभिनव राग-मंजरी, नामक पुस्तकें लिखकर प्राचीन संगीत की विशेषताओं तथा उसमें फैली हुई भ्राँतियों पर प्रकाश डाला। विष्णुनारायण भातखंडे ने अपना शुद्ध ठाठ 'बिलावल' मानकर ठाठ-पद्धति स्वीकर करते हुए दस ठाठों में बहुत से रागों का वर्गीकरण किया।<ref name="mcc">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=संगीत विशारद|लेखक=वसंत|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=संगीत कार्यालय, हाथरस-204 101 (उ.प्र.)|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=520|url=}}</ref> |
09:15, 3 दिसम्बर 2012 का अवतरण
विष्णुनारायण भातखंडे
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पूरा नाम | विष्णुनारायण भातखंडे |
जन्म | 10 अगस्त, 1860 |
जन्म भूमि | मुंबई |
मृत्यु | 19 सितम्बर, 1936 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | संगीत |
शिक्षा | बी.ए. (1883), एल.एल.बी. (1890) |
विद्यालय | 'ऐल्फ़िंस्टन कॉलेज', मुंबई |
प्रसिद्धि | हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के विद्वान |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | शास्त्रीय ज्ञान के लिए भातखंडे ने 'हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति' के चार भाग मराठी भाषा में लिखे थे। |
पंडित विष्णुनारायण भातखंडे (अंग्रेज़ी:Vishnu Narayan Bhatkhande; जन्म- 10 अगस्त, 1860, मुंबई; मृत्यु- 19 सितम्बर, 1936) भारत के 'हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत' के विद्वान व्यक्ति थे। शास्त्रीय संगीत के सबसे बड़े आधुनिक आचार्य के रूप में उनका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। पूरी तरह से नि:स्वार्थ और समर्पित संगीत साधक भातखंडे ने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को वैज्ञानिक पद्धति से व्यवस्थित, वर्गीकृत और मानकीकृत करने का पहला आधुनिक प्रयास किया था। उन्होंने देश भर में घूम-घूमकर उस्तादों से बंदिशें एकत्रित करने, विभिन्न रागों पर उनसे चर्चा करके उनके मानक रूप निर्धारित करने और संगीतशास्त्र के रहस्यों से पर्दा उठाते हुए अनेक विद्वत्तापूर्ण पुस्तकें लिखने का महत्कार्य किया।
जन्म तथा शिक्षा
विष्णुनारायण भातखंडे का जन्म मुंबई (भूतपूर्व बंबई) के बालकेश्वर नामक स्थान पर 10 अगस्त, 1860 ई. को एक चित्तपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इन्होंने 1883 में बी. ए. की डिग्री 'ऐल्फ़िंस्टन कॉलेज', मुंबई से प्राप्त की थी। इसके बाद वर्ष 1890 में एलएल. बी. की परीक्षा पास की। बाद में उन्होंने संक्षिप्त कार्यकाल के लिए कराची के उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में भी सेवा की।
संगीत से लगाव
इनकी लगन आरंभ से ही संगीत की ओर थी। भातखंडे की संगीत यात्रा 1904 में हुई, जिससे इन्होंने भारत के सैकड़ों स्थानों का भ्रमण करके संगीत सम्बन्धी साहित्य की खोज की। इन्होंने बड़े-बड़े गायकों का संगीत सुना और उनकी स्वर लिपि तैयार करके 'हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति क्रमिक पुस्तक-मालिका' के नाम से एक ग्रंथमाला प्रकाशित कराई, जिसके छ: भाग हैं। शास्त्रीय ज्ञान के लिए भातखंडे ने हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति[1] के चार भाग मराठी भाषा में लिखे। संस्कृत भाषा में भी इन्होंने लक्ष्य-संगीत और अभिनव राग-मंजरी, नामक पुस्तकें लिखकर प्राचीन संगीत की विशेषताओं तथा उसमें फैली हुई भ्राँतियों पर प्रकाश डाला। विष्णुनारायण भातखंडे ने अपना शुद्ध ठाठ 'बिलावल' मानकर ठाठ-पद्धति स्वीकर करते हुए दस ठाठों में बहुत से रागों का वर्गीकरण किया।[2]
सम्मेलन का आयोजन
वर्ष 1916 में भातखंडे द्वारा बड़ौदा में एक विशाल संगीत सम्मेलन का आयोजन किया, जिसका उद्घाटन महाराजा बड़ौदा द्वारा हुआ था। इसमें संगीत के विद्वानों द्वारा संगीत के अनेक तथ्यों पर गम्भीरता पूर्वक विचार हुआ। इसी आयोजन में एक 'ऑल इण्डिया म्यूजिक एकेडेमी' की स्थापना का प्रस्ताव भी स्वीकर हुआ। इस संगीत सम्मेलन में भातखंडे जी के संगीत सम्बन्धी जो महत्वपूर्ण भाषण हुए, वे अंग्रेज़ी में 'ए शॉर्ट हिस्टोरिकल सर्वे ऑफ़ दी म्यूजिक ऑफ़ अपर इण्डिया' नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो चुके हैं।
संगीत विद्यालयों की स्थापना
विष्णुनारायण भातखंडे के प्रयत्नों से बाद में अन्य कई स्थानों पर भी संगीत सम्मेलन हुए तथा संगीत विद्यालयों की स्थापना हुई। इसमें लखनऊ का 'मैरिस म्यूजिक कॉलेज', जो अब 'भातखंडे संगीत विद्यापीठ' के नाम से जाना जाता है। ग्वालियर का 'माधव संगीत महाविद्यावय' तथा बड़ौदा का 'म्यूजिक कॉलेज' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।[2]
निधन
इस प्रकार भातखंडे ने अपने अथक परिश्रम द्वारा संगीत की महान सेवा की और भारतीय संगीत को एक नए प्रकाश से आलोकित करके 19 सितम्बर, 1936 को परलोक वासी हो गए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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