"भामाशाह": अवतरणों में अंतर
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====धन-संपदा का दान==== | ====धन-संपदा का दान==== | ||
भामाशाह का निष्ठापूर्ण सहयोग [[महाराणा प्रताप]] के जीवन में महत्वपूर्ण और निर्णायक साबित हुआ। मेवाड़ के इस वृद्ध मंत्री ने अपने जीवन में काफ़ी सम्पत्ति अर्जित की थी। मातृ-भूमि की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप का सर्वस्व होम हो जाने के बाद भी उनके लक्ष्य को सर्वोपरि मानते हुए भामाशाह ने अपनी सम्पूर्ण धन-संपदा उन्हें अर्पित कर दी। वह अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति के साथ प्रताप की सेवा में आ उपस्थित हुए और उनसे मेवाड़ के उद्धार की याचना की। माना जाता है कि यह सम्पत्ति इतनी अधिक थी कि उससे वर्षों तक 25,000 सैनिकों का खर्चा पूरा किया जा सकता था। | भामाशाह का निष्ठापूर्ण सहयोग [[महाराणा प्रताप]] के जीवन में महत्वपूर्ण और निर्णायक साबित हुआ। मेवाड़ के इस वृद्ध मंत्री ने अपने जीवन में काफ़ी सम्पत्ति अर्जित की थी। मातृ-भूमि की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप का सर्वस्व होम हो जाने के बाद भी उनके लक्ष्य को सर्वोपरि मानते हुए भामाशाह ने अपनी सम्पूर्ण धन-संपदा उन्हें अर्पित कर दी। वह अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति के साथ प्रताप की सेवा में आ उपस्थित हुए और उनसे मेवाड़ के उद्धार की याचना की। माना जाता है कि यह सम्पत्ति इतनी अधिक थी कि उससे वर्षों तक 25,000 सैनिकों का खर्चा पूरा किया जा सकता था। | ||
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13:57, 20 अप्रैल 2013 का अवतरण
भामाशाह
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पूरा नाम | भामाशाह |
जन्म | 29 अप्रैल, 1547 ई. |
जन्म भूमि | मेवाड़, राजस्थान |
प्रसिद्धि | महाराणा प्रताप के मित्र, सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार |
राजघराना | राजपूत |
अन्य जानकारी | भामाशाह के पास बड़ी मात्रा में धन-सम्पत्ति थी, जो उन्होंने मेवाड़ के उद्धार के लिए महाराणा प्रताप को समर्पित कर दी थी। |
भामाशाह (जन्म- 29 अप्रैल, 1547 ई.) का नाम मेवाड़ के उद्धारकर्ताओं के रूप में आज भी सुरक्षित है। वे मेवाड़ के महाराणा प्रताप के मित्र, सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार थे। भामाशाह को अपनी मातृ-भूमि से बहुत प्रेम था। कहा जाता है कि उनके पास बहुत बड़ी मात्रा में धन सम्पत्ति थी, जो उन्होंने मेवाड़ के उद्धार के लिए महाराणा प्रताप को समर्पित कर दी थी। महाराणा इस प्रचुर सम्पत्ति से पुन: सैन्य-संगठन में लग गये थे। चित्तौड़ को छोड़कर महाराणा ने अपने समस्त दुर्गों का शत्रु से उद्धार करा लिया था।
जन्म
दानवीर भामाशाह का जन्म राजस्थान के मेवाड़ राज्य में 29 अप्रैल, 1547 को हुआ था। ये बाल्यकाल से ही मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के मित्र, सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार रहे थे। अपरिग्रह को जीवन का मूलमंत्र मानकर संग्रहण की प्रवृत्ति से दूर रहने की चेतना जगाने में भामाशाह सदैव अग्रणी थे। उनको मातृ-भूमि के प्रति अगाध प्रेम था। दानवीरता के लिए भामाशाह का नाम इतिहास में आज भी अमर है।
धन-संपदा का दान
भामाशाह का निष्ठापूर्ण सहयोग महाराणा प्रताप के जीवन में महत्वपूर्ण और निर्णायक साबित हुआ। मेवाड़ के इस वृद्ध मंत्री ने अपने जीवन में काफ़ी सम्पत्ति अर्जित की थी। मातृ-भूमि की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप का सर्वस्व होम हो जाने के बाद भी उनके लक्ष्य को सर्वोपरि मानते हुए भामाशाह ने अपनी सम्पूर्ण धन-संपदा उन्हें अर्पित कर दी। वह अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति के साथ प्रताप की सेवा में आ उपस्थित हुए और उनसे मेवाड़ के उद्धार की याचना की। माना जाता है कि यह सम्पत्ति इतनी अधिक थी कि उससे वर्षों तक 25,000 सैनिकों का खर्चा पूरा किया जा सकता था।
दानवीर व त्यागी
भामाशाह ने यह सहयोग तब दिया, जब महाराणा प्रताप अपना अस्तित्व बनाए रखने के प्रयास में निराश होकर परिवार सहित पहाड़ियों में छिपते भटक रहे थे। भामाशाह ने मेवाड़ की अस्मिता की रक्षा के लिए दिल्ली की गद्दी का प्रलोभन भी ठुकरा दिया। महाराणा प्रताप को दी गई उनकी हरसम्भव सहायता ने मेवाड़ के आत्म सम्मान एवं संघर्ष को नई दिशा दी थी। भामाशाह बेमिसाल दानवीर एवं त्यागी पुरुष थे। आत्म-सम्मान और त्याग की यही भावना उनको स्वदेश, धर्म और संस्कृति की रक्षा करने वाले देश-भक्त के रूप में शिखर पर स्थापित कर देती है। धन अर्पित करने वाले किसी भी दानदाता को दानवीर भामाशाह कहकर उसका स्मरण-वंदन किया जाता है। उनकी दानशीलता के चर्चे उस दौर में आस-पास बड़े उत्साह, प्रेरणा के संग सुने-सुनाए जाते थे। भामाशाह के लिए निम्नलिखित पंक्तियाँ कही गई हैं-
वह धन्य देश की माटी है, जिसमें भामा सा लाल पला ।
उस दानवीर की यश गाथा को, मेट सका क्या काल भला ।।
भामाशाह सम्मान
लोकहित और आत्म-सम्मान के लिए अपना सर्वस्व दान कर देने वाली उदारता के गौरव-पुरुष की इस प्रेरणा को चिरस्थायी रखने के लिए छत्तीसगढ़ शासन ने भामाशाह की स्मृति में दानशीलता, सौहार्द्र एवं अनुकरणीय सहायता के क्षेत्र में 'दानवीर भामाशाह सम्मान' स्थापित किया है।
इन्हें भी देखें: मेवाड़, महाराणा प्रताप एवं मेवाड़ का इतिहास
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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