"कुछ कुण्डलियाँ -त्रिलोक सिंह ठकुरेला": अवतरणों में अंतर
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बोता खुद ही आदमी, सुख या | बोता खुद ही आदमी, सुख या दु:ख के बीज । | ||
मान और अपमान का, लटकाता ताबीज ।। | मान और अपमान का, लटकाता ताबीज ।। | ||
लटकाता ताबीज, बहुत कुछ अपने कर में । | लटकाता ताबीज, बहुत कुछ अपने कर में । | ||
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जीवन जीना है कला, जो जाता पहचान । | जीवन जीना है कला, जो जाता पहचान । | ||
विकट परिस्थिति भी उसे, लगती है आसान ।। | विकट परिस्थिति भी उसे, लगती है आसान ।। | ||
लगती है आसान, नहीं | लगती है आसान, नहीं दु:ख से घबराता । | ||
ढूँढे मार्ग अनेक, और बढ़ता ही जाता । | ढूँढे मार्ग अनेक, और बढ़ता ही जाता । | ||
'ठकुरेला' कविराय, नहीं होता विचलित मन। | 'ठकुरेला' कविराय, नहीं होता विचलित मन। |
14:00, 2 जून 2017 का अवतरण
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बोता खुद ही आदमी, सुख या दु:ख के बीज । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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