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आमेर महल के जलेब चौक के दक्षिणी भाग में शिला माता का छोटा लेकिन ऐतिहासिक मंदिर है। शिला माता राजपरिवार की कुल देवी है। शिला माता का मंदिर जलेब चौक से दूसरे स्तर पर मौजूद है यहां से कुछ सीढिया मंदिर तक पहुंचती हैं। शिला देवी अम्बा माता का ही रूप हैं। कहा जाता है आमेर का नाम अम्बा माता के नाम पर ही आम्बेर पड़ा था। एक शिला पर माता की प्रतिमा उत्कीर्ण होने के कारण इसे शिला देवी कहा जाता है। यह प्रतिमा बंगाल में जैसोर के राजा ने जयपुर के महाराजा मानसिंह से पराजित होने के बाद उन्हें भेंट की थी। प्रतिमा का टेढ़ा चेहरा इसकी खासियत है। मंदिर में 1972 तक पशु बलि दी जाती थी लेकिन जैन धर्मावलंबियों के विरोध के चलते यह बंद कर दी गई।
आमेर महल के जलेब चौक के दक्षिणी भाग में शिला माता का छोटा लेकिन ऐतिहासिक मंदिर है। शिला माता राजपरिवार की कुल देवी है। शिला माता का मंदिर जलेब चौक से दूसरे स्तर पर मौजूद है यहां से कुछ सीढिया मंदिर तक पहुंचती हैं। शिला देवी अम्बा माता का ही रूप हैं। कहा जाता है आमेर का नाम अम्बा माता के नाम पर ही आम्बेर पड़ा था। एक शिला पर माता की प्रतिमा उत्कीर्ण होने के कारण इसे शिला देवी कहा जाता है। यह प्रतिमा बंगाल में जैसोर के राजा ने जयपुर के महाराजा मानसिंह से पराजित होने के बाद उन्हें भेंट की थी। प्रतिमा का टेढ़ा चेहरा इसकी खासियत है। मंदिर में 1972 तक पशु बलि दी जाती थी लेकिन जैन धर्मावलंबियों के विरोध के चलते यह बंद कर दी गई।
==माता की प्रतिमा==
वर्तमान शिला देवी मंदिर में राजकीय गुणों के सभी अंश और धार्मिक संस्थानों की प्राचीन वस्तुशिल्प शैली के मूल्य विद्यमान हैं। इस मंदिर में शिला देवी की मूर्ति के बारे में कई तरह की कथाएँ प्रचलित हैं-
#मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगे पुरातत्वीय विवरण के अनुसार इस मूर्ति को राजा मानसिंह बंगाल से लेकर आए थे। कहा जाता है कि केदार राजा को पराजित करने के प्रयत्न में असफल रहने पर मानसिंह ने युद्ध में अपनी विजय के लिए उस प्रतिमा से आशीर्वाद माँगा। इसके बदले में देवी ने राजा केदार के चंगुल से अपना आपको मुक्त कराने की मांग की। इस शर्त के अनुसार देवी ने मानसिंह को युद्ध जीतने में सहायता की और नामसिंह ने देवी की प्रतिमा को राजा केदार से मुक्त कराया और अम्बेर ([[आमेर]]) में स्थापित किया।
#एक अन्य कथा के अनुसार मानसिंह ने राजा केदार की कन्या से [[विवाह संस्कार|विवाह]] किया और देवी की प्रतिमा को भेंट स्वरूप प्राप्त किया। लेकिन यह निश्चित है कि वर्तमान मूर्ति [[समुद्र]] में पड़े हुए एक शिलाखण्ड से निर्मित है और यही कारण है कि मूर्ति का नाम शिला देवी है।<ref>{{cite web |url= http://www.ignca.nic.in/coilnet/rj072.htm|title= अम्बेर के देवालय|accessmonthday= 08 अक्टूबर|accessyear= 2014|last= तोन्गारिया|first=राहुल|authorlink= |format= |publisher=इगनिका.कॉम |language= हिन्दी}}</ref>
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05:51, 8 अक्टूबर 2014 का अवतरण

शिला देवी मंदिर राजस्थान में आमेर के महल में स्थित एक छोटा-सा मंदिर है। शिला देवी जयपुर के कछवाहा वंशीय राजाओं की कुल देवी रही हैं। मंदिर शिला माता के 'लक्खी मेले' के लिए प्रसिद्ध है। नवरात्र में यहां भक्तों की भारी भीड़ माता के दर्शनों के लिए आती है। वर्तमान मंदिर में राजकीय गुणों के सभी अंश और धार्मिक संस्थानों की प्राचीन वस्तुशिल्प शैली के मूल्य विद्यमान हैं। शिला देवी के पार्श्व में गणेश और मीणा कुल की देवीमाता 'हिंगला' की मूर्तियाँ हैं। नवरात्रों में यहाँ दो मेले लगते हैं। इनमें देवी को प्रसन्न करने के लिए पशुओं की बलि दी जाती है।

आमेर महल के जलेब चौक के दक्षिणी भाग में शिला माता का छोटा लेकिन ऐतिहासिक मंदिर है। शिला माता राजपरिवार की कुल देवी है। शिला माता का मंदिर जलेब चौक से दूसरे स्तर पर मौजूद है यहां से कुछ सीढिया मंदिर तक पहुंचती हैं। शिला देवी अम्बा माता का ही रूप हैं। कहा जाता है आमेर का नाम अम्बा माता के नाम पर ही आम्बेर पड़ा था। एक शिला पर माता की प्रतिमा उत्कीर्ण होने के कारण इसे शिला देवी कहा जाता है। यह प्रतिमा बंगाल में जैसोर के राजा ने जयपुर के महाराजा मानसिंह से पराजित होने के बाद उन्हें भेंट की थी। प्रतिमा का टेढ़ा चेहरा इसकी खासियत है। मंदिर में 1972 तक पशु बलि दी जाती थी लेकिन जैन धर्मावलंबियों के विरोध के चलते यह बंद कर दी गई।

माता की प्रतिमा

वर्तमान शिला देवी मंदिर में राजकीय गुणों के सभी अंश और धार्मिक संस्थानों की प्राचीन वस्तुशिल्प शैली के मूल्य विद्यमान हैं। इस मंदिर में शिला देवी की मूर्ति के बारे में कई तरह की कथाएँ प्रचलित हैं-

  1. मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगे पुरातत्वीय विवरण के अनुसार इस मूर्ति को राजा मानसिंह बंगाल से लेकर आए थे। कहा जाता है कि केदार राजा को पराजित करने के प्रयत्न में असफल रहने पर मानसिंह ने युद्ध में अपनी विजय के लिए उस प्रतिमा से आशीर्वाद माँगा। इसके बदले में देवी ने राजा केदार के चंगुल से अपना आपको मुक्त कराने की मांग की। इस शर्त के अनुसार देवी ने मानसिंह को युद्ध जीतने में सहायता की और नामसिंह ने देवी की प्रतिमा को राजा केदार से मुक्त कराया और अम्बेर (आमेर) में स्थापित किया।
  2. एक अन्य कथा के अनुसार मानसिंह ने राजा केदार की कन्या से विवाह किया और देवी की प्रतिमा को भेंट स्वरूप प्राप्त किया। लेकिन यह निश्चित है कि वर्तमान मूर्ति समुद्र में पड़े हुए एक शिलाखण्ड से निर्मित है और यही कारण है कि मूर्ति का नाम शिला देवी है।[1]

जयपुर के शासकों को शिला देवी में अगाध विश्वास है। मुख्य मंदिर के प्रवेश द्वार पर दस महाविद्याओं और नवदुर्गा की प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं। मंदिर के अन्दर कलाकार धीरेन्द्र घोष ने महाकाली और महालक्ष्मी की सुन्दर चित्रकारी की है। मंदिर के जगमोहन भाग में चाँदी की घंटी बंधी हुई है। इसे भक्तगण देवीपूजा के पूर्व बजाते हैं। मंदिर के कुछ भाग एवं स्तम्भों में बंगाली शैली दष्टिगोचर होती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तोन्गारिया, राहुल। अम्बेर के देवालय (हिन्दी) इगनिका.कॉम। अभिगमन तिथि: 08 अक्टूबर, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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