"नचारी": अवतरणों में अंतर
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‘मैथिल कोकिल’ कहे जाने वाले [[विद्यापति]] ने बहुत-सी नचारियाँ लिखी थीं। उनकी इस [[शैली]] की अनेक रचनाएँ अभी लोक-जीवन में ही प्रचलित हैं और इनका संकलन तथा सम्पादन ठीक तरह से नहीं हो पाया है। विद्यापति की पदावली से इस कोटि की एक रचना आंशिक रूप में दृष्टव्य है<ref name="aa"/>- | ‘मैथिल कोकिल’ कहे जाने वाले [[विद्यापति]] ने बहुत-सी नचारियाँ लिखी थीं। उनकी इस [[शैली]] की अनेक रचनाएँ अभी लोक-जीवन में ही प्रचलित हैं और इनका संकलन तथा सम्पादन ठीक तरह से नहीं हो पाया है। विद्यापति की पदावली से इस कोटि की एक रचना आंशिक रूप में दृष्टव्य है<ref name="aa"/>- | ||
“कखन हरब | “कखन हरब दु:ख मोर हे भोलानाथ। दुखहि जनम भेल, दुखहि गमाएव, सुख सपनहुँ नहिं भेल, हे भोलानाथ।“ | ||
====महेशबानी==== | ====महेशबानी==== | ||
महाकवि विद्यापति [[शिव|भगवान शिव]] के अनन्य [[भक्त]] थे। उन्होंने 'महेशबानी' और 'नचारी' के नाम से शिवभक्ति से सम्बन्धित अनेक गीतों की रचना की। 'महेशबानी' में जहाँ शिव के परिवार के सदस्यों का वर्णन, देवाधिदेव महादेव भगवान शंकर का फक्कड़ स्वरूप, दुनिया के लिए दानी, अपने लिए भिखारी का वेश, भूत-प्रेत, [[नाग]], बसहा बैल, मूसे और सयुर सभी का एक जगह समन्वय, चिता की भस्म शरीर पर लपेटना, भांग-धतूरा पीना आदि शामिल है, तो दूसरी ओर नचारी में एक भक्त भगवान शिव के समक्ष अपनी विवशता या दु:ख नाचकर या लाचार होकर सुनाता है।<ref>{{cite web |url= http://www.ignca.nic.in/coilnet/vp002.htm|title=विद्यापति का शिव प्रेम और उगना की लोककथा|accessmonthday= 02 मई|accessyear= 2015|last=मिश्र|first=पूनम|authorlink= |format= |publisher=इग्नका|language= हिन्दी}}</ref> 'महेशबानी' का एक उदाहरण निम्न प्रकार है- | महाकवि विद्यापति [[शिव|भगवान शिव]] के अनन्य [[भक्त]] थे। उन्होंने 'महेशबानी' और 'नचारी' के नाम से शिवभक्ति से सम्बन्धित अनेक गीतों की रचना की। 'महेशबानी' में जहाँ शिव के परिवार के सदस्यों का वर्णन, देवाधिदेव महादेव भगवान शंकर का फक्कड़ स्वरूप, दुनिया के लिए दानी, अपने लिए भिखारी का वेश, भूत-प्रेत, [[नाग]], बसहा बैल, मूसे और सयुर सभी का एक जगह समन्वय, चिता की भस्म शरीर पर लपेटना, भांग-धतूरा पीना आदि शामिल है, तो दूसरी ओर नचारी में एक भक्त भगवान शिव के समक्ष अपनी विवशता या दु:ख नाचकर या लाचार होकर सुनाता है।<ref>{{cite web |url= http://www.ignca.nic.in/coilnet/vp002.htm|title=विद्यापति का शिव प्रेम और उगना की लोककथा|accessmonthday= 02 मई|accessyear= 2015|last=मिश्र|first=पूनम|authorlink= |format= |publisher=इग्नका|language= हिन्दी}}</ref> 'महेशबानी' का एक उदाहरण निम्न प्रकार है- | ||
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<poem>अगे माई जोगिया मोर जगत सुखदायक। | <poem>अगे माई जोगिया मोर जगत सुखदायक। | ||
दुख ककरो नहिं देल।। | दुख ककरो नहिं देल।। | ||
दुख ककरो नहिं देल महादेव, | दुख ककरो नहिं देल महादेव, दु:ख ककरो नहिं देल। | ||
अहि जोगिया के भाँग भुलैलक। | अहि जोगिया के भाँग भुलैलक। | ||
धथुर खुआइ धन लेल।। | धथुर खुआइ धन लेल।। |
14:01, 2 जून 2017 का अवतरण
नचारी बिहार के मिथिला जनपद तथा वहीं के प्रभाव से अन्यत्र भी प्रचलित शिवभक्ति अथवा शिवोपासनापरक गीतों को कहा जाता है। ये गीत बहुधा भक्ति-भावना की तरंग में नाचकर गाये जाते हैं। 'नाचना' क्रिया से ही इसकी शाब्दिक व्युत्पत्ति बतायी जाती है।[1]
लोकप्रियता
‘नचारी’ नामक गीत मिथिला में बहुत लोकप्रिय हुए हैं। मैथिल साधु अथवा भिखमंगे इन गीतों को गाकर भिक्षार्जन करते हैं। मैथिल स्त्रियाँ विवाह अथवा अन्य मांगलिक अवसरों पर ‘नचारी’ का उपयोग हास्य तथा व्यंग्य गीतों के रूप में करती हैं।
विद्यापति का योगदान
‘मैथिल कोकिल’ कहे जाने वाले विद्यापति ने बहुत-सी नचारियाँ लिखी थीं। उनकी इस शैली की अनेक रचनाएँ अभी लोक-जीवन में ही प्रचलित हैं और इनका संकलन तथा सम्पादन ठीक तरह से नहीं हो पाया है। विद्यापति की पदावली से इस कोटि की एक रचना आंशिक रूप में दृष्टव्य है[1]-
“कखन हरब दु:ख मोर हे भोलानाथ। दुखहि जनम भेल, दुखहि गमाएव, सुख सपनहुँ नहिं भेल, हे भोलानाथ।“
महेशबानी
महाकवि विद्यापति भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। उन्होंने 'महेशबानी' और 'नचारी' के नाम से शिवभक्ति से सम्बन्धित अनेक गीतों की रचना की। 'महेशबानी' में जहाँ शिव के परिवार के सदस्यों का वर्णन, देवाधिदेव महादेव भगवान शंकर का फक्कड़ स्वरूप, दुनिया के लिए दानी, अपने लिए भिखारी का वेश, भूत-प्रेत, नाग, बसहा बैल, मूसे और सयुर सभी का एक जगह समन्वय, चिता की भस्म शरीर पर लपेटना, भांग-धतूरा पीना आदि शामिल है, तो दूसरी ओर नचारी में एक भक्त भगवान शिव के समक्ष अपनी विवशता या दु:ख नाचकर या लाचार होकर सुनाता है।[2] 'महेशबानी' का एक उदाहरण निम्न प्रकार है-
अगे माई जोगिया मोर जगत सुखदायक।
दुख ककरो नहिं देल।।
दुख ककरो नहिं देल महादेव, दु:ख ककरो नहिं देल।
अहि जोगिया के भाँग भुलैलक।
धथुर खुआइ धन लेल।।
आगे माई कार्तिक गणपति दुइ छनि बालक।
जगभर के नहिं जान।।
तिनकहँ अमरन किछुओं न थिकइन।
रत्ती एक सोन नहिं कान।।
अगे माई, सोन रुप अनका सुत अमरन।।
अधन रुद्रक माल।
अप्पन पुत लेल किछुओ ने जुड़ैलन।।
अनका लेल जंजाल।
अगे माई छन में हेरथि कोटि धन बकसथि।।
ताहि दबा नहिं थोर।
भनहि बिद्यापति सुनु ए मनाईनि
थिकाह दिगम्बर मोर।।
मैथिली गीत 'नचारी'
मैथिली भाषा का एक नचारी गीत इस प्रकर है[3]-
तर बहु गँगा, उपर बहु जमुना, बिचे बहु सरस्वती धार गे माई
ताही ठाम शिवजी पलंग बिछाओल, जटाके देलखिन छिरिआई गे माई॥
फुल लोढ गेलनी गौरी कुमारी, आँचर धय लेल बिल माई गे माई
छोरु छोरु आहे शिव मोरे आँचरवा, हम छी बारी कुमारी गे माई॥
बाबा मोरा सुन्ता हाती चढि ऐता, भैया बन्दुक लय देखावे गे माई
अम्मा सुनती जहर खाय मरति, भावी मोरा खुशी भय बैसती गे माई॥
सेहो सुनी शिवजी सिन्दुर बेसाहल, गौरी बेटी राखल बयाही गे माई॥
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 हिन्दी साहित्य कोश, भाग 1 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 310 |
- ↑ मिश्र, पूनम। विद्यापति का शिव प्रेम और उगना की लोककथा (हिन्दी) इग्नका। अभिगमन तिथि: 02 मई, 2015।
- ↑ मैथिली गीता - नचारी (हिन्दी) सोन्ग्स मैथिली.कॉम। अभिगमन तिथि: 02 मई, 2015।