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[[संगीत]] सम्राट तानसेन की नगरी [[ग्वालियर]] के लिए कहावत प्रसिद्ध है कि यहाँ बच्चे रोते हैं, तो सुर में और पत्थर लुड़कते | |चित्र=Akbar-Tansen-Haridas.jpg | ||
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[[संगीत]] सम्राट तानसेन की नगरी [[ग्वालियर]] के लिए कहावत प्रसिद्ध है कि यहाँ बच्चे रोते हैं, तो सुर में और पत्थर लुड़कते हैं तो ताल में। इस नगरी ने पुरातन काल से आज तक एक से बढ़कर एक संगीत प्रतिभायें संगीत संसार को दी हैं और संगीत सूर्य तानसेन इनमें सर्वोपारि हैं। | |||
==जन्म== | ==जन्म== | ||
भारतीय संगीत के प्रसिद्ध गायक तानसेन का जन्म सन 1504 से 1509 ई. के बीच ग्वालियर से लगभग 45 किलोमीटर दूर ग्राम बेहट में [[ग्वालियर]] के तत्कालीन प्रसिद्ध फ़क़ीर | भारतीय संगीत के प्रसिद्ध गायक तानसेन का जन्म सन 1504 से 1509 ई. के बीच ग्वालियर से लगभग 45 किलोमीटर दूर ग्राम बेहट में [[ग्वालियर]] के तत्कालीन प्रसिद्ध फ़क़ीर हज़रत [[मुहम्मद गौस]] के वरदान स्वरूप हुआ था। कहते है कि श्री मकरंद पांडे के कई संताने हुई, लेकिन एक पर एक अकाल ही काल कवलित होती चली गईं। इससे निराश और व्यथित श्री मकरंद पांडे सूफी संत मुहम्मद गौस की शरण में गये और उनकी दुआ से सन 1486 में तन्ना उर्फ तनसुख उर्फ त्रिलोचन का जन्म हुआ, जो आगे चलकर तानसेन के नाम से विख्यात हुआ। उनके पिता मकरंद पांडेय संगीत के अच्छे ज्ञाता थे। कहते हैं, तानसेन ने संगीत की शिक्षा स्वामी हरिदास से ली थी। किंतु यह संदेहास्पद है क्योंकि स्वामी जी केवल ब्रह्मचारीयों को ही शिष्य बनाते थे। संभव है कभी उन्होंने कुछ रागों के बारे में तानसेन से भी चर्चा की हो। तानसेन के मधुर कंठ और गायन शैली की ख्याति सुनकर 1562 ई. के लगभग अकबर ने उन्हें अपने दरबार में बुला लिया। अबुल फजल ने 'आइने अकबरी' में लिखा है कि अकबर ने जब पहली बार तानसेन का गाना सुना तो प्रसन्न होकर पुरस्कार में दो लाख टके दिए। | ||
==शिक्षा दीक्षा== | ==शिक्षा दीक्षा== | ||
तानसेन के आरंभिक काल में ग्वालियर पर कलाप्रिय राजा [[मानसिंह तोमर]] का शासन था। उनके प्रोत्साहन से ग्वालियर संगीत [[कला]] का विख्यात केन्द्र था, जहाँ पर [[बैजूबावरा]], कर्ण और महमूद जैसे महान संगीताचार्य और गायक गण एकत्र थे, और इन्हीं के सहयोग से राजा मानसिंह तोमर ने संगीत की [[ध्रुपद]] गायकी का आविष्कार और प्रचार किया था। तानसेन की संगीत शिक्षा भी इसी वातावरण में हुई। राजा मानसिंह तोमर की मृत्यु होने और विक्रमाजीत से ग्वालियर का राज्याधिकार छिन जाने के कारण यहाँ के संगीतज्ञों की मंडली बिखरने लगी। तब तानसेन भी [[वृन्दावन]] चले गये और वहां उन्होंने [[हरिदास|स्वामी हरिदास]] जी से संगीत की उच्च शिक्षा प्राप्त की। संगीत शिक्षा में पारंगत होने के उपरांत तानसेन [[शेरशाह सूरी]] के पुत्र दौलत ख़ाँ के आश्रय में रहे और फिर बांधवगढ़ (रीवा) के राजा रामचन्द्र के दरबारी गायक नियुक्त हुए। | तानसेन के आरंभिक काल में ग्वालियर पर कलाप्रिय राजा [[मानसिंह तोमर]] का शासन था। उनके प्रोत्साहन से ग्वालियर संगीत [[कला]] का विख्यात केन्द्र था, जहाँ पर [[बैजूबावरा]], कर्ण और महमूद जैसे महान संगीताचार्य और गायक गण एकत्र थे, और इन्हीं के सहयोग से राजा मानसिंह तोमर ने संगीत की [[ध्रुपद]] गायकी का आविष्कार और प्रचार किया था। तानसेन की संगीत शिक्षा भी इसी वातावरण में हुई। राजा मानसिंह तोमर की मृत्यु होने और विक्रमाजीत से ग्वालियर का राज्याधिकार छिन जाने के कारण यहाँ के संगीतज्ञों की मंडली बिखरने लगी। तब तानसेन भी [[वृन्दावन]] चले गये और वहां उन्होंने [[हरिदास|स्वामी हरिदास]] जी से संगीत की उच्च शिक्षा प्राप्त की। संगीत शिक्षा में पारंगत होने के उपरांत तानसेन [[शेरशाह सूरी]] के पुत्र दौलत ख़ाँ के आश्रय में रहे और फिर बांधवगढ़ (रीवा) के राजा रामचन्द्र के दरबारी गायक नियुक्त हुए। |
08:48, 24 मार्च 2011 का अवतरण
तानसेन
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पूरा नाम | रामतनु पाण्डेय |
अन्य नाम | तन्ना उर्फ तनसुख उर्फ त्रिलोचन |
जन्म | 1504 से 1509 ई. के बीच |
जन्म भूमि | ग्राम बेहट, ग्वालियर |
मृत्यु | 1589 ई. |
कर्म-क्षेत्र | संगीत |
मुख्य रचनाएँ | 'संगीतसार', 'रागमाला' और 'श्रीगणेश स्तोत्र'। |
विषय | गायक |
संगीत सम्राट तानसेन की नगरी ग्वालियर के लिए कहावत प्रसिद्ध है कि यहाँ बच्चे रोते हैं, तो सुर में और पत्थर लुड़कते हैं तो ताल में। इस नगरी ने पुरातन काल से आज तक एक से बढ़कर एक संगीत प्रतिभायें संगीत संसार को दी हैं और संगीत सूर्य तानसेन इनमें सर्वोपारि हैं।
जन्म
भारतीय संगीत के प्रसिद्ध गायक तानसेन का जन्म सन 1504 से 1509 ई. के बीच ग्वालियर से लगभग 45 किलोमीटर दूर ग्राम बेहट में ग्वालियर के तत्कालीन प्रसिद्ध फ़क़ीर हज़रत मुहम्मद गौस के वरदान स्वरूप हुआ था। कहते है कि श्री मकरंद पांडे के कई संताने हुई, लेकिन एक पर एक अकाल ही काल कवलित होती चली गईं। इससे निराश और व्यथित श्री मकरंद पांडे सूफी संत मुहम्मद गौस की शरण में गये और उनकी दुआ से सन 1486 में तन्ना उर्फ तनसुख उर्फ त्रिलोचन का जन्म हुआ, जो आगे चलकर तानसेन के नाम से विख्यात हुआ। उनके पिता मकरंद पांडेय संगीत के अच्छे ज्ञाता थे। कहते हैं, तानसेन ने संगीत की शिक्षा स्वामी हरिदास से ली थी। किंतु यह संदेहास्पद है क्योंकि स्वामी जी केवल ब्रह्मचारीयों को ही शिष्य बनाते थे। संभव है कभी उन्होंने कुछ रागों के बारे में तानसेन से भी चर्चा की हो। तानसेन के मधुर कंठ और गायन शैली की ख्याति सुनकर 1562 ई. के लगभग अकबर ने उन्हें अपने दरबार में बुला लिया। अबुल फजल ने 'आइने अकबरी' में लिखा है कि अकबर ने जब पहली बार तानसेन का गाना सुना तो प्रसन्न होकर पुरस्कार में दो लाख टके दिए।
शिक्षा दीक्षा
तानसेन के आरंभिक काल में ग्वालियर पर कलाप्रिय राजा मानसिंह तोमर का शासन था। उनके प्रोत्साहन से ग्वालियर संगीत कला का विख्यात केन्द्र था, जहाँ पर बैजूबावरा, कर्ण और महमूद जैसे महान संगीताचार्य और गायक गण एकत्र थे, और इन्हीं के सहयोग से राजा मानसिंह तोमर ने संगीत की ध्रुपद गायकी का आविष्कार और प्रचार किया था। तानसेन की संगीत शिक्षा भी इसी वातावरण में हुई। राजा मानसिंह तोमर की मृत्यु होने और विक्रमाजीत से ग्वालियर का राज्याधिकार छिन जाने के कारण यहाँ के संगीतज्ञों की मंडली बिखरने लगी। तब तानसेन भी वृन्दावन चले गये और वहां उन्होंने स्वामी हरिदास जी से संगीत की उच्च शिक्षा प्राप्त की। संगीत शिक्षा में पारंगत होने के उपरांत तानसेन शेरशाह सूरी के पुत्र दौलत ख़ाँ के आश्रय में रहे और फिर बांधवगढ़ (रीवा) के राजा रामचन्द्र के दरबारी गायक नियुक्त हुए।
अकबर के नवरत्न
अकबर के नवरत्नों तथा मुग़लकालीन संगीतकारों में तानसेन का नाम परम-प्रसिद्ध है। यद्धपि काव्य-रचना की दृष्टि से तानसेन का योगदान विशेष महत्त्वपूर्ण नहीं कहा जा सकता, परन्तु संगीत और काव्य के संयोग की दृष्टि से, जो भक्तिकालीन काव्य की एक बहुत बड़ी विशेषता थी, तानसेन साहित्य के इतिहास में अवश्य उल्लेखनीय हैं। तानसेन अकबर के नवरत्नों में से एक थे। एक बार अकबर ने उनसे कहा कि वो उनके गुरु का संगीत सुनना चाहते हैं। गुरु हरिदास तो अकबर के दरबार में आ नहीं सकते थे। लिहाजा इसी निधि वन में अकबर हरिदास का संगीत सुनने आए। हरिदास ने उन्हें कृष्ण भक्ति के कुछ भजन सुनाए थे। अकबर हरिदास से इतने प्रभावित हुए कि वापस जाकर उन्होंने तानसेन से अकेले में कहा कि आप तो अपने गुरु की तुलना में कहीं आस-पास भी नहीं है। फिर तानसेन ने जवाब दिया कि जहांपनाह हम इस ज़मीन के बादशाह के लिए गाते हैं और हमारे गुरु इस ब्रह्मांड के बादशाह के लिए गाते हैं तो फ़र्क़ तो होगा न।
रचनाएँ
तानसेन के नाम के संबंध में मतैक्य नहीं है। कुछ का कहना है कि 'तानसेन' उनका नाम नहीं, उनकों मिली उपाधि थी। तानसेन मौलिक कलाकार थे। वे स्वर-ताल में गीतों की रचना भी करते थे। तानसेन के तीन ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है-
- 'संगीतसार',
- 'रागमाला' और
- 'श्रीगणेश स्तोत्र'।
मृत्यु
भारतीय संगीत के प्रसिद्ध गायक तानसेन की मृत्यु 1589 ई. में हुई। भारतीय संगीत के इतिहास में ध्रुपदकार के रूप में तानसेन का नाम सदैव अमर रहेगा। इसके साथ ही ब्रजभाषा के पद साहित्य का संगीत के साथ जो अटूट सम्बन्ध रहा है, उसके सन्दर्भ में भी तानसेन चिरस्मरणीय रहेंगे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
(सहायक ग्रन्थ-
- संगीतसम्राट तानसेन (जीवनी और रचनाएँ): प्रभुदयाल मीतल, साहित्य संस्थान, मथुरा;
- हिन्दी साहित्य का इतिहास: पं. रामचन्द्र शुक्ल:
- अकबरी दरबार के हिन्दी कबि: डा. सरयू प्रसाद अग्रवाल।)
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