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| | '''अनमोल वचन''' | | | |
| * पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुभाषित । लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं । — संस्कृत सुभाषित
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| * विश्व के सर्वोत्कॄष्ट कथनों और विचारों का ज्ञान ही संस्कृति है । — मैथ्यू अर्नाल्ड
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| * संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं ; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति । — चाणक्य
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| * सही मायने में बुद्धिपूर्ण विचार हजारों दिमागों में आते रहे हैं । लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें । — गोथे
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| * मैं उक्तियों से घृणा करता हूँ । वह कहो जो तुम जानते हो । — इमर्सन
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| * किसी कम पढे व्यक्ति द्वारा सुभाषित पढना उत्तम होगा। — सर विंस्टन चर्चिल
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| * बुद्धिमानो की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है। — आईजक दिसराली
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| * मैं अक्सर खुद को उदृत करता हुँ। इससे मेरे भाषण मसालेदार हो जाते हैं।
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| * सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नहीं हो सकती। — राबर्ट हेमिल्टन
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| '''गणित'''
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| * यथा शिखा मयूराणां , नागानां मणयो यथा ।
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| तद् वेदांगशास्त्राणां , गणितं मूर्ध्नि वर्तते ॥
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| ( जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों में गणित का स्थान सबसे उपर है । ) — वेदांग ज्योतिष
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| * बहुभिर्प्रलापैः किम् , त्रयलोके सचरारे ।
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| यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम् , गणितेन् बिना न हि ॥
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| ( बहुत प्रलाप करने से क्या लभ है ? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता ) — महावीराचार्य , जैन गणितज्ञ
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| * ज्यामिति की रेखाओं और चित्रों में हम वे अक्षर सीखते हैं जिनसे यह संसार रूपी महान पुस्तक लिखी गयी है । — गैलिलियो
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| * गणित एक ऐसा उपकरण है जिसकी शक्ति अतुल्य है और जिसका उपयोग सर्वत्र है ; एक ऐसी भाषा जिसको प्रकृति अवश्य सुनेगी और जिसका सदा वह उत्तर देगी । — प्रो. हाल
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| * काफ़ी हद तक गणित का संबन्ध (केवल) सूत्रों और समीकरणों से ही नहीं है । इसका सम्बन्ध सी.डी से , कैट-स्कैन से , पार्किंग-मीटरों से , राष्ट्रपति-चुनावों से और कम्प्युटर-ग्राफिक्स से है । गणित इस जगत को देखने और इसका वर्णन करने के लिये है ताकि हम उन समस्याओं को हल कर सकें जो अर्थपूर्ण हैं । — गरफंकल , 1997
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| * गणित एक भाषा है । — जे. डब्ल्यू. गिब्ब्स , अमेरिकी गणितज्ञ और भौतिकशास्त्री
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| * लाटरी को मैं गणित न जानने वालों के उपर एक टैक्स की भाँति देखता हूँ ।
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| * यह असंभव है कि गति के गणितीय सिद्धान्त के बिना हम वृहस्पति पर राकेट भेज पाते ।
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| '''विज्ञान'''
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| * विज्ञान हमे ज्ञानवान बनाता है लेकिन दर्शन (फिलासफी) हमे बुद्धिमान बनाता है । — विल्ल डुरान्ट
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| * विज्ञान की तीन विधियाँ हैं - सिद्धान्त , प्रयोग और सिमुलेशन ।
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| * विज्ञान की बहुत सारी परिकल्पनाएँ ग़लत हैं ; यह पूरी तरह ठीक है । ये ( ग़लत परिकल्पनाएँ) ही सत्य-प्राप्ति के झरोखे हैं ।
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| * हम किसी भी चीज को पूर्णतः ठीक तरीके से परिभाषित नहीं कर सकते । अगर ऐसा करने की कोशिश करें तो हम भी उसी वैचारिक पक्षाघात के शिकार हो जायेगे जिसके शिकार दार्शनिक होते हैं । — रिचर्ड फ़ेनिमैन
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| '''तकनीकी / अभियान्त्रिकी / इन्जीनीयरिंग / टेक्नालोजी'''
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| * पर्याप्त रूप से विकसित किसी भी तकनीकी और जादू में अन्तर नहीं किया जा सकता । - आर्थर सी. क्लार्क
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| * सभ्यता की कहानी , सार रूप में , इंजिनीयरिंग की कहानी है - वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया । — एस डीकैम्प
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| * इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है । — जेम्स के. फिंक
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| * वैज्ञानिक इस संसार का , जैसे है उसी रूप में , अध्ययन करते हैं । इंजिनीयर वह संसार बनाते हैं जो कभी था ही नहीं । — थियोडोर वान कार्मन
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| * मशीनीकरण करने के लिये यह जरूरी है कि लोग भी मशीन की तरह सोचें । — सुश्री जैकब
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| * इंजिनीररिंग संख्याओं में की जाती है । संख्याओं के बिना विश्लेषण मात्र राय है ।
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| * जिसके बारे में आप बात कर रहे हैं, यदि आप उसे माप सकते हैं और संख्याओं में व्यक्त कर सकते हैं तो आप अपने विष्य के बारे में कुछ जानते हैं ; लेकिन यदि आप उसे माप नहीं सकते तो आप का ज्ञान बहुत सतही और असंतोषजनक है । — लॉर्ड केल्विन
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| * आवश्यकता डिजाइन का आधार है । किसी चीज को जरूरत से अल्पमात्र भी बेहतर डिजाइन करने का कोई औचित्य नहीं है ।
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| * तकनीक के उपर ही तकनीक का निर्माण होता है । हम तकनीकी रूप से विकास नहीं कर सकते यदि हममें यह समझ नहीं है कि सरल के बिना जटिल का अस्तित्व सम्भव नहीं है ।
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| '''कम्प्यूटर / इन्टरनेट'''
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| इंटरनेट के उपयोक्ता वांछित डाटा को शीघ्रता से और तेज़ी से प्राप्त करना चाहते हैं. उन्हें आकर्षक डिज़ाइनों तथा सुंदर साइटों से बहुधा कोई मतलब नहीं होता है । – टिम बर्नर्स ली (इंटरनेट के सृजक)
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| कम्प्यूटर कभी भी कमेटियों का विकल्प नहीं बन सकते. चूंकि कमेटियाँ ही कम्प्यूटर ख़रीदने का प्रस्ताव स्वीकृत करती हैं । – एडवर्ड शेफर्ड मीडस
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| कोई शाम वर्ल्ड वाइड वेब पर बिताना ऐसा ही है जैसा कि आप दो घंटे से कुरकुरे खा रहे हों और आपकी उँगली मसाले से पीली पड़ गई हो, आपकी भूख खत्म हो गई हो, परंतु आपको पोषण तो मिला ही नहीं । — क्लिफ़ोर्ड स्टॉल
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| '''कला'''
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| * कला विचार को मूर्ति में परिवर्तित कर देती है ।
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| * कला एक प्रकार का एक नशा है, जिससे जीवन की कठोरताओं से विश्राम मिलता है। - फ्रायड
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| * मेरे पास दो रोटियां हों और पास में फूल बिकने आयें तो मैं एक रोटी बेचकर फूल ख़रीदना पसंद करूंगा। पेट ख़ाली रखकर भी यदि कला-दृष्टि को सींचने का अवसर हाथ लगता होगा तो मैं उसे गंवाऊगा नहीं। - शेख सादी
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| * कविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है । – रामधारी सिंह दिनकर
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| * कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी । – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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| * रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है | – मुक्ता
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| * कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है । — रामधारी सिंह दिनकर
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| * कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक उठता है । — अज्ञात
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| * कवि और चित्रकार में भेद है । कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। — डा रामकुमार वर्मा
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| '''भाषा / स्वभाषा'''
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| * निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल ।
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| बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल ॥ — भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
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| * जो एक विदेशी भाषा नहीं जानता , वह अपनी भाषा की बारे में कुछ नहीं जानता । — गोथे
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| * भाषा हमारे सोचने के तरीके को स्वरूप प्रदान करती है और निर्धारित करती है कि हम क्या-क्या सोच सकते हैं । — बेन्जामिन होर्फ
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| * शब्द विचारों के वाहक हैं ।
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| * शब्द पाकर दिमाग उडने लगता है ।
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| * मेरी भाषा की सीमा , मेरी अपनी दुनिया की सीमा भी है। - लुडविग विटगेंस्टाइन
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| * आर्थिक युद्ध का एक सूत्र है कि किसी राष्ट्र को नष्ट करने के का सुनिश्चित तरीका है , उसकी मुद्रा को खोटा कर देना । (और) यह भी उतना ही सत्य है कि किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना । ..(लेकिन) यदि विचार भाषा को भ्रष्ट करते है तो भाषा भी विचारों को भ्रष्ट कर सकती है । — जार्ज ओर्वेल
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| * शिकायत करने की अपनी गहरी आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए ही मनुष्य ने भाषा ईजाद की है । - लिली टॉमलिन
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| * श्रीकृष्ण ऐसी बात बोले जिसके शब्द और अर्थ परस्पर नपे-तुले रहे और इसके बाद चुप हो गए। वस्तुतः बड़े लोगों का यह स्वभाव ही है कि वे मितभाषी हुआ करते हैं। - शिशुपाल वध
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| '''साहित्य'''
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| * साहित्य समाज का दर्पण होता है ।
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| * साहित्यसंगीतकला विहीन: साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः ।
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| ( साहित्य संगीत और कला से हीन पुरूष साक्षात् पशु ही है जिसके पूँछ और् सींग नहीं हैं । ) — भर्तृहरि
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| * सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता है | – अनंत गोपाल शेवड़े
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| * साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है , परंतु एक नया वातावरण देना भी है । — डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन
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| '''संगति / सत्संगति / कुसंगति / मित्रलाभ / एकता / सहकार / सहयोग / नेटवर्किंग / संघ'''
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| * संघे शक्तिः ( एकता में शक्ति है )
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| * हीयते हि मतिस्तात् , हीनैः सह समागतात् ।
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| समैस्च समतामेति , विशिष्टैश्च विशिष्टितम् ॥
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| हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है , समान लोगों के साथ रहने से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है । — महाभारत
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| * यानि कानि च मित्राणि, कृतानि शतानि च ।
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| पश्य मूषकमित्रेण , कपोता: मुक्तबन्धना: ॥
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| * जो कोई भी हों , सैकडो मित्र बनाने चाहिये । देखो, मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे । — पंचतंत्र
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| * को लाभो गुणिसंगमः ( लाभ क्या है ? गुणियों का साथ ) — भर्तृहरि
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| * सत्संगतिः स्वर्गवास: ( सत्संगति स्वर्ग में रहने के समान है )
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| संहतिः कार्यसाधिका । ( एकता से कार्य सिद्ध होते हैं ) — पंचतंत्र
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| * दुनिया के अमीर लोग नेटवर्क बनाते हैं और उसकी तलाश करते हैं , बाकी सब काम की तलाश करते हैं । — कियोसाकी
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| * मानसिक शक्ति का सबसे बडा स्रोत है - दूसरों के साथ सकारात्मक तरीके से विचारों का आदान-प्रदान करना ।
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| * शठ सुधरहिं सतसंगति पाई ।
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| पारस परस कुधातु सुहाई ॥ — गोस्वामी तुलसीदास
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| * गगन चढहिं रज पवन प्रसंगा । ( हवा का साथ पाकर धूल आकाश पर चढ जाता है ) — गोस्वामी तुलसीदास
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| * बिना सहकार , नहीं उद्धार ।
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| उतिष्ठ , जाग्रत् , प्राप्य वरान् अनुबोधयत् ।
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| ( उठो , जागो और श्रेष्ठ जनों को प्राप्त कर (स्वयं को) बुद्धिमान बनाओ । )
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| * नहीं संगठित सज्जन लोग ।
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| रहे इसी से संकट भोग ॥ — श्रीराम शर्मा , आचार्य
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| * सहनाववतु , सह नौ भुनक्तु , सहवीर्यं करवाहहै ।
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| ( एक साथ आओ , एक साथ खाओ और साथ-साथ काम करो )
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| * अच्छे मित्रों को पाना कठिन , वियोग कष्टकारी और भूलना असम्भव होता है। — रैन्डाल्फ
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| * काजर की कोठरी में कैसे हू सयानो जाय,
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| एक न एक लीक काजर की लागिहै पै लागि है। – अज्ञात
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| * जो रहीम उत्तम प्रकृती, का करी सकत कुसंग,
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| चन्दन विष व्यापत नही, लिपटे रहत भुजंग । — रहीम
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| * जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं उसी तरह सादगी भी रंगों को निखार देती है। सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। – मुक्ता
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| * एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है । – अज्ञात
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| '''संस्था / संगठन / आर्गनाइजेशन'''
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| * दुनिया की सबसे बडी खोज ( इन्नोवेशन ) का नाम है - संस्था ।
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| * आधुनिक समाज के विकास का इतिहास ही विशेष लक्ष्य वाली संस्थाओं के विकास का इतिहास भी है ।
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| * कोई समाज उतना ही स्वस्थ होता है जितनी उसकी संस्थाएँ ; यदि संस्थायें विकास कर रही हैं तो समाज भी विकास करता है, यदि वे क्षीण हो रही हैं तो समाज भी क्षीण होता है ।
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| उन्नीसवीं शताब्दी की औद्योगिक-क्रान्ति संस्थाओं की क्रान्ति थी ।
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| * बाँटो और राज करो , एक अच्छी कहावत है ; ( लेकिन ) एक होकर आगे बढो , इससे भी अच्छी कहावत है । — गोथे
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| * व्यक्तियों से राष्ट्र नहीं बनता , संस्थाओं से राष्ट्र बनता है । — डिजरायली
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| '''साहस / निर्भीकता / पराक्रम/ आत्म्विश्वास / प्रयत्न'''
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| * कबिरा मन निर्मल भया , जैसे गंगा नीर ।
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| पीछे-पीछे हरि फिरै , कहत कबीर कबीर ॥ — कबीर
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| * साहसे खलु श्री वसति । ( साहस में ही लक्ष्मी रहती हैं )
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| * इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है । वास्तव में इस संसार को इसने (छोटे से समूह) ही बदला है ।
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| * जरूरी नहीं है कि कोई साहस लेकर जन्मा हो , लेकिन हरेक शक्ति लेकर जन्मता है ।
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| * बिना साहस के हम कोई दूसरा गुण भी अनवरत धारण नहीं कर सकते । हम कृपालु, दयालु , सत्यवादी , उदार या इमानदार नहीं बन सकते ।
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| * बिना निराश हुए ही हार को सह लेना पृथ्वी पर साहस की सबसे बडी परीक्षा है । — आर. जी. इंगरसोल
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| * जिस काम को करने में डर लगता है उसको करने का नाम ही साहस है ।
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| * मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी
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| * किसी की करुणा व पीड़ा को देख कर मोम की तरह दर्याद्र हो पिघलनेवाला ह्रदय तो रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं के थपेड़े खाते रहने की स्थिति में चट्टान की तरह दृढ़ व ठोस भी बने रहो। - द्रोणाचार्य
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| * यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, मगर ऐसे लोग कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। - वल्लभभाई पटेल
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| * वस्तुतः अच्छा समाज वह नहीं है जिसके अधिकांश सदस्य अच्छे हैं बल्कि वह है जो अपने बुरे सदस्यों को प्रेम के साथ अच्छा बनाने में सतत् प्रयत्नशील है। - डब्ल्यू.एच.आडेन
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| * शोक मनाने के लिये नैतिक साहस चाहिए और आनंद मनाने के लिए धार्मिक साहस। अनिष्ट की आशंका करना भी साहस का काम है, शुभ की आशा करना भी साहस का काम परंतु दोनों में आकाश-पाताल का अंतर है। पहला गर्वीला साहस है, दूसरा विनीत साहस। - किर्केगार्द
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| * किसी दूसरे को अपना स्वप्न बताने के लिए लोहे का ज़िगर चाहिए होता है | - एरमा बॉम्बेक
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| * हर व्यक्ति में प्रतिभा होती है. दरअसल उस प्रतिभा को निखारने के लिए गहरे अंधेरे रास्ते में जाने का साहस कम लोगों में ही होता है.
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| कमाले बुजदिली है , पस्त होना अपनी आँखों में ।
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| * अगर थोडी सी हिम्मत हो तो क्या हो सकता नहीं ॥ — चकबस्त
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| * अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है। कायरों की नहीं। – जवाहरलाल नेहरू
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| * जिन ढूढा तिन पाइयाँ , गहरे पानी पैठि ।
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| मै बपुरा बूडन डरा , रहा किनारे बैठि ॥ — कबीर
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| * वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे । – अज्ञात
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| '''भय, अभय, निर्भय'''
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| * तावत् भयस्य भेतव्यं , यावत् भयं न आगतम् ।
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| आगतं हि भयं वीक्ष्य , प्रहर्तव्यं अशंकया ॥
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| * भय से तब तक ही दरना चाहिये जब तक भय (पास) न आया हो । आये हुए भय को देखकर बिना शंका के उस पर् प्रहार् करना चाहिये । — पंचतंत्र
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| * जो लोग भय का हेतु अथवा हर्ष का कारण उपस्थित होने पर भी विचार विमर्श से काम लेते हैं तथा कार्य की जल्दी से नहीं कर डालते, वे कभी भी संताप को प्राप्त नहीं होते। - पंचतंत्र
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| * ‘भय’ और ‘घृणा’ ये दोनों भाई-बहन लाख बुरे हों पर अपनी मां बर्बरता के प्रति बहुत ही भक्ति रखते हैं। जो कोई इनका सहारा लेना चाहता है, उसे ये सब से पहले अपनी मां के चरणों में डाल जाते हैं। - बर्ट्रेंड रसेल
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| * मित्र से, अमित्र से, ज्ञात से, अज्ञात से हम सब के लिए अभय हों। रात्रि के समय हम सब निर्भय हों और सब दिशाओं में रहनेवाले हमारे मित्र बनकर रहें। - अथर्ववेद
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| * आदमी सिर्फ़ दो लीवर के द्वारा चलता रहता है : डर तथा स्वार्थ | - नेपोलियन
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| * डर सदैव अज्ञानता से पैदा होता है | - एमर्सन
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| * अभय-दान सबसे बडा दान है ।
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| * भय से ही दुख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयां उत्पन्न होती हैं । — विवेकानंद
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| '''दोष / गलती / त्रुटि'''
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| * गलती करने में कोई गलती नहीं है । गलती करने से डरना सबसे बडी गलती है । — एल्बर्ट हब्बार्ड
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| * गलती करने का सीधा सा मतलब है कि आप तेजी से सीख रहे हैं ।
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| * बहुत सी तथा बदी गलतियाँ किये बिना कोई बडा आदमी नहीं बन सकता । — ग्लेडस्टन
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| * मैं इसलिये आगे निकल पाया कि मैने उन लोगों से ज़्यादा गलतियाँ की जिनका मानना था कि गलती करना बुरा था , या गलती करने का मतलब था कि वे मूर्ख थे । — राबर्ट कियोसाकी
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| * सीधे तौर पर अपनी गलतियों को ही हम अनुभव का नाम दे देते हैं । — आस्कर वाइल्ड
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| * गलती तो हर मनुष्य कर सकता है , पर केवल मूर्ख ही उस पर दृढ बने रहते हैं । — सिसरो
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| * अपनी गलती स्वीकार कर लेने में लज्जा की कोई बात नहीं है । इससे दूसरे शब्दों में यही प्रमाणित होता है कि कल की अपेक्षा आज आप अधिक समझदार हैं । — अलेक्जेन्डर पोप
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| * दोष निकालना सुगम है , उसे ठीक करना कठिन । — प्लूटार्क
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| * त्रुटियों के बीच में से ही सम्पूर्ण सत्य को ढूंढा जा सकता है | – सिगमंड फ्रायड
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| * गलतियों से भरी जिंदगी न सिर्फ़ सम्मनाननीय बल्कि लाभप्रद है उस जीवन से जिसमे कुछ किया ही नहीं गया।
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| '''अनुभव / अभ्यास'''
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| * बिना अनुभव कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है|
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| * करत करत अभ्यास के जड़ मति होंहिं सुजान।
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| रसरी आवत जात ते सिल पर परहिं निशान।। — रहीम
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| * अनभ्यासेन विषं विद्या ।
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| ( बिना अभ्यास के विद्या कठिन है / बिना अभ्यास के विद्या विष के समान है (?) )
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| * यह रहीम निज संग लै , जनमत जगत न कोय ।
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| बैर प्रीति अभ्यास जस , होत होत ही होय ॥
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| * अनुभव-प्राप्ति के लिए काफ़ी मूल्य चुकाना पड़ सकता है पर उससे जो शिक्षा मिलती है वह और कहीं नहीं मिलती । — अज्ञात
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| * अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते । – अज्ञात
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| '''सफलता, असफलता'''
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| * असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया । — श्रीरामशर्मा आचार्य
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| * जीवन के आरम्भ में ही कुछ असफलताएँ मिल जाने का बहुत अधिक व्यावहारिक महत्त्व है । — हक्सले
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| * जो कभी भी कहीं असफल नहीं हुआ वह आदमी महान नहीं हो सकता । — हर्मन मेलविल
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| * असफलता आपको महान कार्यों के लिये तैयार करने की प्रकृति की योजना है । — नैपोलियन हिल
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| * सफलता की सभी कथायें बडी-बडी असफलताओं की कहानी हैं ।
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| * असफलता फिर से अधिक सूझ-बूझ के साथ कार्य आरम्भ करने का एक मौक़ा मात्र है । — हेनरी फ़ोर्ड
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| * दो ही प्रकार के व्यक्ति वस्तुतः जीवन में असफल होते है - एक तो वे जो सोचते हैं, पर उसे कार्य का रूप नहीं देते और दूसरे वे जो कार्य-रूप में परिणित तो कर देते हैं पर सोचते कभी नहीं। - थामस इलियट
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| * दूसरों को असफल करने के प्रयत्न ही में हमें असफल बनाते हैं। - इमर्सन
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| * किसी दूसरे द्वारा रचित सफलता की परिभाषा को अपना मत समझो । - हरिशंकर परसाई
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| * जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं । पहले वे जो सोचते हैं पर करते नहीं , दूसरे वे जो करते हैं पर सोचते नहीं । — श्रीराम शर्मा , आचार्य
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| * प्रत्येक व्यक्ति को सफलता प्रिय है लेकिन सफल व्यक्तियों से सभी लोग घृणा करते हैं । — जान मैकनरो
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| * असफल होने पर , आप को निराशा का सामना करना पड़ सकता है। परन्तु , प्रयास छोड़ देने पर , आप की असफलता सुनिश्चित है। — बेवेरली सिल्स
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| * सफलता का कोई गुप्त रहस्य नहीं होता. क्या आप किसी सफल आदमी को जानते हैं जिसने अपनी सफलता का बखान नहीं किया हो. – किन हबार्ड
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| * मैं सफलता के लिए इंतज़ार नहीं कर सकता था, अतएव उसके बगैर ही मैं आगे बढ़ चला. – जोनाथन विंटर्स
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| * हार का स्वाद मालूम हो तो जीत हमेशा मीठी लगती है । — माल्कम फोर्बस
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| * हम सफल होने को पैदा हुए हैं, फेल होने के लिये नहीं । — हेनरी डेविड
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| * पहाड़ की चोटी पर पंहुचने के कई रास्ते होते हैं लेकिन व्यू सब जगह से एक सा दिखता है । — चाइनीज कहावत
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| * यहाँ दो तरह के लोग होते हैं - एक वो जो काम करते हैं और दूसरे वो जो सिर्फ़ क्रेडिट लेने की सोचते हैं। कोशिश करना कि तुम पहले समूह में रहो क्योंकि वहाँ कम्पटीशन कम है . — इंदिरा गांधी
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| * सफलता के लिये कोई लिफ्ट नहीं जाती इसलिये सीढ़ीयों से ही जाना पढ़ेगा
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| * हम हवा का रूख तो नहीं बदल सकते लेकिन उसके अनुसार अपनी नौका के पाल की दिशा जरूर बदल सकते हैं।
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| * सफलता सार्वजनिक उत्सव है , जबकि असफलता व्यक्तिगत शोक ।
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| * मैं नहीं जानता कि सफलता की सीढी क्या है ; असफला की सीढी है , हर किसी को प्रसन्न करने की चाह । — बिल कोस्बी
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| * सफलता के तीन रहस्य हैं - योग्यता , साहस और कोशिश ।
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| '''सुख-दुःख , व्याधि , दया'''
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| * संसार में सब से अधिक दुःखी प्राणी कौन है ? बेचारी मछलियां क्योंकि दुःख के कारण उनकी आंखों में आनेवाले आंसू पानी में घुल जाते हैं, किसी को दिखते नहीं। अतः वे सारी सहानुभूति और स्नेह से वंचित रह जाती हैं। सहानुभूति के अभाव में तो कण मात्र दुःख भी पर्वत हो जाता है। - खलील जिब्रान
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| * संसार में प्रायः सभी जन सुखी एवं धनशाली मनुष्यों के शुभेच्छु हुआ करते हैं। विपत्ति में पड़े मनुष्यों के प्रियकारी दुर्लभ होते हैं। - मृच्छकटिक
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| * व्याधि शत्रु से भी अधिक हानिकारक होती है। - चाणक्यसूत्राणि-223
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| * विपत्ति में पड़े हुए का साथ बिरला ही कोई देता है। - रावणार्जुनीयम्-5।8
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| * मनुष्य के जीवन में दो तरह के दुःख होते हैं - एक यह कि उसके जीवन की अभिलाषा पूरी नहीं हुई और दूसरा यह कि उसके जीवन की अभिलाषा पूरी हो गई। - बर्नार्ड शॉ
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| * मेरी हार्दिक इच्छा है कि मेरे पास जो भी थोड़ा-बहुत धन शेष है, वह सार्वजनिक हित के कामों में यथाशीघ्र खर्च हो जाए। मेरे अंतिम समय में एक पाई भी न बचे, मेरे लिए सबसे बड़ा सुख यही होगा। - पुरुषोत्तमदास टंडन
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| * मानवजीवन में दो और दो चार का नियम सदा लागू होता है। उसमें कभी दो और दो पांच हो जाते हैं। कभी ऋण तीन भी और कई बार तो सवाल पूरे होने के पहले ही स्लेट गिरकर टूट जाती है। - सर विंस्टन चर्चिल
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| * तपाया और जलाया जाता हुआ लौहपिण्ड दूसरे से जुड़ जाता है, वैसे ही दुख से तपते मन आपस में निकट आकर जुड़ जाते हैं। - लहरीदशक
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| * रहिमन बिपदा हुँ भली , जो थोरे दिन होय ।
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| हित अनहित वा जगत में , जानि परत सब कोय ॥ — रहीम
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| * चाहे राजा हो या किसान , वह सबसे ज़्यादा सुखी है जिसको अपने घर में शान्ति प्राप्त होती है । — गेटे
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| * अरहर की दाल औ जड़हन का भात,
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| गागल निंबुआ औ घिउ तात,
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| सहरसखंड दहिउ जो होय,
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| बाँके नयन परोसैं जोय,
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| कहै घाघ तब सबही झूठा,
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| उहाँ छाँड़ि इहवैं बैकुंठा | — घाघ
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| '''प्रशंसा / प्रोत्साहन'''
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| * उष्ट्राणां विवाहेषु , गीतं गायन्ति गर्दभाः ।
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| परस्परं प्रशंसन्ति , अहो रूपं अहो ध्वनिः ।
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| ( ऊँटों के विवाह में गधे गीत गा रहे हैं । एक-दूसरे की प्रशंसा कर रहे हैं , अहा ! क्या रूप है ? अहा ! क्या आवाज है ? )
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| * मानव में जो कुछ सर्वोत्तम है उसका विकास प्रसंसा तथा प्रोत्साहन से किया जा सकता है । – चार्ल्स श्वेव
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| * आप हर इंसान का चरित्र बता सकते हैं यदि आप देखें कि वह प्रशंसा से कैसे प्रभावित होता है । — सेनेका
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| * मानव प्रकृति में सबसे गहरा नियम प्रशंसा प्राप्त करने की लालसा है । — विलियम जेम्स
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| * अगर किसी युवती के दोष जानने हों तो उसकी सखियों में उसकी प्रसंसा करो । — फ्रंकलिन
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| * चापलूसी करना सरल है , प्रशंसा करना कठिन ।
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| * मेरी चापलूसी करो, और मैं आप पर भरोसा नहीं करुंगा. मेरी आलोचना करो, और मैं आपको पसंद नहीं करुंगा. मेरी उपेक्षा करो, और मैं आपको माफ़ नहीं करुंगा. मुझे प्रोत्साहित करो, और मैं कभी आपको नहीं भूलूंगा – विलियम ऑर्थर वार्ड
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| * हमारे साथ प्रायः समस्या यही होती है कि हम झूठी प्रशंसा के द्वारा बरबाद हो जाना तो पसंद करते हैं, परंतु वास्तविक आलोचना के द्वारा संभल जाना नहीं | – नॉर्मन विंसेंट पील
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| '''मान , अपमान , सम्मान'''
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| * धूल भी पैरों से रौंदी जाने पर ऊपर उठती है, तब जो मनुष्य अपमान को सहकर भी स्वस्थ रहे, उससे तो वह पैरों की धूल ही अच्छी। - माघकाव्य
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| * इतिहास इस बात का साक्षी है कि किसी भी व्यक्ति को केवल उसकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित नहीं किया जाता। समाज तो उसी का सम्मान करता है, जिससे उसे कुछ प्राप्त होता है। - कल्विन कूलिज
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| * अपमानपूर्वक अमृत पीने से तो अच्छा है सम्मानपूर्वक विषपान | – रहीम
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| * अपमान और दवा की गोलियां निगल जाने के लिए होती हैं, मुंह में रखकर चूसते रहने के लिए नहीं। - वक्रमुख
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| * गाली सह लेने के असली मायने है गाली देनेवाले के वश में न होना, गाली देनेवाले को असफल बना देना। यह नहीं कि जैसा वह कहे, वैसा कहना। - महात्मा गांधी
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| * मान सहित विष खाय के , शम्भु भये जगदीश ।
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| बिना मान अमृत पिये , राहु कटायो शीश ॥ — कबीर
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| '''अभिमान / घमण्ड / गर्व'''
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| * जब मैं था तब हरि नहीं , अब हरि हैं मै नाहि ।
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| सब अँधियारा मिट गया दीपक देख्या माँहि ॥ — कबीर
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| '''धन / अर्थ / अर्थ महिमा / अर्थ निन्दा / अर्थ शास्त्र /सम्पत्ति / ऐश्वर्य'''
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| * दान , भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं । जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति ( नाश ) होती है । — भर्तृहरि
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| * हिरण्यं एव अर्जय , निष्फलाः कलाः । ( सोना ( धन ) ही कमाओ , कलाएँ निष्फल है ) — महाकवि माघ
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| * सर्वे गुणाः कांचनं आश्रयन्ते । ( सभी गुण सोने का ही सहारा लेते हैं ) - भर्तृहरि
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| * संसार के व्यवहारों के लिये धन ही सार-वस्तु है । अत: मनुष्य को उसकी प्राप्ति के लिये युक्ति एवं साहस के साथ यत्न करना चाहिये । — शुक्राचार्य
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| * आर्थस्य मूलं राज्यम् । ( राज्य धन की जड है ) — चाणक्य
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| * मनुष्य मनुष्य का दास नहीं होता , हे राजा , वह् तो धन का दास् होता है । — पंचतंत्र
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| * अर्थो हि लोके पुरुषस्य बन्धुः । ( संसार में धन ही आदमी का भाई है ) — चाणक्य
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| * जहाँ सुमति तँह सम्पति नाना, जहाँ कुमति तँह बिपति निधाना । — गो. तुलसीदास
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| * क्षणशः कण्शश्चैव विद्याधनं अर्जयेत ।
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| ( क्षण-ख्षण करके विद्या और कण-कण करके धन का अर्जन करना चाहिये ।
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| * रुपए ने कहा, मेरी फ़िक्र न कर – पैसे की चिन्ता कर. – चेस्टर फ़ील्ड
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| * बढ़त बढ़त सम्पति सलिल मन सरोज बढ़ि जाय।
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| घटत घटत पुनि ना घटै तब समूल कुम्हिलाय।।
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| * जहां मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहां अन्न की सुरक्षा की जाती है और जहां परिवार में कलह नहीं होती, वहां लक्ष्मी निवास करती है । – अथर्ववेद
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| * मुक्त बाज़ार ही संसाधनों के बटवारे का सवाधिक दक्ष और सामाजिक रूप से इष्टतम तरीका है ।
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| * स्वार्थ या लाभ ही सबसे बडा उत्साहवर्धक ( मोटिवेटर ) या आगे बढाने वाला बल है ।
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| * मुक्त बाज़ार उत्तरदायित्वों के वितरण की एक पद्धति है ।
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| * सम्पत्ति का अधिकार प्रदान करने से सभ्यता के विकास को जितना योगदान मिला है उतना मनुष्य द्वारा स्थापित किसी दूसरी संस्था से नहीं ।
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| * यदि किसी कार्य को पर्याप्त रूप से छोटे-छोटे चरणों में बाँट दिया जाय तो कोई भी काम पूरा किया जा सकता है ।
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| '''धनी / निर्धन / गरीब / गरीबी'''
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| * गरीब वह है जिसकी अभिलाषायें बढी हुई हैं । — डेनियल
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| * गरीबों के बहुत से बच्चे होते हैं , अमीरों के सम्बन्धी. – एनॉन
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| * पैसे की कमी समस्त बुराईयों की जड़ है।
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| * कुबेर भी यदि आय से अधिक व्यय करे तो निर्धन हो जाता है | – चाणक्य
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| * निर्धनता से मनुष्य में लज्जा आती है । लज्जा से आदमी तेजहीन हो जाता है । निस्तेज मनुष्य का समाज तिरस्कार करता है । तिरष्कृत मनुष्य में वैराग्य भाव उत्पन्न हो जाते हैं और तब मनुष्य को शोक होने लगता है । जब मनुष्य शोकातुर होता है तो उसकी बुद्धि क्षीण होने लगती है और बुद्धिहीन मनुष्य का सर्वनाश हो जाता है । — वासवदत्ता , मृच्छकटिकम में
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| * गरीबी दैवी अभिशाप नहीं बल्कि मानवरचित षडयन्त्र है । — महात्मा गाँधी
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| '''व्यापार'''
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| * व्यापारे वसते लक्ष्मी । ( व्यापार में ही लक्ष्मी वसती हैं )
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| महाजनो येन गतः स पन्थाः ।
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| ( महापुरुष जिस मार्ग से गये है, वही ( उत्तम ) मार्ग है )
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| ( व्यापारी वर्ग जिस मार्ग से गया है, वही ठीक रास्ता है )
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| * जब गरीब और धनी आपस में व्यापार करते हैं तो धीरे-धीरे उनके जीवन-स्तर में समानता आयेगी । — आदम स्मिथ , “द वेल्थ आफ नेशन्स” में
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| * तकनीक और व्यापार का नियंत्रण ब्रिटिश साम्राज्य का अधारशिला थी ।
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| * राष्ट्रों का कल्याण जितना मुक्त व्यापार पर निर्भर है उतना ही मैत्री , इमानदारी और बराबरी पर । — कार्डेल हल्ल
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| * व्यापारिक युद्ध , विश्व युद्ध , शीत युद्ध : इस बात की लडाई कि “गैर-बराबरी पर आधारित व्यापार के नियम” कौन बनाये ।
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| * इससे कोई फ़र्क नहीं पडता कि कौन शाशन करता है , क्योंकि सदा व्यापारी ही शाशन चलाते हैं । — थामस फुलर
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| * आज का व्यापार सायकिल चलाने जैसा है - या तो आप चलाते रहिये या गिर जाइये ।
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| * कार्पोरेशन : व्यक्तिगत उत्तर्दायित्व के बिना ही लाभ कमाने की एक चालाकी से भरी युक्ति । — द डेविल्स डिक्शनरी
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| * अपराधी, दस्यु प्रवृति वाला एक ऐसा व्यक्ति है जिसके पास कारपोरेशन शुरू करने के लिये पर्याप्त पूँजी नहीं है ।
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| '''विकास / प्रगति / उन्नति'''
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| * बीज आधारभूत कारण है , पेड उसका प्रगति परिणाम । विचारों की प्रगतिशीलता और उमंग भरी साहसिकता उस बीज के समान हैं । — श्रीराम शर्मा , आचार्य
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| * विकास की कोई सीमा नहीं होती, क्योंकि मनुष्य की मेधा, कल्पनाशीलता और कौतूहूल की भी कोई सीमा नहीं है। — रोनाल्ड रीगन
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| * अगर चाहते सुख समृद्धि, रोको जनसंख्या वृद्धि|
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| * नारी की उन्नति पर ही राष्ट्र की उन्नति निर्धारित है|
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| * भारत को अपने अतीत की जंज़ीरों को तोड़ना होगा। हमारे जीवन पर मरी हुई, घुन लगी लकड़ियों का ढेर पहाड़ की तरह खड़ा है। वह सब कुछ बेजान है जो मर चुका है और अपना काम खत्म कर चुका है, उसको खत्म हो जाना, उसको हमारे जीवन से निकल जाना है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपने आपको हर उस दौलत से काट लें, हर उस चीज़ को भूल जायें जिसने अतीत में हमें रोशनी और शक्ति दी और हमारी ज़िंदगी को जगमगाया। - जवाहरलाल नेहरू
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| * सब से अधिक आनंद इस भावना में है कि हमने मानवता की प्रगति में कुछ योगदान दिया है। भले ही वह कितना कम, यहां तक कि बिल्कुल ही तुच्छ क्यों न हो? - डा. राधाकृष्णन
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| '''राजनीति / शाशन / सरकार'''
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| * सामर्थ्य्मूलं स्वातन्त्र्यं , श्रममूलं च वैभवम् ।
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| न्यायमूलं सुराज्यं स्यात् , संघमूलं महाबलम् ॥
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| ( शक्ति स्वतन्त्रता की जड है , मेहनत धन-दौलत की जड है , न्याय सुराज्य का मूल होता है और संगठन महाशक्ति की जड है । )
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| * निश्चित ही राज्य तीन शक्तियों के अधीन है । शक्तियाँ मंत्र , प्रभाव और उत्साह हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं । मंत्र ( योजना , परामर्श ) से कार्य का ठीक निर्धारण होता है , प्रभाव ( राजोचित शक्ति , तेज ) से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह ( उद्यम ) से कार्य सिद्ध होता है । — दसकुमारचरित
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| * यथार्थ को स्वीकार न करनें में ही व्यावहारिक राजनीति निहित है । — हेनरी एडम
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| * विपत्तियों को खोजने , उसे सर्वत्र प्राप्त करने , ग़लत निदान करने और अनुपयुक्त चिकित्सा करने की कला ही राजनीति है । — सर अर्नेस्ट वेम
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| * मानव स्वभाव का ज्ञान ही राजनीति-शिक्षा का आदि और अन्त है । — हेनरी एडम
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| * राजनीति में किसी भी बात का तब तक विश्वास मत कीजिए जब तक कि उसका खंडन आधिकारिक रूप से न कर दिया गया हो. – ओटो वान बिस्मार्क
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| * सफल क्रांतिकारी , राजनीतिज्ञ होता है ; असफल अपराधी. – एरिक फ्रॉम
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| * दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिये लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिये । — रामायण
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| * प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजा के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिये । आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजा की प्रियता में ही राजा का हित है। — चाणक्य
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| * वही सरकार सबसे अच्छी होती है जो सबसे कम शाशन करती है ।
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| * सरकार चाहे किसी की हो , सदा बनिया ही शाशन करते हैं ।
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| '''लोकतन्त्र / प्रजातन्त्र / जनतन्त्र'''
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| * लोकतन्त्र , जनता की , जनता द्वारा , जनता के लिये सरकार होती है । — अब्राहम लिंकन
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| * लोकतंत्र इस धारणा पर आधारित है कि साधारण लोगों में असाधारण संभावनाएँ होती है । — हेनरी एमर्शन फास्डिक
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| * शान्तिपूर्वक सरकार बदल देने की शक्ति प्रजातंत्र की आवश्यक शर्त है । प्रजातन्त्र और तानाशाही में अन्तर नेताओं के अभाव में नहीं है , बल्कि नेताओं को बिना उनकी हत्या किये बदल देने में है । — लॉर्ड बिवरेज
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| * अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है।
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| * बहुमत का शासन जब ज़ोर-जबरदस्ती का शासन हो जाए तो वह उतना ही असहनीय हो जाता है जितना कि नौकरशाही का शासन। - महात्मा गांधी
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| * जैसी जनता , वैसा राजा ।
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| प्रजातन्त्र का यही तकाजा ॥ — श्रीराम शर्मा , आचार्य
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| * अगर हम लोकतन्त्र की सच्ची भावना का विकास करना चाहते हैं तो हम असहिष्णु नहीं हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा विश्वास नहीं है।
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| * सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है । – स्वामी विवेकानंद
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| * लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है । — जयप्रकाश नारायण
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| '''नियम / क़ानून / विधान / न्याय'''
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| * न हि कश्चिद् आचारः सर्वहितः संप्रवर्तते ।
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| ( कोई भी नियम नहीं हो सकता जो सभी के लिए हितकर हो ) — महाभारत
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| * अपवाद के बिना कोई भी नियम लाभकर नहीं होता । — थामस फुलर
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| * थोडा-बहुत अन्याय किये बिना कोई भी महान कार्य नहीं किया जा सकता । — लुइस दी उलोआ
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| * संविधान इतनी विचित्र ( आश्चर्यजनक ) चीज है कि जो यह् नहीं जानता कि ये ये क्या चीज होती है , वह गदहा है ।
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| * लोकतंत्र - जहाँ धनवान, नियम पर शाशन करते हैं और नियम, निर्धनों पर ।
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| * सभी वास्तविक राज्य भ्रष्ट होते हैं । अच्छे लोगों को चाहिये कि नियमों का पालन बहुत काडाई से न करें । — इमर्शन
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| * न राज्यं न च राजासीत् , न दण्डो न च दाण्डिकः ।
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| स्वयमेव प्रजाः सर्वा , रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥
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| ( न राज्य था और ना राजा था , न दण्ड था और न दण्ड देने वाला ।
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| स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी । )
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| * क़ानून चाहे कितना ही आदरणीय क्यों न हो , वह गोलाई को चौकोर नहीं कह सकता। — फिदेल कास्त्रो
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| '''व्यवस्था'''
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| * व्यवस्था मस्तिष्क की पवित्रता है , शरीर का स्वास्थ्य है , शहर की शान्ति है , देश की सुरक्षा है । जो सम्बन्ध धरन ( बीम ) का घर से है , या हड्डी का शरीर से है , वही सम्बन्ध व्यवस्था का सब चीजों से है । — राबर्ट साउथ
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| * अच्छी व्यवस्था ही सभी महान कार्यों की आधारशिला है । – एडमन्ड बुर्क
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| * सभ्यता सुव्यस्था के जन्मती है , स्वतन्त्रता के साथ बडी होती है और अव्यवस्था के साथ मर जाती है । — विल डुरान्ट
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| * हर चीज के लिये जगह , हर चीज जगह पर । — बेन्जामिन फ्रैंकलिन
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| * सुव्यवस्था स्वर्ग का पहला नियम है । — अलेक्जेन्डर पोप
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| * परिवर्तन के बीच व्यवस्था और व्यवस्था के बीच परिवर्तन को बनाये रखना ही प्रगति की कला है । — अल्फ्रेड ह्वाइटहेड
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| '''विज्ञापन'''
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| * मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो ख़रीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दख़ल देती है। - हरिशंकर परसाई
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| '''समय'''
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| * आयुषः क्षणमेकमपि, न लभ्यः स्वर्णकोटिभिः ।
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| स वृथा नीयती येन, तस्मै नृपशवे नमः ॥
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| * करोडों स्वर्ण मुद्राओं के द्वारा आयु का एक क्षण भी नहीं पाया जा सकता ।
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| * वह ( क्षण ) जिसके द्वारा व्यर्थ नष्ट किया जाता है , ऐसे नर-पशु को नमस्कार ।
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| * समय को व्यर्थ नष्ट मत करो क्योंकि यही वह चीज है जिससे जीवन का निर्माण हुआ है । — बेन्जामिन फ्रैंकलिन
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| * समय और समुद्र की लहरें किसी का इंतज़ार नहीं करतीं | – अज्ञात्
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| * जैसे नदी बह जाती है और लौट कर नहीं आती, उसी तरह रात-दिन मनुष्य की आयु लेकर चले जाते हैं, फिर नहीं आते। - महाभारत
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| * किसी भी काम के लिये आपको कभी भी समय नहीं मिलेगा । यदि आप समय पाना चाहते हैं तो आपको इसे बनाना पडेगा ।
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| * क्षणशः कणशश्चैव विद्याधनं अर्जयेत ।
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| ( क्षण-क्षण का उपयोग करके विद्या का और कण-कण का उपयोग करके धन का अर्जन करना चाहिये )
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| * काल्ह करै सो आज कर, आज करि सो अब ।
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| पल में परलय होयगा, बहुरि करेगा कब ॥ — कबीरदास
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| * समय-लाभ सम लाभ नहिं , समय-चूक सम चूक ।
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| चतुरन चित रहिमन लगी , समय-चूक की हूक ॥
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| * अपने काम पर मै सदा समय से 15 मिनट पहले पहुँचा हूँ और मेरी इसी आदत ने मुझे कामयाब व्यक्ति बना दिया है ।
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| * हमें यह विचार त्याग देना चाहिये कि हमें नियमित रहना चाहिये । यह विचार आपके असाधारण बनने के अवसर को लूट लेता है और आपको मध्यम बनने की ओर ले जाता है ।
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| * दीर्घसूत्री विनश्यति । ( काम को बहुत समय तक खीचने वाले का नाश हो जाता है )
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| * समयनिष्ठ होने पर समस्या यह हो जाती है कि इसका आनंद अकसर आपको अकेले लेना पड़ता है। – एनॉन
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| * ऐसी घडी नहीं बन सकती जो गुजरे हुए घण्टे को फिर से बजा दे । — प्रेमचन्द
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| '''अवसर / मौक़ा / सुतार / सुयोग'''
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| * जो प्रमादी है , वह सुयोग गँवा देगा । — श्रीराम शर्मा , आचार्य
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| * बाज़ार में आपाधापी - मतलब , अवसर ।
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| धरती पर कोई निश्चितता नहीं है , बस अवसर हैं । — डगलस मैकआर्थर
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| * संकट के समय ही नायक बनाये जाते हैं ।
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| * आशावादी को हर खतरे में अवसर दीखता है और निराशावादी को हर अवसर में खतरा । — विन्स्टन चर्चिल
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| * अवसर के रहने की जगह कठिनाइयों के बीच है । — अलबर्ट आइन्स्टाइन
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| * हमारा सामना हरदम बडे-बडे अवसरों से होता रहता है , जो चालाकी पूर्वक असाध्य समस्याओं के वेष में (छिपे) रहते हैं । — ली लोकोक्का
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| * रहिमन चुप ह्वै बैठिये , देखि दिनन को फेर ।
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| जब नीके दिन आइहैं , बनत न लगिहैं देर ॥
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| * न इतराइये , देर लगती है क्या |
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| जमाने को करवट बदलते हुए ||
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| * कभी कोयल की कूक भी नहीं भाती और कभी (वर्षा ऋतु में) मेंढक की टर्र टर्र भी भली प्रतीत होती है | – गोस्वामी तुलसीदास
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| * वसंत ऋतु निश्चय ही रमणीय है। ग्रीष्म ऋतु भी रमणीय है। वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर भी रमणीय है, अर्थात सब समय उत्तम है। - सामवेद
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| * का बरखा जब कृखी सुखाने। समय चूकि पुनि का पछिताने।। — गोस्वामी तुलसीदास
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| * अवसर कौडी जो चुके , बहुरि दिये का लाख ।
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| दुइज न चन्दा देखिये , उदौ कहा भरि पाख ॥ — गोस्वामी तुलसीदास
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| '''इतिहास'''
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| * उचित रूप से ( देंखे तो ) कुछ भी इतिहास नहीं है ; (सब कुछ) मात्र आत्मकथा है । — इमर्सन
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| * इतिहास सदा विजेता द्वारा ही लिखा जता है ।
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| * इतिहास, शक्तिशाली लोगों द्वारा, उनके धन और बल की रक्षा के लिये लिखा जाता है ।
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| * इतिहास , असत्यों पर एकत्र की गयी सहमति है। — नेपोलियन बोनापार्ट
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| * जो इतिहास को याद नहीं रखते , उनको इतिहास को दुहराने का दण्ड मिलता है । — जार्ज सन्तायन
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| * ज्ञानी लोगों का कहना है कि जो भी भविष्य को देखने की इच्छा हो भूत (इतिहास) से सीख ले । — मकियावेली , ” द प्रिन्स ” में
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| * इतिहास स्वयं को दोहराता है , इतिहास के बारे में यही एक बुरी बात है । – सी डैरो
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| * संक्षेप में , मानव इतिहास सुविचारों का इतिहास है । — एच जी वेल्स
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| * सभ्यता की कहानी , सार रूप में , इंजिनीयरिंग की कहानी है - वह लम्बा और विकट संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया । — एस डीकैम्प
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| * इंजिनीयर इतिहास का निर्माता रहा है, और आज भी है । — जेम्स के. फिंक
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| * इतिहास से हम सीखते हैं कि हमने उससे कुछ नहीं सीखा ।
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| '''शक्ति / प्रभुता / सामर्थ्य / बल / वीरता'''
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| * वीरभोग्या वसुन्धरा ।
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| ( पृथ्वी वीरों द्वारा भोगी जाती है )
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| * कोऽतिभारः समर्थानामं , किं दूरं व्यवसायिनाम् ।
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| को विदेशः सविद्यानां , कः परः प्रियवादिनाम् ॥ — पंचतंत्र
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| * जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है ? व्यवस्सयियों के लिये दूर क्या है? विद्वानों के लिये विदेश क्या है? प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया है ?
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| * खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले ।
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| ख़ुदा बंदे से खुद पूछे , बता तेरी रजा क्या है ? — अकबर इलाहाबादी
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| * कौन कहता है कि आसमा में छेद हो सकता नहीं |
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| कोई पत्थर तो तबियत से उछालो यारों ।|
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| * यो विषादं प्रसहते, विक्रमे समुपस्थिते ।
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| तेजसा तस्य हीनस्य, पुरूषार्थो न सिध्यति ॥
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| ( पराक्रम दिखाने का अवसर आने पर जो दुख सह लेता है (लेकिन पराक्रम नहीं दिखाता) उस तेज से हीन का पुरुषार्थ सिद्ध नहीं होता )
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| * नाभिषेको न च संस्कारः, सिंहस्य कृयते मृगैः ।
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| विक्रमार्जित सत्वस्य, स्वयमेव मृगेन्द्रता ॥
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| (जंगल के जानवर सिंह का न अभिषेक करते हैं और न संस्कार । पराक्रम द्वारा अर्जित सत्व को स्वयं ही जानवरों के राजा का पद मिल जाता है )
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| * जो मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार बोझ लेकर चलता है वह किसी भी स्थान पर गिरता नहीं है और न दुर्गम रास्तों में विनष्ट ही होता है। - मृच्छकटिक
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| * अधिकांश लोग अपनी दुर्बलताओं को नहीं जानते, यह सच है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अधिकतर लोग अपनी शक्ति को भी नहीं जानते। — जोनाथन स्विफ्ट
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| * मनुष्य अपनी दुर्बलता से भली-भांति परिचित रहता है , पर उसे अपने बल से भी अवगत होना चाहिये । — जयशंकर प्रसाद
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| * आत्म-वृक्ष के फूल और फल शक्ति को ही समझना चाहिए। - श्रीमद्भागवत 8।19।39
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| * तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की । – गुरु गोविन्द सिंह
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| '''युद्ध / शान्ति'''
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| * सर्वविनाश ही , सह-अस्तित्व का एकमात्र विकल्प है। — पं. जवाहरलाल नेहरू
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| * सूच्याग्रं नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव ।
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| ( हे कृष्ण , बिना युद्ध के सूई के नोक के बराबर भी ( ज़मीन ) नहीं दूँगा । — दुर्योधन , महाभारत में
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| * प्रागेव विग्रहो न विधिः ।
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| पहले ही ( बिना साम, दान , दण्ड का सहारा लिये ही ) युद्ध करना कोई (अच्छा) तरीका नहीं है । — पंचतन्त्र
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| * यदि शांति पाना चाहते हो , तो लोकप्रियता से बचो। — अब्राहम लिंकन
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| * शांति , प्रगति के लिये आवश्यक है। — डा॰ राजेन्द्र प्रसाद
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| * बारह फकीर एक फटे कंबल में आराम से रात काट सकते हैं मगर सारी धरती पर यदि केवल दो ही बादशाह रहें तो भी वे एक क्षण भी आराम से नहीं रह सकते। - शम्स-ए-तबरेज़
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| * शाश्वत शान्ति की प्राप्ति के लिए शान्ति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शान्ति । – स्वामी ज्ञानानन्द
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| '''आत्मविश्वास / निर्भीकता'''
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| * आत्मविश्वास , वीरता का सार है । — एमर्सन
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| * आत्मविश्वास , सफलता का मुख्य रहस्य है । — एमर्शन
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| * आत्मविश्वा बढाने की यह रीति है कि वह का करो जिसको करते हुए डरते हो । — डेल कार्नेगी
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| * हास्यवृति , आत्मविश्वास (आने) से आती है । — रीता माई ब्राउन
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| * मुस्कराओ , क्योकि हर किसी में आत्म्विश्वास की कमी होती है , और किसी दूसरी चीज की अपेक्षा मुस्कान उनको ज़्यादा आश्वस्त करती है । – एन्ड्री मौरोइस
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| * करने का कौशल आपके करने से ही आता है ।
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| '''प्रश्न / शंका / जिज्ञासा / आश्चर्य'''
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| * वैज्ञानिक मस्तिष्क उतना अधिक उपयुक्त उत्तर नहीं देता जितना अधिक उपयुक्त वह प्रश्न पूछता है ।
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| * भाषा की खोज प्रश्न पूछने के लिये की गयी थी । उत्तर तो संकेत और हाव-भाव से भी दिये जा सकते हैं , पर प्रश्न करने के लिये बोलना जरूरी है । जब आदमी ने सबसे पहले प्रश्न पूछा तो मानवता परिपक्व हो गयी । प्रश्न पूछने के आवेग के अभाव से सामाजिक स्थिरता जन्म लेती है । — एरिक हाफर
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| * प्रश्न और प्रश्न पूछने की कला, शायद सबसे शक्तिशाली तकनीक है ।
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| * सही प्रश्न पूछना मेधावी बनने का मार्ग है ।
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| * मूर्खतापूर्ण-प्रश्न , कोई भी नहीं होते औरे कोई भी तभी मूर्ख बनता है जब वह प्रश्न पूछना बन्द कर दे । — स्टीनमेज
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| * जो प्रश्न पूछता है वह पाँच मिनट के लिये मूर्ख बनता है लेकिन जो नहीं पूछता वह जीवन भर मूर्ख बना रहता है ।
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| * सबसे चालाक व्यक्ति जितना उत्तर दे सकता है , सबसे बडा मूर्ख उससे अधिक पूछ सकता है ।
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| * मैं छः ईमानदार सेवक अपने पास रखता हूँ | इन्होंने मुझे वह हर चीज़ सिखाया है जो मैं जानता हूँ | इनके नाम हैं – क्या, क्यों, कब, कैसे, कहाँ और कौन | – रुडयार्ड किपलिंग
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| * यह कैसा समय है? मेरे कौन मित्र हैं? यह कैसा स्थान है। इससे क्या लाभ है और क्या हानि? मैं कैसा हूं। ये बातें बार-बार सोचें (जब कोई काम हाथ में लें)। - नीतसार
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| * शंका नहीं बल्कि आश्चर्य ही सारे ज्ञान का मूल है । — अब्राहम हैकेल
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| '''सूचना / सूचना की शक्ति / सूचना-प्रबन्धन / सूचना प्रौद्योगिकी / सूचना-साक्षरता / सूचना प्रवीण / सूचना की सतंत्रता / सूचना-अर्थव्यवस्था'''
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| * संचार , गणना ( कम्प्यूटिंग ) और सूचना अब नि:शुल्क वस्तुएँ बन गयी हैं ।
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| * ज्ञान, कमी के मूल आर्थिक सिद्धान्त को अस्वीकार करता है । जितना अधिक आप इसका उपभोग करते हैं और दूसरों को बाटते हैं , उतना ही अधिक यह बढता है । इसको आसानी से बहुगुणित किया जा सकता है और बार-बार उपभोग ।
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| * एक ऐसे विद्यालय की कल्पना कीजिए जिसके छात्र तो पढ-लिख सकते हों लेकिन शिक्षक नहीं ; और यह उपमा होगी उस सूचना-युग की, जिसमें हम जी रहे हैं ।
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| * गुप्तचर ही राजा के आँख होते हैं । — हितोपदेश
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| * पर्दे और पाप का घनिष्ट सम्बन्ध होता है ।
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| * सूचना ही लोकतन्त्र की मुद्रा है । — थामस जेफर्सन
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