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*हंडिया एक प्रकार का मिट्टी का गोलाकार (छोटे घड़े जैसा) बर्तन होता है।
*हंडिया एक प्रकार का [[मिट्टी]] का गोलाकार (छोटे घड़े जैसा) बर्तन होता है।
*यह चूल्हे पर दाल, सब्ज़ी, खीर आदि पकाने के काम में आता था। और यह दही चलाकर मट्ठा ([[छाछ]]) बनाने व मक्खन निकालने के काम भी आता था। हड़िया के इस रूप को 'मल्ला' भी कहा जाता था।
*यह चूल्हे पर दाल, सब्ज़ी, खीर आदि पकाने के काम में आता था। और यह दही चलाकर मट्ठा ([[छाछ]]) बनाने व मक्खन निकालने के काम भी आता था। हड़िया के इस रूप को 'मल्ला' भी कहा जाता था।
*यह चाक पर साधारण घड़े के मुक़ाबले बेहतर और अधिक चिकनी मिट्टी  से बनाया जाता है। और इसका पैंदा भी घड़े के मुक़ाबले मोटा होता है।
*यह चाक पर साधारण घड़े के मुक़ाबले बेहतर और अधिक चिकनी मिट्टी  से बनाया जाता है। और इसका पैंदा भी घड़े के मुक़ाबले मोटा होता है।
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*इसको चिकना बनाने के लिए इसकी अधिक घुटाई भी की जाती है।  
*इसको चिकना बनाने के लिए इसकी अधिक घुटाई भी की जाती है।  
*[[कूर्मकार]] ([[कुम्हार]]) इसे साधारण मिट्टी के बर्तनों की अपेक्षा '[[अबा]]' में अधिक देर तक धीमी आग से पकाते थे, जिससे यह अधिक तापमान के उतार चढ़ाव को झेल सके। और दही चलाकर मट्ठा (छाछ) बनाने और मक्खन निकालने की प्रक्रिया में मथानी की चोटों से टूट ना जायें।
*[[कूर्मकार]] ([[कुम्हार]]) इसे साधारण मिट्टी के बर्तनों की अपेक्षा '[[अबा]]' में अधिक देर तक धीमी आग से पकाते थे, जिससे यह अधिक तापमान के उतार चढ़ाव को झेल सके। और दही चलाकर मट्ठा (छाछ) बनाने और मक्खन निकालने की प्रक्रिया में मथानी की चोटों से टूट ना जायें।




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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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09:05, 12 मई 2011 का अवतरण

  • हंडिया एक प्रकार का मिट्टी का गोलाकार (छोटे घड़े जैसा) बर्तन होता है।
  • यह चूल्हे पर दाल, सब्ज़ी, खीर आदि पकाने के काम में आता था। और यह दही चलाकर मट्ठा (छाछ) बनाने व मक्खन निकालने के काम भी आता था। हड़िया के इस रूप को 'मल्ला' भी कहा जाता था।
  • यह चाक पर साधारण घड़े के मुक़ाबले बेहतर और अधिक चिकनी मिट्टी से बनाया जाता है। और इसका पैंदा भी घड़े के मुक़ाबले मोटा होता है।
  • यह साधारण घड़े की तरह अधिक रंध्रयुक्त नहीं होता है।
  • इसको चिकना बनाने के लिए इसकी अधिक घुटाई भी की जाती है।
  • कूर्मकार (कुम्हार) इसे साधारण मिट्टी के बर्तनों की अपेक्षा 'अबा' में अधिक देर तक धीमी आग से पकाते थे, जिससे यह अधिक तापमान के उतार चढ़ाव को झेल सके। और दही चलाकर मट्ठा (छाछ) बनाने और मक्खन निकालने की प्रक्रिया में मथानी की चोटों से टूट ना जायें।



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