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14:40, 25 जून 2011 का अवतरण

कौड़ी एक पानी में पाये जाने वाले जीव का खोल (अस्थिकोश) मात्र है। उपवर्ग प्रोसोब्रैंकिया (वर्ग गैस्ट्रोपोडा) के कई समुद्री घोंघों में से एक है, जो वंश साइप्रिया और कुल साइप्रियाडी बनाते हैं। इनका कूबड़नुमा मोटा खोल, रंगीन (अक्सर चित्तीदार) और चमकदार होता है। इनके सुराख़दार ओंठ, जो खोल के पहले चक्कर में खुलते हैं, अन्दर की तरफ़ मुड़े होते हैं और इनमें महीन दांत हो सकते हैं।

प्राप्ति स्थान

कौड़ियाँ मुख्यत: हिन्द और प्रशान्त महासागर के तटीय जल में मिलती हैं। 10 सेमी. की स्वर्णिम कौड़ी (सी ऑरेंटियम) परम्परागत रूप से प्रशान्त द्वीपों में राजाओं द्वारा पहनी जाती थी और 2.5 सेमी. पीली रंग की प्रजाति की कौड़ी (सी मॉनेटा) अफ़्रीका और अन्य क्षेत्रों में मुद्रा का काम करती थी। कौड़ी का प्रयोग भारत में छोटी मुद्रा के रूप में भी हुआ।

खेल के रूप में

चौपड़ और चौपड़ जैसे मिलते-जुलते खेलों में पासों के स्थान पर कौड़ियों का प्रयोग होता रहा। जिसका कारण था पासों का मँहगा और दुर्लभ होना।

श्रृंगार के रूप में

कौड़ी भारत के लगभग सभी राज्यों में स्त्रियों में श्रृंगार का साधन भी रही जैसे - गले में कौड़ियों की माला आदि। घरों में सजावट के लिए कौड़ी आज भी इस्तेमाल की जाती है।

संख्या के लिए उपयोग

कौड़ी संख्या के लिए भी उपयोग में लाया जाता है। एक कौड़ी में बीस वस्तुऐं मानी जाती है। आमतौर पर बाँस दर्ज़न के बजाय एक कौड़ी के हिसाब से मिलते है।

कहावत
  • दो कौड़ी की हैसियत हो जाना (बरबाद हो जाना)
  • कौड़ियों के भाव (बहुत सस्ता )
  • दूर की कौड़ी लाना (कोई अच्छा सुझाव देना)


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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