"तुमसे मिलकर -दिनेश रघुवंशी": अवतरणों में अंतर

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<poem>तुमसे मिलकर जीने की चाहत जागी
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प्यार तुम्हारा पाकर ख़द से प्यार हुआ
तुमसे मिलकर जीने की चाहत जागी
प्यार तुम्हारा पाकर ख़ुद से प्यार हुआ


     तुम औरों से कब हो,तुमने पल भर में
     तुम औरों से कब हो, तुमने पल भर में
     मन के सन्नाटों का मतलब जान लिया
     मन के सन्नाटों का मतलब जान लिया
     जितना मैं अब तक ख़द से अन्जान रहा
     जितना मैं अब तक ख़ुद से अन्जान रहा
     तुमने वो सब पल भर में पहचान लिया
     तुमने वो सब पल भर में पहचान लिया


मुझपर भी कोई अपना ह्क़ रखता है
मुझ पर भी कोई अपना हक़ रखता है
यह अहसास मुझे भी पहली बार हुआ
यह अहसास मुझे भी पहली बार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर ख़द से प्यार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर ख़ुद से प्यार हुआ


     ऐसा नहीं कि सपन नहीं थे आँखों में
     ऐसा नहीं कि सपने नहीं थे आँखों में
     लेकिन वो जगने से पहले मुरझाए
     लेकिन वो जगने से पहले मुरझाए
     अब तक कितने ही सम्बन्ध जिए मैंने
     अब तक कितने ही सम्बन्ध जिए मैंने
     लकिन वो सब मन को सींच नहीं पाये
     लेकिन वो सब मन को सींच नहीं पाये


भाग्य जगा है मेरी हर प्यास
भाग्य जगा है मेरी हर प्यास का
तप्ति के हाथों ही खुद सतकार हुआ
तृप्ति के हाथों ही खुद सत्कार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर ख़द से प्यार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर ख़ुद से प्यार हुआ


     दिल कहता है तुम पर आकर ठहर गई
     दिल कहता है तुम पर आकर ठहर गई
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जिस दिल पर अधिकार कभी मैं रखता था
जिस दिल पर अधिकार कभी मैं रखता था
उस दिल हाथों ही अब लाचार हुआ
उस दिल के हाथों ही अब लाचार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर खुद से प्यार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर खुद से प्यार हुआ



12:41, 19 अगस्त 2011 का अवतरण

तुमसे मिलकर -दिनेश रघुवंशी
दिनेश रघुवंशी
दिनेश रघुवंशी
कवि दिनेश रघुवंशी
जन्म 26 अगस्त, 1964
जन्म स्थान ग्राम ख़ैरपुर, बुलन्दशहर ज़िला, (उत्तर प्रदेश)
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

तुमसे मिलकर जीने की चाहत जागी
प्यार तुम्हारा पाकर ख़ुद से प्यार हुआ

    तुम औरों से कब हो, तुमने पल भर में
    मन के सन्नाटों का मतलब जान लिया
    जितना मैं अब तक ख़ुद से अन्जान रहा
    तुमने वो सब पल भर में पहचान लिया

मुझ पर भी कोई अपना हक़ रखता है
यह अहसास मुझे भी पहली बार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर ख़ुद से प्यार हुआ

    ऐसा नहीं कि सपने नहीं थे आँखों में
    लेकिन वो जगने से पहले मुरझाए
    अब तक कितने ही सम्बन्ध जिए मैंने
    लेकिन वो सब मन को सींच नहीं पाये

भाग्य जगा है मेरी हर प्यास का
तृप्ति के हाथों ही खुद सत्कार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर ख़ुद से प्यार हुआ

    दिल कहता है तुम पर आकर ठहर गई
    मेरी हर मजबूरी, मेरी हर भटकन
    दिल के तारों को झंकार मिली तुमसे
    गीत तुम्हारे गाती है दिल की धड़कन

जिस दिल पर अधिकार कभी मैं रखता था
उस दिल के हाथों ही अब लाचार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर खुद से प्यार हुआ

    बहकी हुई हवाओं ने मेरे पथ पर
    दूर-दूर तक चंदन-गंध बिखेरी है
    भाग्य देव ने स्वयं उतरकर धरती पर
    मेरे हाथ में रेखा नई उकेरी है

मेरी हर इक रात महकती है अब तो
मेरा हर दिन जैसे इक त्यौहार हुआ
प्यार तुम्हारा पाकर खुद से प्यार हुआ


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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