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'''कीर्तिस्तम्भ''' [[राजस्थान]] के [[चित्तौड़गढ़]] में स्थित है। | |||
*महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूद शाह खिलजी को सन् 1440 ई. (वि. सं. 1497) में प्रथम बार परास्त कर उसकी यादगार में इष्टदेव विष्णु के निमित्त यह कीर्तिस्तम्भ बनवाया था। | |||
*इसकी प्रतिष्ठा सन् 1448 ई. (वि.सं. 1505) में हुई। | |||
*यह स्तम्भ [[वास्तुकला]] की दृष्टि से अपने आप मंजिल पर झरोखा होने से इसके भीतरी भाग में भी प्रकाश रहता है। | |||
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*प्रत्येक मूर्ति के ऊपर या नीचे उनका नाम भी खुदा हुआ है। इस प्रकार प्राचीन मूर्तियों के विभिन्न भंगिमाओं का विश्लेषण के लिए यह भवन एक अपूर्व साधन है। | |||
*कुछ चित्रों में देश की भौगोलिक विचित्रताओं को भी उत्कीर्ण किया गया है। | |||
*कीर्तिस्तम्भ के ऊपरी मंजिल से दुर्ग एवं निकटवर्ती क्षेत्रों का विहंगम दृश्य दिखता है। | |||
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07:14, 14 नवम्बर 2011 का अवतरण
कीर्तिस्तम्भ राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है।
- महाराणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूद शाह खिलजी को सन् 1440 ई. (वि. सं. 1497) में प्रथम बार परास्त कर उसकी यादगार में इष्टदेव विष्णु के निमित्त यह कीर्तिस्तम्भ बनवाया था।
- इसकी प्रतिष्ठा सन् 1448 ई. (वि.सं. 1505) में हुई।
- यह स्तम्भ वास्तुकला की दृष्टि से अपने आप मंजिल पर झरोखा होने से इसके भीतरी भाग में भी प्रकाश रहता है।
- इसमें विष्णु के विभिन्न रुपों जैसे जनार्दन, अनन्त आदि, उनके अवतारों तथा ब्रह्मा, शिव, भिन्न-भिन्न देवी-देवताओं, अर्धनारीश्वर (आधा शरीर पार्वती तथा आधा शिव का), उमामहेश्वर, लक्ष्मीनारायण, ब्रह्मासावित्री, हरिहर (आधा शरीर विष्णु और आधा शिव का), हरिहर पितामह (ब्रम्हा, विष्णु तथा महेश तीनों एक ही मूर्ति में), ॠतु, आयुध (शस्र), दिक्पाल तथा रामायण तथा महाभारत के पात्रों की सैकड़ों मूर्तियाँ खुदी हैं।
- प्रत्येक मूर्ति के ऊपर या नीचे उनका नाम भी खुदा हुआ है। इस प्रकार प्राचीन मूर्तियों के विभिन्न भंगिमाओं का विश्लेषण के लिए यह भवन एक अपूर्व साधन है।
- कुछ चित्रों में देश की भौगोलिक विचित्रताओं को भी उत्कीर्ण किया गया है।
- कीर्तिस्तम्भ के ऊपरी मंजिल से दुर्ग एवं निकटवर्ती क्षेत्रों का विहंगम दृश्य दिखता है।
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