"क्या आकाश उतर आया है -माखन लाल चतुर्वेदी": अवतरणों में अंतर

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क्या आकाश उतर आया है
क्या आकाश उतर आया है,
दूबों के दरबार में
दूबों के दरबार में,
नीली भूमि हरि हो आई
नीली भूमि हरि हो आई,
इस किरणों के ज्वार में।
इस किरणों के ज्वार में।


क्या देखें तरुओं को, उनके
क्या देखें तरुओं को, उनके
फूल लाल अंगारे हैं
फूल लाल अंगारे हैं,
वन के विजन भिखारी ने
वन के विजन भिखारी ने,
वसुधा में हाथ पसारे हैं।
वसुधा में हाथ पसारे हैं।


नक्शा उतर गया है बेलों
नक्शा उतर गया है, बेलों
की अलमस्त जवानी का
की अलमस्त जवानी का
युद्ध ठना, मोती की लड़ियों
युद्ध ठना, मोती की लड़ियों
से दूबों के पानी का।
से दूबों के पानी का।


तुम न नृत्य कर उठो मयूरी
तुम न नृत्य कर उठो मयूरी,
दूबों की हरियाली पर
दूबों की हरियाली पर,
हंस तरस खायें उस-
हंस तरस खायें, उस -
मुक्ता बोने वाले माली पर।
मुक्ता बोने वाले माली पर।


ऊँचाई यों फिसल पड़ी है
ऊँचाई यों फिसल पड़ी है,
नीचाई के प्यार में,
नीचाई के प्यार में,
क्या आकाश उतर आया है
क्या आकाश उतर आया है,
दूबों के दरबार में?
दूबों के दरबार में?



07:42, 24 दिसम्बर 2011 का अवतरण

क्या आकाश उतर आया है -माखन लाल चतुर्वेदी
माखन लाल चतुर्वेदी
माखन लाल चतुर्वेदी
कवि माखन लाल चतुर्वेदी
जन्म 4 अप्रैल, 1889 ई.
जन्म स्थान बावई, मध्य प्रदेश
मृत्यु 30 जनवरी, 1968 ई.
मुख्य रचनाएँ कृष्णार्जुन युद्ध, हिमकिरीटिनी, साहित्य देवता, हिमतरंगिनी, माता, युगचरण, समर्पण, वेणु लो गूँजे धरा, अमीर इरादे, गरीब इरादे
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
माखन लाल चतुर्वेदी की रचनाएँ

क्या आकाश उतर आया है,
दूबों के दरबार में,
नीली भूमि हरि हो आई,
इस किरणों के ज्वार में।

क्या देखें तरुओं को, उनके
फूल लाल अंगारे हैं,
वन के विजन भिखारी ने,
वसुधा में हाथ पसारे हैं।

नक्शा उतर गया है, बेलों
की अलमस्त जवानी का
युद्ध ठना, मोती की लड़ियों
से दूबों के पानी का।

तुम न नृत्य कर उठो मयूरी,
दूबों की हरियाली पर,
हंस तरस खायें, उस -
मुक्ता बोने वाले माली पर।

ऊँचाई यों फिसल पड़ी है,
नीचाई के प्यार में,
क्या आकाश उतर आया है,
दूबों के दरबार में?

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