"कलकत्ता की काल कोठरी": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
[[चित्र:Black-Hole-Of-Calcutta.jpg|thumb|250px|कलकत्ता की काल कोठरी<br />Black Hole Of Calcutta]] | [[चित्र:Black-Hole-Of-Calcutta.jpg|thumb|250px|कलकत्ता की काल कोठरी<br />Black Hole Of Calcutta]] | ||
20 जून 1756 ई. को [[ | '''कलकत्ता की काल कोठरी''' में घटी घटना [[भारतीय इतिहास]] की प्रमुख घटनाओं में से एक है। [[20 जून]], 1756 ई. को [[बंगाल]] के नवाब [[सिराजुद्दौला]] ने नगर पर क़ब्ज़ा कर लिया। [[कलकत्ता]] स्थित अधिकांश [[अंग्रेज़]] पराजित होने पर जहाज़ों द्वारा नदी के मार्ग से भाग चुके थे और जो थोड़े से भागने में असफल रहे, वे बन्दी बना लिये गये। उन्हें क़िले के भीतर ही एक कोठरी में रखा गया था, जो 'कालकोठरी' नाम से विख्यात है और जिसके विषय में नवाब सिराजुद्दौला पूर्णतया अनभिज्ञ था। इस कोठरी को 'ब्लेक हॉल' के नाम से भी जाना जाता है। | ||
==घटना और उसकी संदिग्धता== | ==कोठरी की घटना== | ||
सिराजुद्दौला द्वारा नगर पर क़ब्ज़ा करने और [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] की प्रतिरक्षक सेना द्वारा परिषद के एक सदस्य 'जॉन जेड हॉलवेल' के नेतृत्व में समर्पण करने के बाद घटी घटना में नवाब ने शेष बचे यूरोपीय प्रतिरक्षकों को एक कोठरी में बंद कर दिया था, जिसमें अनेक बंदियों की मृत्यु हो गई थी, यह घटना [[भारत]] में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के आदर्शीकरण का एक सनसनीखेज मुक़दमा और विवाद का विषय बनी। नवाब ने [[कलकत्ता]] पर इसलिए आक्रमण किया, क्योंकि कंपनी ने सात वर्षीय युद्ध 1756-1763 ई. की आशंका में अपने प्रतिद्वंद्वों से सुरक्षा हेतु नगर की क़िलेबंदी का काम नवाब के कहने के बावजूद नहीं रोका। | |||
====घटना और उसकी संदिग्धता==== | |||
ऐसा माना जाता है कि, बंगाल के नवाब ने 146 [[अंग्रेज़]] बंदियों, जिनमें स्त्रियाँ और बच्चे भी सम्मिलित थे, को एक 18 फुट लंबे, 14 फुट 10 इंच चौड़े कमरे में बन्द कर दिया था। 20 जून, 1756 ई. की रात को बंद करने के बाद, जब 23 जून को प्रातः कोठरी को खोला गया तो, उसमें 23 लोग ही जीवित पाये गये। जीवित रहने वालों में 'हालवैल' भी थे, जिन्हें ही इस घटना का रचयिता माना जाता है। इस घटना की विश्वसनीयता को इतिहासकारों ने संदिग्ध माना है, और [[इतिहास]] में इस घटना का महत्व केवल इतना ही है, कि अंग्रेज़ों ने इस घटना को आगे के आक्रामक युद्ध का कारण बनाये रखा। | ऐसा माना जाता है कि, बंगाल के नवाब ने 146 [[अंग्रेज़]] बंदियों, जिनमें स्त्रियाँ और बच्चे भी सम्मिलित थे, को एक 18 फुट लंबे, 14 फुट 10 इंच चौड़े कमरे में बन्द कर दिया था। 20 जून, 1756 ई. की रात को बंद करने के बाद, जब 23 जून को प्रातः कोठरी को खोला गया तो, उसमें 23 लोग ही जीवित पाये गये। जीवित रहने वालों में 'हालवैल' भी थे, जिन्हें ही इस घटना का रचयिता माना जाता है। इस घटना की विश्वसनीयता को इतिहासकारों ने संदिग्ध माना है, और [[इतिहास]] में इस घटना का महत्व केवल इतना ही है, कि अंग्रेज़ों ने इस घटना को आगे के आक्रामक युद्ध का कारण बनाये रखा। | ||
==युद्ध की घोंषणा== | ==युद्ध की घोंषणा== | ||
पंक्ति 9: | पंक्ति 11: | ||
==विश्लेषण== | ==विश्लेषण== | ||
1915 ई. में जे.एच. लिटल ने हॉलवेल की गवाही और वर्णन को अविश्वसनीय बताते हुए स्पष्ट किया कि, इस घटना में नवाब की भूमिका सिर्फ़ लापरहवी बरतने भर की थी। इस प्रकार इन विवरणों ने संदेह को जन्म दिया। 1959 ई. में अपने एक अध्ययन में बृजेन गुप्ता ने उल्लेख किया है कि, यह घटना घटी अवश्य, लेकिन काल कोठरी में बंदियों की संख्या लगभग 64 थी, जिनमें से 21 जीवित बचे थे। | 1915 ई. में जे.एच. लिटल ने हॉलवेल की गवाही और वर्णन को अविश्वसनीय बताते हुए स्पष्ट किया कि, इस घटना में नवाब की भूमिका सिर्फ़ लापरहवी बरतने भर की थी। इस प्रकार इन विवरणों ने संदेह को जन्म दिया। 1959 ई. में अपने एक अध्ययन में बृजेन गुप्ता ने उल्लेख किया है कि, यह घटना घटी अवश्य, लेकिन काल कोठरी में बंदियों की संख्या लगभग 64 थी, जिनमें से 21 जीवित बचे थे। | ||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | ||
|आधार= | |||
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 | |||
|माध्यमिक= | |||
|पूर्णता= | |||
|शोध= | |||
}} | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{पश्चिम बंगाल के ऐतिहासिक स्थान}} | {{पश्चिम बंगाल के ऐतिहासिक स्थान}} |
08:07, 1 जून 2012 के समय का अवतरण
कलकत्ता की काल कोठरी में घटी घटना भारतीय इतिहास की प्रमुख घटनाओं में से एक है। 20 जून, 1756 ई. को बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने नगर पर क़ब्ज़ा कर लिया। कलकत्ता स्थित अधिकांश अंग्रेज़ पराजित होने पर जहाज़ों द्वारा नदी के मार्ग से भाग चुके थे और जो थोड़े से भागने में असफल रहे, वे बन्दी बना लिये गये। उन्हें क़िले के भीतर ही एक कोठरी में रखा गया था, जो 'कालकोठरी' नाम से विख्यात है और जिसके विषय में नवाब सिराजुद्दौला पूर्णतया अनभिज्ञ था। इस कोठरी को 'ब्लेक हॉल' के नाम से भी जाना जाता है।
कोठरी की घटना
सिराजुद्दौला द्वारा नगर पर क़ब्ज़ा करने और ईस्ट इंडिया कंपनी की प्रतिरक्षक सेना द्वारा परिषद के एक सदस्य 'जॉन जेड हॉलवेल' के नेतृत्व में समर्पण करने के बाद घटी घटना में नवाब ने शेष बचे यूरोपीय प्रतिरक्षकों को एक कोठरी में बंद कर दिया था, जिसमें अनेक बंदियों की मृत्यु हो गई थी, यह घटना भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के आदर्शीकरण का एक सनसनीखेज मुक़दमा और विवाद का विषय बनी। नवाब ने कलकत्ता पर इसलिए आक्रमण किया, क्योंकि कंपनी ने सात वर्षीय युद्ध 1756-1763 ई. की आशंका में अपने प्रतिद्वंद्वों से सुरक्षा हेतु नगर की क़िलेबंदी का काम नवाब के कहने के बावजूद नहीं रोका।
घटना और उसकी संदिग्धता
ऐसा माना जाता है कि, बंगाल के नवाब ने 146 अंग्रेज़ बंदियों, जिनमें स्त्रियाँ और बच्चे भी सम्मिलित थे, को एक 18 फुट लंबे, 14 फुट 10 इंच चौड़े कमरे में बन्द कर दिया था। 20 जून, 1756 ई. की रात को बंद करने के बाद, जब 23 जून को प्रातः कोठरी को खोला गया तो, उसमें 23 लोग ही जीवित पाये गये। जीवित रहने वालों में 'हालवैल' भी थे, जिन्हें ही इस घटना का रचयिता माना जाता है। इस घटना की विश्वसनीयता को इतिहासकारों ने संदिग्ध माना है, और इतिहास में इस घटना का महत्व केवल इतना ही है, कि अंग्रेज़ों ने इस घटना को आगे के आक्रामक युद्ध का कारण बनाये रखा।
युद्ध की घोंषणा
इस प्रकार से कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) का पतन प्लासी युद्ध की पूर्व पीठिका माना जाता है। अंग्रेज़ अधिकारियों ने मद्रास से अपनी उस सेना को रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में कलकत्ता भेजा, जिसका गठन फ़्राँसीसियों से मुकाबलें के लिए किया गया था। इस सैन्य अभियान में 'एडमिरल वाट्सन', क्लाइव का सहायक था। अंग्रज़ों द्वारा 2 जनवरी, 1757 ई. को कलकत्ता पर अधिकार करने के बाद उन्होंने नवाब के ख़िलाफ़ युद्ध की घोषण कर दी। परिणास्वरूप नवाब को क्लाइव के साथ 9 जनवरी, 1757 ई. को अलीनगर की सन्धि (नवाब द्वारा कलकत्ता को दिया गया नाम) करनी पड़ी। सन्धि के अनुसार नवाब ने अंग्रेज़ों को वह अधिकार पुनः प्रदान किया, जो उन्हें सम्राट फ़र्रुख़सियर के फ़रमान द्वारा मिला हुआ था, और इसके साथ ही तीन लाख रुपये क्षतिपूर्ति के रूप में दिया।
क्लाइव की कूटनीति
अब रॉबर्ट क्लाइव ने कूटनीति के सहारे नवाब के उन अधिकारियों को अपनी ओर मिलाना चाहा, जो नवाब से असंतुष्ठ थे। अपनी इस योजना के अन्तर्गत क्लाइव ने सेनापति मीर ज़ाफ़र, साहूकार जगत सेठ, मानिक चन्द्र, कलकत्ता का व्यापारी राय दुलर्भ तथा अमीन चन्द्र से एक षडयंत्र कर सिराजुद्दौला को हटाने का प्रयत्न किया। इसी बीच मार्च, 1757 ई. में अंग्रज़ों ने फ़्राँसीसियों से चन्द्रनगर के जीत लिया। अंग्रेज़ों के इन समस्त कृत्यों से नवाब का क्रोध सीमा से बाहर हो गया, जिसकी अन्तिम परिणति 'प्लासी के युद्ध' के रूप में हुई।
विश्लेषण
1915 ई. में जे.एच. लिटल ने हॉलवेल की गवाही और वर्णन को अविश्वसनीय बताते हुए स्पष्ट किया कि, इस घटना में नवाब की भूमिका सिर्फ़ लापरहवी बरतने भर की थी। इस प्रकार इन विवरणों ने संदेह को जन्म दिया। 1959 ई. में अपने एक अध्ययन में बृजेन गुप्ता ने उल्लेख किया है कि, यह घटना घटी अवश्य, लेकिन काल कोठरी में बंदियों की संख्या लगभग 64 थी, जिनमें से 21 जीवित बचे थे।
|
|
|
|
|
संबंधित लेख