"वी. के. कृष्ण मेनन": अवतरणों में अंतर
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'''वेङ्ङालिल कृष्णन कृष्ण मेनन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vengalil Krishnan Krishna Menon'', जन्म: 3 मई 1896 – मृत्यु: 6 अक्टूबर 1974) एक भारतीय राष्ट्रवादी, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ और [[भारत]] के पूर्व रक्षा मंत्री थे। | '''वेङ्ङालिल कृष्णन कृष्ण मेनन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vengalil Krishnan Krishna Menon'', जन्म: 3 मई 1896 – मृत्यु: 6 अक्टूबर 1974) एक भारतीय राष्ट्रवादी, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ और [[भारत]] के पूर्व रक्षा मंत्री थे। | ||
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वी. के. कृष्ण मेनन का जन्म [[3 मई]], [[1896]] ई. को [[कालीकट]], [[मद्रास]] (अब [[चेन्नई]]) के एक सम्पन्न नायर [[परिवार]] में हुआ था। उन्होंने मद्रास से स्नातक और | वी. के. कृष्ण मेनन का जन्म [[3 मई]], [[1896]] ई. को [[कालीकट]], [[मद्रास]] (अब [[चेन्नई]]) के एक सम्पन्न नायर [[परिवार]] में हुआ था। उन्होंने मद्रास से स्नातक और क़ानून की परिक्षाएं उत्तीर्ण कीं। 1924 में वे [[लंदन]] चले गये और वहाँ एम. ए., एम. एस-सी. बैरिस्टर तथा अध्यापन का डिप्लोमा प्राप्त किया। उसके बाद 1947 तक वे [[इंग्लैंड]] में ही रहे। [[एनी बेसेंट]] के विचारों का उन पर प्रभाव था और [[जवाहरलाल नेहरू]] से उनकी मैत्री थी। इंग्लैंड में रहकर वे भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में विचार करते रहे। वे ब्रिटेन की लेबर पार्टी के पक्षधर थे और लंदन में 'इण्डिया लीग' बनाई थी। यह संस्था एक प्रकार से वहाँ भारतीय काँग्रेस की प्रतिनिधि के रूप में कम थी। | ||
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द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जब भारत स्वतंत्र हो गया तो 1947 में मेनन वापस आए। उन्होंने [[प्रधानमंत्री]] नेहरू जी के विशेष दूत के रूप में यूरोपीय देशों का भ्रमण किया। संयुक्त राष्ट्र संघ की सामान्य सभा में भारत के प्रतिनिधि रहे। 1947 से 1952 तक मेनन लंदन में भारत के हाई कमिश्नर थे। उन्होंने अनेक बार संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व किया। 1957 और 1962 में वे [[लोकसभा]] के सदस्य चुने गए। 1957 में उन्हें देश का रक्षामंत्री बनाया गया। परंतु उनका यह कार्यकाल बहुत ही विवादित रहा। उन्होंने देश की रक्षा तैयारियों की यहाँ तह उपेक्षा की कि एक बार तीनों सेनाध्यक्षों ने त्याग पत्र तक दे दिया था। मेनन के समय में विदेशी खतरों से बेखबर रहकर आयुध कारखानों में घरेलू उपयोग के कुकर तक बनने लगे थे। जब 1962 में [[चीन]] का आक्रमण हुआ तब सेना की तैयारियों की उपेक्षा का परिणाम सामने आया। साधनहीन [[भारतीय सेना]] को पीछे हटना पड़ा। चारों ओर से वी. के. कृष्ण मेनन की कटु आलोचना होने लगी। उनके मित्र नेहरूजी भी उन्हें नहीं बचा सके। मेनन को रक्षा मंत्री का पद छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा। | द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जब भारत स्वतंत्र हो गया तो 1947 में मेनन वापस आए। उन्होंने [[प्रधानमंत्री]] नेहरू जी के विशेष दूत के रूप में यूरोपीय देशों का भ्रमण किया। संयुक्त राष्ट्र संघ की सामान्य सभा में भारत के प्रतिनिधि रहे। 1947 से 1952 तक मेनन लंदन में भारत के हाई कमिश्नर थे। उन्होंने अनेक बार संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व किया। 1957 और 1962 में वे [[लोकसभा]] के सदस्य चुने गए। 1957 में उन्हें देश का रक्षामंत्री बनाया गया। परंतु उनका यह कार्यकाल बहुत ही विवादित रहा। उन्होंने देश की रक्षा तैयारियों की यहाँ तह उपेक्षा की कि एक बार तीनों सेनाध्यक्षों ने त्याग पत्र तक दे दिया था। मेनन के समय में विदेशी खतरों से बेखबर रहकर आयुध कारखानों में घरेलू उपयोग के कुकर तक बनने लगे थे। जब 1962 में [[चीन]] का आक्रमण हुआ तब सेना की तैयारियों की उपेक्षा का परिणाम सामने आया। साधनहीन [[भारतीय सेना]] को पीछे हटना पड़ा। चारों ओर से वी. के. कृष्ण मेनन की कटु आलोचना होने लगी। उनके मित्र नेहरूजी भी उन्हें नहीं बचा सके। मेनन को रक्षा मंत्री का पद छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा। |
14:11, 30 जुलाई 2013 का अवतरण
वी. के. कृष्ण मेनन
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पूरा नाम | वेङ्ङालिल कृष्णन कृष्ण मेनन |
जन्म | 3 मई, 1896 |
जन्म भूमि | कालीकट, मद्रास |
मृत्यु | 6 अक्टूबर, 1974 |
मृत्यु स्थान | दिल्ली |
पति/पत्नी | अविवाहित |
नागरिकता | भारतीय |
पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
पद | रक्षा मंत्री |
कार्य काल | 17 अप्रॅल 1957 – 31 अक्टूबर 1962 |
शिक्षा | एम.एस.सी. (वकालत) |
विद्यालय | लंदन विश्वविद्यालय |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म विभूषण |
अन्य जानकारी | वी. के. कृष्ण मेनन के कार्यकाल में ही भारत-चीन युद्ध (1962) हुआ, जिसमें भारत को हार मिली थी। |
वेङ्ङालिल कृष्णन कृष्ण मेनन (अंग्रेज़ी: Vengalil Krishnan Krishna Menon, जन्म: 3 मई 1896 – मृत्यु: 6 अक्टूबर 1974) एक भारतीय राष्ट्रवादी, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ और भारत के पूर्व रक्षा मंत्री थे।
जीवन परिचय
वी. के. कृष्ण मेनन का जन्म 3 मई, 1896 ई. को कालीकट, मद्रास (अब चेन्नई) के एक सम्पन्न नायर परिवार में हुआ था। उन्होंने मद्रास से स्नातक और क़ानून की परिक्षाएं उत्तीर्ण कीं। 1924 में वे लंदन चले गये और वहाँ एम. ए., एम. एस-सी. बैरिस्टर तथा अध्यापन का डिप्लोमा प्राप्त किया। उसके बाद 1947 तक वे इंग्लैंड में ही रहे। एनी बेसेंट के विचारों का उन पर प्रभाव था और जवाहरलाल नेहरू से उनकी मैत्री थी। इंग्लैंड में रहकर वे भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में विचार करते रहे। वे ब्रिटेन की लेबर पार्टी के पक्षधर थे और लंदन में 'इण्डिया लीग' बनाई थी। यह संस्था एक प्रकार से वहाँ भारतीय काँग्रेस की प्रतिनिधि के रूप में कम थी।
कार्यक्षेत्र
द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जब भारत स्वतंत्र हो गया तो 1947 में मेनन वापस आए। उन्होंने प्रधानमंत्री नेहरू जी के विशेष दूत के रूप में यूरोपीय देशों का भ्रमण किया। संयुक्त राष्ट्र संघ की सामान्य सभा में भारत के प्रतिनिधि रहे। 1947 से 1952 तक मेनन लंदन में भारत के हाई कमिश्नर थे। उन्होंने अनेक बार संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व किया। 1957 और 1962 में वे लोकसभा के सदस्य चुने गए। 1957 में उन्हें देश का रक्षामंत्री बनाया गया। परंतु उनका यह कार्यकाल बहुत ही विवादित रहा। उन्होंने देश की रक्षा तैयारियों की यहाँ तह उपेक्षा की कि एक बार तीनों सेनाध्यक्षों ने त्याग पत्र तक दे दिया था। मेनन के समय में विदेशी खतरों से बेखबर रहकर आयुध कारखानों में घरेलू उपयोग के कुकर तक बनने लगे थे। जब 1962 में चीन का आक्रमण हुआ तब सेना की तैयारियों की उपेक्षा का परिणाम सामने आया। साधनहीन भारतीय सेना को पीछे हटना पड़ा। चारों ओर से वी. के. कृष्ण मेनन की कटु आलोचना होने लगी। उनके मित्र नेहरूजी भी उन्हें नहीं बचा सके। मेनन को रक्षा मंत्री का पद छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा।
सम्मान और पुरस्कार
वी. के. कृष्ण मेनन 1954 में भारत के दूसरे सर्वश्रेष्ठ नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित होने वाले पहले व्यक्ति थे।
निधन
वी. के. कृष्ण मेनन का 6 अक्टूबर 1974 को दिल्ली में निधन हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख