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'''कंधार''' प्राचीन | '''कंधार''' प्राचीन नगर 'गंधार' का ही रूपातंरण है। यह [[अफ़ग़ानिस्तान]] का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। सामरिक दृष्टि से कंधार काफ़ी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि [[भारत]] से अफ़ग़ानिस्तान जाने वाली रेलवे लाइन यहीं पर समाप्त होती है। यह नगर महत्त्वपूर्ण मंडी भी है। पूर्व से पश्चिम को स्थलमार्ग से होने वाला अधिकांश व्यापार यहीं से होता है। कंधार में सोतों के पानी से सिंचाई की अनोखी व्यवस्था है। जगह-जगह कुएँ खोदकर उनको सुरंग से मिला दिया गया है। | ||
==स्थिति== | |||
कंधार [[काबुल]] से लगभग 280 मील दक्षिण-पश्चिम और 3,462 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह नगर टरनाक एवं अर्ग़्दाब नदियों के उपजाऊ [[मैदान]] के मध्य में स्थित है, जहाँ नहरों द्वारा सिंचाई होती है; परंतु इसके उत्तर का भाग उजाड़ है। समीप के नए ढंग से सिंचित मैदानों में [[फल]], [[गेहूँ]], [[जौ]], [[दाल|दालें]], मजीठ, हींग, [[तंबाकू]] आदि लगाई जाती हैं। कंधार से नए चमन तक रेलमार्ग है और वहाँ तक [[पाकिस्तान]] की रेल जाती है। प्राचीन कंधार नगर तीन मील में बसा है, जिसके चारों तरफ 24 फुट चौड़ी, 10 फुट गहरी खाई एवं 27 फुट ऊँची दीवार है। इस शहर के छह दरवाजे हैं, जिनमें से दो पूरब, दो पश्चिम, एक उत्तर तथा एक दक्षिण में है। मुख्य सड़कें 40 फुट से अधिक चौड़ी हैं। कंधार चार स्पष्ट भागों में विभक्त है, जिनमें अलग-अलग जाति (कबीले) के लोग रहते हैं। इनमें चार- 'दुर्रानी', 'घिलज़ाई', 'पार्सिवन' और 'काकार' प्रसिद्ध हैं।<ref>{{cite web |url= http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0|title= कंधार|accessmonthday=25 जून|accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=केरल पर्यटन|language= हिन्दी}}</ref> | |||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
कंधार का इतिहास उथल-पुथल से भरा हुआ है। पाँचवीं शताब्दी ई. पू. में यह [[फ़ारस]] के साम्राज्य का भाग था। लगभग 326 ई. पू. में मकदूनिया के राजा [[सिकन्दर]] ने [[भारत]] पर आक्रमण करते समय इसे जीता और उसके मरने पर यह उसके सेनापति [[सेल्यूकस]] के अधिकार में आया। कुछ वर्ष के बाद सेल्यूकस ने इसे [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] को सौंप दिया। यह [[अशोक]] के साम्राज्य का एक भाग था। उसका एक [[शिलालेख]] हाल में इस नगर के निकट से मिला है। [[मौर्य वंश]] के पतन पर यह बैक्ट्रिया, पार्थिया, [[कुषाण]] तथा [[शक]] राजाओं के अंतर्गत रहा। दशवी शताब्दी में यह अफ़ग़ानों के क़ब्ज़े में आ गया और मुस्लिम राज्य बन गया। ग्यारहवीं शताब्दी में [[महमूद ग़ज़नवी|सुल्तान महमूद]], तेरहवीं शताब्दी में [[चंगेज़ ख़ाँ]] तथा चौदहवीं शताब्दी में तैमूर ने इस पर अधिकार कर लिया। | कंधार का इतिहास उथल-पुथल से भरा हुआ है। पाँचवीं [[शताब्दी]] ई. पू. में यह [[फ़ारस]] के साम्राज्य का भाग था। लगभग 326 ई. पू. में मकदूनिया के राजा [[सिकन्दर]] ने [[भारत]] पर आक्रमण करते समय इसे जीता और उसके मरने पर यह उसके सेनापति [[सेल्यूकस]] के अधिकार में आया। कुछ वर्ष के बाद सेल्यूकस ने इसे [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] को सौंप दिया। यह [[अशोक]] के साम्राज्य का एक भाग था। उसका एक [[शिलालेख]] हाल में इस नगर के निकट से मिला है। [[मौर्य वंश]] के पतन पर यह [[बैक्ट्रिया]], [[पार्थिया]], [[कुषाण]] तथा [[शक]] राजाओं के अंतर्गत रहा। दशवी शताब्दी में यह [[अफ़ग़ान|अफ़ग़ानों]] के क़ब्ज़े में आ गया और [[मुस्लिम]] राज्य बन गया। ग्यारहवीं शताब्दी में [[महमूद ग़ज़नवी|सुल्तान महमूद]], तेरहवीं शताब्दी में [[चंगेज़ ख़ाँ]] तथा चौदहवीं शताब्दी में [[तैमूर]] ने इस पर अधिकार कर लिया। | ||
====मुग़लों का अधिकार==== | |||
1507 ई. में | 1507 ई. में कंधार को [[मुग़ल वंश]] के संस्थापक [[बाबर]] ने जीत लिया और 1625 ई. तक यह [[दिल्ली]] के [[मुग़ल]] बादशाह के क़ब्ज़े में रहा। 1625 ई. में [[फ़ारस]] के शाह अब्बास ने इस पर दख़ल कर लिया। [[शाहजहाँ]] और [[औरंगज़ेब]] द्वारा इस पर दुबारा अधिकार करने के सारे प्रयास विफल हुए। कंधार थोड़े समय (1708-37 ई.) को छोड़कर 1747 ई. में [[नादिरशाह]] की मृत्यु के समय तक फ़ारस के क़ब्ज़े में रहा। 1747 ई. में [[अहमदशाह अब्दाली]] ने अफ़ग़ानिस्तान के साथ इस पर भी अधिकार कर लिया, किन्तु उसके पौत्र जमानशाह की मृत्यु के बाद कुछ समय के लिए कंधार [[काबुल]] से अलग हो गया। | ||
====ब्रिटिश अधिकार==== | |||
1839 ई. में ब्रिटिश भारतीय सरकार ने [[शाहशुजा]] की ओर से युद्ध करते हुए इस पर दख़ल किया और 1842 ई. तक अपने क़ब्ज़े में रखा। ब्रिटिश सेना ने [[1879]] ई. में इस पर फिर से दख़ल कर लिया, किन्तु [[1881]] ई. में ख़ाली कर देना पड़ा। तब से यह अफ़ग़ानिस्तान का एक भाग है। | |||
==वर्षा की स्थिति== | |||
यहाँ [[वर्षा]] केवल जाड़े में बहुत कम मात्रा में होती है। गर्मी अधिक पड़ती है। यह स्थान फलों के लिए प्रसिद्ध है। [[अफ़ग़ानिस्तान]] का यह एक प्रधान व्यापारिक केंद्र है। यहाँ से [[भारत]] को [[फल]] निर्यात होते हैं। यहाँ के धनी व्यापारी [[हिन्दू]] हैं। नगर में लगभग 200 मस्जिदें हैं। दर्शनीय स्थलों में 'अहमदशाह का मक़बरा' और एक मस्जिद, जिसमें [[मुहम्मद साहब]] का कुर्ता रखा है, प्रमुख हैं। | |||
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12:40, 25 जून 2014 का अवतरण

कंधार प्राचीन नगर 'गंधार' का ही रूपातंरण है। यह अफ़ग़ानिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। सामरिक दृष्टि से कंधार काफ़ी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारत से अफ़ग़ानिस्तान जाने वाली रेलवे लाइन यहीं पर समाप्त होती है। यह नगर महत्त्वपूर्ण मंडी भी है। पूर्व से पश्चिम को स्थलमार्ग से होने वाला अधिकांश व्यापार यहीं से होता है। कंधार में सोतों के पानी से सिंचाई की अनोखी व्यवस्था है। जगह-जगह कुएँ खोदकर उनको सुरंग से मिला दिया गया है।
स्थिति
कंधार काबुल से लगभग 280 मील दक्षिण-पश्चिम और 3,462 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह नगर टरनाक एवं अर्ग़्दाब नदियों के उपजाऊ मैदान के मध्य में स्थित है, जहाँ नहरों द्वारा सिंचाई होती है; परंतु इसके उत्तर का भाग उजाड़ है। समीप के नए ढंग से सिंचित मैदानों में फल, गेहूँ, जौ, दालें, मजीठ, हींग, तंबाकू आदि लगाई जाती हैं। कंधार से नए चमन तक रेलमार्ग है और वहाँ तक पाकिस्तान की रेल जाती है। प्राचीन कंधार नगर तीन मील में बसा है, जिसके चारों तरफ 24 फुट चौड़ी, 10 फुट गहरी खाई एवं 27 फुट ऊँची दीवार है। इस शहर के छह दरवाजे हैं, जिनमें से दो पूरब, दो पश्चिम, एक उत्तर तथा एक दक्षिण में है। मुख्य सड़कें 40 फुट से अधिक चौड़ी हैं। कंधार चार स्पष्ट भागों में विभक्त है, जिनमें अलग-अलग जाति (कबीले) के लोग रहते हैं। इनमें चार- 'दुर्रानी', 'घिलज़ाई', 'पार्सिवन' और 'काकार' प्रसिद्ध हैं।[1]
इतिहास
कंधार का इतिहास उथल-पुथल से भरा हुआ है। पाँचवीं शताब्दी ई. पू. में यह फ़ारस के साम्राज्य का भाग था। लगभग 326 ई. पू. में मकदूनिया के राजा सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण करते समय इसे जीता और उसके मरने पर यह उसके सेनापति सेल्यूकस के अधिकार में आया। कुछ वर्ष के बाद सेल्यूकस ने इसे चन्द्रगुप्त मौर्य को सौंप दिया। यह अशोक के साम्राज्य का एक भाग था। उसका एक शिलालेख हाल में इस नगर के निकट से मिला है। मौर्य वंश के पतन पर यह बैक्ट्रिया, पार्थिया, कुषाण तथा शक राजाओं के अंतर्गत रहा। दशवी शताब्दी में यह अफ़ग़ानों के क़ब्ज़े में आ गया और मुस्लिम राज्य बन गया। ग्यारहवीं शताब्दी में सुल्तान महमूद, तेरहवीं शताब्दी में चंगेज़ ख़ाँ तथा चौदहवीं शताब्दी में तैमूर ने इस पर अधिकार कर लिया।
मुग़लों का अधिकार
1507 ई. में कंधार को मुग़ल वंश के संस्थापक बाबर ने जीत लिया और 1625 ई. तक यह दिल्ली के मुग़ल बादशाह के क़ब्ज़े में रहा। 1625 ई. में फ़ारस के शाह अब्बास ने इस पर दख़ल कर लिया। शाहजहाँ और औरंगज़ेब द्वारा इस पर दुबारा अधिकार करने के सारे प्रयास विफल हुए। कंधार थोड़े समय (1708-37 ई.) को छोड़कर 1747 ई. में नादिरशाह की मृत्यु के समय तक फ़ारस के क़ब्ज़े में रहा। 1747 ई. में अहमदशाह अब्दाली ने अफ़ग़ानिस्तान के साथ इस पर भी अधिकार कर लिया, किन्तु उसके पौत्र जमानशाह की मृत्यु के बाद कुछ समय के लिए कंधार काबुल से अलग हो गया।
ब्रिटिश अधिकार
1839 ई. में ब्रिटिश भारतीय सरकार ने शाहशुजा की ओर से युद्ध करते हुए इस पर दख़ल किया और 1842 ई. तक अपने क़ब्ज़े में रखा। ब्रिटिश सेना ने 1879 ई. में इस पर फिर से दख़ल कर लिया, किन्तु 1881 ई. में ख़ाली कर देना पड़ा। तब से यह अफ़ग़ानिस्तान का एक भाग है।
वर्षा की स्थिति
यहाँ वर्षा केवल जाड़े में बहुत कम मात्रा में होती है। गर्मी अधिक पड़ती है। यह स्थान फलों के लिए प्रसिद्ध है। अफ़ग़ानिस्तान का यह एक प्रधान व्यापारिक केंद्र है। यहाँ से भारत को फल निर्यात होते हैं। यहाँ के धनी व्यापारी हिन्दू हैं। नगर में लगभग 200 मस्जिदें हैं। दर्शनीय स्थलों में 'अहमदशाह का मक़बरा' और एक मस्जिद, जिसमें मुहम्मद साहब का कुर्ता रखा है, प्रमुख हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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