"बिम्ब विधान": अवतरणों में अंतर
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अर्थात् काव्यात्मक बिम्ब एक संवेदनात्मक चित्र है जो एक सीमा तक अलंकृत-रूपतामक भावात्मक और आवेगात्मक होता है। लीविस ने बिम्ब को भावगर्भित चित्र ही माना है। डॉ. नगेन्द्र के अनुसार, “बिम्ब किसी अमूर्त विचार अथवा भावना की पुनर्निर्मिति। एज़रा पाउण्ड के अनुसार, “बिम्ब वह है जो किसी बौद्धिक तथा भावात्मक संश्लेष को समय के किसी एक बिन्दु पर संभव करता है।” | अर्थात् काव्यात्मक बिम्ब एक संवेदनात्मक चित्र है जो एक सीमा तक अलंकृत-रूपतामक भावात्मक और आवेगात्मक होता है। लीविस ने बिम्ब को भावगर्भित चित्र ही माना है। डॉ. नगेन्द्र के अनुसार, “बिम्ब किसी अमूर्त विचार अथवा भावना की पुनर्निर्मिति। एज़रा पाउण्ड के अनुसार, “बिम्ब वह है जो किसी बौद्धिक तथा भावात्मक संश्लेष को समय के किसी एक बिन्दु पर संभव करता है।” | ||
[[हिन्दी]] की नयी कविता-धारा के कवि पश्चिम के काव्य और काव्यान्दोलनों से परिचित थे। ‘तार सप्तक’ में प्रभाकर माचवे ने अपनी कविता को ‘इम्प्रेशनिस्ट’ अथवा बिम्बवादी घोषित किया। फिर भी तीसरी सप्तक के कवि [[केदारनाथ सिंह]] से पहले बिम्ब-विधान को किसी ने अपने वक्तव्य में प्रमुखता नहीं दी थी। केदारनाथ सिंह ने घोषित किया कि “कविता में मैं सबसे अधिक ध्यान देता हूँ बिम्ब-विधान पर।” <br /> | [[हिन्दी]] की नयी कविता-धारा के कवि पश्चिम के काव्य और काव्यान्दोलनों से परिचित थे। ‘तार सप्तक’ में प्रभाकर माचवे ने अपनी कविता को ‘इम्प्रेशनिस्ट’ अथवा बिम्बवादी घोषित किया। फिर भी तीसरी सप्तक के कवि [[केदारनाथ सिंह]] से पहले बिम्ब-विधान को किसी ने अपने वक्तव्य में प्रमुखता नहीं दी थी। केदारनाथ सिंह ने घोषित किया कि “कविता में मैं सबसे अधिक ध्यान देता हूँ बिम्ब-विधान पर।” <br /> | ||
एक आधुनिक कवि की श्रेष्ठता की परीक्षा की कसौटी जहाँ [[सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय'|अज्ञेय]] ‘शब्दों का आविष्कार’ को मानते हैं, वहीं केदारनाथ सिंह ‘बिम्बों की आविष्कृति’ को। अपनी पुस्तक ‘आधुनिक हिन्दी में बिम्ब विधान का विकास’ में उन्होंने बिम्ब के प्रतिमान पर छायावाद से लेकर प्रयोगवाद तक के साहित्य की परीक्षा की है। शमशेर की कृतियों में बिम्ब अधिक सजीव और ऐन्द्रिय हैं। उनके समकालीन रचनाकार [[हरिवंश राय बच्चन|बच्चन]], [[अज्ञेय, सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन|अज्ञेय]], अंचल, [[रामधारी सिंह दिनकर|दिनकर]], [[नरेन्द्र शर्मा]] की कृतियाँ अपनी बिम्बात्मक गुणात्मकता के कारण ही मूल्यवान हैं। | एक आधुनिक कवि की श्रेष्ठता की परीक्षा की कसौटी जहाँ [[सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय'|अज्ञेय]] ‘शब्दों का आविष्कार’ को मानते हैं, वहीं केदारनाथ सिंह ‘बिम्बों की आविष्कृति’ को। अपनी पुस्तक ‘आधुनिक हिन्दी में बिम्ब विधान का विकास’ में उन्होंने बिम्ब के प्रतिमान पर छायावाद से लेकर प्रयोगवाद तक के साहित्य की परीक्षा की है। शमशेर की कृतियों में बिम्ब अधिक सजीव और ऐन्द्रिय हैं। उनके समकालीन रचनाकार [[हरिवंश राय बच्चन|बच्चन]], [[अज्ञेय, सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन|अज्ञेय]], अंचल, [[रामधारी सिंह दिनकर|दिनकर]], [[नरेन्द्र शर्मा]] की कृतियाँ अपनी बिम्बात्मक गुणात्मकता के कारण ही मूल्यवान हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.sahityakunj.net/LEKHAK/M/ManviMaurya/shamsherbahadursingh_bimb_vidhan_1.htm |title=शमशेर बहादुर सिंह की काव्य भाषा में बिम्ब विधान |accessmonthday=30 जनवरी |accessyear=2015 |last=मौर्य |first=डॉ. मानवी (कुशवाहा) |authorlink= |format= |publisher=साहित्यकुञ्ज |language=हिन्दी }}</ref> | ||
11:37, 30 जनवरी 2015 के समय का अवतरण
बिम्ब विधान हिन्दी साहित्य में कविता की एक शैली है। स्वान्त्र्योत्तर हिन्दी कविता में जैसे विषय बदले, वस्तु बदली और कवि की जीवन-दृष्टि बदली वैसे ही शिल्प के क्षेत्र में रूप-विधान के नये आयाम भी विकसित हुए। कविता की समीक्षा के मानदण्डों में एक बारगी युगान्तर आया और नये ढंग पर कविता की इमारत खड़ी की गई। कवि की अनुभूतियाँ नये अप्रस्तुतों और प्रतीकों को खोजते-खोजते बिम्ब के नये धरातलों को उद्घाटित करने में समर्थ हुई। कविता की जीवन्तता में प्राणशक्ति के रूप में बिम्ब ने अपना स्थान और महत्व पाया।
बिम्बवादी आन्दोलन
प्रतीक और अप्रस्तुत तो प्रारम्भ से ही कविता की समीक्षा के प्रतिमानों के रूप में स्वीकृत थे, अब बिम्ब भी कविता के मूल्यांकन की कसौटी के रूप में स्वीकारा जाने लगा। यों तो बिम्बों के निर्माण और चयन की प्रक्रिया संस्कृत साहित्य में ही प्रचलित थी, किन्तु तत्कालीन कवियों और समीक्षकों ने, बल्कि आजादी से पहले तक हिन्दी के समीक्षकों ने भी बिम्ब को काव्य का प्राणतत्व नहीं माना था। आजादी के बाद कई नये संदर्भ, कई नये शैल्पिक प्रतिमान सामने आये। इसका कारण पाश्चात्य साहित्य का प्रभाव तो था ही, विदेशों में चल रहा बिम्बवादी आन्दोलन भी था। छायावादियों ने भी अप्रत्यक्षतः शिल्प के अंग के रूप में ‘चित्रत्व’ को स्वीकार कर लिया था। सुमित्रानन्दन पन्त ने जब काव्य-भाषा के विवेचन के दौरान चित्रभाषा के प्रयोग की बात कही थी तो प्रकारानतर से बिम्ब को ही काव्य-शिल्प के अंग और आलोचना के प्रतिमान के रूप में स्वीकार किया था। आचार्य शुक्ल भी बिम्ब को स्वीकृति दे चुके थे। उन्होंने ‘चिन्तामणि’ के एक निबन्ध में लिखा था, “काव्य का काम है कल्पना में बिम्ब या मूर्तभावना उपस्थित करना”: स्पष्ट शब्दों में काव्य कल्पना-चित्र नहीं है, वरन् अनुभूतियों का मूर्तिकरण है। बिम्ब काव्य-भाषा की तीसरी आँख है, जो मात्र गोचर ही नहीं, किसी अगोचर तत्चेतसा स्मरति नूनमबोधपूर्व (कालिदास-पहले से जो अवबोधन हो उसकी स्मृति)-रूप से, एक ओर कवियित्री और दूसरी ओर भावयित्री भाषा के लिए उपलब्ध करती है। बिम्ब शब्द का अर्थ छाया, प्रतिच्छाया, अनुकृति या शब्दों के द्वारा भावांकन है। बिम्ब अंग्रेज़ी के इमेज शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। सी.डी. लेविस के अनुसार-
“The poetic image is more or less a sensuous picture in words, to some degree metaphorical, with an undernote and some human emotion, in its context but also charged with releasing into the reader a special poetic emotion or passion.”
अर्थात् काव्यात्मक बिम्ब एक संवेदनात्मक चित्र है जो एक सीमा तक अलंकृत-रूपतामक भावात्मक और आवेगात्मक होता है। लीविस ने बिम्ब को भावगर्भित चित्र ही माना है। डॉ. नगेन्द्र के अनुसार, “बिम्ब किसी अमूर्त विचार अथवा भावना की पुनर्निर्मिति। एज़रा पाउण्ड के अनुसार, “बिम्ब वह है जो किसी बौद्धिक तथा भावात्मक संश्लेष को समय के किसी एक बिन्दु पर संभव करता है।”
हिन्दी की नयी कविता-धारा के कवि पश्चिम के काव्य और काव्यान्दोलनों से परिचित थे। ‘तार सप्तक’ में प्रभाकर माचवे ने अपनी कविता को ‘इम्प्रेशनिस्ट’ अथवा बिम्बवादी घोषित किया। फिर भी तीसरी सप्तक के कवि केदारनाथ सिंह से पहले बिम्ब-विधान को किसी ने अपने वक्तव्य में प्रमुखता नहीं दी थी। केदारनाथ सिंह ने घोषित किया कि “कविता में मैं सबसे अधिक ध्यान देता हूँ बिम्ब-विधान पर।”
एक आधुनिक कवि की श्रेष्ठता की परीक्षा की कसौटी जहाँ अज्ञेय ‘शब्दों का आविष्कार’ को मानते हैं, वहीं केदारनाथ सिंह ‘बिम्बों की आविष्कृति’ को। अपनी पुस्तक ‘आधुनिक हिन्दी में बिम्ब विधान का विकास’ में उन्होंने बिम्ब के प्रतिमान पर छायावाद से लेकर प्रयोगवाद तक के साहित्य की परीक्षा की है। शमशेर की कृतियों में बिम्ब अधिक सजीव और ऐन्द्रिय हैं। उनके समकालीन रचनाकार बच्चन, अज्ञेय, अंचल, दिनकर, नरेन्द्र शर्मा की कृतियाँ अपनी बिम्बात्मक गुणात्मकता के कारण ही मूल्यवान हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मौर्य, डॉ. मानवी (कुशवाहा)। शमशेर बहादुर सिंह की काव्य भाषा में बिम्ब विधान (हिन्दी) साहित्यकुञ्ज। अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
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