"रिपोर्ताज": अवतरणों में अंतर
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रिपोर्ताज फ़्राँसीसी | '''रिपोर्ताज''' फ़्राँसीसी भाषा का शब्द है और [[अंग्रेज़ी]] शब्द 'रिपोर्ट' से इसका गहरा सम्बन्ध है। रिपोर्ट किसी घटना के यथातथ्य साध्य वर्णन को कहते हैं। रिपोर्ट सामान्यत: [[समाचार पत्र]] के लिए लिखी जाती है और उसमें साहित्यिकता नहीं होती। रिपोर्ट के कलात्मक और साहित्यिक रूप को ही 'रिपोर्ताज' कहते हैं। वस्तुगत तथ्य को [[रेखाचित्र]] की शैली में प्रभावोत्पादक ढंग से अंकित करने में ही रिपोर्ताज की सफलता है। | ||
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जीवन की सूचनाओं की कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए रिपोर्ताज का जन्म हुआ। रिपोर्ताज [[पत्रकारिता]] के क्षेत्र की विधा है। इस शब्द का उद्भव फ़्राँसीसी भाषा से माना जाता है। इस विधा को गद्य विधाओं में सबसे नया कह सकते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय [[यूरोप]] के रचनाकारों ने युद्ध के मोर्चे से साहित्यिक रिपोर्ट तैयार की। इन रिपोर्टों को ही बाद में रिपोर्ताज कहा गया। वस्तुतः यथार्थ घटनाओं को संवेदनशील साहित्यिक शैली में प्रस्तुत कर देने को ही रिपोर्ताज कहा जाता है।<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश, भाग-1|लेखक=धीरेंद्र वर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= |संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=560|url=}}</ref> | |||
==घटना प्रधान== | ==घटना प्रधान== | ||
आँखों-देखी और कानों-सुनी घटनाओं पर रिपोर्ताज लिखा जा सकता है, कल्पना के आधार पर नहीं। लेकिन तथ्यों के वर्णन मात्र से रिपोर्ताज नहीं बना करता, रिपोर्ट भले ही बन सके। घटना-प्रधान होने के साथ ही रिपोर्ताज को कथातत्त्व से भी युक्त होना चाहिए। रिपोर्ताज लेखक को पत्रकार तथा कलाकार की दोहरी ज़िम्मेदारी निभानी पड़ती है। साथ ही उसके लिए आवश्यक होता है कि वह जनसाधारण के जीवन की सच्ची और सही जानकारी रखे और उत्सवों, मेलों, बाढ़ों, अकालों, युद्धों और महामारियों जैसे सुख-दु:ख के क्षणों में जनता को निकट से देखे। तभी वह अख़बारी रिपोर्टर और साहित्यिक रचनाकार की हैसियत से जन-जीवन का प्रभावोत्पादक ब्योरा लिख सकेगा। | आँखों-देखी और कानों-सुनी घटनाओं पर रिपोर्ताज लिखा जा सकता है, कल्पना के आधार पर नहीं। लेकिन तथ्यों के वर्णन मात्र से रिपोर्ताज नहीं बना करता, रिपोर्ट भले ही बन सके। घटना-प्रधान होने के साथ ही रिपोर्ताज को कथातत्त्व से भी युक्त होना चाहिए। रिपोर्ताज लेखक को पत्रकार तथा कलाकार की दोहरी ज़िम्मेदारी निभानी पड़ती है। साथ ही उसके लिए आवश्यक होता है कि वह जनसाधारण के जीवन की सच्ची और सही जानकारी रखे और उत्सवों, मेलों, बाढ़ों, अकालों, युद्धों और महामारियों जैसे सुख-दु:ख के क्षणों में जनता को निकट से देखे। तभी वह अख़बारी रिपोर्टर और साहित्यिक रचनाकार की हैसियत से जन-जीवन का प्रभावोत्पादक ब्योरा लिख सकेगा। | ||
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द्वितीय महायुद्ध में यह साहित्यिक गद्य रूप पाश्चात्य साहित्य और विशेषत: रूसी साहित्य में बहुत लोकप्रिय और विकसित हुआ। एलिया एरनबर्ग को रिपोर्ताज लेखक के रूप में बड़ी ख्याति मिली। [[हिन्दी]] में रिपोर्ताज साहित्य मूलत: विदेशी साहित्य के प्रभाव से आया, पर हिन्दी में रिपोर्ताज की शैली मँज नहीं सकी है। [[बंगाल]] के अकाल और जन-आन्दोलन आदि विषयों को लेकर कुछ रिपोर्ताज लिखे अवश्य गये, पर हिन्दी में रिपोर्ताज को एक सुनिश्चित [[साहित्य]] रूप की प्रतिष्ठा अभी नहीं मिल सकी है। सर्वश्री प्रकाशचन्द्र गुप्त, [[रांगेय राघव]], [[प्रभाकर माचवे]], [[अमृतराय]], [[रेणु फणीश्वरनाथ|रेणु]] आदि ने हिन्दी में रिपोर्ताज लिखे | द्वितीय महायुद्ध में यह साहित्यिक गद्य रूप पाश्चात्य साहित्य और विशेषत: रूसी साहित्य में बहुत लोकप्रिय और विकसित हुआ। एलिया एरनबर्ग को रिपोर्ताज लेखक के रूप में बड़ी ख्याति मिली। [[हिन्दी]] में रिपोर्ताज साहित्य मूलत: विदेशी साहित्य के प्रभाव से आया, पर हिन्दी में रिपोर्ताज की [[शैली]] मँज नहीं सकी है। [[बंगाल]] के [[अकाल]] और जन-आन्दोलन आदि विषयों को लेकर कुछ रिपोर्ताज लिखे अवश्य गये, पर हिन्दी में रिपोर्ताज को एक सुनिश्चित [[साहित्य]] रूप की प्रतिष्ठा अभी नहीं मिल सकी है। सर्वश्री प्रकाशचन्द्र गुप्त, [[रांगेय राघव]], [[प्रभाकर माचवे]], [[अमृतराय]], [[रेणु फणीश्वरनाथ|रेणु]] आदि ने हिन्दी में रिपोर्ताज लिखे हैं।<ref name="aa"/> | ||
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12:37, 30 जनवरी 2015 का अवतरण
रिपोर्ताज फ़्राँसीसी भाषा का शब्द है और अंग्रेज़ी शब्द 'रिपोर्ट' से इसका गहरा सम्बन्ध है। रिपोर्ट किसी घटना के यथातथ्य साध्य वर्णन को कहते हैं। रिपोर्ट सामान्यत: समाचार पत्र के लिए लिखी जाती है और उसमें साहित्यिकता नहीं होती। रिपोर्ट के कलात्मक और साहित्यिक रूप को ही 'रिपोर्ताज' कहते हैं। वस्तुगत तथ्य को रेखाचित्र की शैली में प्रभावोत्पादक ढंग से अंकित करने में ही रिपोर्ताज की सफलता है।
अर्थ एवं उद्देश्य
जीवन की सूचनाओं की कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए रिपोर्ताज का जन्म हुआ। रिपोर्ताज पत्रकारिता के क्षेत्र की विधा है। इस शब्द का उद्भव फ़्राँसीसी भाषा से माना जाता है। इस विधा को गद्य विधाओं में सबसे नया कह सकते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय यूरोप के रचनाकारों ने युद्ध के मोर्चे से साहित्यिक रिपोर्ट तैयार की। इन रिपोर्टों को ही बाद में रिपोर्ताज कहा गया। वस्तुतः यथार्थ घटनाओं को संवेदनशील साहित्यिक शैली में प्रस्तुत कर देने को ही रिपोर्ताज कहा जाता है।[1]
घटना प्रधान
आँखों-देखी और कानों-सुनी घटनाओं पर रिपोर्ताज लिखा जा सकता है, कल्पना के आधार पर नहीं। लेकिन तथ्यों के वर्णन मात्र से रिपोर्ताज नहीं बना करता, रिपोर्ट भले ही बन सके। घटना-प्रधान होने के साथ ही रिपोर्ताज को कथातत्त्व से भी युक्त होना चाहिए। रिपोर्ताज लेखक को पत्रकार तथा कलाकार की दोहरी ज़िम्मेदारी निभानी पड़ती है। साथ ही उसके लिए आवश्यक होता है कि वह जनसाधारण के जीवन की सच्ची और सही जानकारी रखे और उत्सवों, मेलों, बाढ़ों, अकालों, युद्धों और महामारियों जैसे सुख-दु:ख के क्षणों में जनता को निकट से देखे। तभी वह अख़बारी रिपोर्टर और साहित्यिक रचनाकार की हैसियत से जन-जीवन का प्रभावोत्पादक ब्योरा लिख सकेगा।
विकास क्रम
द्वितीय महायुद्ध में यह साहित्यिक गद्य रूप पाश्चात्य साहित्य और विशेषत: रूसी साहित्य में बहुत लोकप्रिय और विकसित हुआ। एलिया एरनबर्ग को रिपोर्ताज लेखक के रूप में बड़ी ख्याति मिली। हिन्दी में रिपोर्ताज साहित्य मूलत: विदेशी साहित्य के प्रभाव से आया, पर हिन्दी में रिपोर्ताज की शैली मँज नहीं सकी है। बंगाल के अकाल और जन-आन्दोलन आदि विषयों को लेकर कुछ रिपोर्ताज लिखे अवश्य गये, पर हिन्दी में रिपोर्ताज को एक सुनिश्चित साहित्य रूप की प्रतिष्ठा अभी नहीं मिल सकी है। सर्वश्री प्रकाशचन्द्र गुप्त, रांगेय राघव, प्रभाकर माचवे, अमृतराय, रेणु आदि ने हिन्दी में रिपोर्ताज लिखे हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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