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विश्व रंगमंच दिवस की स्थापना [[1961]] में | विश्व रंगमंच दिवस की स्थापना [[1961]] में इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट (''International Theatre Institute'') द्वारा की गई थी। [[रंगमंच]] से संबंधित अनेक संस्थाओं और समूहों द्वारा भी इस दिन को विशेष दिवस के रूप में आयोजित किया जाता है। इस दिवस का एक महत्त्वपूर्ण आयोजन अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संदेश है, जो विश्व के किसी जाने माने रंगकर्मी द्वारा रंगमंच तथा शांति की संस्कृति विषय पर उसके विचारों को व्यक्त करता है। [[1962]] में पहला अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संदेश फ्रांस की जीन काक्टे ने दिया था। वर्ष [[2002]] में यह संदेश [[भारत]] के प्रसिद्ध रंगकर्मी [[गिरीश कर्नाड]] द्वारा दिया गया था। | ||
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जीवन के रंगमंच पर रंगमंच की मूल विधाओं का सीधा नाता है ,वे आईने की रूप में समाज की अभिवायाकतियो को व्यक्त करती है, सभ्यता के विकास से रंगमंच की मूल विधाओ में परिवर्तन स्वभाविक है। किन्तु लोकरंग व लोकजीवन की वास्तविकता से दूर इन दिनों आधुनिक माध्यमों यथा [[टेलीविज़न]], [[सिनेमा]] और वेबमंच ने सांस्कृतिक गिरावट व व्यसायिकता को मूल मंत्र बना लिया है जिससे मूल विधाएँ और उनके प्रस्तुतिकारों को वह प्रतिसाद नहीं मिल पाया है जिसके वो हक़दार हैं। मानवता की सेवा में रंगमंच की असीम क्षमता समाज का सच्चा प्रतिबिम्बन है। रंगमंच शान्ति और सामंजस्य की स्थापना में एक ताकतवर औज़ार है। लोगों की आत्म-छवि की पुर्नरचना अनुभव प्रस्तुत करता है, सामूहिक विचारों की प्रसरण में, समाज की शान्ति और सामंजस्य का माध्यम है, यह स्वतः स्फूर्त मानवीय, कम खर्चीला और अधिक सशक्त विकल्प है व समाज का वह आईना है जिसमें सच कहने का साहस है। वह मनोरंजन के साथ शिक्षा भी देता है। [[भारत]] में [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]] के [[नाटक|नाटकों]] व मंडली से देश प्रेम तथा नवजागरण की चेतना ने तत्कालीन समाज में उद्भूत की, जो आज भी अविरल है। 'अन्धेर नगरी' जैसा नाटक कई बार मंचित होने के बाद भी उतना ही उत्साह देता है। [[कालिदास]] रचित [[अभिज्ञान शाकुंतलम्]], [[मोहन राकेश]] का [[आषाढ़ का एक दिन -मोहन राकेश|आषाढ़ का एक दिन]], मोलियर का माइजर, [[धर्मवीर भारती]] का 'अंधायुग', [[विजय तेंदुलकर]] का 'घासीराम कोतवाल' श्रेष्ठ नाटकों की श्रेणी में हैं। भारत में नाटकों की शुरूआत नील दर्पण, चाकर दर्पण, गायकवाड और गजानंद एण्ड द प्रिंस नाटकों के साथ इस विधा ने रंग पकड़ा।<ref>{{cite web |url=http://hamarbilaspur.blogspot.in/2011/03/blog-post_27.html |title=विश्व रंगमंच दिवस - हार्दिक शुभकामनाये! |accessmonthday=23 मार्च |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=हमर बिलासपुर (ब्लॉग) |language=हिन्दी }}</ref> | |||
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*[http://www.world-theatre-day.org/en/index.html आधिकारिक वेबसाइट] | *[http://www.world-theatre-day.org/en/index.html आधिकारिक वेबसाइट] | ||
*[http://www.abhivyakti-hindi.org/natak/rangmanch/2012/vandana_shukla.htm नाटक - क्रमिक विकास, प्रयोग और प्रयोजन] | |||
*[http://iptanama.blogspot.in/2015/03/2015.html विश्व रंगमंच दिवस संदेश – 2015 : क्रिस्तोव वार्लिकोव्सकी ] | |||
*[https://shirishmourya.wordpress.com/2010/03/26/%E0%A4%A5%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%87%E0%A4%9F%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5-%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9A/ थियेटर करना – विश्व रंगमंच दिवस पर] | |||
*[http://www.srijangatha.com/Halchal3-29Mar_2k10#.VQ-yGo4XW9c देश-विदेश में रंगमंच दिवस] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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विश्व रंगमंच दिवस (अंग्रेज़ी: World Theatre Day) प्रत्येक वर्ष 27 मार्च को मनाया जाता है।
स्थापना
विश्व रंगमंच दिवस की स्थापना 1961 में इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट (International Theatre Institute) द्वारा की गई थी। रंगमंच से संबंधित अनेक संस्थाओं और समूहों द्वारा भी इस दिन को विशेष दिवस के रूप में आयोजित किया जाता है। इस दिवस का एक महत्त्वपूर्ण आयोजन अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संदेश है, जो विश्व के किसी जाने माने रंगकर्मी द्वारा रंगमंच तथा शांति की संस्कृति विषय पर उसके विचारों को व्यक्त करता है। 1962 में पहला अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संदेश फ्रांस की जीन काक्टे ने दिया था। वर्ष 2002 में यह संदेश भारत के प्रसिद्ध रंगकर्मी गिरीश कर्नाड द्वारा दिया गया था।
विश्व रंगमंच दिवस संदेश
जीवन के रंगमंच पर रंगमंच की मूल विधाओं का सीधा नाता है ,वे आईने की रूप में समाज की अभिवायाकतियो को व्यक्त करती है, सभ्यता के विकास से रंगमंच की मूल विधाओ में परिवर्तन स्वभाविक है। किन्तु लोकरंग व लोकजीवन की वास्तविकता से दूर इन दिनों आधुनिक माध्यमों यथा टेलीविज़न, सिनेमा और वेबमंच ने सांस्कृतिक गिरावट व व्यसायिकता को मूल मंत्र बना लिया है जिससे मूल विधाएँ और उनके प्रस्तुतिकारों को वह प्रतिसाद नहीं मिल पाया है जिसके वो हक़दार हैं। मानवता की सेवा में रंगमंच की असीम क्षमता समाज का सच्चा प्रतिबिम्बन है। रंगमंच शान्ति और सामंजस्य की स्थापना में एक ताकतवर औज़ार है। लोगों की आत्म-छवि की पुर्नरचना अनुभव प्रस्तुत करता है, सामूहिक विचारों की प्रसरण में, समाज की शान्ति और सामंजस्य का माध्यम है, यह स्वतः स्फूर्त मानवीय, कम खर्चीला और अधिक सशक्त विकल्प है व समाज का वह आईना है जिसमें सच कहने का साहस है। वह मनोरंजन के साथ शिक्षा भी देता है। भारत में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाटकों व मंडली से देश प्रेम तथा नवजागरण की चेतना ने तत्कालीन समाज में उद्भूत की, जो आज भी अविरल है। 'अन्धेर नगरी' जैसा नाटक कई बार मंचित होने के बाद भी उतना ही उत्साह देता है। कालिदास रचित अभिज्ञान शाकुंतलम्, मोहन राकेश का आषाढ़ का एक दिन, मोलियर का माइजर, धर्मवीर भारती का 'अंधायुग', विजय तेंदुलकर का 'घासीराम कोतवाल' श्रेष्ठ नाटकों की श्रेणी में हैं। भारत में नाटकों की शुरूआत नील दर्पण, चाकर दर्पण, गायकवाड और गजानंद एण्ड द प्रिंस नाटकों के साथ इस विधा ने रंग पकड़ा।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विश्व रंगमंच दिवस - हार्दिक शुभकामनाये! (हिन्दी) हमर बिलासपुर (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 23 मार्च, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
- आधिकारिक वेबसाइट
- नाटक - क्रमिक विकास, प्रयोग और प्रयोजन
- विश्व रंगमंच दिवस संदेश – 2015 : क्रिस्तोव वार्लिकोव्सकी
- थियेटर करना – विश्व रंगमंच दिवस पर
- देश-विदेश में रंगमंच दिवस
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