"वैशम्पायन": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
प्रीति चौधरी (वार्ता | योगदान) No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
'''वैशम्पायन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vaishampayan'') पौराणिक महाकाव्य [[महाभारत]] तथा [[हिन्दू]] मान्यताओं के अनुसार [[वेदव्यास|व्यास जी]] के प्रधान शिष्य और एक प्रसिद्ध [[ऋषि]] थे। वे 'कृष्ण यजुर्वेद' के प्रवर्त्तक कहे जाते हैं। उन्होंने व्यास के महाभारत का अध्ययन कर [[जनमेजय|राजा जनमेजय]] को सुनाया था। | |||
'''वैशम्पायन''' [[व्यास]] | |||
*माना जाता है कि '[[हरिवंश पुराण|हरिवंश]]' का प्रचार भी वैशम्पायन ने ही किया था।<ref>तैत्तिरीयसंहिता याज्ञवल्क्य स्मृति</ref><ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक= राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन=भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन=|पृष्ठ संख्या=480|url=}}</ref> | |||
*सम्पूर्ण नागों की समाप्ति हेतु [[जनमेजय|राजा जनमेजय]] ने जो '[[सर्पयज्ञ]]' करवाया था, वैशम्पायन उस [[यज्ञ]] में भी सदस्य थे। | |||
*'कृष्ण यजुर्वेद' के प्रवर्तक भी ऋषि वैशम्पायन ही थे, जिन्हें उनके गुरु [[कृष्ण द्वैपायन]] ने यह कार्य सौंपा था। | |||
*वैशम्पायन के शिष्य [[याज्ञवल्क्य|याज्ञवल्क्य ऋषि]] थे, जिनसे वाद-विवाद होने के कारण याज्ञवल्क्य ने 'शुक्ल यजुर्वेद' को प्रसारित किया। | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{ऋषि मुनि2}}{{ऋषि मुनि}} | {{ऋषि मुनि2}}{{ऋषि मुनि}} | ||
[[Category:ऋषि मुनि]][[Category:संस्कृत साहित्यकार]] | [[Category:ऋषि मुनि]][[Category:संस्कृत साहित्यकार]][[Category:पौराणिक चरित्र]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]][[Category:पौराणिक कोश]] | ||
[[Category: | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
07:09, 6 मई 2017 का अवतरण
वैशम्पायन (अंग्रेज़ी: Vaishampayan) पौराणिक महाकाव्य महाभारत तथा हिन्दू मान्यताओं के अनुसार व्यास जी के प्रधान शिष्य और एक प्रसिद्ध ऋषि थे। वे 'कृष्ण यजुर्वेद' के प्रवर्त्तक कहे जाते हैं। उन्होंने व्यास के महाभारत का अध्ययन कर राजा जनमेजय को सुनाया था।
- माना जाता है कि 'हरिवंश' का प्रचार भी वैशम्पायन ने ही किया था।[1][2]
- सम्पूर्ण नागों की समाप्ति हेतु राजा जनमेजय ने जो 'सर्पयज्ञ' करवाया था, वैशम्पायन उस यज्ञ में भी सदस्य थे।
- 'कृष्ण यजुर्वेद' के प्रवर्तक भी ऋषि वैशम्पायन ही थे, जिन्हें उनके गुरु कृष्ण द्वैपायन ने यह कार्य सौंपा था।
- वैशम्पायन के शिष्य याज्ञवल्क्य ऋषि थे, जिनसे वाद-विवाद होने के कारण याज्ञवल्क्य ने 'शुक्ल यजुर्वेद' को प्रसारित किया।
|
|
|
|
|