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'''नागौद''' [[मध्य प्रदेश]] के आधुनिक [[सतना ज़िला|सतना ज़िले]] में ब्रिटिशकालीन एक रियासत थी। इसे 'नागोड' नाम से भी जाना जाता था।
'''नागौद''' [[मध्य प्रदेश]] के आधुनिक [[सतना ज़िला|सतना ज़िले]] में ब्रिटिशकालीन एक रियासत थी। इसे 'नागोड' नाम से भी जाना जाता था। 18वीं शताब्दी तक इस रियासत को उसकी राजधानी उचेहरा के मूल नाम 'उचेहरा' से भी जाना जाता था। नागौद रियासत [[1871]] से [[1931]] तक बघेलखण्ड एजेंसी का एक हिस्सा रहा, फिर इसे अन्य छोटे राज्यों के साथ [[बुंदेलखंड]] एजेंसी को स्थानांतरित कर दिया गया। इस रियासत के अंतिम राजा श्रीमंत महेंद्र सिंह ने [[1 जनवरी]], [[1950]] को भारतीय राज्य में अपने रियासत के विलय पर हस्ताक्षर किए थे।
==इतिहास==
प्रतिहारों के नागौद राज्य के पूर्व उचेहरा [[गुर्जर प्रतिहार वंश|प्रतिहार वंश]] की मुख्य राजधानी थी। उचेहरा में प्रतिहार सत्ता की स्थापना 14वीं शताब्दी के शुरुआत में हुई थी। 13वीं शताब्दी में यहाँ तेली (शूद्र) राजाओं का राज्य था। इनका सामना करने के लिए [[कन्नौज]] के सम्राट यशपाल प्रतिहार की पीढ़ी में राजकुमार वीरराजदेव हुआ। वह बड़ा तेजस्वी एवं महत्वाकांक्षी था। उसे कन्नौज साम्राज्य के अधीन एक सामंत बनकर रहना पसंद नहीं था। उसने अपने साथ चुने हुए [[राजपूत|राजपूतों]] को लेकर सन 1320 ई. में कन्नौज को छोड़ दिया और कैमोर की ओर एक नये राज्य की स्थापना के लिए चल पड़ा। इस समय [[चन्देल वंश|चन्देलों]] का प्रभाव क्षीण हो रहा था। [[केन नदी]] के किनारे दायें तट पर मऊ आदि गाँवों में इधर-उधर से आकर अनेक प्रतिहार [[क्षत्रिय]] परिवार दल बस गए थे। इन्हीं के संपर्क में आकर वीरराजदेव प्रतिहार और उनके साथियों के साथ कोट गांव में ठहर गए। सिंगोरगढ़ एक छोटा सा राज्य था, जिसका निर्माण राजा गजसिंह प्रतिहार ने करवाया था। वहीं के प्रतिहार राजा कोतपाल देव ने वीरराजदेव को बुलवाया। उसकी तेजस्विता और बुद्धि से कोतपाल ने पहले तो उसे आमात्य का पद दिया और उसके सभी साथियों को सेना में रख लिया। कोतपाल देव निःसंतान था। उसने वीरराजदेव प्रतिहार को अपना वारिस भी बना दिया। सत्ता हाथ में पाते ही मौका देखकर वीरराजदेव प्रतिहार और उसके साथियों ने नरो दुर्ग को अपने अधिकार में ले लिया और वहीं अपना आवास बनाया। वीरराजदेव प्रतिहार ने (1330-1340 ई.) दस साल के अंतराल में सिंगोरगढ़ राज्य को व्यवस्थित किया और नरो दुर्ग की मरमत्त करा ली।


*18वीं शताब्दी तक इस रियासत को उसकी राजधानी उचेहरा के मूल नाम 'उचेहरा' से भी जाना जाता था।
इधर [[उत्तरी भारत]] में तुर्कों का उत्पात अपनी चरम सीमा पर था। वे सारे देश में लूटपाट, मार-काट मचा रहे थे। सन 1340 ई. में [[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] ने सिंगोरगढ़ पर आक्रमण कर दिया। सारा राज्य लूट लिया गया, नगर जला दिया और नरो दुर्ग को तुर्कों ने अपने हवाले कर लिया। वीरराजदेव प्रतिहार और उसकी छोटी सी राजपूती सेना, तुर्कों की विशाल सेना का सामना न कर कैमोर की [[तराई]] की ओर चली आई। इस समय लूक के राजा हम्मीरदेव और कडौली के राजा देवक के बीच लुका-छिपी लड़ाई चल रही थी। कैमोर क्षेत्र पर न तो किसी की दृष्टि थी और न ध्यान दिया गया। इसका लाभ उठाकर प्रतिहार दल उचेहरा की ओर बढ़ चला। वीरराजदेव प्रतिहार जब खोह राज्य अर्थात उचेहरा में आये, तब उचेहरा के पास एक गढ़ में तेली लोग जमे थे। उसे तेलियागढ़ नाम देकर स्वयं को राजा बना लिया था। एक रात जब तेली लोग मदांध होकर नाच गा रहे थे, वीरराजदेव प्रतिहार ने अपने साथियों को लेकर उन पर आक्रमण कर दिया। प्रतिहार राजपूतों के डर से तेली लोग भाग निकले। तेलियागढ़ पर प्रतिहार राजपूतों के सरदार वीरराजदेव प्रतिहार का झंडा लहरा उठा। यह राज्य बहुत छोटा था, किन्तु गढ़ में धन सम्पदा पर्याप्त थी, जिससे वीरराजदेव प्रतिहार ने एक सेना का गठन कर लिया और धीरे-धीरे खोह राज्य का विस्तार कर लिया। इस प्रकार सन 1344 ई. में वीरराजदेव प्रतिहार ने उचेहरा में स्वतंत्र राज्य स्थपित किया। उपरोक्त स्थानों में पाये गए उनके [[शिलालेख|शिलालेखों]] के आधार पर उनका राज्य महाकौशल वर्तमान जबलपुर ज़िला कटनी की तहसील सतना ज़िला की मैहर, नागौद, रघुराजनगर, अमरपाटन तहसीलें एवं रीवा पठार तक फैला हुआ था।
*नागौद रियासत [[1871]] से [[1931]] तक बघेलखण्ड एजेंसी का एक हिस्सा रहा, फिर इसे अन्य छोटे राज्यों के साथ [[बुंदेलखंड]] एजेंसी को स्थानांतरित कर दिया गया।
==भारतीय राज्य में विलय==
*इस रियासत के अंतिम राजा एच.एच. श्रीमंत महेंद्र सिंह ने [[1 जनवरी]], [[1950]] को भारतीय राज्य में अपने रियासत के विलय पर हस्ताक्षर किए थे।
1807 ई. में नागौद, पन्ना रियासत के अन्तर्गत आता था और उस रियासत को दिए गए सनद में शामिल था। हालांकि, 1809 में शिवराज सिंह को उनके क्षेत्र में एक अलग सनद द्वारा मान्यता प्राप्ति की पुष्टि हुई थी। नागौद रियासत 1820 में बेसिन की संधि के बाद एक ब्रिटिश संरक्षक बन गया। राजा बलभद्र सिंह को अपने भाई की हत्या के लिए 1831 में पदच्युत कर दिया गया था। फिजुलखर्ची और वेबन्दोबस्ती के कारण रियासत पर बहुत कर्ज हो गया और 1844 में ब्रिटिश प्रशासन ने आर्थिक कुप्रबंधन के कारण प्रशासन को अपने हाथ में ले लिया। नागौद के शासक [[1857]] के भारतीय विद्रोह के दौरान अंग्रेज़ों के वफादार बने रहे। फलस्वरूप उन्हें धनवाल की परगना दे दी गई। [[1862]] में राजा को गोद लेने की अनुमति देने वाले एक सनद प्रदान किया गया और [[1865]] में वहाँ का शासन पुनः राजा को दे दिया गया। नागौद रियासत [[1871]] से [[1931]] तक बघेलखण्ड एजेंसी का एक हिस्सा रहा, फिर इसे अन्य छोटे राज्यों के साथ बुंदेलखंड एजेंसी को स्थानांतरित कर दिया गया। नागौद के अंतिम राजा, एच.एच. श्रीमंत महेंद्र सिंह ने [[1 जनवरी]], [[1950]] को भारतीय राज्य में अपने रियासत के विलय पर हस्ताक्षर किये।


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07:07, 27 अप्रैल 2018 का अवतरण

नागौद मध्य प्रदेश के आधुनिक सतना ज़िले में ब्रिटिशकालीन एक रियासत थी। इसे 'नागोड' नाम से भी जाना जाता था। 18वीं शताब्दी तक इस रियासत को उसकी राजधानी उचेहरा के मूल नाम 'उचेहरा' से भी जाना जाता था। नागौद रियासत 1871 से 1931 तक बघेलखण्ड एजेंसी का एक हिस्सा रहा, फिर इसे अन्य छोटे राज्यों के साथ बुंदेलखंड एजेंसी को स्थानांतरित कर दिया गया। इस रियासत के अंतिम राजा श्रीमंत महेंद्र सिंह ने 1 जनवरी, 1950 को भारतीय राज्य में अपने रियासत के विलय पर हस्ताक्षर किए थे।

इतिहास

प्रतिहारों के नागौद राज्य के पूर्व उचेहरा प्रतिहार वंश की मुख्य राजधानी थी। उचेहरा में प्रतिहार सत्ता की स्थापना 14वीं शताब्दी के शुरुआत में हुई थी। 13वीं शताब्दी में यहाँ तेली (शूद्र) राजाओं का राज्य था। इनका सामना करने के लिए कन्नौज के सम्राट यशपाल प्रतिहार की पीढ़ी में राजकुमार वीरराजदेव हुआ। वह बड़ा तेजस्वी एवं महत्वाकांक्षी था। उसे कन्नौज साम्राज्य के अधीन एक सामंत बनकर रहना पसंद नहीं था। उसने अपने साथ चुने हुए राजपूतों को लेकर सन 1320 ई. में कन्नौज को छोड़ दिया और कैमोर की ओर एक नये राज्य की स्थापना के लिए चल पड़ा। इस समय चन्देलों का प्रभाव क्षीण हो रहा था। केन नदी के किनारे दायें तट पर मऊ आदि गाँवों में इधर-उधर से आकर अनेक प्रतिहार क्षत्रिय परिवार दल बस गए थे। इन्हीं के संपर्क में आकर वीरराजदेव प्रतिहार और उनके साथियों के साथ कोट गांव में ठहर गए। सिंगोरगढ़ एक छोटा सा राज्य था, जिसका निर्माण राजा गजसिंह प्रतिहार ने करवाया था। वहीं के प्रतिहार राजा कोतपाल देव ने वीरराजदेव को बुलवाया। उसकी तेजस्विता और बुद्धि से कोतपाल ने पहले तो उसे आमात्य का पद दिया और उसके सभी साथियों को सेना में रख लिया। कोतपाल देव निःसंतान था। उसने वीरराजदेव प्रतिहार को अपना वारिस भी बना दिया। सत्ता हाथ में पाते ही मौका देखकर वीरराजदेव प्रतिहार और उसके साथियों ने नरो दुर्ग को अपने अधिकार में ले लिया और वहीं अपना आवास बनाया। वीरराजदेव प्रतिहार ने (1330-1340 ई.) दस साल के अंतराल में सिंगोरगढ़ राज्य को व्यवस्थित किया और नरो दुर्ग की मरमत्त करा ली।

इधर उत्तरी भारत में तुर्कों का उत्पात अपनी चरम सीमा पर था। वे सारे देश में लूटपाट, मार-काट मचा रहे थे। सन 1340 ई. में मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने सिंगोरगढ़ पर आक्रमण कर दिया। सारा राज्य लूट लिया गया, नगर जला दिया और नरो दुर्ग को तुर्कों ने अपने हवाले कर लिया। वीरराजदेव प्रतिहार और उसकी छोटी सी राजपूती सेना, तुर्कों की विशाल सेना का सामना न कर कैमोर की तराई की ओर चली आई। इस समय लूक के राजा हम्मीरदेव और कडौली के राजा देवक के बीच लुका-छिपी लड़ाई चल रही थी। कैमोर क्षेत्र पर न तो किसी की दृष्टि थी और न ध्यान दिया गया। इसका लाभ उठाकर प्रतिहार दल उचेहरा की ओर बढ़ चला। वीरराजदेव प्रतिहार जब खोह राज्य अर्थात उचेहरा में आये, तब उचेहरा के पास एक गढ़ में तेली लोग जमे थे। उसे तेलियागढ़ नाम देकर स्वयं को राजा बना लिया था। एक रात जब तेली लोग मदांध होकर नाच गा रहे थे, वीरराजदेव प्रतिहार ने अपने साथियों को लेकर उन पर आक्रमण कर दिया। प्रतिहार राजपूतों के डर से तेली लोग भाग निकले। तेलियागढ़ पर प्रतिहार राजपूतों के सरदार वीरराजदेव प्रतिहार का झंडा लहरा उठा। यह राज्य बहुत छोटा था, किन्तु गढ़ में धन सम्पदा पर्याप्त थी, जिससे वीरराजदेव प्रतिहार ने एक सेना का गठन कर लिया और धीरे-धीरे खोह राज्य का विस्तार कर लिया। इस प्रकार सन 1344 ई. में वीरराजदेव प्रतिहार ने उचेहरा में स्वतंत्र राज्य स्थपित किया। उपरोक्त स्थानों में पाये गए उनके शिलालेखों के आधार पर उनका राज्य महाकौशल वर्तमान जबलपुर ज़िला कटनी की तहसील सतना ज़िला की मैहर, नागौद, रघुराजनगर, अमरपाटन तहसीलें एवं रीवा पठार तक फैला हुआ था।

भारतीय राज्य में विलय

1807 ई. में नागौद, पन्ना रियासत के अन्तर्गत आता था और उस रियासत को दिए गए सनद में शामिल था। हालांकि, 1809 में शिवराज सिंह को उनके क्षेत्र में एक अलग सनद द्वारा मान्यता प्राप्ति की पुष्टि हुई थी। नागौद रियासत 1820 में बेसिन की संधि के बाद एक ब्रिटिश संरक्षक बन गया। राजा बलभद्र सिंह को अपने भाई की हत्या के लिए 1831 में पदच्युत कर दिया गया था। फिजुलखर्ची और वेबन्दोबस्ती के कारण रियासत पर बहुत कर्ज हो गया और 1844 में ब्रिटिश प्रशासन ने आर्थिक कुप्रबंधन के कारण प्रशासन को अपने हाथ में ले लिया। नागौद के शासक 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान अंग्रेज़ों के वफादार बने रहे। फलस्वरूप उन्हें धनवाल की परगना दे दी गई। 1862 में राजा को गोद लेने की अनुमति देने वाले एक सनद प्रदान किया गया और 1865 में वहाँ का शासन पुनः राजा को दे दिया गया। नागौद रियासत 1871 से 1931 तक बघेलखण्ड एजेंसी का एक हिस्सा रहा, फिर इसे अन्य छोटे राज्यों के साथ बुंदेलखंड एजेंसी को स्थानांतरित कर दिया गया। नागौद के अंतिम राजा, एच.एच. श्रीमंत महेंद्र सिंह ने 1 जनवरी, 1950 को भारतीय राज्य में अपने रियासत के विलय पर हस्ताक्षर किये।


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