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'''केरिंच''' सुमात्रा के बारीसान पर्वत का सर्वोच्च ज्वालामुखीय शिखर जिसकी ऊँचाई 12,484 फुट है। इसे इंद्रपुर शिखर भी कहते हैं। यह सुमात्रा के पश्चिमी तट पर पादांग (Padang) नामक नगर के दक्षिणपूर्व स्थित है। इस द्वीप के अन्य ज्वालामुखियों की तरह केरिंचि का निर्माण भी तुरीय (क्वाटरनरी) युग में हुआ। यह अभी सुप्तावस्था में है। इसके शिखर पर एक गहरी ज्वालामुखी झील है जिसका नाम भी केरिंचि है। इसके चारों ओर का क्षेत्र हल्के टफ़ (Tuff) चट्टानों से निर्मित है। यहाँ भूकंप अधिक होता है। सुमात्रा की सबसे बड़ी तथा रमणीय नदी जांबी इसी पर्वत से निकलकर पूर्व की ओर प्रवाहित होती है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 3|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=119 |url=}}</ref>  
'''केरिंच''' [[सुमात्रा]] के '''बारीसान पर्वत''' का सर्वोच्च [[ज्वालामुखी|ज्वालामुखीय शिखर]] है,  जिसकी ऊँचाई 12,484 फुट है। इसे '''इंद्रपुर शिखर''' भी कहते हैं। यह सुमात्रा के पश्चिमी तट पर पादांग (Padang) नामक नगर के दक्षिण पूर्व में स्थित है।  
 
इस [[द्वीप]] के अन्य ज्वालामुखियों की तरह केरिंच का निर्माण भी तुरीय<ref>क्वाटरनरी</ref> युग में हुआ। यह अभी सुप्तावस्था में है। इसके शिखर पर एक गहरी ज्वालामुखी झील है जिसका नाम भी केरिंच है। इसके चारों ओर का क्षेत्र हल्के टफ़ (Tuff) चट्टानों से निर्मित है। यहाँ [[भूकंप]] अधिक होता है।  
 
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07:17, 13 जनवरी 2020 के समय का अवतरण

केरिंच सुमात्रा के बारीसान पर्वत का सर्वोच्च ज्वालामुखीय शिखर है, जिसकी ऊँचाई 12,484 फुट है। इसे इंद्रपुर शिखर भी कहते हैं। यह सुमात्रा के पश्चिमी तट पर पादांग (Padang) नामक नगर के दक्षिण पूर्व में स्थित है।

इस द्वीप के अन्य ज्वालामुखियों की तरह केरिंच का निर्माण भी तुरीय[1] युग में हुआ। यह अभी सुप्तावस्था में है। इसके शिखर पर एक गहरी ज्वालामुखी झील है जिसका नाम भी केरिंच है। इसके चारों ओर का क्षेत्र हल्के टफ़ (Tuff) चट्टानों से निर्मित है। यहाँ भूकंप अधिक होता है।

सुमात्रा की सबसे बड़ी तथा रमणीय नदी जांबी इसी पर्वत से निकलकर पूर्व की ओर प्रवाहित होती है।[2]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. क्वाटरनरी
  2. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 3 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 119 |

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