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'''हितकारिणी सभा''' की स्थापना ए.जी.जी. कर्नल वाल्टर द्वारा की गई थी। सन [[1888]] ई. में राजपूताने के ए.जी.जी. कर्नल वाज्टर ने राजपूतों व चारणों में प्रचलित सामाजिक-आर्थिक प्रतिस्पर्धा को रोकने, [[विवाह]] और गर्मी में होने वाले खर्चे में कमी करने, लड़के-लड़कियों की विवाह योग्य आयु का नियमन कर अनमेल विवाह की भावना जागृत करने आदि के लिये वाल्टर कृत राजपुत्र 'हितकारिणी सभा' की स्थापना | '''हितकारिणी सभा''' की स्थापना ए.जी.जी. कर्नल वाल्टर द्वारा की गई थी। सन [[1888]] ई. में राजपूताने के ए.जी.जी. कर्नल वाज्टर ने राजपूतों व चारणों में प्रचलित सामाजिक-आर्थिक प्रतिस्पर्धा को रोकने, [[विवाह]] और गर्मी में होने वाले खर्चे में कमी करने, लड़के-लड़कियों की विवाह योग्य आयु का नियमन कर अनमेल विवाह की भावना जागृत करने आदि के लिये वाल्टर कृत राजपुत्र 'हितकारिणी सभा' की स्थापना की।<br /> | ||
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*इस सभा की प्रथम बैठक [[अजमेर]] में 1888 ई. में हुई, जिसमें प्रस्ताव पारित किया कि चारण- भाटों व ढोलियों को त्याग केवल लड़के के [[पिता]] द्वारा किया जायेगा तथा प्रत्येक राजपुत्र जागीरदार व शासक अपने ज्येष्ठ पुत्र के प्रथम [[विवाह]] पर, अपनी वार्षिक आय के 09 प्रतिशत से अधिक त्याग नहीं देगा और दूसरे पुत्रों व भाइयों के विवाह पर 01 प्रतिशत से अधिक त्याग नहीं देगा। | *इस सभा की प्रथम बैठक [[अजमेर]] में 1888 ई. में हुई, जिसमें प्रस्ताव पारित किया कि चारण- भाटों व ढोलियों को त्याग केवल लड़के के [[पिता]] द्वारा किया जायेगा तथा प्रत्येक राजपुत्र जागीरदार व शासक अपने ज्येष्ठ पुत्र के प्रथम [[विवाह]] पर, अपनी वार्षिक आय के 09 प्रतिशत से अधिक त्याग नहीं देगा और दूसरे पुत्रों व भाइयों के विवाह पर 01 प्रतिशत से अधिक त्याग नहीं देगा। |
07:40, 19 मई 2021 का अवतरण
हितकारिणी सभा की स्थापना ए.जी.जी. कर्नल वाल्टर द्वारा की गई थी। सन 1888 ई. में राजपूताने के ए.जी.जी. कर्नल वाज्टर ने राजपूतों व चारणों में प्रचलित सामाजिक-आर्थिक प्रतिस्पर्धा को रोकने, विवाह और गर्मी में होने वाले खर्चे में कमी करने, लड़के-लड़कियों की विवाह योग्य आयु का नियमन कर अनमेल विवाह की भावना जागृत करने आदि के लिये वाल्टर कृत राजपुत्र 'हितकारिणी सभा' की स्थापना की।
- इस सभा की प्रथम बैठक अजमेर में 1888 ई. में हुई, जिसमें प्रस्ताव पारित किया कि चारण- भाटों व ढोलियों को त्याग केवल लड़के के पिता द्वारा किया जायेगा तथा प्रत्येक राजपुत्र जागीरदार व शासक अपने ज्येष्ठ पुत्र के प्रथम विवाह पर, अपनी वार्षिक आय के 09 प्रतिशत से अधिक त्याग नहीं देगा और दूसरे पुत्रों व भाइयों के विवाह पर 01 प्रतिशत से अधिक त्याग नहीं देगा।
- सभा की बैठक प्रतिवर्ष अजमेर में होने लगी, जिसमें प्रत्येक राज्य में गठित स्थानीय समितियों की रिपोर्टों पर विचार किया जाता था।
- यह स्थानीय समितियाँ अपने-आप राज्यों में सभा के निर्णय लागू करवाती थीं तथा निर्णयों की अवहेलना करने वालों को चेतावनी अथवा दण्ड देती थीं।
- हितकारिणी सभा की कार्यवाहियों का लाभ राजपूत जाति के साथ अन्य जातियाँ भी उठाने लगीं तथा उन जातियों के सामाजिक-आर्थिक व्यय पर नियंत्रण करने के लिये नियमों का निर्माण किया गया।
- 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध और 20वीं शताब्दी के आते-आते सुधारों के परिणाम दृष्टिगत होने लग गये थे।
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