"मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान": अवतरणों में अंतर
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मौलाना वहीदुद्दीन खान का जन्म वर्ष 1925 में [[उत्तर प्रदेश]] के आजमगढ़ जिले में हुआ था। उन्होंने आरंभिक धार्मिक शिक्षा आजमगढ़ के निकट सराय मीर के मदरसातुल ईसलाही (पारंपरिक मदरसे) में ली थी। मौलाना वहीदुद्दीन [[भारत]] की आजादी के संघर्ष में भी शामिल थे। वे [[महात्मा गांधी]] के समर्थक थे।<ref name="pp">{{cite web |url=https://hindi.thequint.com/news/india/maulana-wahiduddin-khan-demise-islamic-scholar-know-for-peace-pm-modi-president-tweets-padma-awardee#read-more |title=मौलाना वहीदुद्दीन खान का निधन|accessmonthday=28 फरवरी|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=hindi.thequint.com |language=हिंदी}}</ref> | मौलाना वहीदुद्दीन खान का जन्म वर्ष 1925 में [[उत्तर प्रदेश]] के आजमगढ़ जिले में हुआ था। उन्होंने आरंभिक धार्मिक शिक्षा आजमगढ़ के निकट सराय मीर के मदरसातुल ईसलाही (पारंपरिक मदरसे) में ली थी। मौलाना वहीदुद्दीन [[भारत]] की आजादी के संघर्ष में भी शामिल थे। वे [[महात्मा गांधी]] के समर्थक थे।<ref name="pp">{{cite web |url=https://hindi.thequint.com/news/india/maulana-wahiduddin-khan-demise-islamic-scholar-know-for-peace-pm-modi-president-tweets-padma-awardee#read-more |title=मौलाना वहीदुद्दीन खान का निधन|accessmonthday=28 फरवरी|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=hindi.thequint.com |language=हिंदी}}</ref> | ||
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मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान ने इस्लामी ग्रंथों की कट्टर व्याख्याओं की हमेशा निंदा की। उन्होंने [[इस्लाम धर्म]] को आधुनिक और उदारवादी बनाने के लिए निरंतर काम किया। सन [[1955]] में उन्होंने अपनी पहली किताब 'नये अहद के दरवाजे पर' लिखी थी। उन्होंने 200 से ज्यादा किताबें लिखीं, जिसके माध्यम से उन्होंने इस्लाम के मानवीयकरण और सर्वधर्म समभाव की भावना का प्रचार किया। उन्होंने कुरान का [[हिंदी]], [[अंग्रेज़ी]] और [[उर्दू]] में सरल अनुवाद किया ताकि बड़े जनमानस तक कुरान की उदारवादी बातों को पहुंचाया जा सके। | मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान ने इस्लामी ग्रंथों की कट्टर व्याख्याओं की हमेशा निंदा की। उन्होंने [[इस्लाम धर्म]] को आधुनिक और उदारवादी बनाने के लिए निरंतर काम किया। सन [[1955]] में उन्होंने अपनी पहली किताब 'नये अहद के दरवाजे पर' लिखी थी। उन्होंने 200 से ज्यादा किताबें लिखीं, जिसके माध्यम से उन्होंने इस्लाम के मानवीयकरण और सर्वधर्म समभाव की भावना का प्रचार किया। उन्होंने कुरान का [[हिंदी]], [[अंग्रेज़ी]] और [[उर्दू]] में सरल अनुवाद किया ताकि बड़े जनमानस तक कुरान की उदारवादी बातों को पहुंचाया जा सके। | ||
==इस्लामिक सेंटर की स्थापना== | ==इस्लामिक सेंटर की स्थापना== |
11:47, 28 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण
मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान
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पूरा नाम | मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान |
जन्म | 1 जनवरी, 1925 |
जन्म भूमि | आजमगढ़, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 21 अप्रॅल, 2021 |
मृत्यु स्थान | अपोलो अस्पताल, दिल्ली |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | इस्लामी आध्यात्मिक गुरु, वक्ता और लेखक |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म विभूषण, 2021 |
प्रसिद्धि | इस्लामिक विद्वान और शांति कार्यकर्ता |
नागरिकता | भारतीय |
विधा | इस्लामी साहित्य |
अन्य जानकारी | तर्क आधारित आध्यात्मिकता के रास्ते शांति की संस्कृति को फैलाने के लिए मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान ने 2001 में "सेंटर फॉर पीस एंड स्पिरिचुअलिटी" की स्थापना की थी। |
मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान (अंग्रेज़ी: Maulana Wahiduddin Khan, जन्म- 1 जनवरी, 1925; मृत्यु- 21 अप्रॅल, 2021) विख्यात इस्लामिक विद्वान और शांति कार्यकर्ता थे। उनको हिन्दू-मुस्लिम सामंजस्य के लिए जाना जाता है। गांधीवादी विचारों के मुस्लिम विद्वान मौलाना वहीदुद्दीन देश के भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के करीबी माने जाते थे। सन 1993 उन्होंने मुसलमानों से बाबरी मस्जिद स्थल पर दावों को त्यागने के लिए कहा था। मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान ने सुशील कुमार (जैन भिक्षु) और स्वामी चिदानन्द सरस्वती के साथ बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद महाराष्ट्र में शांति मार्च निकाला था। उन्होंने क़ुरान का सरल और समकालीन अंग्रेज़ी में अनुवाद किया था।
परिचय
मौलाना वहीदुद्दीन खान का जन्म वर्ष 1925 में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में हुआ था। उन्होंने आरंभिक धार्मिक शिक्षा आजमगढ़ के निकट सराय मीर के मदरसातुल ईसलाही (पारंपरिक मदरसे) में ली थी। मौलाना वहीदुद्दीन भारत की आजादी के संघर्ष में भी शामिल थे। वे महात्मा गांधी के समर्थक थे।[1]
शान्तिप्रिय
मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान ने इस्लामी ग्रंथों की कट्टर व्याख्याओं की हमेशा निंदा की। उन्होंने इस्लाम धर्म को आधुनिक और उदारवादी बनाने के लिए निरंतर काम किया। सन 1955 में उन्होंने अपनी पहली किताब 'नये अहद के दरवाजे पर' लिखी थी। उन्होंने 200 से ज्यादा किताबें लिखीं, जिसके माध्यम से उन्होंने इस्लाम के मानवीयकरण और सर्वधर्म समभाव की भावना का प्रचार किया। उन्होंने कुरान का हिंदी, अंग्रेज़ी और उर्दू में सरल अनुवाद किया ताकि बड़े जनमानस तक कुरान की उदारवादी बातों को पहुंचाया जा सके।
इस्लामिक सेंटर की स्थापना
तर्क आधारित आध्यात्मिकता के रास्ते शांति की संस्कृति को फैलाने के लिए मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान ने 2001 में "सेंटर फॉर पीस एंड स्पिरिचुअलिटी" की स्थापना की। इससे पहले 1970 में उन्होंने दिल्ली में इस्लामिक सेंटर की स्थापना की थी।
पुरस्कार व सम्मान
इस्लाम धर्म के उदारवादी व्याख्याकार और सर्वधर्म समभाव के दूत मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान को केंद्र सरकार ने वर्ष साल 2021 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया। इससे पूर्व वर्ष 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने उन्हें पद्म भूषण दिया था।[1]
इसके अलावा पूर्व सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा डेमिर्गुस पीस इंटरनेशनल अवॉर्ड, मदर टेरेसा और राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार (2009), अबूजहबी में सैयदियाना इमाम अल हसन इब्न अली शांति अवार्ड (2015) से भी मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान को सम्मानित किया जा चुका था। उन्हें दुनिया के 500 सबसे ज्यादा प्रभावी मुस्लिमों की सूची में भी शामिल किया जा चुका था। डेमिग्रुस पीस इंटरनेशनल अवार्ड से सम्मानित किए जा चुके मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान ‘इस्लाम में महिलाओं के अधिकार’, ‘कांसेप्ट ऑफ जिहाद’, ‘विमान अपहरण-एक अपराध’ जैसे अपने लेखों के लिए बेहद चर्चित रहे।
मृत्यु
मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान का निधन 21 अप्रॅल, 2021 को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में हुआ। वह दस दिन से कोरोना संक्रमित थे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि "मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान धर्मशास्त्र और अध्यात्म पर अपनी विद्वता के लिए याद रखे जाएंगे। वह हमेशा सामुदायिक सेवा और सामाजिक सशक्तिकरण के लिए उत्साहित रहते थे।"
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 मौलाना वहीदुद्दीन खान का निधन (हिंदी) hindi.thequint.com। अभिगमन तिथि: 28 फरवरी, 2022।