साक्षरता दिवस

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विश्व में 8 सितंबर अन्तर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज के युग में शिक्षा बहुत ज़रूरी है। शिक्षा के बिना किसी कार्यक्रम का नियोजन सम्भव नहीं है। शिक्षा हमारे जीवन का आवश्यक अंग है। सरकार सर्वशिक्षा अभियान चलाकर प्रत्येक व्यक्ति को साक्षर बनाने के लिए विभिन्न योजनायें संचालित कर रही है। एक व्यक्ति का शिक्षित होना उसके स्वयं का विकास है, वहीं एक बालिका शिक्षित होकर पूरे घर को संवार सकती है। जब देश का हर नागरिक साक्षर होगा तभी देश की तरक्की हो सकेगी। [1]

तात्पर्य

साक्षरता का तात्पर्य सिर्फ़ पढ़ना-लिखना ही नहीं बल्कि यह सम्मान, अवसर और विकास से जुड़ा विषय है। दुनिया में शिक्षा और ज्ञान बेहतर जीवन जीने के लिए ज़रूरी माध्यम है। आज अनपढ़ता देश की तरक्की में बहुत बड़ी बाधा है। जिसके अभिशाप से ग़रीब और ग़रीब होता जा रहा है।

उद्देश्य

साक्षरता दिवस का प्रमुख उद्देश्य नव साक्षरों को उत्साहित करना है। अन्तर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस हमारे लिये अहम दिवस है, क्योंकि हमारे जीवन में शिक्षा का बहुत अधिक महत्त्व है। हमारे देश में पुरुषों की अपेक्षा महिला साक्षरता कम है। हमें आज के दिन यह संकल्प लेना होगा कि हर व्यक्ति साक्षर बनें, निरक्षर कोई न रहे। हमें अपने यहाँ से निरक्षता को भगाना होगा।

शैक्षिक इतिहास

भारत का शैक्षिक इतिहास अत्यधिक समृद्ध है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों द्वारा शिक्षा मौखिक रूप में दी जाती थी। शिक्षा का प्रसार वर्णमाला के विकास के पश्चात भोज पत्र और पेड़ों की छालों पर लिखित रूप में होने लगा। इस कारण भारत में लिखित साहित्य का विकास तथा प्रसार होने लगा। देश में शिक्षा जन साधारण को बौद्ध धर्म के प्रचार के साथ-साथ उपलब्ध होने लगी। नालन्दा, विक्रमशिला और तक्षशिला जैसी विश्व प्रसिद्ध शिक्षा संस्थानों की स्थापना ने शिक्षा के प्रचार में अहम भूमिका निभाई। लोगों में व्यावसायिक कौशल विकसित करने के लिए साक्षरता एक बड़ी ज़रूरत है।

शिक्षा का प्रसार

भारत में अंग्रेज़ों के आगमन से यूरोपीय मिशनरियों ने अंग्रेज़ी शिक्षा का प्रचार किया। इसके बाद से भारत में पश्चिमी पद्धति का निरन्तर प्रसार हुआ है। वर्तमान समय में भारत में सभी विषयों के शिक्षण हेतु अनेक विश्वविद्यालय और उनसे जुड़े़ हजा़रों महाविद्यालय हैं। भारत ने उच्च कोटि की उच्चतर शिक्षा प्रदान करने वाले विश्व के अग्रणी देशों में अपना स्थान बना लिया है।

शुल्क में वृद्धि

शिक्षा के शुल्क में अनेक कारणों से (विशेष रूप से व्यावसायिक शिक्षा) निरन्तर वृद्धि हो रही है। इस कारण ग़रीब परिवार के बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई होने लगी है।[2]

साक्षर भारत

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश की सभी महिलाओं को अगले पाँच सालों में साक्षर बनाने के लक्ष्य के साथ अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के मौके पर महिलाओं के लिए विशेष तौर पर ‘साक्षर भारत’ मिशन का शुभारंभ किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई कि ‘साक्षर भारत’ मिशन, राष्ट्रीय साक्षरता मिशन से भी ज़्यादा सफल साबित होगा। उन्होंने कहा कि देश की एक तिहाई आबादी निरक्षर है। देश की आधी महिलाएं अभी भी पढ़-लिख नहीं सकतीं। साक्षरता के मामले में हम विश्व में सबसे पिछड़े देशों में शुमार हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यक और अन्य वंचित व पिछड़े वर्गो की महिलाओं का साक्षर न होना हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती है और हमें इस चुनौती से पार पाना होगा। यदि हमें सभी नागरिकों को सशक्त करना है और तेज़ी से विकास करना है तो देश को पूरी तरह से साक्षर करना होगा। जिस ‘साक्षर भारत’ मिशन की आज हम शुरुआत कर रहे हैं वह साक्षरता के प्रति हमारी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को ज़ाहिर करता है। यह मिशन ख़ासकर महिलाओं में साक्षरता की दर बढ़ाने की हमारी कोशिश में मददगार साबित होगा।

उन्होंने कहा कि साक्षरता के मामले में आज़ादी के बाद से हमने लगातार वृद्धि की है। वर्ष 1950 में साक्षरता की दर 18 फ़ीसदी थी जो वर्ष 1991 में 52 फ़ीसदी और वर्ष 2001 में 65 फ़ीसदी पहुँच गयी।[3]

साक्षरता अभियान

भारत भी बन सकता है, शत प्रतिशत साक्षर।

साक्षरता दिवस का दिन हमें सोचने को मज़बूर करता है, कि हम क्यो 100% साक्षर नहीं हैं। यदि केरल को छोड़ दिया जाए तो बाकि राज्यों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है। सरकार द्वारा साक्षरता को बढ़ने के लिए सर्व शिक्षा अभियान, मिड दे मील योजना, प्रौढ़ शिक्षा योजना, राजीव गाँधी साक्षरता मिशन आदि न जाने कितने अभियान चलाये गये, मगर सफलता आशा के अनुरूप नहीं मिली। मिड दे मील में जहाँ बच्चो को आकर्षित करने के लिए स्कूलों में भोजन की व्यवस्था की गयी, इससे बच्चे स्कूल तो आते हैं, मगर पढ़ने नहीं खाना खाने आते हैं। शिक्षक लोग पढ़ाई की जगह खाना बनवाने की फिकर में लगे रहते हैं। हमारे देश में सरकारी तौर पर जो व्यक्ति अपना नाम लिखना जानता है, वह साक्षर है। आंकड़े जुटाने के समय जो घोटाला होता है, वो किसी से छुपा नहीं है। अगर सही तरीक़े से साक्षरता के आंकडे जुटाए जाए तो देश में 64.9% लोग शायद साक्षर न हो। सरकारी आंकडो पर विश्वास कर भी लिया जाए तो भारत में 75.3% पुरुष और 53.7% महिलायें ही साक्षर हैं।

साक्षर कैसे बने

भारत 100% साक्षर कैसे बने। भारत में सबसे ज़्यादा विश्वविद्यालय है। हमारे देश में हर साल लगभग 33 लाख विद्यार्थी स्नातक होते हैं। उसके बाद बेरोज़गारों की भीड़ में खो जाते हैं। हम हर साल स्नातक होने वाले विद्यार्थियो का सही उपयोग साक्षरता को बढ़ाने में कर सकते हैं। स्नातक के पाठ्यक्रम में एक अतिरिक्त विषय जोड़ा जाए, जो सभी के लिए अनिवार्य हो। इस विषय में सभी छात्रों को एक व्यक्ति को साक्षर बनाने की ज़िम्मेदारी लेनी होगी। शिक्षकों के द्वारा इसका मूल्यांकन किया जाएगा। अन्तिम वर्ष में मूल्यांकन के आधार पर अंकसूची में इसके अंक भी जोड़े जाए। इससे हर साल लगभग 33 लाख लोग साक्षर होंगे। वो भी किसी सरकारी खर्च के बिना।[4]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. साक्षरता दिवस पर मानव श्रृंखला (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जागरण। अभिगमन तिथि: 5 सितंबर, 2010
  2. भारतीय केन्द्र के लक्ष्य और उद्देश्य (हिन्दी) विकी ऐजुकेटर। अभिगमन तिथि: 5 सितंबर, 2010
  3. पाँच साल में हर महिला को साक्षर बनाने का लक्ष्य (हिन्दी) (एच टी एम एल) लाइव हिन्दुस्तान डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 5 सितंबर, 2010
  4. भारत भी बन सकता है, शत प्रतिशत साक्षर (हिन्दी) (एच टी एम एल) मुकेश पाण्डेय "चन्दन"। अभिगमन तिथि: 5 सितंबर, 2010

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