भारतवर्ष में कॉवर के त्योहार का बहुत ज़्यादा महत्व है। इस तौहार में आमलोग भगवन शिव की भक्ति में डुबकर कॉवर उठाते है। इन कॉवर उठाने वाले शिव भक्तो को कॉवरिया कहते है। यह त्योहार हिन्दी कैलेण्डर के अनुसार श्रावण ( सावन ) के महीने में पड़ता है। कॉवर के इस त्योहार में शिव भक्त एक निश्चित स्थान से गेरुआ वस्त्र धारण कर कन्धे पर कॉवर लेकर और कॉवर में गंगाजल रखकर उठाते है तथा कई किलोमीटर की नंगे पैर पैदल यात्रा करके एक निश्चित स्थान के शिव मंदिर में आकर भगवन शिव और माता पर्वती पर गंगाजल चढाते है। यह गंगाजल का अभिषेक श्रद्धा और विश्वास के महापर्व शिव रात्रि के दिन होता है। कॉवर का त्योहार भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है लेकिन विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, उत्तराँचल, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली, पश्चिम बंगाल के राज्यों में मनाया जाता है।
आषाढ़ी पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर तीर्थनगरी में गंगा स्नान करने व गुरु पूजन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच चुके हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, यूपी, दिल्ली के कोने-कोने से आज पूर्णिमा स्नान के साथ ही कस्बे में एक माह तक चलने वाला कॉवर मेला प्रारम्भ हो जाएगा।
मकर संकंराति के अवसर पर बरमान से बांदकपुर भगवान भोलेशंकर के चरणों में जल चढ़ाने के लिए जा रहे कावडिय़ों का गुरुवार को तालसेमरा में संतश्री १०८ सीताराम महराज बादकपुर जाकर भगवान भोलेशंकर के चरणों में अर्पित करते हैं। कॉवरियों द्वारा यह सारी यात्रा पैदल ही की जाती है। स्वागत करने वालों में लक्ष्मीनारायण जारोलिया, पप्पू जारोलिया, हरदास पटेल, अशोक पटेल आदि शामिल हैं।
बेवर: महाशिव रात्रि के पावन पर्व पर काबड़ियों ने फर्रुखाबाद से जल भरकर विभिन्न शिवालयों में चढ़ाकर मन्नत मांगी तो कुछ काबड़ियों ने भोलेनाथ से पुन: जल लेकर आने का वादा किया।
श्रद्धा और विश्वास के महापर्व शिव रात्रि के दिन भोले बाबा के भक्तों ने घटिया घाट, श्रंगीरामपुर से जल भरकर पूरे मनोयोग के साथ पैदल चलकर कॉवर धारण कर मंछना, मैनपुरी हजारी मंदिर सरसईनावर में शिवालयों पर जल चढ़ाया।
कॉबड़ियों की टोली, भोले तेरी बम बम बम भोले के जयकारे लगाते हुए चल रहे थे। कॉबरधारी पुनीत दुबे, रानू शाक्य, पुष्पेन्द्र राठौर, शोभाराम, मुन्ना सिंह, मूलचन्द्र ने बताया कि कॉवर धारण करना कठिन व्रत है। जिसमें बहुत से नियमों का पालन करना अनिवार्य है।
भक्त जन होते हैं। एक तो ऐसे जिनकी मन्नत भोले बाबा पूरी कर चुके होते है तथा दूसरे जल चढ़ाकर मन्नत मांगकर पुन: आने का वादा करते है।
जल भरकर दूध वाले वृक्षों के नीचे से चलना सर्वथा मना है। भोले नाथ बड़े दयालू है। जो भी शिवलिंग पर पूजा अर्चन कर जल चढ़ता है भोले नाथ उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। हम लोग लगभग 75 किमी पैदल चलकर जल चढ़ाएंगे।
सर्वविदित है कि श्रावण के महीने में कॉवर चढ़ाना बेहद पुनीत माना जाता है। सच्ची भक्ति भावना से जो भी भोले बाबा के नाम की कॉवर चढ़ाता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
रांची, तैयार हो जाइए, बाबा भोले नाथ की पूजा में लीन होने के लिए। भगवान शिव का प्रसन्न करने के लिए। उनका जलाभिषेक करने का महीना आ गया है। भगवान शंकर को खुश करने का विशेष महीना श्रावण ( सावन ) आषढ खत्म होते ही शनिवार कृष्ण पक्ष 16 जुलाई से शुरु हो जायेगा। सावन की पहली सोमवारी 18 जुलाई को है। अगले सप्ताह से शुरु होने वाले सावन को लेकर शिवालयों और अन्य मंदिरों में विशेष तैयारियां की जा रही है। देवघर स्थित प्रसिध्द श्रावणी मेले की तैयारियों को भी अंतिम रुप दिया जा रहा है।
इधर, राजधानी रांची स्थित पहाड़ी मंदिर में भी सावन महीने को लेकर विशेष तैयारियां की गयी है। मंदिर को आकर्षक तरीके से संजाने-संवारने का काम चल रहा है। खूंटी स्थित अमरेश्वरधाम में भी तैयारियों को अंतिम रुप दिया जा रहा है।
इस सावन में चार सोमवारी
अगस्त को चौथी सोमवारी पडेगी। धार्मिक मान्यता है कि सावन की सोमवारी बाबा भोलेनाथ को जल चढाने से बाबा की असीम कृपा भक्तों को मिलती है। श्रध्दालु भक्त बाबा को जल चढाने के लिए कॉवर लेकर मिलो पैदल भी चलते हैं। सबसे अधिक भक्तों की भीड बाबा की नगरी देवघर पहुँचती है। वहीं कई श्रध्दालु भक्त वाराणसी और तारकेश्वर (पश्चिम बंगाल) आदि सावन सात्विक होने का महीना
सावन सात्विक हो कर बाबा की आराधना की विशेष महत्व है। मत्स्यपुराण के मुताबिक सावन में मछली को अंडा होता है यानि एक नये प्राणी का आगमन । इसी वजह से सावन में मछली खाने से लोग परहेज करते हैं। वहीं सावन माह में लहसून-प्याज को भी त्याग करते हैं।
संजने लगी हैं कांवर की दुकानें
सजने लगी हैं कॉवर की दुकानें, गेरुवा वस्त्र की सिलाई और नये स्टोक की बिक्री के लिए तैयार
पूरे ज़िलों एवं ग्रामीण क्षेत्रों तक बाबा भोले की नगरी देवघर जाने की तैयारी के लिए श्रध्दालु भक्त कॉवर की ख़रीदारी करते हैं ऐसे में नये स्टोक आ चुके हैं। इस सप्ताह बिक्री परवान पर होगी वहीं गेरुवा वस्त्र की नये स्टोक भी दुकानों में पहुँच चुके है। लोग वस्त्रों के अलावा झोले टॉर्च आदि की ख़रीदारी में लग गये हैं।
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संस्कृत सुभाषित एवं सूक्तियाँ हिन्दी में अर्थ सहित----
(१) न राज्यं न च राजासीत् , न दण्डो न च दाण्डिकः ।
स्वयमेव प्रजाः सर्वा , रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥
( न राज्य था और ना राजा था , न दण्ड था और न दण्ड देने वाला । स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी ॥ )
(२) रत्नं रत्नेन संगच्छते ।
( रत्न , रत्न के साथ जाता है )
(३) गुणः खलु अनुरागस्य कारणं , न बलात्कारः ।
( केवल गुण ही प्रेम होने का कारण है , बल प्रयोग नहीं )
(४) निर्धनता प्रकारमपरं षष्टं महापातकम् ।
( गरीबी दूसरे प्रकार से छठा महापातक है । )
(५) अपेयेषु तडागेषु बहुतरं उदकं भवति ।
( जिस तालाब का पानी पीने योग्य नहीं होता , उसमें बहुत जल भरा होता है । )
(६) अङ्गुलिप्रवेशात् बाहुप्रवेश: |
( अंगुली प्रवेश होने के बाद हाथ प्रवेश किया जता है । )
(७) अति तृष्णा विनाशाय.
( अधिक लालच नाश कराती है । )
(८) अति सर्वत्र वर्जयेत् ।
( अति ( को करने ) से सब जगह बचना चाहिये । )
(९) अजा सिंहप्रसादेन वने चरति निर्भयम्.
( शेर की कृपा से बकरी जंगल मे बिना भय के चरती है । )
(१०) अतिभक्ति चोरलक्षणम्.
( अति-भक्ति चोर का लक्षण है । )
(११) अल्पविद्या भयङ्करी.
( अल्पविद्या भयंकर होती है । )
(१२) कुपुत्रेण कुलं नष्टम्.
( कुपुत्र से कुल नष्ट हो जाता है । )
(१३) ज्ञानेन हीना: पशुभि: समाना:.
( ज्ञानहीन पशु के समान हैं । )
(१४) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे गर्दभी ह्यप्सरा भवेत्.
( सोलह वर्ष की होने पर गदही भी अप्सरा बन जाती है । )
(१५) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्.
( सोलह वर्ष की अवस्था को प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरण करना चाहिये । )
(१६) मधुरेण समापयेत्.
( मिठास के साथ ( मीठे वचन या मीठा स्वाद ) समाप्त करना चाहिये । )
(१७) मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना.
( हर व्यक्ति अलग तरह से सोचता है । )
(१८) शठे शाठ्यं समाचरेत् ।
( दुष्ट के साथ दुष्टता का वर्ताव करना चाहिये । )
(१९) सत्यं शिवं सुन्दरम्.
( सत्य , कल्याणकारी और सुन्दर । ( किसी रचना/कृति या विचार को परखने की कसौटी ) )
(२०) सा विद्या या विमुक्तये.
( विद्या वह है जो बन्धन-मुक्त करती है । )
(२१) त्रियाचरित्रं पुरुषस्य भग्यं दैवो न जानाति कुतो नरम् ।
( स्त्री के चरित्र को और पुरुष के भाग्य को भगवान् भी नहीं जानता , मनुष्य कहाँ लगता है । )
(२२) कामासक्त व्यक्ति की कोई चिकित्सा नहीं है। - नीतिवाक्यामृत-३।१२
- सबकी गति है एक सी अंत समय पर होय, जो आये हैं जायेंगे राजा रंक फ़कीर।
जनम होत नंगे भये, चौपायों की चाल, न वाणी न वाक्य थे पशुवत पाये शरीर।
धीरे धीरे बदल गये चौपायों से बन इंसान। वाक्य और वाणी मिली वस्त्र पहन कर हुये बने महान।
जाति बनी और ज्ञान बढ़ा तो बॉंट दिया फिर इंसान। अंत समय नंगे फिर भये, गये सब वेद शास्त्र और ज्ञान।।
- अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं।
- कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है।
- हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मो में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनता है।
- बहुमत की आवाज न्याय का द्योतक नही है।
- हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हो, परन्तु दुनिया हमे हमारे कर्मो के द्वारा पहचानती है|
- यदि आप मरने का डर है तो इसका यही अर्थ है की आप जीवन के महत्व को ही नहीं समझते|
- अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते है उतनी ही नम्रता आती है|
- मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है।
- अपने शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नही होता।
- मुस्कान प्रेम की भाषा है।
- सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है।
- अहंकार छोडे बिना सच्चा प्रेम नही किया जा सकता।
- अल्प ज्ञान खतरनाक होता है।
- कर्म सरल है, विचार कठिन।
- उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन।
- धन अपना पराया नही देखता।
- पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुभाषित। लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं।
- संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं ; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति।
- हजारों मष्तिषकों में बुद्धिपूर्ण विचार आते रहे हैं ।लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें।
- उच्चस्तरीय स्वार्थ का नाम ही परमार्थ है। परमार्थ के लिये त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने देता।
- जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। (जननी (माता) और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है) - महर्षि वाल्मीकि (रामायण)
- ऊँच अटारी मधुर वतास। कहैं घाघ घर ही कैलाश। - घाघ भड्डरी (अकबर के समकालीन, कानपुर ज़िले के निवासी)
- तुलसी इस संसार मे, सबसे मिलिये धाय। ना जाने किस रूप में नारायण मिल जाँय॥
- प्यार के अभाव में ही लोग भटकते हैं और भटके हुए लोग प्यार से ही सीधे रास्ते पर लाए जा सकते हैं। - ईसा मसीह
- जो हमारा हितैषी हो, दुख-सुख में बराबर साथ निभाए, गलत राह पर जाने से रोके और अच्छे गुणों की तारीफ करे, केवल वही व्यक्ति मित्र कहलाने के काबिल है। - वेद
- ज्ञानीजन विद्या विनय युक्त ब्राम्हण तथा गौ हाथी कुत्ते और चाण्डाल मे भी समदर्शी होते हैं।
- यदि सज्जनो के मार्ग पर पूरा नही चला जा सकता तो थोडा ही चले। सन्मार्ग पर चलने वाला पुरूष नष्ट नही होता।
- दुनिया में ही मिलते हैं हमे दोजखो-जन्नत। इंसान जरा सैर करे, घर से निकल कर॥ - दाग
- देश-प्रेम के दो शब्दों के सामंजस्य में वशीकरण मंत्र है, जादू का सम्मिश्रण है। यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। - बलभद्र प्रसाद गुप्त ‘रसिक’
- त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहां भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। - बस्र्आ
- स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है।
- शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम। (यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है / सारे अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते है)
- आहार, स्वप्न (नींद) और ब्रम्हचर्य इस शरीर के तीन स्तम्भ हैं। - महर्षि चरक
- मुक्त बाज़ार में स्वतंत्र अभिव्यक्ति भी न्याय, मानवाधिकार, पेयजल तथा स्वच्छ हवा की तरह ही उपभोक्ता-सामग्री बन चुकी है।यह उन्हें ही हासिल हो पाती हैं, जो उन्हें ख़रीद पाते हैं। वे मुक्त अभिव्यक्ति का प्रयोग भी उस तरह का उत्पादन बनाने में करते हैं जो सर्वथा उनके अनुकूल होता है। - अरुंधती राय
- ईश्वर ने तुम्हें सिर्फ एक चेहरा दिया है और तुम उस पर कई चेहरे चढ़ा लेते हो, जो व्यक्ति सोने का बहाना कर रहा है उसे आप उठा नहीं सकते। - नवाजो
- कुलीनता यही है और गुणों का संग्रह भी यही है कि सदा सज्जनों से सामने विनयपूर्वक सिर झुक जाए। - दर्पदलनम् १।२९
- गुणवान पुरुषों को भी अपने स्वरूप का ज्ञान दूसरे के द्वारा ही होता है। आंख अपनी सुन्दरता का दर्शन दर्पण में ही कर सकती है। - वासवदत्ता
- तुम प्लास्टिक सर्जरी करवा सकते हो, तुम सुन्दर चेहरा बनवा सकते हो, सुंदर आंखें सुंदर नाक, तुम अपनी चमड़ी बदलवा सकते हो, तुम अपना आकार बदलवा सकते हो। इससे तुम्हारा स्वभाव नहीं बदलेगा। भीतर तुम लोभी बने रहोगे, वासना से भरे रहोगे, हिंसा, क्रोध, ईर्ष्या, शक्ति के प्रति पागलपन भरा रहेगा। इन बातों के लिये प्लास्टिक सर्जन कुछ कर नहीं सकता। - ओशो
- विश्व एक महान पुस्तक है जिसमें वे लोग केवल एक ही पृष्ठ पढ पाते हैं जो कभी घर से बाहर नहीं निकलते। - आगस्टाइन
- धर्मरहित विज्ञान लंगडा है, और विज्ञान रहित धर्म अंधा। - आइन्स्टाइन
- सत्य को कह देना ही मेरा मज़ाक करने का तरीका है। संसार में यह सब से विचित्र मज़ाक है। - जार्ज बर्नार्ड शॉ
- आमतौर पर आदमी उन चीजों के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहता है जिनका उससे कोई लेना देना नहीं होता। - जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
- पुस्तक प्रेमी सबसे धनवान व सुखी होता है, संपूर्ण रूप से त्रुटिहीन पुस्तक कभी पढ़ने लायक़ नहीं होती। - जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
- सही या गलत कुछ भी नहीं है – यह तो सिर्फ सोच का खेल है, पूरी इमानदारी से जो व्यक्ति अपना जीविकोपार्जन करता है, उससे बढ़कर दूसरा कोई महात्मा नहीं है। - लिन यूतांग
- झूठ का कभी पीछा मत करो। उसे अकेला छोड़ दो। वह अपनी मौत खुद मर जायेगा। - लीमैन बीकर
- जो पाप में पड़ता है, वह मनुष्य है, जो उसमें पड़ने पर दुखी होता है, वह साधु है और जो उस पर अभिमान करता है, वह शैतान होता है। - फुलर
- आंदोलन से विद्रोह नहीं पनपता बल्कि शांति कायम रहती है। - वेडेल फिलिप्स
- मछली एवं अतिथि, तीन दिनों के बाद दुर्गन्धजनक और अप्रिय लगने लगते हैं। - बेंजामिन फ्रैंकलिन
- हँसमुख चेहरा रोगी के लिये उतना ही लाभकर है जितना कि स्वस्थ ऋतु। - बेन्जामिन
- यदि कोई लडकी लज्जा का त्याग कर देती है तो अपने सौन्दर्य का सबसे बडा आकर्षण खो देती है। - सेंट ग्रेगरी
- पुरुष के लिए प्रेम उसके जीवन का एक अलग अंग है पर स्त्री के लिए उसका संपूर्ण अस्तित्व है। - लार्ड बायरन
- दुनिया में सिर्फ दो सम्पूर्ण व्यक्ति हैं – एक मर चुका है, दूसरा अभी पैदा नहीं हुआ है।
प्रसिद्धि व धन उस समुद्री जल के समान है, जितना ज़्यादा हम पीते हैं, उतने ही प्यासे होते जाते हैं।
हम जानते हैं कि हम क्या हैं, पर ये नहीं जानते कि हम क्या बन सकते हैं। - शेक्सपीयर
- गहरी नदी का जल प्रवाह शांत व गंभीर होता है। - शेक्सपीयर
- क्लोज़-अप में जीवन एक त्रासदी (ट्रेजेडी) है, तो लंबे शॉट में प्रहसन (कॉमेडी)। - चार्ली चेपलिन
- आपके जीवन की खुशी आपके विचारों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। - मार्क ऑरेलियस अन्तोनियस
- हमेशा बत्तख की तरह व्यवहार रखो। सतह पर एकदम शांत, परंतु सतह के नीचे दीवानों की तरह पैडल मारते हुए। - जेकब एम ब्रॉदे
- जैसे जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं, सुंदरता भीतर घुसती जाती है। - रॉल्फ वाल्डो इमर्सन
- अव्यवस्था से जीवन का प्रादुर्भाव होता है, तो अनुक्रम और व्यवस्थाओं से आदत। - हेनरी एडम्स
- दृढ़ निश्चय ही विजय है, जब आपके पास कोई पैसा नहीं होता है तो आपके लिए समस्या होती है भोजन का जुगाड़| जब आपके पास पैसा आ जाता है तो समस्या सेक्स की हो जाती है, जब आपके पास दोनों चीज़ें हो जाती हैं तो स्वास्थ्य समस्या हो जाती है और जब सारी चीज़ें आपके पास होती हैं, तो आपको मृत्यु भय सताने लगता है। - जे पी डोनलेवी
- जब तुम्हारे खुद के दरवाजे की सीढ़ियाँ गंदी हैं तो पड़ोसी की छत पर पड़ी गंदगी का उलाहना मत दीजिए। - कनफ़्यूशियस
- यदि आपको रास्ते का पता नहीं है, तो जरा धीरे चलें। महान ध्येय (लक्ष्य) महान मस्तिष्क की जननी है। - इमन्स
- अध्ययन हमें आनन्द तो प्रदान करता ही है, अलंकृत भी करता है और योग्य भी बनाता है, मस्तिष्क के लिये अध्ययन की उतनी ही आवश्यकता है जितनी शरीर के लिये व्यायाम की। - जोसेफ एडिशन
- पढने से सस्ता कोई मनोरंजन नहीं; न ही कोई खुशी, उतनी स्थायी। - जोसेफ एडिशन
- सही किताब वह नहीं है जिसे हम पढ़ते हैं – सही किताब वह है जो हमें पढ़ता है। - डबल्यू एच ऑदेन
- पुस्तक एक बग़ीचा है जिसे जेब में रखा जा सकता है, किताबों को नहीं पढ़ना किताबों को जलाने से बढ़कर अपराध है। - रे ब्रेडबरी
- यदि किसी असाधारण प्रतिभा वाले आदमी से हमारा सामना हो तो हमें उससे पूछना चाहिये कि वो कौन सी पुस्तकें पढता है। - एमर्शन
- यदि आप इस बात की चिंता न करें कि आपके काम का श्रेय किसे मिलने वाला है तो आप आश्चर्यजनक कार्य कर सकते हैं। - हैरी एस. ट्रूमेन
- श्रेष्ठ आचरण का जनक परिपूर्ण उदासीनता ही हो सकती है। - काउन्ट रदरफ़र्ड
- प्रत्येक मनुष्य में तीन चरित्र होता है| एक जो वह दिखाता है, दूसरा जो उसके पास होता है, तीसरी जो वह सोचता है कि उसके पास है। - अलफ़ॉसो कार
- अनेक लोग वह धन व्यय करते हैं जो उनके द्वारा उपार्जित नहीं होता, वे चीज़ें ख़रीदते हैं जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती, उनको प्रभावित करना चाहते हैं जिन्हें वे पसंद नहीं करते। - जानसन
- कोई भी वस्तु निरर्थक या तुच्छ नही है। प्रत्येक वस्तु अपनी स्थिति मे सर्वोत्कृष्ट है। - लांगफेलो
- भूलना प्रायः प्राकृतिक है जबकि याद रखना प्रायः कृत्रिम है। - रत्वान रोमेन खिमेनेस
- हम उन लोगों को प्रभावित करने के लिये महंगे ढंग से रहते हैं जो हम पर प्रभाव जमाने के लिये महंगे ढंग से रहते है। - अनोन
- स्पष्टीकरण से बचें। मित्रों को इसकी आवश्यकता नहीं; शत्रु इस पर विश्वास नहीं करेंगे। - अलबर्ट हबर्ड
- अपनी आंखों को सितारों पर टिकाने से पहले अपने पैर जमीन में गड़ा लो। - थियोडॉर रूज़वेल्ट
- स्वास्थ्य के संबंध में, पुस्तकों पर भरोसा न करें। छपाई की एक गलती जानलेवा भी हो सकती है। - मार्क ट्वेन
- प्रेम वह सर्व-कुंजी (मास्टर की) है जो खुशियों के दरवाजे को खोलता है। – ओलिव्हर वेन्डेल होम्स
- धनवान आदमी और कुछ नहीं, सिर्फ धन-दौलत के साथ एक गरीब आदमी ही होता है। – डब्ल्यू. सी. फील्ड
- इस जीवन का प्रथम लक्ष्य है दूसरों की सहायता करना। और यदि आप दूसरों की सहायता नहीं कर सकते तो कम से कम उन्हें आहत तो न करें। – दलाई लामा
- हम धर्म और चिंतन के बिना रह सकते हैं किन्तु मानवीय प्रेम के बिना नहीं। – दलाई लामा
- क्या आप जानना चाहते हैं कि आप कौन हैं? तो किसी से पूछिये मत। कार्य करना शुरू कर दें। आपका कार्य आपको परिभाषित एवं चित्रित कर देगा। – थॉमस जेफर्सन
- मैं यह नहीं कहूँगा कि मैं 1000 बार असफल हुआ, मैं यह कहूँगा कि ऐसे 1000 रास्ते हैं जो आपको असफलता तक पहुँचाते हैं। – थॉमस एडिसन
- हर कोई इस संसार को बदल डालने के विषय में सोचता है किन्तु स्वयं को बदल डालने के विषय में कोई भी नहीं सोचता। – लियो टॉल्स्टाय
- हर किसी पर विश्वास कर लेना खतरनाक है; किसी पर भी विश्वास न करना बहुत खतरनाक है। – अब्राहम लिंकन
- चोट करने के लिए लोहे के गरम होने की प्रतीक्षा मत कीजिए, चोट मार-मार कर लोहे को गरम कर दीजिए। – स्प्रेग
- बिना कुछ किए बिताने वाले जीवन की अपेक्षा गलतियाँ करते हुए बिताने वाला जीवन अधिक सम्माननीय होता है। – जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
- प्रत्येक क्षण एक अनुभव है। – जेक रॉबर्ट्स
- प्रत्येक उतकृष्ट कार्य पहले पहल असम्भव होता है। – थॉमस कार्लेले
- विश्व के सर्वोत्कॄष्ट कथनों और विचारों का ज्ञान ही संस्कृति है। — मैथ्यू अर्नाल्ड
- सही मायने में बुद्धिपूर्ण विचार हजारों दिमागों में आते रहे हैं। लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें। — गोथे
- किसी कम पढे व्यक्ति द्वारा सुभाषित पढना उत्तम होगा। — सर विंस्टन चर्चिल
- बुद्धिमानो की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है। — आईजक दिसराली
- विज्ञान हमे ज्ञानवान बनाता है लेकिन दर्शन (फिलासफी) हमे बुद्धिमान बनाता है। — विल्ल डुरान्ट
- अच्छे मित्रों को पाना कठिन, वियोग कष्टकारी और भूलना असम्भव होता है। — रैन्डाल्फ
- बाँटो और राज करो, एक अच्छी कहावत है; (लेकिन) एक होकर आगे बढो, इससे भी अच्छी कहावत है। — गोथे
- किसी दूसरे को अपना स्वप्न बताने के लिए लोहे का ज़िगर चाहिए होता है। – एरमा बॉम्बेक
- ‘भय’ और ‘घृणा’ ये दोनों भाई-बहन लाख बुरे हों पर अपनी मां बर्बरता के प्रति बहुत ही भक्ति रखते हैं। जो कोई इनका सहारा लेना चाहता है, उसे ये सब से पहले अपनी मां के चरणों में डाल जाते हैं। - बर्ट्रेंड रसेल
- डर सदैव अज्ञानता से पैदा होता है। – एमर्सन
- गलती करने में कोई गलती नहीं है। गलती करने से डरना सबसे बडी गलती है। — एल्बर्ट हब्बार्ड
- अपनी गलती स्वीकार कर लेने में लज्जा की कोई बात नहीं है। इससे दूसरे शब्दों में यही प्रमाणित होता है कि कल की अपेक्षा आज आप अधिक समझदार हैं। — अलेक्जेन्डर पोप
- जीवन के आरम्भ में ही कुछ असफलताएँ मिल जाने का बहुत अधिक व्यावहारिक महत्व है। — हक्सले
- जो कभी भी कहीं असफल नही हुआ वह आदमी महान नही हो सकता। — हर्मन मेलविल
- असफलता आपको महान कार्यों के लिये तैयार करने की प्रकृति की योजना है। — नैपोलियन हिल
- प्रत्येक व्यक्ति को सफलता प्रिय है लेकिन सफल व्यक्तियों से सभी लोग घृणा करते हैं। — जान मैकनरो
- हार का स्वाद मालूम हो तो जीत हमेशा मीठी लगती है। — माल्कम फोर्बस
- मैं नही जानता कि सफलता की सीढी क्या है; पर असफला की सीढी है, हर किसी को प्रसन्न करने की चाह। — बिल कोस्बी
- आप हर इंसान का चरित्र बता सकते हैं यदि आप देखें कि वह प्रशंसा से कैसे प्रभावित होता है। — सेनेका
- मेरी चापलूसी करो, और मैं आप पर भरोसा नहीं करुंगा. मेरी आलोचना करो, और मैं आपको पसंद नहीं करुंगा। मेरी उपेक्षा करो, और मैं आपको माफ़ नहीं करुंगा. मुझे प्रोत्साहित करो, और मैं कभी आपको नहीं भूलूंगा। – विलियम ऑर्थर वार्ड
- रुपए ने कहा, मेरी फिक्र न कर – पैसे की चिन्ता कर। – चेस्टर फ़ील्ड
- गरीब वह है जिसकी अभिलाषायें बढी हुई हैं। — डेनियल
- अच्छी व्यवस्था ही सभी महान कार्यों की आधारशिला है। – एडमन्ड बुर्क
- सभ्यता सुव्यस्था के जन्मती है, स्वतन्त्रता के साथ बडी होती है और अव्यवस्था के साथ मर जाती है। — विल डुरान्ट
- अपने काम पर मै सदा समय से 15 मिनट पहले पहुँचा हूँ और मेरी इसी आदत ने मुझे कामयाब व्यक्ति बना दिया है। – एनॉन
- आशावादी को हर खतरे में अवसर दीखता है और निराशावादी को हर अवसर मे खतरा। — विन्स्टन चर्चिल
- अवसर के रहने की जगह कठिनाइयों के बीच है। — अलबर्ट आइन्स्टाइन
- यदि शांति पाना चाहते हो, तो लोकप्रियता से बचो। — अब्राहम लिंकन
- आत्मविश्वास बढाने की यह रीति है कि वह का करो जिसको करते हुए डरते हो। — डेल कार्नेगी
- मुस्कराओ, क्योकि हर किसी में आत्म्विश्वास की कमी होती है, और किसी दूसरी चीज की अपेक्षा मुस्कान उनको ज्यादा आश्वस्त करती है। – एन्ड्री मौरोइस
- सही प्रश्न पूछना मेधावी बनने का मार्ग है। — स्टीनमेज
- जो प्रश्न पूछता है वह पाँच मिनट के लिये मूर्ख बनता है लेकिन जो नही पूछता वह जीवन भर मूर्ख बना रहता है। – रुडयार्ड किपलिंग
- पठन किसी को सम्पूर्ण आदमी बनाता है, वार्तालाप उसे एक तैयार आदमी बनाता है, लेकिन लेखन उसे एक अति शुद्ध आदमी बनाता है। — बेकन
- मैं यह जानने के लिये लिखता हूँ कि मैं सोचता क्या हूँ। — ग्राफिटो
- दुःखी होने पर प्रायः लोग आंसू बहाने के अतिरिक्त कुछ नहीं करते लेकिन जब वे क्रोधित होते हैं तो परिवर्तन ला देते हैं। - माल्कम एक्स
- नेतृत्व का रहस्य है, आगे-आगे सोचने की कला। — मैरी पार्कर फोलेट
- हमारी शक्ति हमारे निर्णय करने की क्षमता में निहित है। — फुलर
- ज्ञान की अपेक्षा अज्ञान ज्यादा आत्मविश्वास पैदा करता है। — चार्ल्स डार्विन
- संसार मे समस्या यह है कि मूढ लोग अत्यन्त सन्देहरहित होते है और बुद्धिमान सन्देह से परिपूर्ण। — जार्ज बर्नार्ड शा
- अपनी याददास्त के सहारे जीने के बजाय अपनी कल्पना के सहरे जिओ। — लेस ब्राउन
- एकाग्रता ही सभी नश्वर सिद्धियों का शाश्वत रहस्य है। — स्टीफन जेविग
- तर्क, आप को किसी एक बिन्दु 'क' से दूसरे बिन्दु 'ख' तक पहुँचा सकते हैं। लेकिन, कल्पना, आप को सर्वत्र ले जा सकती है। — अलबर्ट आइन्सटीन
- प्रत्येक व्यक्ति के लिये उसके विचार ही सारे तालो की चाबी हैं। — इमर्सन
- सर्वोत्तम मानव मस्तिष्क की पहचान है, किन्हीं दो पूर्णतः विपरीत विचार धाराऒं को साथ-साथ ध्यान में रखते हुए भी स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता का होना। — स्काट फिट्जेराल्ड
- आओं हम मौन रहें ताकि फ़रिस्तों की कानाफूसियाँ सुन सकें। — एमर्शन
- मौन निद्रा के सदृश है। यह ज्ञान में नयी स्फूर्ति पैदा करता है। — बेकन
- ग़लतियाँ मत ढूंढो, उपाय ढूंढो। – हेनरी फ़ोर्ड
- जब तक आप ढूंढते रहेंगे, समाधान मिलते रहेंगे। – जॉन बेज
- जो कुछ आप कर सकते हैं या कर जाने की इच्छा रखते है उसे करना आरम्भ कर दीजिये। निर्भीकता के अन्दर मेधा (बुद्धि), शक्ति और जादू होते हैं। — गोथे
- आरम्भ कर देना ही आगे निकल जाने का रहस्य है। - सैली बर्जर
- सम्पूर्ण जीवन ही एक प्रयोग है। जितने प्रयोग करोगे उतना ही अच्छा है। — इमर्सन
- सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप चौबीस घण्टे मे कितने प्रयोग कर पाते है। — एडिशन
- उच्च कर्म महान मस्तिष्क को सूचित करते हैं। — जान फ़्लीचर
- मानव के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है। — लाक
- जब कोई व्यक्ति ठीक काम करता है, तो उसे पता तक नहीं चलता कि वह क्या कर रहा है पर गलत काम करते समय उसे हर क्षण यह ख्याल रहता है कि वह जो कर रहा है, वह गलत है। - गेटे
- अंतर्दृष्टि के बिना ही काम करने से अधिक भयानक दूसरी चीज नहीं है। — थामस कार्लाइल
- एक समय मे केवल एक काम करना बहुत सारे काम करने का सबसे सरल तरीका है। — सैमुएल स्माइल
- कठिन परिश्रम से भविष्य सुधरता है। आलस्य से वर्तमान। – स्टीवन राइट
- ज्ञान प्राप्ति से अधिक महत्वपूर्ण है अलग तरह से बूझना या सोचना। – डेविड बोम (1917-1992)
- खाली दिमाग को खुला दिमाग बना देना ही शिक्षा का उद्देश्य है। - फ़ोर्ब्स
- अट्ठारह वर्ष की उम्र तक इकट्ठा किये गये पूर्वाग्रहों का नाम ही सामान्य बुद्धि है। — आइन्स्टीन
- शिक्षा और प्रशिक्षण का एकमात्र उद्देश्य समस्या-समाधान होना चाहिये। — जार्ज बर्नार्ड शा
- एकाग्र-चिन्तन वांछित फल देता है। - जिग जिग्लर
- दिमाग पैराशूट के समान है, वह तभी कार्य करता है जब खुला हो। — जेम्स देवर
- सारी चीजों के बारे मे कुछ-कुछ और कुछेक के बारे मे सब कुछ सीखने कीकोशिश करनी चाहिये। — थामस ह. हक्सले
- शिक्षा , राष्ट्र की सस्ती सुरक्षा है। — बर्क
- अपनी अज्ञानता का अहसास होना ज्ञान की दिशा में एक बहुत बडा कदम है। — डिजरायली
- ज्ञान एक खजाना है, लेकिन अभ्यास इसकी चाभी है। — थामस फुलर
- विवेक की सबसे प्रत्यक्ष पहचान, सतत प्रसन्नता है। — मान्तेन
- भविष्य के बारे में पूर्वकथन का सबसे अच्छा तरीका भविष्य का निर्माण करना है। — डा. शाकली
- किसी भी व्यक्ति का अतीत जैसा भी हो, भविष्य सदैव बेदाग होता है। — जान राइस
- निराशा मूर्खता का परिणाम है। - डिज़रायली
- दो आदमी एक ही वक्त जेल की सलाखों से बाहर देखते हैं, एक को कीचड़ दिखायी देता है और दूसरे को तारे — फ्रेडरिक लेंगब्रीज
- भारत हमारी संपूर्ण (मानव) जाति की जननी है तथा संस्कृत यूरोप के सभी भाषाओं की जननी है: भारतमाता हमारे दर्शनशास्त्र की जननी है, अरबॊं के रास्ते हमारे अधिकांश गणित की जननी है, बुद्ध के रास्ते इसाईयत मे निहित आदर्शों की जननी है, ग्रामीण समाज के रास्ते स्व-शाशन और लोकतंत्र की जननी है। अनेक प्रकार से भारत माता हम सबकी माता है। — विल्ल डुरान्ट, अमरीकी इतिहासकार
- हम भारतीयों के बहुत ऋणी हैं जिन्होने हमे गिनना सिखाया, जिसके बिना कोई भी मूल्यवान वैज्ञानिक खोज सम्भव नही होती। — अलबर्ट आइन्स्टीन
- भारत मानव जाति का पलना है, मानव-भाषा की जन्मस्थली है, इतिहास की जननी है, पौराणिक कथाओं की दादी है, और प्रथाओं की परदादी है। मानव इतिहास की हमारी सबसे कीमती और सबसे ज्ञान-गर्भित सामग्री केवल भारत में ही संचित है। — मार्क ट्वेन
- कम्प्यूटर को प्रोग्राम करने के लिये संस्कृत सबसे सुविधाजनक भाषा है। — फोर्ब्स पत्रिका (जुलाई, 1987)
- हमे सीमित मात्रा में निराशा को स्वीकार करना चाहिये, लेकिन असीमित आशा को नहीं छोडना चाहिये। — मार्टिन लुथर किंग
- सम्पूर्णता (परफ़ेक्शन) के नाम पर घबराइए नहीं| आप उसे कभी भी नहीं पा सकते। – सल्वाडोर डाली
- जो भी प्रतिभा आपके पास है उसका इस्तेमाल करें। जंगल में नीरवता होती यदि सबसे अच्छा गीत सुनाने वाली चिड़िया को ही चहचहाने की अनुमति होती। – हेनरी वान डायक
- धीरज प्रतिभा का आवश्यक अंग है। — डिजरायली
- सत्य को कह देना ही मेरा मजाक का तरीका है। संसार मे यह सबसे विचित्र मजाक है। – जार्ज बर्नाड शा
- अच्छा ही होगा यदि आप हमेशा सत्य बोलें, सिवाय इसके कि तब जब आप उच्च कोटि के झूठे हों। – जेरोम के जेरोम
- किसी व्यक्ति को एक मछली दे दो तो उसका पेट दिन भर के लिए भर जाएगा। उसे इंटरनेट चलाना सिखा दो तो वह हफ़्तों आपको परेशान नहीं करेगा। - एनन
- यदि आप को 100 रूपए बैंक का ऋण चुकाना है तो यह आपका सिरदर्द है। और यदि आप को 10 करोड़ रुपए चुकाना है तो यह बैंक का सिरदर्द है। - पाल गेटी
- विकल्पों की अनुपस्थिति मस्तिष्क को बड़ी राहत देती है। – हेनरी किसिंजर
- धर्मरहित विज्ञान लंगडा है, और विज्ञान रहित धर्म अंधा। — आइन्स्टाइन
- झूट का कभी पीछा मत करो। उसे अकेला छोड़ दो। वह अपनी मौत खुद मर जायेगा। - लीमैन बीकर
- गहरी नदी का जल प्रवाह शांत व गंभीर होता है। – शेक्सपीयर
- संयम और श्रम मानव के दो सर्वोत्तम चिकित्सक हैं। श्रम से भूख तेज होती है और संयम अतिभोग को रोकता है। — रूसो
- चींटी से अच्छा उपदेशक कोई और नहीं है। वह काम करते हुए खामोश रहती है। - बैंजामिन फ्रैंकलिन
- विजेता उस समय विजेता नहीं बनते, जब वे किसी प्रतियोगिता को जीतते हैं! विजेता तो वे उन घंटों, सप्ताहों महीनों और वर्षों में बनते हैं, जब वे इसकी तयारी कर रहे होते हैं! - टी एलन आर्मस्ट्रांग
- जो तर्क को अनसुना कर देते हैं, वह कटर हैं! जो तर्क ही नहीं कर सकते, वह मुर्ख हैं और जो तर्क करने का साहस ही नहीं दिखा सकते, वह गुलाम हैं! - विलियम ड्रूमंड
- यदि कोई व्यक्ति अपने धन को ज्ञान अर्जित करने में ख़र्च करता है, तो उससे उस ज्ञान को कोई नहीं छीन सकता! ज्ञान के लिए किये गए निवेश में हमेशा अच्छा प्रतिफल प्राप्त होता है! - बेंजामिन फ्रेंकलिन
- यह मत मानिये की जीत ही सब कुछ है, अधिक महत्त्व इस बात का है, की आप किसी आदर्श के लिए संघर्षरत हों! यदि आप आदर्श पर ही नहीं डट सकते, तो जीतोगे क्या? - लेन कर्कलैंड
- जब तुम नही होगे, तब तुम पहली बार होगे। - आचार्य रजनीश
- तुम मुझे खून दो, मै तुन्हे आजादी दूँगा। - नेता जी सुभाषचंद्र बोस
- मै एक मजदूर हूँ। जिस दिन कुछ लिख न लूँ, उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं। - प्रेमचंद
- चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी न जाएं। - प्रेमचन्द
- निराशा सम्भव को असम्भव बना देती है। — प्रेमचन्द
- संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति। — चाणक्य
- कुबेर भी यदि आय से अधिक व्यय करे तो निर्धन हो जाता है। – चाणक्य
- कविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है। – रामधारी सिंह दिनकर
- कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है। — रामधारी सिंह दिनकर
- कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी। – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल। बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल॥ — भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
- सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता है। – अनंत गोपाल शेवड़े
- जो कोई भी हों, सैकडो मित्र बनाने चाहिये। देखो, मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे। — पंचतंत्र
- सत्संगतिः स्वर्गवास: (सत्संगति स्वर्ग में रहने के समान है) — पंचतंत्र
- भय से तब तक ही डरना चाहिये जब तक भय (पास) न आया हो। आये हुए भय को देखकर बिना शंका के उस पर प्रहार करना चाहिये। — पंचतंत्र
- जिसके पास बुद्धि है, बल उसी के पास है। (बुद्धिः यस्य बलं तस्य) — पंचतंत्र
- मौनं सर्वार्थसाधनम्। — पंचतन्त्र (मौन सारे काम बना देता है)
- को लाभो गुणिसंगमः (लाभ क्या है? गुणियों का साथ) — भर्तृहरि
- दान , भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं। जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति (नाश) होती है। — भर्तृहरि
- गगन चढहिं रज पवन प्रसंगा। (हवा का साथ पाकर धूल आकाश पर चढ जाता है) — गोस्वामी तुलसीदास
- एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है। – अज्ञात
- वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे। – अज्ञात
- शुभारम्भ, आधा खतम। - अज्ञात
- चींटी से परिश्रम करना सीखें। — अज्ञात
- सबसे अधिक ज्ञानी वही है जो अपनी कमियों को समझकर उनका सुधार कर सकता हो। - अज्ञात
- दिमाग जब बडे-बडे विचार सोचने के अनुरूप बडा हो जाता है, तो पुनः अपने मूल आकार में नही लौटता। — अज्ञात
- आत्महत्या, एक अस्थायी समस्या का स्थायी समाधान है। — अज्ञात
- हँसते हुए जो समय आप व्यतीत करते हैं, वह ईश्वर के साथ व्यतीत किया समय है। — अज्ञात
- क्रोध सदैव मूर्खता से प्रारंभ होता है और पश्चाताप पर समाप्त। — अज्ञात
- यदि आवश्यकता आविष्कार की जननी (माता) है, तो असन्तोष विकास का जनक (पिता) है। — अज्ञात
- हे भगवान! मुझे धैर्य दो, और ये काम अभी करो। — अज्ञात
- यदि बुद्धिमान हो, तो हँसो। — अज्ञात
- मुस्कान पाने वाला मालामाल हो जाता है पर देने वाला दरिद्र नहीं होता। — अज्ञात
- पुरुष से नारी अधिक बुद्धिमती होती है, क्योंकि वह जानती कम है पर समझती अधिक है। - अज्ञात
- किसी की करुणा व पीड़ा को देख कर मोम की तरह दर्याद्र हो पिघलनेवाला ह्रदय तो रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं के थपेड़े खाते रहने की स्थिति में चट्टान की तरह दृढ़ व ठोस भी बने रहो। - द्रोणाचार्य
- यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, मगर ऐसे लोग कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। - वल्लभभाई पटेल
- अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है। कायरों की नहीं। – जवाहरलाल नेहरू
- अभय-दान सबसे बडा दान है। — विवेकानंद
- कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो, आंखे मूंदकर उसके पीछे न चलिए। यदि ईश्वर की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को आंख, नाक, कान, मुंह, मस्तिष्क आदि क्यों देता ? - विवेकानंद
- भय से ही दुख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयां उत्पन्न होती हैं। — विवेकानंद
- असफलता यह बताती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं किया गया। — श्रीराम शर्मा आचार्य
- शारीरिक गुलामी से बौद्धिक गुलामी अधिक भयंकर है। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- ग्रन्थ, पन्थ हो अथवा व्यक्ति, नहीं किसी की अंधी भक्ति। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- जैसी जनता, वैसा राजा। प्रजातन्त्र का यही तकाजा॥ — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- केवल वे ही असंभव कार्य को कर सकते हैं जो अदृष्य को भी देख लेते हैं। — श्रीराम शर्मा आचार्य
- नहीं संगठित सज्जन लोग। रहे इसी से संकट भोग॥ — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- मनुष्य की वास्तविक पूँजी धन नहीं, विचार हैं। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- प्रज्ञा-युग के चार आधार होंगे - समझदारी, इमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- मनःस्थिति बदले, तब परिस्थिति बदले। - पं श्रीराम शर्मा आचार्य
- रचनात्मक कार्यों से देश समर्थ बनेगा। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- संसार का सबसे बडा दिवालिया वह है जिसने उत्साह खो दिया। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- समाज के हित में अपना हित है। — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- सुख में गर्व न करें, दुःख में धैर्य न छोड़ें। - पं श्री राम शर्मा आचार्य
- उसी धर्म का अब उत्थान, जिसका सहयोगी विज्ञान॥ — श्रीराम शर्मा, आचार्य
- यहाँ दो तरह के लोग होते हैं - एक वो जो काम करते हैं और दूसरे वो जो सिर्फ क्रेडिट लेने की सोचते है। कोशिश करना कि तुम पहले समूह में रहो क्योंकि वहाँ कम्पटीशन कम है। — इंदिरा गांधी
- यदि असंतोष की भावना को लगन व धैर्य से रचनात्मक शक्ति में न बदला जाये तो वह खतरनाक भी हो सकती है। — इंदिरा गांधी
- मेरी हार्दिक इच्छा है कि मेरे पास जो भी थोड़ा-बहुत धन शेष है, वह सार्वजनिक हित के कामों में यथाशीघ्र खर्च हो जाए। मेरे अंतिम समय में एक पाई भी न बचे, मेरे लिए सबसे बड़ा सुख यही होगा। - पुरुषोत्तमदास टंडन
- गरीबी दैवी अभिशाप नहीं बल्कि मानवरचित षडयन्त्र है। — महात्मा गाँधी
- हमें वह परिवर्तन खुद बनना चाहिये जिसे हम संसार मे देखना चाहते हैं। — महात्मा गाँधी
- ‘अहिंसा’ भय का नाम भी नहीं जानती। - महात्मा गांधी
- सब से अधिक आनंद इस भावना में है कि हमने मानवता की प्रगति में कुछ योगदान दिया है। भले ही वह कितना कम, यहां तक कि बिल्कुल ही तुच्छ क्यों न हो? - डा. राधाकृष्णन
- धर्म , व्यक्ति एवं समाज, दोनों के लिये आवश्यक है। — डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
- खुदी को कर बुलन्द इतना, कि हर तकदीर के पहले। खुदा बंदे से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है? — अकबर इलाहाबादी
- मनुष्य अपनी दुर्बलता से भली-भांति परिचित रहता है, पर उसे अपने बल से भी अवगत होना चाहिये। — जयशंकर प्रसाद
- ज्ञान प्राप्ति का एक ही मार्ग है जिसका नाम है, एकाग्रता। शिक्षा का सार है, मन को एकाग्र करना, तथ्यों का संग्रह करना नहीं। — श्री माँ
- जो भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है। – डा. विक्रम साराभाई
- आत्मदीपो भवः। (अपना दीपक स्वयं बनो ।) — गौतम बुद्ध
- मौन और एकान्त, आत्मा के सर्वोत्तम मित्र हैं। — बिनोवा भावे
- मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है। – विनोबा
- हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है। — आचार्य विनबा भावे
- मौन, क्रोध की सर्वोत्तम चिकित्सा है। — स्वामी विवेकानन्द
- महान कार्य महान त्याग से ही सम्पन्न होते हैं। — स्वामी विवेकानन्द
- ज्ञानं भार: क्रियां बिना। आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है। — हितोपदेश
- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्। (कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है, फल में कभी भी नहीं) — गीता
- छोटा आरम्भ करो, शीघ्र आरम्भ करो। — रघुवंश महाकाव्यम्
- हजारों मील की यात्रा भी प्रथम चरण से ही आरम्भ होती है। — चीनी कहावत
- जो जानता नही कि वह जानता नही,वह मुर्ख है - उसे दुर भगाओ। जो जानता है कि वह जानता नही, वह सीधा है - उसे सिखाओ। जो जानता नही कि वह जानता है, वह सोया है - उसे जगाओ। जो जानता है कि वह जानता है, वह सयाना है - उसे गुरू बनाओ। — अरबी कहावत
- ईश्वर से प्रार्थना करो, पर अपनी पतवार चलाते रहो। – वेदव्यास
- जो प्राणिमात्र के लिये अत्यन्त हितकर हो, मै इसी को सत्य कहता हूँ। — वेद व्यास
- अकर्मण्य मनुष्य श्रेष्ठ होते हुए भी पापी है। - ऐतरेय ब्राह्मण - ३३।३
- मैं अपने ट्रेनिंग सत्र के प्रत्येक मिनट से घृणा करता था, परंतु मैं कहता था – 'भागो मत, अभी तो भुगत लो, और फिर पूरी जिंदगी चैम्पियन की तरह जिओ' – मुहम्मद अली
- सूरज और चांद को आप अपने जन्म के समय से ही देखते चले आ रहे हैं। फिर भी यह नहीं जान पाये कि काम कैसे करने चाहिए? - रामतीर्थ
- बच्चों को शिक्षा के साथ यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वह मात्र एक व्यक्ति नहीं है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। उससे कुछ भी गलत हो जाएगा तो उसकी और उसके परिवार की ही नहीं बल्कि पूरे समाज और पूरे देश की दुनिया में बदनामी होगी। बचपन से उसे यह सिखाने से उसके मन में यह भावना पैदा होगी कि वह कुछ ऐसा करे जिससे कि देश का नाम रोशन हो। योग-शिक्षा इस मार्ग पर बच्चे को ले जाने में सहायक है। - स्वामी रामदेव
- बुरे आदमी के साथ भी भलाई करनी चाहिए – कुत्ते को रोटी का एक टुकड़ा डालकर उसका मुंह बन्द करना ही अच्छा है। – शेख सादी
- खुदा एक दरवाजा बन्द करने से पहले दूसरा खोल देता है, उसे प्रयत्न कर देखो। – शेख सादी
- घमंड करना जाहिलों का काम है। - शेख सादी
- जिस प्रकार राख से सना हाथ जैसे-जैसे दर्पण पर घिसा जाता है, वैसे-वैसे उसके प्रतिबिंब को साफ करता है, उसी प्रकार दुष्ट जैसे-जैसे सज्जन का अनादर करता है, वैसे-वैसे वह उसकी कांति को बढ़ाता है। - वासवदत्ता
- सांप के दांत में विष रहता है, मक्खी के सिर में और बिच्छू की पूंछ में किन्तु दुर्जन के पूरे शरीर में विष रहता है। – कबीर
- जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है, उसी तरह गुणी ही गुणवान् की पहचान कर सकता है। – कबीर
- अरूणोदय के पूर्व सदैव घनघोर अंधकार होता है। — मैथिलीशरण गुप्त
- नर हो न निराश करो मन को। कुछ काम करो, कुछ काम करो। जग में रहकर कुछ नाम करो॥ — मैथिलीशरण गुप्त
- मनुष्य के लिए निराशा के समान दूसरा पाप नहीं है। इसलिए मनुष्य को पापरूपिणी निराशा को समूल हटाकर आशावादी बनना चाहिए। - हितोपदेश
- उर्दू लिखने के लिये देवनागरी अपनाने से उर्दू उत्कर्ष को प्राप्त होगी। — खुशवन्त सिंह
- जो मनुष्य अपने क्रोध को अपने वश में कर लेता है, वह दूसरों के क्रोध से (फलस्वरूप) स्वयमेव बच जाता है। – सुकरात
- जब तुम दु:खों का सामना करने से डर जाते हो और रोने लगते हो, तो मुसीबतों का ढेर लग जाता है। लेकिन जब तुम मुस्कराने लगते हो, तो मुसीबतें सिकुड़ जाती हैं। – सुधांशु महाराज
- धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है। — डा. शंकरदयाल शर्मा
- कस्र्णा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है। – सुदर्शन
- जो पाप में पड़ता है, वह मनुष्य है, जो उसमें पड़ने पर दुखी होता है, वह साधु है और जो उस पर अभिमान करता है, वह शैतान होता है। - फुलर
- नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिये, इसी प्रकार साधक जग में रहे लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिये। — रामकृष्ण परमहंस
- जिस हरे-भरे वृक्ष की छाया का आश्रय लेकर रहा जाए, पहले उपकारों का ध्यान रखकर उसके एक पत्ते से भी द्रोह नहीं करना चाहिए। - महाभारत
- नेकी कर और दरिया में डाल। - किस्सा हातिमताई
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वृक्ष तथा विभिन्न वनस्पतियां धारती पर हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी हैं। भारतीय संस्कृति में भी प्राचीन समय से ही वृक्षो तथा वनस्पतियों को पूजनीय माना जाता रहा हैं। विभिन्न वनस्पतियां हमारे स्वास्थ्य की रक्षा में भी सहायक सिद्ध होती हैं। ऐसा ही एक छोटा परन्तु बहुत महत्त्वपूर्ण पौधा तुलसी है। तुलसी को हजारों वर्षों से विभिन्न रोगों के इलाज के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जा रहा हैं। आयुर्वेद में भी तुलसी तथा उसके विभिन्न औषधीय प्रयोगों का विशेष स्थान हैं। आपके आंगन में लगा छोटा सा तुलसी का पौधा, अनेक बीमारियो का इलाज करने के आचर्यजनक गुण लिए हुए होता हैं।
सर्दी के मौसम में खांसी जुकाम होना एक आम समस्या हैं। इनसे बचे रहने का सबसे सरल उपाय है तुलसी की चाय। तुलसी की चाय बनाने के लिए, तुलसी की दस पन्द्रह ग्राम ताजी पत्रितयां लें और धो कर कुचल लें। फिर उसे एक कप पानी में डालें उसमें पीपला मूल, सौंठ, इलायची पाउड़र तथा एक चम्मच चीनी मिला लें, इस मिश्रण को उबालकर बिना छाने सुबह गर्मा-गर्म पीना चाहिये। इस प्रकार की चाय पीने से शरीर में चुस्ती स्फूर्ति आती है और भूख बढ़ती हैं। जिन लोगों को सर्दियों में बारबार चाय पीने की आदत है। उनके लिए तुलसी की चाय बहुत लाभदायक होगी। जो न केवल उन्हें स्वास्थ्य लाभ देगी अपितु उन्हें साधारण चाय के हानिकारक प्रभावो से भी बचाएगीं।
सर्दी, जवर, अरूचि, सुस्ती, दाह, वायु तथा पित्त संबंधी विकारों को दूर करने के लिए भी तुलसी की औषधीय रचना और अपना महत्व हैं। इसके लिए तुलसी की दस पन्द्रह ग्राम ताजी धुली पत्तियों को लगभग 150 ग्राम पानी में उबाल लें। जब लगभग आधा या चौथाई पानी ही शेष रह जाए। तो उसमें उतनी ही मात्रा में दूध तथा जरूरत के अनुसार मिश्री मिला लें। यह अनेक रोगों को तो दूर करता ही है साथ ही क्षुधावर्धक भी होता हैं। इसी विधि के अनुसार काढ़ा बनाकर उसमें एक दो इलायची का चूर्ण और दस पन्द्रह सुधामूली डालकर सर्दियों में पीना बहुत लाभकारी होता हैं। इसमें शारीरिक पुष्टता बढ़ती हैं। तुलसी के पत्ते का चूर्ण बनाकर मर्तबान में रख लें, जब भी चाय बनाएं तो दस पन्द्रह ग्राम इस चूर्ण का प्रयोग करें यह चाय ज्वर, दमा, जुकाम, कफ तथा गले के रोगों के लिए बहुत लाभकारी हैं।
तुलसी का काढ़ा बनाने के लिए तीन चार काली मिर्च के साथ तुलसी की सात आठ पत्रितयों को रगड़ लें और अच्छी तरह मिलाकर एक गिलास द्रव तैयार करें इक्कीस दिनों तक सुबह लगातार ख़ाली पेट इस काढ़े का सेवन करने से मस्तिष्क की गर्मी दूर होती है और उसे शांति मिलती हैं। क्योंकि यह काढ़ा हृदयोत्तेजक होता है, इसलिए यह हृदय को पुष्ट करता है और हृदय संबंधी रोगों से बचाव करता हैं।
एसिडिटी संधिवात मधुमेह, स्थूलता, खुजली, यौन दुर्बलता, प्रदाह आदि अनेक बीमारियों के उपचार के लिए तुलसी की चटनी बनाई जा सकती हैं। इसके लिए लगभग दस-दस ग्राम धानिया, पुदिना लें उसमें थोड़ा सा लहसुन अदरख, सेंधा नमक, खजूर का गुड़, अंकुरित मेथी, अंकुरित चने, अंकुरित मूग, तिल और लगभग पांच ग्राम तुलसी के पत्ते मिलाकर महीन पीस लें। अब इसमें एक नींबू का रस और लगभग पन्द्रह ग्राम नारियल की छीन डाले। इस चटनी को रोटी के साथ या साग में मिलाकर खाया जा सकता हैं। चटनी से कैल्शियम, पोटेशियम, गंधाक, आयरन, प्रोटीन तथा एन्जाइम आदि हमारे शरीर को प्राप्त होते हैं। एक बात ध्यान रखें कि यह चटनी दो घांटे तक ही अच्छी रहती है। अत: इसका प्रयोग सदा ताजा बनाकर ही करें दो घांटे के बाद इसके गुण में परिवर्तन आ जाता हैं। इस चटनी को कभी फ्रिज में नहीं रखें।
शीतऋतु में तुलसी का पाक भी एक गुणकारी औषधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता हैं। इसके लिए तुलसी के बीजों को निकाल कर आटे जैसा बारीक पीस लें अब लगभग 125 ग्राम चने के आटे में मोयन के लिए देसी घी व थोड़ा सा दूध डालकर उसे लोहे या पीतल की कड़ाही में घी डालकर धीमी आंच पर भूनें। बाद में लगभग 125 ग्राम खोआ डालकर, उसे भूनें इसके बात उसमें बादाम की गिरि व तुलसी के बीजों का चूर्ण मिला लें। जब लाल हो जाए, तो इसमें इलायची व काली मिर्च ड़ालकर इस मिश्रण को तुरंत उतार लें। अब मिश्री की चाशनी में केसर डालकर, इस मिश्रण को उसमें डाल दें और अच्छी तरह मिलाएं, गाढ़ा होने पर थाली में ठंड़ा कर टुकड़े करें सर्दी में प्रतिदिन 20 से 100 ग्राम मात्रा दूध के साथ खाने से बल वीर्य बढ़ता हैं। इससे पेट के रोग वातजन्य रोग, शीघ्रपतन, कामशीलता, मस्तिष्क की कमज़ोरी, पुराना जुकाम, कफ आदि में बहुत लाभ होता हैं।
अरिष्ट आसव बनाने के लिए 100 ग्राम बबूल की छाल को लगभग डेढ़ किलो पानी में तब तक उबालें जब तक कि पानी एक चौथाई न हो जाएं। अब इसे छानकर इसमें लगभग अस्सी ग्राम तुलसी का चूर्ण, पांच सौ ग्राम गुड़, 10 ग्राम पीपल तथा 80 ग्राम आंवले के फूल मिला दें। काली मिर्च, जायफल, दालचीनी,ाीतलचीनी, नागकेसर, तमालपत्र तथा छोटी इलायचीं,
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ओ३म् (ॐ) नाम में हिन्दू, मुस्लिम या ईसाइ जैसी कोई बात नहीं है। यह सोचना कि ओ३म् किसी एक धर्म की निशानी है, ठीक बात नहीं, अपितु यह तो तब से चला आया है जब कोई अलग धर्म ही नहीं बना था। बल्कि ओ३म् तो किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों का प्रमुख भाग है। यह तो अच्छाई, शक्ति, ईश्वर भक्ति और आदर का प्रतीक है। उदाहरण के लिए अगर हिन्दू अपने सब मन्त्रों और भजनों में इसको शामिल करते हैं तो ईसाई और यहूदी भी इसके जैसे ही एक शब्द आमेन का प्रयोग धार्मिक सहमति दिखाने के लिए करते हैं। मुस्लिम इसको आमीन कह कर याद करते हैं, बौद्ध इसे ओं मणिपद्मे हूं कह कर प्रयोग करते हैं। सिख मत भी इक ओंकार अर्थात एक ओ३म के गुण गाता है। अंग्रेज़ी का शब्द omni, जिसके अर्थ अनंत और कभी ख़त्म न होने वाले तत्त्वों पर लगाए जाते हैं (जैसे omnipresent, omnipotent) भी वास्तव में इस ओ३म् शब्द से ही बना है। इतने से यह सिद्ध है कि ओ३म् किसी मत, मज़हब या सम्प्रदाय से न होकर पूरी इंसानियत का है। ठीक उसी तरह जैसे कि हवा, पानी, सूर्य, ईश्वर, वेद आदि सब पूरी इंसानियत के लिए हैं न कि केवल किसी एक सम्प्रदाय के लिए।
यजुर्वेद [2/13, 40/15, 17] ऋग्वेद [1/3/7] आदि स्थानों पर तथा इसके अलावा गीता और उपनिषदों में ओ३म् का बहुत गुणगान हुआ है। मांडूक्य उपनिषद तो इसकी महिमा को ही समर्पित है।
- ओ३म् का अर्थ
वैदिक साहित्य इस बात पर एकमत है कि ओ३म् ईश्वर का मुख्य नाम है। योग दर्शन [1/27, 28] में यह स्पष्ट है। यह ओ३म् शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है - अ, उ, म । प्रत्येक अक्षर ईश्वर के अलग अलग नामों को अपने में समेटे हुए है। जैसे अ से व्यापक, सर्वदेशीय, और उपासना करने योग्य है। उ से बुद्धिमान, सूक्ष्म, सब अच्छाइयों का मूल, और नियम करने वाला है। म से अनंत, अमर, ज्ञानवान, और पालन करने वाला है। ये तो बहुत थोड़े से उदाहरण हैं जो ओ३म् के प्रत्येक अक्षर से समझे जा सकते हैं। वास्तव में अनंत ईश्वर के अनगिनत नाम केवल इस ओ३म् शब्द में ही आ सकते हैं, और किसी में नहीं।
वास्तव में हरेक ध्वनि हमारे मन में कुछ भाव उत्पन्न करती है। सृष्टि की शुरूआत में जब ईश्वर ने ऋषियों के हृदयों में वेद प्रकाशित किये तो हरेक शब्द से सम्बंधित उनके निश्चित अर्थ ऋषियों ने ध्यान अवस्था में प्राप्त किये। ऋषियों के अनुसार ओ३म् शब्द के तीन अक्षरों से भिन्न भिन्न अर्थ निकलते हैं, जिनमें से कुछ ऊपर दिए गए हैं।
ऊपर दिए गए शब्द-अर्थ सम्बन्ध का ज्ञान ही वास्तव में वेद मन्त्रों के अर्थ में सहायक होता है और इस ज्ञान के लिए मनुष्य को योगी अर्थात ईश्वर को जानने और अनुभव करने वाला होना चाहिए। परन्तु दुर्भाग्य से वेद पर अधिकतर उन लोगों ने कलम चलाई है जो योग तो दूर, यम नियमों की परिभाषा भी नहीं जानते थे। सब पश्चिमी वेद भाष्यकार इसी श्रेणी में आते हैं। तो अब प्रश्न यह है कि जब तक साक्षात ईश्वर का प्रत्यक्ष ना हो तब तक वेद कैसे समझें ? तो इसका उत्तर है कि ऋषियों के लेख और अपनी बुद्धि से सत्य असत्य का निर्णय करना ही सब बुद्धिमानों को अत्यंत उचित है। ऋषियों के ग्रन्थ जैसे उपनिषद्, दर्शन, ब्राह्मण ग्रन्थ, निरुक्त, निघंटु, सत्यार्थ प्रकाश, भाष्य भूमिका इत्यादि की सहायता से वेद मन्त्रों पर विचार करके अपने सिद्धांत बनाने चाहियें और इसमें यह भी है कि पढने के साथ साथ यम नियमों का कड़ाई से पालन बहुत जरूरी है। वास्तव में वेदों का सच्चा स्वरुप तो समाधि अवस्था में ही स्पष्ट होता है, जो कि यम नियमों के अभ्यास से आती है।
व्याकरण मात्र पढने से वेदों के अर्थ कोई भी नहीं कर सकता। वेद समझने के लिए आत्मा की शुद्धता सबसे आवश्यक है। उदाहरण के लिए संस्कृत में गो शब्द का वास्तविक अर्थ है गतिमान। इससे इस शब्द के बहुत से अर्थ जैसे पृथ्वी, नक्षत्र आदि दिखने में आते हैं। परन्तु मूर्ख और हठी लोग हर स्थान पर इसका अर्थ गाय ही कहते हैं और मंत्र के वास्तविक अर्थ से दूर हो जाते हैं। वास्तव में किसी शब्द के वास्तविक अर्थ के लिए उसके मूल को जानना जरूरी है, और मूल बिना समाधि को जाना नहीं जा सकता। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि हम वेद का अभ्यास ही न करें। किन्तु अपने सर्व सामर्थ्य से कर्मों में शुद्धता से आत्मा में शुद्धता धारण करके वेद का अभ्यास करना सबका कर्त्तव्य है।
यह शब्द अर्थ सम्बन्ध योगाभ्यास से स्पष्ट होता जाता है। परन्तु कुछ उदाहरण तो प्रत्यक्ष ही हैं। जैसे म से ईश्वर के पालन आदि गुण प्रकाशित होते हैं। पालन आदि गुण मुख्य रूप से माता से ही पहचाने जाते हैं। अब विचारना चाहिए कि सब संस्कृतियों में माता के लिए क्या शब्द प्रयोग होते हैं। संस्कृत में माता, हिन्दी में माँ, उर्दू में अम्मी, अंग्रेज़ी में मदर, मम्मी, मॉम आदि, फ़ारसी में मादर, चीनी भाषा में माकुन इत्यादि, सो इतने से ही स्पष्ट हो जाता है कि पालन करने वाले मातृत्व गुण से म का और सभी संस्कृतियों से वेद का कितना अधिक सम्बन्ध है। एक छोटा बच्चा भी सबसे पहले इस म को ही सीखता है और इसी से अपने भाव व्यक्त करता है। इसी से पता चलता है कि ईश्वर की सृष्टि और उसकी विद्या वेद में कितना गहरा सम्बन्ध है।
यम नियम -- यम नियमों का अभ्यास इसका सबसे बड़ा साधन है, यम व नियम संक्षेप से नीचे दिए जाते हैं।
- यम
- अहिंसा (किसी सज्जन और बेगुनाह को मन, वचन या कर्म से दुःख न देना)
- सत्य (जो मन में सोचा हो वही वाणी से बोलना और वही अपने कर्म में करना)
- अस्तेय (किसी की कोई चीज विना पूछे न लेना)
- ब्रह्मचर्य (अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना विशेषकर अपनी यौन इच्छाओं पर पूर्ण नियंत्रण)
- अपरिग्रह (सांसारिक वस्तु भोग व धन आदि में लिप्त न होना)
- नियम
- शौच (मन, वाणी व शरीर की शुद्धता)
- संतोष (पूरे प्रयास करते हुए सदा प्रसन्न रहना, विपरीत परिस्थितियों से दुखी न होना)
- तप (सुख, दुःख, हानि, लाभ, सर्दी, गर्मी, भूख, प्यास, डर आदि की वजह से कभी भी धर्म को न छोड़ना)
- स्वाध्याय (अच्छे ज्ञान, विज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रयास करना)
- ईश्वर प्रणिधान (अपने सब काम ऐसे करना जैसे कि ईश्वर सदा देख रहा है और फिर काम करके उसके फल की चिंता ईश्वर पर ही छोड़ देना)
- ध्यान का नियम -- यम नियम तो आत्मा रुपी बर्तन की सफाई के लिए है ताकि उसमें ईश्वर अपने प्रेम का भोजन दे सके। वह भोजन सुबह शाम एकाग्र मन के साथ ईश्वर से माँगना चाहिए। ओ३म् का उच्चारण इसी भोजन मांगने की प्रक्रिया है, अब क्या करना चाहिए वह नीचे लिखते हैं।
- किसी जगह जहाँ शुद्ध हवा हो, वहां अच्छी जगह पर कमर सीधी कर के बैठ जाएँ, आँख बंद करके थोड़ी देर गहरे सांस धीरे धीरे लीजिये और छोड़िये जिससे शरीर में कोई तनाव न रहे।
- दिन में 4 बार ओ३म् का उच्चारण बहुत उपयोगी है, पहला सुबह सोकर उठते ही, दूसरा शौच व स्नान के बाद, तीसरा सूर्यास्त के समय शाम को और चौथा रात सोने से एकदम पहले. इसके अलावा जब कभी ख़ाली बैठे किसी की प्रतीक्षा या यात्रा कर रहे हों तो भी इसे कर सकते हैं।
- धीरे धीरे उच्चारण की लम्बाई बढ़ा सकते हैं, पर उतनी ही जितनी अपने सामर्थ्य में हो।
- कम से कम एक समय में 5 बार जरूर उच्चारण करें, मुंह से बोलने के बजाय मन में भी उच्चारण कर सकते हैं।
- अपने हर बार के उच्चारण में ईश्वर को पाने की इच्छा और उसके लिए प्रयास करने का वादा मन ही मन ईश्वर से करना चाहिए।
- हर बार उठने से पहले यह प्रतिज्ञा करनी कि अगली बार बैठूँगा तो इस बार से श्रेष्ठ चरित्र का व्यक्ति होकर बैठूँगा, अर्थात हर बार उठने के बाद अपने जीवन का हर काम अपनी इस प्रतिज्ञा को पूरा करते हुए करना, कभी ईश्वर को दी हुई प्रतिज्ञा नहीं तोड़ना।
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