अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस
अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस अथवा 'अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस' अथवा 'अंतरराष्ट्रीय वरिष्ट नागरिक दिवस' प्रत्येक 'वर्ष '1 अक्टूबर' को मनाया जाता है। इस अवसर पर अपने वरिष्ट नागरिकों का सम्मान करने एवं उनके सम्बन्ध में चिंतन करना आवश्यक होता है। आज का वृद्ध समाज अत्यधिक कुंठा ग्रस्त है और सामान्यत: इस बात से सर्बाधिक दु:खी है कि जीवन का विशद अनुभव होने के बावजूद कोई उनकी राय न तो लेना चाहता है और न ही उनकी राय को महत्व ही देता है। इस प्रकार अपने को समाज में एक तरह से निष्प्रयोज्य समझे जाने के कारण हमारा वृद्ध समाज सर्बाधिक दु:खी रहता है। वृद्ध समाज को इस दुःख और संत्रास से छुटकारा दिलाना आज की सबसे बड़ी जरुरत है। इस दिशा में ठोस प्रयास किये जाने की बहुत आवश्यकता है।
शुरुआत
संयुक्त राष्ट्र ने विश्व में बुजुर्गों के प्रति हो रहे दुर्व्यवहार और अन्याय को समाप्त करने के लिए और लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए 14 दिसम्बर, 1990 को यह निर्णय लिया कि हर साल '1 अक्टूबर' को 'अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस' के रूप में मनाकर हम बुजुर्गों को उनका सही स्थान दिलाने की कोशिश करेंगे। 1 अक्टूबर, 1991 को पहली बार 'अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस' मनाया गया, जिसके बाद से इसे हर साल इसी दिन मनाया जाता है।[1]
वृद्धजनों की अवहेलना
एक पेड़ जितना ज्यादा बड़ा होता है, वह उतना ही अधिक झुका हुआ होता है; यानि वह उतना ही विनम्र और दूसरों को फल देने वाला होता है| यही बात समाज के उस वर्ग के साथ भी लागू होती है, जिसे आज की तथाकथित युवा तथा उच्च शिक्षा प्राप्त पीढ़ी बूढ़ा कहकर वृद्धाश्रम में छोड़ देती है। वह लोग भूल जाते हैं कि अनुभव का कोई दूसरा विकल्प दुनिया में है ही नहीं। अनुभव के सहारे ही दुनिया भर में बुजुर्ग लोगों ने अपनी अलग दुनिया बना रखी है। जिस घर को बनाने में एक इंसान अपनी पूरी जिंदगी लगा देता है, वृद्ध होने के बाद उसे उसी घर में एक तुच्छ वस्तु समझ लिया जाता है। बड़े बूढ़ों के साथ यह व्यवहार देखकर लगता है जैसे हमारे संस्कार ही मर गए हैं। बुजुर्गों के साथ होने वाले अन्याय के पीछे एक मुख्य वजह सामाजिक प्रतिष्ठा मानी जाती है। सब जानते हैं कि आज हर इंसान समाज में खुद को बड़ा दिखाना चाहता है और दिखावे की आड़ में बुजुर्ग लोग उसे अपनी सुंदरता पर एक काला दाग दिखते हैं। बड़े घरों और अमीर लोगों की पार्टी में हाथ में छड़ी लिए और किसी के सहारे चलने वाले बुढ़ों को अधिक नहीं देखा जाता, क्योंकि वह इन बूढ़े लोगों को अपनी आलीशान पार्टी में शामिल करना तथाकथित शान के ख़िलाफ़ समझते हैं। यही रुढ़िवादी सोच उच्च वर्ग से मध्यम वर्ग की तरफ चली आती है। आज के समाज में मध्यम वर्ग में भी वृद्धों के प्रति स्नेह की भावना कम हो गई है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस : समाज के अनुभवी स्तंभ (हिन्दी) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 01 अक्टूबर, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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