पितृ दिवस
पितृ दिवस
| |
विवरण | पिताओं के सम्मान में एक व्यापक रूप से मनाया जाने वाला पर्व है। |
उद्देश्य | पितृत्व, पितृत्व-बंधन तथा समाज में पिताओं के प्रभाव को समारोह पूर्वक मनाया जाता है। |
तिथि | जून का तीसरा रविवार[1] |
कैसे मनाएँ | सुबह उठते ही अपने पिता को इस दिन की बधाई दें। यदि आप उन्हें कोई उपहार देने में समर्थ हैं तो अवश्य दें। |
शुरुआत | 20वीं सदी |
संबंधित लेख | बाल दिवस, मातृ दिवस, विश्व परिवार दिवस |
अन्य जानकारी | पितृ दिवस सबसे पहले पश्चिम वर्जीनिया के फ़ेयरमोंट में 5 जुलाई, 1908 को मनाया गया था। 6 दिसम्बर, 1907 को मोनोंगाह, पश्चिम वर्जीनिया में एक खान दुर्घटना में मारे गए 210 पिताओं के सम्मान में इस विशेष दिवस का आयोजन श्रीमती ग्रेस गोल्डन क्लेटन ने किया था। |
पितृ दिवस / 'पिता दिवस' / 'फ़ादर्स डे' पिताओं के सम्मान में एक व्यापक रूप से मनाया जाने वाला पर्व है, जिसमें पितृत्व, पितृत्व-बंधन तथा समाज में पिताओं के प्रभाव को समारोह पूर्वक मनाया जाता है। विश्व के अधिकतर देशों में इसे जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। कुछ देशों में यह अलग-अलग दिनों में मनाया जाता है। यह माता के सम्मान हेतु मनाये जाने वाले मातृ दिवस का पूरक है।
पिता
पिता एक ऐसा शब्द जिसके बिना किसी के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। एक ऐसा पवित्र रिश्ता जिसकी तुलना किसी और रिश्ते से नहीं हो सकती। बचपन में जब कोई बच्चा चलना सीखता है तो सबसे पहले अपने पिता की उंगली थामता है। नन्हा सा बच्चा पिता की उँगली थामे और उसकी बाँहों में रहकर बहुत सुकून पाता है। बोलने के साथ ही बच्चे जिद करना शुरू कर देते है और पिता उनकी सभी जिदों को पूरा करते हैं। बचपन में चॉकलेट, खिलौने दिलाने से लेकर युवावर्ग तक बाइक, कार, लैपटॉप और उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजने तक आपकी सभी माँगों को वो पूरा करते रहते हैं लेकिन एक समय ऐसा आता है जब भागदौड़ भरी इस ज़िंदगी में बच्चों के पास अपने पिता के लिए समय नहीं मिल पाता है। इसी को ध्यान में रखकर पितृ दिवस मनाने की परंपरा का आरम्भ हुआ।[2]
इतिहास
पितृ दिवस की शुरुआत बीसवीं सदी के प्रारंभ में पिता धर्म तथा पुरुषों द्वारा परवरिश का सम्मान करने के लिये मातृ दिवस के पूरक उत्सव के रूप में हुई। यह हमारे पूर्वजों की स्मृति और उनके सम्मान में भी मनाया जाता है। पितृ दिवस को विश्व में विभिन तारीखों पर मनाते है- जिसमें उपहार देना, पिता के लिये विशेष भोज एवं पारिवारिक गतिविधियाँ शामिल हैं। आम धारणा के विपरीत, वास्तव में पितृ दिवस सबसे पहले पश्चिम वर्जीनिया के फेयरमोंट में 5 जुलाई, 1908 को मनाया गया था। 6 दिसम्बर, 1907 को मोनोंगाह, पश्चिम वर्जीनिया में एक खान दुर्घटना में मारे गए 210 पिताओं के सम्मान में इस विशेष दिवस का आयोजन श्रीमती ग्रेस गोल्डन क्लेटन ने किया था। 'प्रथम फ़ादर्स डे चर्च' आज भी सेन्ट्रल यूनाइटेड मेथोडिस्ट चर्च के नाम से फ़ेयरमोंट में मौजूद है
पौराणिक मान्यता
हमारे ग्रन्थों में माता-पिता और गुरु तीनों को ही देवता माना गया है। जिस स्थूल जगत् में हम हैं, उसमें वही हमारे वास्तविक देवता हैं। इनकी सेवा और भक्ति में कसर रह जाए तो फिर ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं। और अगर हमने इनकी सेवा पूरे मन से की तो भगवान स्वयं कच्चे धागे से बंधे भक्त के पीछे-पीछे चल पड़ते हैं। आखिर श्रवण कुमार में ऐसा क्या ख़ास था कि किसी भी भगवान से उनकी अहमियत कम नहीं है। माता-पिता की भक्ति और सेवा ने उसे भक्त प्रह्लाद और ध्रुव के बराबर का आसन दिलाया है।
पिता चाहे कैसे भी वचन बोले, कैसा भी बर्ताव करे, संतान को उनके प्रति श्रद्धा और विनम्रता से आज्ञाकारी होना ही चाहिए। केवल इतना सूत्र भर साध लेने से हम उस ईश्वर के राज्य के अधिकारी बन जाते हैं, जिसे पाने के लिए जाने कितने तपस्वियों ने शरीर गलाया, बरसों साधना की। कन्धे पर माता-पिता को लेकर तीर्थ कराने निकला श्रवण जब उनकी प्यास बुझने के लिए पानी भरते हुए राजा दशरथ का एक तीर लग जाने से प्राण त्यागता है, तब यही कहता है- "मेरे माता-पिता प्यासे हैं, आप उन्हें जाकर पानी पिला दें।" प्राण त्यागते हुए भी जिसे अपने माता-पिता का ध्यान रहे, वह संतान उस युग में ही नहीं, इस युग में भी धन्य है। उसे किसी काल की परिधि में नहीं बांध सकते।[3]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विश्व के अधिकतर देशों में इसे जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। कुछ देशों में यह अलग-अलग दिनों में मनाया जाता है।
- ↑ पापा को दें कुछ ख़ास और यादगार (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वेबदुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 28 मई, 2013।
- ↑ कल पिता-दिवस है, आज कर लेते हैं परमपिता को याद (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) लाइव हिंदुस्तान। अभिगमन तिथि: 28 मई, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख