अतिसार
अतिसार या डायरिया (अंग्रेज़ी:Diarrhea) उस दशा का नाम है, जिसमें बार-बार मल त्याग करना पड़ता है या मल बहुत पतले होते हैं या दोनों ही स्थितियां हो सकती हैं। पतले दस्त, जिनमें जल का भाग अधिक होता है, थोड़े-थोड़े समय के अंतर से आते रहते हैं। जिसमें आहार का पक्वावशेष आंत्रनाल में होकर असामान्य द्रुतगति से प्रवाहित होता है। परिणामस्वरूप पतले दस्त, यह दशा उग्र तथा जीर्ण दोनों प्रकार की पाई जाती है।
प्रकार
डायरिया की दो स्थितियां होती हैं- एक, जिसमें दिन में पांच बार से अधिक मल त्याग करना पड़ता है, या पतला मल आता है। इसे डायरिया की गंभीर स्थिति कहा जा सकता है। आनुपातिक डायरिया में व्यक्ति सामान्यतः जितनी बार मल त्यागता है, उससे कुछ ज्यादा बार और कुछ पतला मल त्यागता है।[1]
उग्र
उग्र या ऐक्यूट [2] अतिसार का कारण प्राय आहारजन्य विष, खाद्य विशेष के प्रति असहिष्णुता या संक्रमण होता है। कुछ विषों से भी, जैसे संखिया या पारद के लवण से, दस्त होने लगते हैं।
जीर्ण
जीर्ण या क्रॉनिक [3] अतिसार बहुत कारणों से हो सकता है। आमाशय अथवा अग्न्याशय ग्रंथि के विकास से पाचन विकृत होकर अतिसार उत्पन्न कर सकता है। आंत्र के रचनात्मक रोग, जैसे अर्बुद, संकिरण [4] आदि, अतिसार के कारण हो सकते हैं। जीवाणुओं द्वारा संक्रमण तथा जैवविषों [5] द्वारा भी अतिसार उत्पन्न हो जाता है। इन जैवविषों के उदाहरण हैं रक्तविषाक्तता [6] तथा रक्तपूरिता [7]। कभी निस्रावी [8] विकार भी अतिसार के रूप में प्रकट होते हैं, जैसे ऐडीसन के रोग और अत्यवटुकता [9]। भय, चिंता था मानसिक व्यथाएँ भी इस दशा को उत्पन्न कर सकती हैं। तब यह मानसिक अतिसार कहा जाता है।
लक्षण
अतिसार का मुख्य लक्षण, और कभी-कभी अकेला लक्षण, विकृत दस्तों का बार-बार आना होता है। तीव्र दशाओं में उदर के समस्त निचले भाग में पीड़ा तथा बेचैनी प्रतीत होती है अथवा मलत्याग के कुछ समय पूर्व मालूम होता है। धीमे अतिसार के बहुत समय तक बने रहने से, या उग्र दशा में थोड़े ही समय में, रोगी का शरीर कृश हो जाता है और जल ह्रास [10] की भयंकर दशा उत्पन्न हो सकती है। खनिज लवणों के तीव्र ह्रास से रक्तपूरिता तथा मूर्च्छा [11] उत्पन्न होकर मृत्यु तक हो सकती है।[1]
चिकित्सा
चिकित्सा के लिए रोगी के मल की परीक्षा करके रोग के कारण का निश्चय कर लेना आवश्यक है, क्योंकि चिकित्सा उसी पर निर्भर है। उस कारण को जानकर उसी के अनुसार विशिष्ट चिकित्सा करने से लाभ हो सकता है। रोगी को पूर्ण विश्राम देना तथा क्षोभक आहार बिलकुल रोग देना आवश्यक है। उपयुक्त चिकित्सा के लिए किसी विशेषज्ञ चिकित्सक का परामर्श उचित है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ