चुप्पियाँ तोड़ना ज़रुरी है लब पे कोई सदा ज़रुरी है आइना हमसे आज कहने लगा ख़ुद से भी राब्ता ज़रुरी है हमसे कोई ख़फ़ा-सा लगता है कुछ न कुछ तो हुआ ज़रुरी है ज़िंदगी ही हसीन हो जाए इक तुम्हारी रज़ा ज़रुरी है अब दवा का असर नहीं होगा अब किसी की दुआ ज़रुरी है