रश्मि -महादेवी वर्मा
रश्मि -महादेवी वर्मा
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कवि | महादेवी वर्मा |
प्रकाशक | राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशन तिथि | 1932 |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
प्रकार | काव्य संग्रह |
मुखपृष्ठ रचना | अजिल्द |
रश्मि महादेवी वर्मा का दूसरा कविता संग्रह है। इसका प्रकाशन 1932 में हुआ। इसमें 1927 से 1931 देवी जी का चिंतन और दर्शन पक्ष मुखर होता प्रतीत होता है। 'रश्मि' काव्य में महादेवी जी ने जीवन -मृत्यु ,सुख -दुःख आदि पर अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया है।
रश्मि (कविता)
चुभते ही तेरा अरुण बान!
बहते कन कन से फूट फूट,
मधु के निर्झर से सजल गान।
इन कनक रश्मियों में अथाह,
लेता हिलोर तम-सिन्धु जाग;
बुदबुद से बह चलते अपार,
उसमें विहगों के मधुर राग;
बनती प्रवाल का मृदुल कूल,
जो क्षितिज-रेख थी कुहर-म्लान।
नव कुन्द-कुसुम से मेघ-पुंज,
बन गए इन्द्रधनुषी वितान;
दे मृदु कलियों की चटक, ताल,
हिम-बिन्दु नचाती तरल प्राण;
धो स्वर्णप्रात में तिमिरगात,
दुहराते अलि निशि-मूक तान।
सौरभ का फैला केश-जाल,
करतीं समीरपरियां विहार;
गीलीकेसर-मद झूम झूम,
पीते तितली के नव कुमार;
मर्मर का मधु-संगीत छेड़,
देते हैं हिल पल्लव अजान!
फैला अपने मृदु स्वप्न पंख,
उड़ गई नींदनिशि क्षितिज-पार;
अधखुले दृगों के कंजकोष--
पर छाया विस्मृति का खुमार;
रंग रहा हृदय ले अश्रु हास,
यह चतुर चितेरा सुधि विहान!
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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