छप्पर

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छप्पर

छप्पर कच्चे मकानों, झोपड़ियों आदि की उस छाजन को कहते हैं जो बाँसों, लकड़ियों तथा फूस की बनी होती है। किसी प्रकार का आवरण जो रक्षा के लिए ऊपर लगाया जाय, उसे भी छप्पर कहते हैं; जैसे-नाव पर का छप्पर। इसे संस्कृत में छत्त्वर, प्रकृत में छप्पर, बांग्ला में छापर, उड़िया में छपर, गुजराती में छाप्रो, नेपाली में छाप्रो, और मराठी में छप्पर के नाम से जाना जाता है।

शब्द प्रयोग

  • मुहावरा (किसी पर) छप्पर टूट पड़ना एकाएक कोई विपत्ति या संकट आ पड़ना।
  • (किसी को) छप्पर पर रखना नगण्य समझना।
  • छप्पर शब्द का उपयोग प्रेमचंद ने अपनी कहानी सौत में इस प्रकार किया है।

"तिगरते हुए छप्पर को थूनियों से सम्हालने की चेष्टा कर रही थी।"

  • छप्पर शब्द का उपयोग राकेश भ्रमर ने अपनी कहानी सूखा में इस प्रकार किया है।

"गांव के छप्पर वाले घरों में आग लगने की घटनां आम हो चुकी थीं।"

  • छप्पर शब्द का उपयोग सुभाष नीरव ने अपनी कहानी सांप में इस प्रकार किया है।

"रब्ब भी जब देता है तो छप्पर फाड़कर देता है।"


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


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