गऊरा गऊरी गीत

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छत्तीसगढ़ में 'गऊरा गऊरी उत्सव' बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। 'गऊरा' भगवान शिव हैं तथा 'गऊरी' माता पार्वती हैं। यह लोक उत्सव प्रत्येक वर्ष 'दीपावली' और लक्ष्मी पूजा के बाद मनाया जाता है। कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या के समय यह उत्सव मनाया जाता है। इस पूजा में सभी जाति समुदाय के लोग शामिल होते हैं।[1]

त्यौहार की शुरुआत

छत्तीसगढ़ में 'शुरुहुत्ति' त्यौहार 'दीपावली पूजा' के दिन को कहते हैं। अर्थात त्यौहार की शुरुआत। शाम चार बजे उस दिन लोग झुंड में गांव के बाहर जाते हैं और एक स्थान पर पूजा करते हैं। उसके बाद उसी स्थान से मिट्टी लेकर गांव वापस आते हैं। गांव वापस आने के बाद मिट्टी को गीला करते हैं और उस मिट्टी से शिव-पार्वती की मूर्ति बनाते हैं। शिव हैं 'गऊरा' और पार्वती 'गऊरी' हैं। मूर्तियाँ बनाने के बाद लकड़ी के पिड़हे पर उन्हें रखकर बड़ी सुन्दरता के साथ सजाया जाता है। लकड़ी के एक पिड़हे पर बैल पर गऊरा को और दूसरे पिड़हे पर कछुए पर गऊरी को बैठाया जाता है। पिड़हे के चारों कोनों में चार खम्बे लगाकर उसमें दिया, तेल, बत्ती लगाया जाता हैं।

झाँकी भ्रमण

रात को लक्ष्मी पूजन के बाद रात बारह बजे से गऊरा गऊरी झांकी पूरे गांव में घूमती रहती है। घूमते वक्त दो कुंवारे लड़के या लड़कियाँ गऊरा गऊरी के पिड़हे सर पर रखकर चलते हैं और आसपास गऊरा गऊरी गीत आरम्भ हो जाते हैं। नाच-गाना दोनों ही आरम्भ हो जाते हैं। गाते, नाचते हुए लोग झांकी के आसपास मंडराते हुए गांव की परिक्रमा करते हैं। कुछ पुरुष एवं महिलाएँ इतने जोश के साथ नाचते हैं कि वे अलग ही नज़र आते हैं। लोगों का विश्वास है, उस वक्त देव देवी उन पर सवार होते हैं।

गायन तथा वादन

गऊरा लोक गीत सिर्फ़ महिलाएँ ही गाती हैं। महिलाएँ गाती हैं और पुरुष दमऊ, सींग बाजा, ढोल, गुदुम, मोहरी, मंजीरा, झुमका, दफड़ा, ट्रासक आदि वाद्य बजाते हैं। इसे 'गंडवा बाजा' कहते हैं, क्योंकि इन वाद्यों को गोंड जाति के लोग ही बजाते हैं। इस उत्सव के पहले जो पूजा होती है, वह बैगा जाति के लोग करते हैं। इस पूजा को कहते हैं- 'चावल चढ़ाना', क्योंकि गीत गाते हुये गऊरा गऊरी को चावल चढ़ाया जाता है।

गीत

महिलाएँ गीत गा रही हैं और चावल चढ़ाया जा रहा है। एक पतरी चावल, दो पतरी चावल, ...

एक पतरी रयनी भयनी।
राय रतन ओ दुरगा देवी।।
तोरे शीतल छांय।
चौकी चंदन पिढुली।।
गऊरी के होथय मान।।
जइसे गऊरी ओ मान तुम्हारे।।
कोरवन जइसे धार।
कोरवन असन डोहरी।
बरस ससलगे डार।।

दू पतरी रयनी भयनी।
राय रतन ओ दुरगा देवी।।
तोरे शीतल छांय।
चौकी चंदन पिरुरी।।
गऊरी के होथय मान।।
जइसे गऊरी ओ मान तुम्हारे।।
जइसे कोरवन धार।
कोरवन असन डोहरी।
बरस ससलगे डार।।
 
तीन पतरी रयनी भयनी।
राय रतन ओ दुरगा देवी।।
तोरे शीतल छांय।
चौकी चंदन पिरुरी
गऊरी के होथेय मान।।
जइसे गऊरी ओ मान तुम्हारे।।
जइसे गऊरी ओ मान तुम्हारे।।
जइसे कोरवन धार।
कोरवन असन डोहरी।
बरस ससलगे डार।।
 
चार पतरी रयनी भयनी।
राय रतन ओ दुरगा देवी।।
तोरे शीतल छांय।
चौकी चंदन पिरुरी
गऊरी के होथेय मान।।
जइसे कोरवन धार।
कोरवन असन डोहरी।
बरस ससलगे डार।।
 
पांच पतरी रयनी भयनी।
राय रतन ओ दुरगा देवी।।
तोरे शीतल छांय।
चौकी चंदन पीरुरी
गऊरी के होथेय मान।।
जइ से गऊरी ओ मान तुम्हारे।।
जइ से गऊरी ओ मान तुम्हारे।।
जइसे कोरवन धार।
कोरवन असन डोहरी।
बरस ससलगे डार।।
 
छय पतरी रयनी भयनी।
राय रतन ओ दुरगा देवी।।
तोरे शीतल छांय।
चौकी चंदन पीरुरी
गऊरी के होथेय मान।।
जइसे गऊरी ओ मान तुम्हारे।।
जइसे कोरवन धार।
कोरवन असन डोहरी।
बरस ससलगे डार।।
 
सात पतरी रयनी भयनी।
राय रतन ओ दुरगा देवी।।
तोरे शीतल छांय।
चौकी चंदन पीरुरी
गऊरी के होथेय मान।।
जइ से गऊरी ओ मान तुम्हारे।।
जइसे कोरवन धार।
कोरवन असन डोहरी।
बरस ससलगे डार।।

इस गीत में महिलाएँ देवी दुर्गा को कह रही हैं- "हे माँ, आपकी शीतल छांव में चौकी, चंदन पिढ़वी में गऊरा गऊरी को बिठा रहे हैं। कपूर के साथ हम आरती उतार रहे हैं। एक पतरी ... सात पतरी चावल चढ़ा रहे हैं। अगर कोई भूल हो गई तो हमें माफ करना।" इसी तरह गीत गाते हुए, नाचते हुए पूरे गांव की परिक्रमा रातभर करते हैं। यह प्रथा बहुत ही सुन्दर और हृदय को छू लेने वाली है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गऊरा गऊरी गीत (हिन्दी) इग्निका। अभिगमन तिथि: 13 जून, 2015।

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