लोहागढ़ क़िला, भरतपुर
लोहागढ़ क़िला | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- लोहागढ़ क़िला (बहुविकल्पी) |
लोहागढ़ क़िला, भरतपुर
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विवरण | 'लोहागढ़ क़िला' राजस्थान के प्रसिद्ध ऐतिहासिक तथा पर्यटन स्थलों में से एक है। यह क़िला अपनी मज़बूती के कारण इतिहास में अजेय रहा है। | ||
राज्य | राजस्थान | ||
ज़िला | भरतपुर | ||
निर्माता | जाट राजा सूरजमल | ||
निर्माण काल | मध्य काल | ||
प्रसिद्धि | ऐतिहासिक स्थल | ||
कैसे पहुँचें | जयपुर, आगरा और दिल्ली से बस या कार द्वार सुलभता से लोहागढ़ पहुंचा जा सकता है। | ||
संबंधित लेख | राजस्थान, राजस्थान का इतिहास, भरतपुर, भारत के दुर्ग | नामकरण | लोहे जैसी मज़बूती के कारण ही इस दुर्ग को 'लोहागढ़' या 'आयरन फ़ोर्ट' कहा गया। |
अन्य जानकारी | ऐसा विश्वास किया जाता हे कि भरतपुर का लोहागढ़ दुर्ग असल में चित्तौड़गढ़ दुर्ग का प्रवेश द्वार था। लेकिन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी ने इसे हथिया लिया। |
लोहागढ़ क़िला भरतपुर, राजस्थान में स्थित एक प्रसिद्ध क़िला है। राजस्थान शौर्य और वीरता की गाथाओं से भरा हुआ है। राजपूतों के शौर्य और वीरता के आगे मुग़लों और ब्रिटिशों ने घुटने टेक दिए थे। राजस्थान के राजपूतों के इसी शौर्य को यहां के दुर्गों ने एक असीम ताकत दी। भरतपुर का लोहागढ़ दुर्ग भी ऐसा ही दुर्ग है, जिसने राजस्थान के जाट शासकों का वर्षों तक संरक्षण किया। छह बार इस दुर्ग को घेरा गया, लेकिन आखिर शत्रु को हारकर पीछे हटना पड़ा। लोहे जैसी मज़बूती के कारण ही इस दुर्ग को 'लोहागढ़' या 'आयरन फ़ोर्ट' कहा गया।
निर्माणकर्ता
लोहागढ़ दुर्ग राजस्थान के प्रवेशद्वार भरतपुर में स्थित है। यह लोहे जैसा मज़बूत दुर्ग भरतपुर के जाट शासक सूरजमल द्वारा निर्मित कराया गया था। महाराजा सूरजमल एक शक्तिशाली और समृद्ध शासक थे। उन्होंने कई दुर्गों का निर्माण कराया। दुर्गों के इतिहास पर नजर डाली जाए तो लोहागढ़ सबसे मज़बूत क़िला नज़र आएगा। कहा जाता है कि अंग्रेज़ों ने इस दुर्ग की चार बार घेराबंदी की, लेकिन हर बार उन्हें घेरा उठाना पड़ा।[1]
द्वार
सन 1805 ई. में ब्रिटिश जनरल लॉर्ड लेक ने बड़ी सेना लेकर इस दुर्ग पर हमला कर दिया था। यह उसका दूसरा प्रयास था, लेकिन फिर भी वह दुर्ग हासिल नहीं कर सका और उसे 3000 सैनिक खोने के बाद राजा से समझौता कर पीछे हटना पड़ा। इस दमदार क़िले के दो दरवाज़े हैं, उत्तर में आठ बुर्जों वाला दरवाज़ा 'अष्टबुर्जा' कहलाता है, यह दरवाज़ा अष्टधातु से बना हुआ है। जबकि दक्षिणी छोर वाले दरवाज़े को 'चारबुर्जा' कहा जाता है।
स्मारक
दुर्ग में कई स्मारक, महल, छतरियां और जलाशय हैं। इनमें 'किशोरी महल', 'महल ख़ास' और 'कोठी ख़ास' महत्वपूर्ण हैं। यहां का 'मोती महल' और दो मीनारें जवाहर बुर्ज और फतेह बुर्ज अंग्रेज़ों और मुग़लों पर जीत के उपलक्ष में निर्मित की गई थी। दुर्ग के मुख्य द्वार पर पत्थर पर उकेरे गए विशाल हाथी आकर्षण का केंद्र हैं।
लोहे जैसी मज़बूती
लोहागढ़ का निर्माण अठारहवीं सदी में कराया गया था। सुरक्षा को और अधिक पुख्ता करने के लिए लोहागढ़ के चारों ओर गहरी खाई खुदवाकर पानी भरवाया गया। आज भी इस दुर्ग के चारों ओर खाई और पानी मौजूद है।
खास बात यह है कि यह क़िला दो ओर से मिट्टी की दीवारों से सुरक्षित किया गया था। इन मिट्टी की दीवारों पर तोप के गोलों और गोलियों का असर नहीं होता था और इनके अंदर छुपा दुर्ग सुरक्षित रहता था। मिट्टी की दीवारों से इतनी पुख्ता सुरक्षा के कारण एक कहावत घर-घर में चल पड़ी थी कि "जाट मिट्टी से भी सुरक्षा के उपाय खोज लेते हैं।"[1]
दुर्ग के चारों ओर 150 फीट चौड़ी और 50 फीट गहरी खाई खोदकर भी उन्होंने दुर्ग की सुरक्षा को इतना मज़बूत बना दिया था कि इस छोटे दुर्ग पर कब्जा करने का अवसर न मुग़लों को मिला और न ब्रिटिश को। कहा जाता था कि दुर्ग के चारों ओर खाई में भरे पानी में सैंकड़ों मगरमच्छ छोड़े गए थे। अगर सेनाएं पानी में तैरकर दुर्ग तक पहुंचने की कोशिश करतीं तो ये मगरमच्छ उन्हें फाड़कर खा जाया करते थे। नौकाओं को पलट दिया करते थे और पानी में गिरे शख्स का बुरा हाल करते थे। दुर्ग के मुख्यद्वार को खाई के ऊपर ईंट और पत्थर के एक कृत्रिम पुल से जोड़ा गया था। मुख्यद्वार पर बने हाथियों के विशाल और खूबसूरत भित्तिचित्र समय की धूल खाकर धुंधले पड़ गए हैं, लेकिन लोहागढ़ आज भी अपनी मज़बूती और गौरवशाली इतिहास पर इतराता शान से खड़ा है।
चित्तौड़ का द्वार
ऐसा विश्वास किया जाता हे कि भरतपुर का लोहागढ़ दुर्ग असल में चित्तौड़गढ़ दुर्ग का प्रवेश द्वार था। लेकिन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी ने इसे हथिया लिया। सत्रहवीं सदी में जाट सेनाओं ने एकजुट होकर मुग़लों से यह दुर्ग वापिस छीन लिया। यह दुर्ग राजस्थान के अन्य क़िलों से अलग है। स्थापत्य के लिहाज से भले यह चमत्कृत करने वाली खूबसूरती से ओत-प्रोत नहीं है, लेकिन मज़बूती में इस क़िले जैसा दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। अपनी मज़बूत बनावट और शक्ति के बल पर यह असीम आभा से भरा हुआ दुर्ग प्रतीत होता है।[1]
कैसे पहुंचें
भरतपुर जयपुर-आगरा हाइवे पर स्थित है, इसलिए जयपुर, आगरा और दिल्ली से बस या कार द्वार सुलभता से लोहागढ़ पहुंचा जा सकता है। भरतपुर दिल्ली, मुंबई ब्रॉड गेज लाइन और दिल्ली आगरा जयपुर अहमदाबाद लाइनों से भी जुड़ा है। इसलिए ट्रेन द्वारा पहुंचकर भी लोहागढ़ के दर्शन किए जा सकते हैं। जयपुर सबसे नजदीकी हवाईअड्डा है, जयपुर हवाईअड्डे से पांच-छह घंटों का सफर कर भरतपुर पहुंचा जा सकता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 लोहागढ़ दुर्ग, भरतपुर (हिन्दी) पिंकसिटी.कॉम। अभिगमन तिथि: 12 मार्च, 2015।
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